मंगलवार, 08 नवंबर 2022
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यात्रा के इस लेख में मैं आपको उत्तराखंड के कुछ प्रसिद्ध प्रयागों के दर्शन करवाऊँगा और इनसे संबंधित जरूरी जानकारी भी दूंगा ! वैसे तो मैं इन पाँच प्रयागों में से दो प्रयाग कई बार देख चुका हूँ, लेकिन इस बार अपनी बद्रीनाथ यात्रा के दौरान हमें इन सभी प्रयागों पर जाने का अवसर मिला ! उत्तराखंड को ऐसे ही देवभूमि का दर्जा प्राप्त नहीं है, यहाँ आप किसी भी मार्ग पर चले जाइए, आपको धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से जुड़े अनेकों दर्शनीय स्थल देखने को मिल जाएंगे, कुछ स्थानों का जिक्र तो हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी देखने को मिलता है ! बस इन्हीं स्थानों को देखने और इनके महत्व को जानने के लिए अक्सर मैं भी उत्तराखंड के अलग-2 क्षेत्रों में घूमने निकल पड़ता हूँ ! इस बार जब बद्रीनाथ यात्रा पर जाना तय हो गया, तो मैंने इस मार्ग पर पड़ने वाले सभी प्रयागों और अन्य दर्शनीय स्थलों से संबंधित जानकारी जुटानी शुरू कर दी ! बद्रीनाथ मार्ग पर वैसे तो अलकनंदा नदी में छोटी-बड़ी कई नदियां आकर मिलती है लेकिन 5 प्रयाग ऐसे है जो काफी महत्वपूर्ण है और इस मार्ग पर यात्रा करने वाले अधिकतर श्रद्धालु इन प्रयागों के दर्शन करने के बाद ही बद्रीनाथ के दर्शन के लिए जाते है ! अपनी अन्य यात्राओं की तरह इस यात्रा को लेकर भी मेरे मन में बहुत उत्साह था, वैसे भी रोड ट्रिप मुझे हमेशा से ही प्रिय रहे है ! तो चलिए, इस मार्ग पर पड़ने वाले पहले प्रयाग से शुरुआत करते है, हरिद्वार से बद्रीनाथ जाने वाले मार्ग पर 95 किलोमीटर चलने के बाद पहला प्रयाग स्थित है जिसे हम देवप्रयाग के नाम से जानते है ! उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित ये प्रयाग सतोपंथ ग्लेशियर से बहकर आती अलकनंदा और गौमुख ग्लेशियर से आती भागीरथी नदियों का संगम स्थल है !
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सड़क से दिखाई देता देवप्रयाग का नजारा |
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देवप्रयाग से थोड़ा पहले |
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संगम से दिखाई देता अलकनंदा नदी का एक दृश्य |
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घाट पर बना एक मंदिर |
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घाट से दिखाई देता भागीरथी का एक दृश्य |
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देवप्रयाग संगम से ही गंगा नदी शुरू होती है |
इन
दोनों पवित्र नदियों के संगम के बाद ही इस नदी का नाम गंगा पड़ा, जो ऋषिकेश,
हरिद्वार से होते हुए मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है और लगभग 2500 किलोमीटर का सफर
तय करके बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है ! देवप्रयाग में भागीरथी नदी को पार करके
बद्रीनाथ मार्ग पर आगे बढ़ते हुए मुख्य सड़क के बगल से सीढ़ियों का एक मार्ग नीचे को
जाता है, इन्हीं सीढ़ियों से नीचे उतरकर देवप्रयाग के संगम स्थल पर बने घाट तक पहुँचा
जा सकता है ! देवप्रयाग में घाट से थोड़ा पहले रघुनाथ जी का एक मंदिर भी है, भगवान
राम और माँ सीता को समर्पित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आदि गुरु
शंकराचार्य ने किया था, हालांकि, बाद में अलग-2 समय पर इस मंदिर का जीर्णोंद्वार
