शनिवार, 23 दिसंबर 2017
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यात्रा के पिछले लेख में आपने दिल्ली से जोधपुर पहुँचने तक की यात्रा के बारे में पढ़ा, जोधपुर में कमरा लेने के बाद एक बैग में खाने-पीने का कुछ सामान लेकर हम मेहरानगढ़ किला देखने निकल पड़े ! अब आगे, होटल से निकलने के बाद हम जोधपुर के त्रिपोलिया बाज़ार से होते हुए किले की ओर बढ रहे थे, कुछ दूर तक तो रास्ता समतल था लेकिन जैसे-2 हम किले के करीब पहुँचते गए, हल्की-2 चढ़ाई आती गई और अंत में तो एकदम खड़ी चढ़ाई आ गई ! इस मार्ग पर चलते हुए हमें कई सैलानी मिले, कुछ स्थानीय थे तो कुछ विदेशी, इनमें से कुछ लोग किले की ओर जा रहे थे तो कुछ किला देखकर वापिस आ रहे थे ! किले से थोड़ी पहले हम फोटो खींचने के लिए एक ऊंची जगह पर रुके, यहाँ से दूर तक फैला जोधपुर शहर दिखाई दे रहा था ! आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि जोधपुर में अधिकतर घरों का रंग नीला है जिस कारण इसे नीली नगरी भी कहा जाता है ! हालांकि, जहाँ खड़े होकर हम फोटो खींच रहे थे वहां से ये नीला शहर नहीं दिखाई देता, शहर का ये नया हिस्सा बाद में बसा है जबकि नीला शहर पुराना जोधपुर है जो किले के पीछे स्थित है ! ये जोधपुर के प्राचीन इलाकों में से एक है और इसे ब्रहमनगरी के नाम से भी जाना जाता है, इस नीले शहर का वर्णन मैं किले के भ्रमण के दौरान करूँगा !
कुछ फोटो खींचने के बाद हम फिर से किले के प्रवेश द्वार की ओर बढ़ गए, जो यहाँ से कुछ ही दूरी पर था ! अब हम किले के मुख्य प्रवेश द्वार के ठीक सामने खड़े थे, जहाँ एक लम्बी चौड़ी पार्किंग बनी है, इस समय भी यहाँ सैकड़ों वाहन खड़े थे ! लोगों का भी अच्छा-ख़ासा जमावड़ा था, प्रवेश द्वार से कुछ दूरी पर स्थित एक ऊंची चट्टान से खड़े होकर देखने पर सामने वाली पहाड़ी की तलहटी में दूधिया रंग की एक इमारत दिखाई देती है, ये जसवंत ठाडा है जिसका वर्णन मैं मेहरानगढ़ किला घूमने के बाद करूँगा ! किले में अन्दर जाने से पहले हमने यहाँ बने सुरक्षा जांच केंद्र पर अपने सामान की जांच करवाई, यहाँ मौजूद एक अधिकारी ने हमें बता दिया कि किले के अन्दर सेल्फी स्टिक का प्रयोग वर्जित है, नियम की अवहेलना करने पर जुर्माने का भी प्रावधान है ! यहाँ से आगे बढे तो हमें मुख्य प्रवेश द्वार के ठीक सामने अपनी बाईं ओर ऊंचे स्थान पर एक छतरी दिखाई दी, प्राप्त जानकारी के अनुसार ये छतरी कीरत सिंह सोडा नाम के एक योद्धा की याद में बनवाई गई है जिसने किले की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी ! ये छतरी गुम्बद के आकार का एक मंडप है जो राजपूत संस्कृति में गर्व और सम्मान व्यक्त करने के लिए बनाया जाता है !
छतरी के स्तंभों और इसके ऊपरी भाग में बढ़िया कारीगरी की गई है, इस छतरी के बगल में कंटीली झाड़ियाँ, और आस-पास पथरीली चट्टानें है ! जबकि इस छतरी से 10 कदम की दूरी पर गणेश जी का एक छोटा मंदिर बना है, मंदिर की छत पर एक झंडा और प्रवेश द्वार पर एक लोहे का गेट लगा है ! सिल्वर रंग से रंगी गणेश जी की मूर्ति सुन्दर लग रही थी, मूर्ति देखकर ही अंदाजा लग गया कि ये जल्द ही रंगी गई थी ! यहाँ भी एक-दो फोटो खींचने के बाद हम वापिस किले के प्रवेश द्वार के सामने आ गए ! इस किले पर कई हमले हुए, जिसके निशान किले के मुख्य प्रवेश द्वार पर आज भी दिखाई देते है, द्वार के आस-पास दीवारों पर लगे तोप के गोलों को लाल रंग से चिन्हित करके उसके चारों ओर निशान बना दिए गए है ! मुख्य प्रवेश द्वार से अन्दर जाते ही बाईं ओर टिकट घर है, जहाँ टिकट लेने वाले लोगों की लम्बी कतार लगी थी, मैं भी जाकर इसी कतार में खड़ा हो गया ! आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि किले में घूमने के लिए प्रवेश शुल्क 100 रूपए प्रति व्यक्ति है, जबकि साधारण कैमरा लेकर जाने के लिए आपको 100 रूपए और विडियो कैमरा के लिए 200 रूपए अदा करने होंगे ! अगर आप ऑडियो गाइड लेना चाहते है तो आपको 180 रूपए अलग से खर्च करने होंगे !