होता रहा ! कहा जाता है कि रावण वध के बाद ब्राह्मण हत्या के पाप से मुक्ति पाने
के लिए भगवान राम ने यहाँ रुककर काफी समय तक आराधना की थी ! चार-धाम की यात्रा के
दौरान देवप्रयाग एक प्रमुख पड़ाव है, इसलिए लोग यहाँ रघुनाथ मंदिर में दर्शन करके
और घाट पर स्नान करने के बाद ही अपना आगे का सफर जारी रखते है ! देवप्रयाग से आगे
बढ़ने पर लगभग 66 किलोमीटर दूर इस मार्ग का दूसरा प्रमुख प्रयाग आता है जिसे हम रुद्रप्रयाग
के नाम से जानते है ! उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित ये प्रयाग चौराबारी ग्लेशियर से
आती मंदाकिनी नदी और सतोपंथ ग्लेशियर से आती अलकनंदा नदी का संगम स्थल है ! संगम स्थल से थोड़ा ऊपर देवर्षि नारद जी का एक मंदिर बना है जहां नारद जी की तपस्या से प्रसन्न होकर
भोलेनाथ ने उन्हें रुद्र रूप में दर्शन दिए थे, इसीलिए इस प्रयाग का नाम
रुद्रप्रयाग पड़ा ! कहते है कि भोलेनाथ के दर्शन के बाद ही नारद जी को संगीत साधना की
प्राप्ति हुई थी !
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रुद्रप्रयाग में दिखाई देता संगम का एक दृश्य |
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घाट से दिखाई देता एक दृश्य |
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घाट से दिखाई देता एक अन्य दृश्य |
संगम स्थल पर बने घाट तक
जाने के लिए मुख्य मार्ग से हटकर एक संकरी गली से होते हुए रास्ता जाता है, इसी
मार्ग पर आगे जाकर नारद जी का ये मंदिर है ! मंदिर के ठीक सामने नीचे की ओर कुछ सीढ़ियाँ
बनी है, जो नीचे घाट तक जाती है, इन सीढ़ियों से उतरकर एक बड़े चबूतरे पर माता का एक
मंदिर बना है जहां माँ गंगा के अलावा कुछ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी
स्थापित है, इस मंदिर से घाट तक जाने के लिए बनी सीढ़ियाँ एकदम खड़ी है इसलिए नीचे जाते हुए अतिरिक्त सावधानी बरतने कि जरूरत है ! मंदिर प्रांगण से
संगम और घाट का शानदार दृश्य दिखाई देता है, घाट के दूसरी ओर लोग अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के लिए भी आते है ! इस घाट से वापिस मुख्य मार्ग पर आकर
मंदाकिनी नदी के किनारे बने पक्के मार्ग पर चलकर गुप्तकाशी होते हुए केदारनाथ तक जाया जा सकता है ! जबकि बद्रीनाथ जाने का मार्ग रुद्रप्रयाग के मुख्य बाजार से ही अलग हो जाता
है, हमारी यात्रा के अन्य तीन प्रयाग बद्रीनाथ मार्ग पर ही है इसलिए हम वापिस
रुद्रप्रयाग के बाजार की ओर चल दिए ! अलकनंदा नदी पर बने पुल को पार करने से पहले
एक मार्ग नदी के साथ-2 आगे को चला जाता है जिसपर थोड़ी दूर चलने पर कोटेश्वर महादेव
का मंदिर स्थित है ! घाट के पास एक प्राकृतिक गुफा भी है जहां छोटे-बड़े कई शिवलिंग
स्थापित किए गए है, एक मान्यता के अनुसार भगवान शिव से वरदान प्राप्त करने के बाद
भस्मासुर इस वरदान की पुष्टि भोलेनाथ पर ही करने लगा ! उससे पीछा छुड़ाने के लिए
भोलेनाथ इसी प्राकृतिक गुफा में आकर छुपे थे तब मोहिनी रूप धारण करके भगवान विष्णु
ने भस्मासुर का संहार किया था ! कोटेश्वर महादेव मंदिर के पास अलकनंदा एक संकरी
घाटी से होकर निकलती है, इसलिए मंदिर के पास काफी दूर तक नदी का बहाव बहुत तेज
लगता है ! अलकनंदा नदी का पुल पार करके रुद्रप्रयाग बाजार से होते हुए हम बद्रीनाथ
मार्ग पर पहुँच चुके है ! यही मार्ग अलकनंदा नदी के साथ होता हुआ आगे बद्रीनाथ को
चला जाता है !