किला घूमने के लिए ये ऑडियो गाइड बहुत फायदेमंद है, वैसे आप चाहे तो किला घूमने के लिए निजी गाइड भी कर सकते है जो 400-500 रूपए लेगा, लेकिन मुझे तो ऑडियो गाइड ही ज्यादा विश्वसनीय लगती है ! मैंने कई बार देखा है ये गाइड लोग पर्यटकों का मन रखने के लिए कुछ झूठे तथ्य और कहानियां भी बता देते है ! चलिए, जब तक मैं टिकट लेने के लिए लाइन में खड़ा हूँ, आपको इस किले से सम्बंधित कुछ ज़रूरी जानकारी दे देता हूँ ! 15वीं शताब्दी में बना मेहरानगढ़ का ये विशाल दुर्ग राजस्थान के जोधपुर शहर में एक पथरीली चट्टान पर मैदान से 125 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है ! ये किला भारत के प्राचीन किलों में से एक है और भारतवर्ष के समृद्धशाली अतीत का प्रतीक है ! मारवाड़ के 15वें राठौर शासक राव जोधा ने 12 मई 1459 को इस पहाड़ी पर किले की नींव रखी और महाराज जसवंत सिंह (1638-78) ने इसे पूरा किया ! राव जोधा जोधपुर के राजा रणमल की 24 संतानों में से एक थे, शासन की बागडोर संभालते ही राव जोधा को लगने लगा कि मंडोर का तत्कालीन किला असुरक्षित है, उन्होंने अपने सिपहसालारों से तत्कालीन किले से 1 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर अपना नया किला बनाने का विचार प्रस्तुत किया, और अपने विश्वसनीय राव नारा की सहायता से किले का निर्माण कार्य शुरू करवाया !
इस पहाड़ी पर अत्यधिक पक्षी रहने के कारण लोग इसे भोर चिड़िया पहाड़ी के नाम से जानते थे ! मूल रूप से इस किले के सात द्वार है जबकि किले का आठवां द्वार गुप्त है ! प्रथम द्वार पर हाथियों के हमले से बचाव के लिए नुकीली कीलें लगाईं गई है, अन्य द्वारों में शामिल जयपोल द्वार का निर्माण राजा मान सिंह ने 1806 में जयपुर और बीकानेर की सेनाओं पर अपनी विजय प्राप्त करने के बाद करवाया था ! इसी तरह फ़तेह पोल का निर्माण राजा अजीत सिंह ने मुगलों पर अपनी विजय की स्मृति में 1707 में बनवाया था फ़तेह पोल को विजय द्वार के नाम से भी जाना जाता है ! राव जोधा की चामुंडा माता में अथाह श्रद्धा थी, वैसे चामुंडा देवी जोधपुर के शासकों की कुलदेवी भी है, इसलिए राव जोधा ने 1460 में मेहरानगढ़ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाकर मूर्ति की स्थापना की ! इस मंदिर के द्वार आम जनता के लिए भी खुले थे, क्योंकि चामुंडा देवी मात्र यहाँ के शासकों की ही नहीं बल्कि जोधपुर निवासियों की भी कुलदेवी थी ! आज भी लाखों लोग इस देवी की पूजा करते है, और नवरात्रि के दिनों में यहाँ विशेष पूजा-अर्चना की जाती है ! चलिए, बहुत हो गई जानकारी, मैं टिकट लेकर कतार से निकल चुका हूँ और देवेन्द्र को ढूंढ रहा हूँ, जो भीड़ में कहीं इधर-उधर हो गया है ! अब मैं जैसे-2 मैं किले में घूमते जाऊंगा, आपको उस जगह से सम्बंधित जानकारी देता रहूँगा !