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अलकनंदा तट पर कोटेश्वर महादेव मंदिर से दिखाई देता एक दृश्य |
रुद्रप्रयाग
से 33 किलोमीटर चलने के बाद इस मार्ग का तीसरा बड़ा प्रयाग है, जिसे कर्णप्रयाग के
नाम से जाना जाता है ! उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित कर्णप्रयाग पिंडारी
ग्लेशियर से आती पिंडर नदी और सतोपंथ से आती अलकनंदा नदी का संगम स्थल है ! पिंडर नदी
का एक नाम कर्ण गंगा भी है और यहाँ संगम स्थल के पास कर्ण और माँ उमा (पार्वती) का
मंदिर बना है, कर्णगंगा के नाम से ही इस प्रयाग का नाम कर्णप्रयाग पड़ा ! एक
मान्यता के अनुसार महाभारत काल में इसी स्थान पर कर्ण ने अपने पिता सूर्यदेव की
उपासना की थी और महाभारत युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार
इसी संगम स्थल पर करवाया था ! संगम स्थल पर अलकनंदा नदी के किनारे आपको रंग-बिरंगे अलग-2 आकृति के छोटे-बड़े सैकड़ों पत्थर मिल जाएंगे जो देखने में बहुत सुंदर लगते है
और आप इन्हें अपने घर में सजावट के लिए भी ला सकते है ! कर्णप्रयाग में संगम स्थल
पर घाट के पास लोग अपने परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए आते है, यहाँ के घाट टूट
चुके है और नदी किनारे काफी दूर तक रेत और पत्थरों का साम्राज्य है ! इस प्रयाग
में पिंडर नदी अपने तेज बहाव से मिट्टी बहाते हुए लाती है इसलिए इसका पानी मटमैला
है, जबकि अलकनंदा नदी का जल एकदम साफ है और नीले रंग का दिखाई देता है ! संगम स्थल
पर खड़े होकर दूर तक फैली घाटी का शानदार नजारा दिखाई देता है, लेकिन बारिश के
दिनों में नदी का जलस्तर काफी बढ़ जाता है तब नदी किनारे जाना थोड़ा खतरनाक रहता है !
कर्णप्रयाग से कई मार्ग अलग होते है, जहां एक मार्ग आदि बद्री होता हुआ चौखुटिया,
रानीखेत को चला जाता है, वहीं दूसरी ओर एक अन्य मार्ग पैठानी-थलीसैन होता हुआ बीरोंखाल को
चला जाता है !
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रुद्रप्रयाग-कर्णप्रयाग मार्ग |
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रास्ते में लिया एक दृश्य |
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कर्णप्रयाग से थोड़ा पहले लिया एक दृश्य |
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कर्णप्रयाग संगम स्थल से दिखाई देता एक दृश्य |
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कर्णप्रयाग से दिखाई देता अलकनंदा नदी का एक दृश्य |
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संगम स्थल का एक दृश्य |
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कर्णप्रयाग में पिंडर नदी का एक दृश्य |
कर्णप्रयाग
से मात्र 21 किलोमीटर चलने के बाद इस यात्रा का अगला प्रयाग आता है जो नंदप्रयाग
के नाम से जाना जाता है, ये भी उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है ! नंदप्रयाग
का बाजार बहुत बड़ा नहीं है, सड़क किनारे दोनों ओर बनी दुकानें कब खत्म हो जाती है
पता भी नहीं चलता और आप नंदप्रयाग से आगे निकल जाएंगे ! हमें अपनी यात्रा के दौरान यहाँ के बाजार में ज्यादा
चहल-पहल भी नहीं दिखी, वैसे, घाट पर जाने के लिए सड़क किनारे एक प्रवेश द्वार बना
है ! संगम स्थल मुख्य सड़क से काफी दूर है जहां जाने के लिए एक गलियारे से होते हुए
पैदल मार्ग बना है, इस गलियारे से निकलने के बाद कुछ दूर चलकर एक पुल से होते हुए आगे
बढ़ने पर संगम स्थल है ! ये पुल अलकनंदा नदी पर है, फिलहाल तो जलस्तर कम होने के
कारण इस पुल के नीचे पानी नहीं था लेकिन बारिश के दिनों में नदी का जल किनारे तक आ
जाता है तब इस पुल से होकर जाना काफी रोमांचक लगता है ! नंदप्रयाग संगम स्थल पर एक सुंदर घाट बना
है जो काफी दूर तक फैला हुआ है, घाट के ऊपरी भाग से संगम का शानदार नजारा दिखाई
देता है और यहाँ बैठने की भी उचित व्यवस्था है ! इस मार्ग पर पड़ने वाले सभी
प्रयागों में से मुझे सबसे सुंदर घाट नंदप्रयाग के ही लगे ! इस प्रयाग में नंदा देवी ग्लेशियर
से निकलकर आने वाली नंदीकिनी नदी और सतोपंथ ग्लेशियर से आने वाली अलकनंदा नदी का संगम होता
है ! संगम स्थल के पास चंडिका माता और भगवान शिव का मंदिर भी है ! यहाँ दोनों
नदियों का पानी शीशे की तरफ चमकता है, नंदकिनी नदी का बहाव थोड़ा धीमे है लेकिन
अलकनंदा यहाँ अपने पूरे वेग से बहती हुई दिखाई देती है ! कल-2 बहती नदी और यहाँ के
प्राकृतिक दृश्यों को देखकर मन करता है, यहाँ घाट के पास घंटों बैठकर इन प्राकृतिक
दृश्यों को निहारते रहो !
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नंदप्रयाग बाजार का एक दृश्य |
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घाट की ओर जाने का मार्ग |
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नंदप्रयाग में नंदकिनी नदी का एक दृश्य |
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नंदप्रयाग में अलकनंदा नदी का एक दृश्य |
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संगम स्थल से दिखाई देता एक दृश्य |
यात्रा
जारी रखते हुए नंदप्रयाग से 70 किलोमीटर आगे बढ़ने पर इस मार्ग का अगला प्रयाग आता
है जो विष्णुप्रयाग कहलाता है ! ये भी उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है,
विष्णुप्रयाग से बद्रीनाथ भी मात्र 37 किलोमीटर रह जाता है ! ये प्रयाग कामत
ग्लेशियर से आती धौली गंगा और सतोपंथ ग्लेशियर से आती अलकनंदा का संगम स्थल है, धौली गंगा
का प्रवाह बीच में तो काफी तेज है लेकिन किनारे पर ये काफी शांत है, जबकि अलकनंदा
की जलधार यहाँ भी काफी तेज है ! मुख्य सड़क के किनारे एक बड़ा प्रवेश द्वार बना है,
द्वार से अंदर जाते ही विष्णु जी का एक मंदिर बना है, जिसका निर्माण इंदौर की
महारानी अहिलायाबाई ने करवाया था ! गुजरते समय के साथ अलग-2 भक्तों द्वारा इस
मंदिर का जीर्णोंद्वार होता रहा ! मंदिर परिसर के आस-पास कुछ अन्य देवी-देवताओं के
मंदिर भी बने है, जिसमें भोलेनाथ और भैरवनाथ के मंदिर प्रमुख है ! सभी 5
प्रयागों में से सड़क के सबसे पास यही प्रयाग है, इसलिए संगम तक पहुँचने में ज्यादा
समय नहीं लगता, विष्णुप्रयाग में संगम स्थल पर एक घाट बना है और बैठने की भी अच्छी व्यवस्था है ! सफर
की थकान मिटाने के लिए सबसे बढ़िया उपाय है कि नदी के पानी में थोड़ी देर पैर डालकर
बैठ जाओ, आपकी थकान कुछ ही पलों में दूर हो जाएगी ! बद्रीनाथ जाने से पहले
विष्णुप्रयाग भी एक मुख्य पड़ाव है और श्रद्धालु यहाँ दर्शन करके ही आगे बढ़ते है ! चलिए,
हम अपनी बद्रीनाथ की यात्रा जारी रखते हुए आगे बढ़ते है, उम्मीद है मेरे साथ इन
पंच-प्रयागों के दर्शन करके आपको अच्छा लगा होगा !