भीड़ से बाहर निकलते ही मुझे देवेन्द्र दिखाई दिया, जो धूप से बचने के लिए छाया में खड़ा था ! यहाँ से निकलकर हम दोनों किला देखने के लिए अन्दर जाने वाले मार्ग पर चल दिए, टिकट घर से थोडा आगे बढ़ते ही बाईं ओर एक रास्ता है जो लिफ्ट की तरफ जाता है ! आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि यहाँ मेहरानगढ़ किले में एक लिफ्ट लगी है जो पर्यटकों को किले के ऊपरी भाग में ले जाती है ! इस लिफ्ट का प्रयोग करने के लिए आपको अलग से 50 रूपए का शुल्क भी अदा करना होता है, लेकिन लिफ्ट का प्रयोग करने पर आप किले का एक भाग नहीं देख पाएंगे ! वैसे, जिन लोगों को चलने में परेशानी होती है या जो ज्यादा चलना नहीं चाहते अधिकतर वही लोग इस लिफ्ट का प्रयोग करते है ! आज इस लिफ्ट में जाने वाले लोगों की लम्बी कतार लगी थी, और वैसे भी हम किले में अधिक से अधिक घूमना चाहते थे इसलिए पैदल ही आगे बढ़ गए ! मेहरानगढ़ के किले को सूर्यवंशियों का किला भी कहा जाता है, ये किला अपने आप में 500 वर्षों का इतिहास समेटे हुए है ! किले के हर प्रवेश द्वार का अपना महत्त्व है, और द्वारों को कुछ इस तरह बनाया गया है कि कोई भी आक्रमणकारी बलपूर्वक इसमें प्रवेश ना कर सके ! इसके लिए द्वार के सामने या तो घुमावदार मोड़ है या फिर बहुत ज्यादा जगह नहीं दी गई ताकि कोई हाथियों से द्वार को तोड़ने का प्रयास ना कर सके !
इस किले के एक हिस्से को संग्रहालय में बदल दिया गया है, जिसमें 14 कमरे है ये कमरे शाही आभूषणों, वेशभूषाओं, और हथियारों से सजे हुए है ! मेहरानगढ़ किले का संग्रहालय राजस्थान के बेहतरीन और सबसे प्रसिद्द संग्रहालयों में से एक है, यहाँ भारतीय राजवेशों के साजो-सामान का अद्वितीय संग्रह है, जिसमें विभिन्न प्रकार की पालकियां, हाथियों के हौदे, संगीत वाद्य, और शाही पौशाके प्रमुख है ! इस किले में कई भव्य महल, नक्काशीदार दरवाजे, और जालीदार खिडकियों से युक्त भवन है ! इन भवनों में मोती महल, फूल महल, शीश महल, झांकी महल, सिलेह खाना, तथा दौलत खाना प्रमुख है ! चलिए, अन्दर जाने से पहले थोड़ी जानकारी इन भवनों के बारे में भी दे देता हूँ ताकि घूमने के दौरान आप पूरा लुत्फ़ उठा सके ! इनमें से पहला भवन है मोती महल, जिसे पर्ल पैलेस के नाम से भी जाना जाता है, ये किले का सबसे बड़ा कमरा है ! इस पैलेस का निर्माण राजा सूर सिंह ने करवाया था, इसी पैलेस में वो अपनी प्रजा की फरियाद सुनने के लिए मिला करते थे ! जोधपुर का शाही सिंहासन जिसे “श्रृंगार चौकी” के नाम से जाना जाता है, इसी महल में रखा गया है ! दूसरा भवन फूल महल भी मेहरानगढ़ किले के विशाल कमरों में से एक है ये राजा का निजी कक्ष था, इसे फूलों के पैलेस के नाम से जाना जाता है !
महाराजा अभय सिंह ने 18वीं सदी में इस महल का निर्माण करवाया था, महल की छत पर सोने की महीन कारीगरी की गई है जिसे राजा ने मुग़ल योद्धा सरबुलंद खान पर जीत के बाद अहमदाबाद से लूटा था ! तीसरे भवन शीश महल में शीशे और लाइटों की बढ़िया कारीगरी की गई है, इस महल की रौनक तो देखते ही बनती है इसलिए जोधपुर आने वाले पर्यटकों के लिए ये महल आकर्षण का मुख्य केंद्र रहता है ! एक अन्य भवन भी है जिसे झांकी महल के नाम से जाना जाता है, इस महल से भी शाही महिलाएं महल में होने वाली सरकारी कार्यवाही को देखती थी ! वर्तमान में इस महल में शाही पालनों का एक विशाल संग्रह भी है ये पालने गिल्ट दर्पण, पक्षियों, हाथियों, और परियों की आकृतियों से सजे हुए है ! बारी-2 से हम इन सभी महलों को देखेंगे, फिल्हाल हम जयपोल द्वार से होते हुए किले में दाखिल हो चुके है ! मेहरानगढ़ का इतिहास काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है ये कभी गौरवपूर्ण, कभी रक्तरंजित, कभी चमत्कारी तो कभी अन्धकार में भी रहा है ! बहुत पुरानी बात नहीं है जब इस महल में राजपरिवार रहा करता था, तब इस महल में राजसी लोगों की चहल-पहल हुआ करती थी ! इस महल में कई प्रतापी वीर हुए जो सूर्यवंशी होने का दावा करते थे, ये थे राठौर योद्धा, प्रधान राजपूत वंशों में से एक, जिनका प्रभुत्व राजस्थान पर 1000 वर्षों से भी अधिक समय तक रहा !