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विष्णुप्रयाग में अलकनंदा नदी पर बना एक पुल |
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विष्णुप्रयाग जाने का प्रवेश द्वार |
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विष्णुप्रयाग संगम स्थल का एक दृश्य |
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विष्णुप्रयाग में धौली गंगा का एक दृश्य |
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घाट से दिखाई देता एक दृश्य |
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विष्णुप्रयाग में घाट के पास बना एक मंदिर |
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सड़क से दिखाई देता एक दृश्य |
क्यों जाएँ (Why to go): अगर आपको धार्मिक यात्राएं करना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर आपको पंच-प्रयाग के दर्शन के लिए इस यात्रा पर जाना चाहिए ! हर प्रयाग के पास बने ऐतिहासिक मंदिर का अपना अलग ही महत्व है और आपको यहाँ आकर मानसिक शांति और सुख की अनुभूति होगी !
कब जाएँ (Best time to go): वैसे तो आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में यहाँ अलग ही नजारा दिखाई देता है ! लेकिन चार-धाम यात्रा के दौरान इस मार्ग पर भीड़-भाड़ ज्यादा रहती है, इसलिए सितंबर से नवंबर का महीना यहाँ आने के लिए उपयुक्त है तब चार-धाम यात्रा तो जारी रहती है लेकिन मई-जून के मुकाबले ज्यादा भीड़ नहीं रहती !
कैसे जाएँ (How to reach): हरिद्वार आने के लिए आपको देश के अलग-2 हिस्सों से ट्रेन मिल जाएगी ! हरिद्वार से आगे का सफर करने के लिए आपको उत्तराखंड परिवहन के अलावा निजी बसें भी मिल जाएगी ! आप हरिद्वार से आगे का सफर तय करने के लिए टैक्सी भी बुक कर सकते है ! आप चाहे तो अपने वाहन से भी ये सफर तय कर सकते है, निश्चित तौर पर आपको ये यात्रा जीवन भर याद रहेगी !
कहाँ रुके (Where to stay): इस सफर पर आपको हर प्रयाग के आस-पास रुकने के लिए ढेरों विकल्प मिल जाएंगे ! यात्रा सीजन के हिसाब से होटलों का किराया बढ़ता-घटता रहता है, आपको यहाँ 500 रुपए से लेकर 3000 रुपए तक के होटल भी मिल जाएंगे ! आप अपने बजट के हिसाब से किसी भी होटल का चयन कर सकते है !
क्या देखें (Places to see): ऊपर के लेख में मैंने आपको इन प्रयागों के आस-पास घूमने की कुछ जगहों के बारे में तो बता ही दिया है इसके अलावा आप कोटेश्वर महादेव, धारी देवी मंदिर, आदि बदरी और कुछ अन्य दर्शनीय स्थलों को भी देख सकते है !