यहाँ भारत के विशाल थार रेगिस्तान के छोर पर स्थापित राठौर साम्राज्य तब से लेकर आज तक मारवाड़ कहलाता है, मारवाड़ यानि "मृत्यु की धरती" ! मेहरानगढ़ की दीवारों में मध्यकालीन से लेकर आधुनिक भारत का इतिहास समाया हुआ है ! पिछली पांच शताब्दियों से राठौर शासकों ने मारवाड़ राज्य पर यहीं से राज किया, ये किला राठौर शासकों की एक प्रमुख पहचान है और इन शासकों की विरासत का संरक्षक भी है क्योंकि इस किले में राज परिवार से सम्बंधित अनेकों वस्तुएं सहेज कर रखी गई है ! यहाँ राठौर वंश के रीति-रिवाज के अनुरूप कई धार्मिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है, और तीज-त्याहारों को भी बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है ! सन 1972 में महाराजा गज सिंह द्वितीय द्वारा एक ट्रस्ट का गठन कर इस किले को आगंतुकों के लिए खोल दिया गया, ताकि वे अपने वंश के गौरव को आम लोगों तक पहुंचा सके ! महाराजा गज सिंह द्वितीय जोधपुर के 39वें राठौर शासक है और वर्तमान में जोधपुर के उन्मेद भवन में रहते है, जो यहाँ से 4-5 किलोमीटर की दूरी पर है, मेहरानगढ़ के किले से उन्मेद भवन दिखाई देता है ! ये लेख काफी लम्बा हो गया है इसलिए इस पर यहीं विराम लगाता हूँ, अगले लेख में मैं आपको किले के अन्दर बने महलों के दर्शन करवाऊंगा !
क्यों जाएँ (Why to go Jodhpur): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में जोधपुर का रुख कर सकते है !
मेहरानगढ़ किले के अन्दर का एक दृश्य |
कुछ फोटो खींचने के बाद हम फिर से किले के प्रवेश द्वार की ओर बढ़ गए, जो यहाँ से कुछ ही दूरी पर था ! अब हम किले के मुख्य प्रवेश द्वार के ठीक सामने खड़े थे, जहाँ एक लम्बी चौड़ी पार्किंग बनी है, इस समय भी यहाँ सैकड़ों वाहन खड़े थे ! लोगों का भी अच्छा-ख़ासा जमावड़ा था, प्रवेश द्वार से कुछ दूरी पर स्थित एक ऊंची चट्टान से खड़े होकर देखने पर सामने वाली पहाड़ी की तलहटी में दूधिया रंग की एक इमारत दिखाई देती है, ये जसवंत ठाडा है जिसका वर्णन मैं मेहरानगढ़ किला घूमने के बाद करूँगा ! किले में अन्दर जाने से पहले हमने यहाँ बने सुरक्षा जांच केंद्र पर अपने सामान की जांच करवाई, यहाँ मौजूद एक अधिकारी ने हमें बता दिया कि किले के अन्दर सेल्फी स्टिक का प्रयोग वर्जित है, नियम की अवहेलना करने पर जुर्माने का भी प्रावधान है ! यहाँ से आगे बढे तो हमें मुख्य प्रवेश द्वार के ठीक सामने अपनी बाईं ओर ऊंचे स्थान पर एक छतरी दिखाई दी, प्राप्त जानकारी के अनुसार ये छतरी कीरत सिंह सोडा नाम के एक योद्धा की याद में बनवाई गई है जिसने किले की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी ! ये छतरी गुम्बद के आकार का एक मंडप है जो राजपूत संस्कृति में गर्व और सम्मान व्यक्त करने के लिए बनाया जाता है !
किले की ओर जाने वाले मार्ग से दिखाई देता जोधपुर शहर |
किले की ओर जाने वाले मार्ग से दिखाई देता जोधपुर शहर |
दूर से दिखाई देता मेहरानगढ़ दुर्ग |
किले के प्रवेश द्वार के पास बनी छतरी |
किले के सामने से दिखाई देता एक दृश्य |
कीरत सिंह सोडा के सम्मान में बनी एक छतरी |
किले के प्रवेश द्वार के पास गणेश जी का मंदिर |
छतरी के पास से लिया एक चित्र |
मेहरानगढ़ दुर्ग के सामने बना पार्किंग स्थल |
इस पहाड़ी पर अत्यधिक पक्षी रहने के कारण लोग इसे भोर चिड़िया पहाड़ी के नाम से जानते थे ! मूल रूप से इस किले के सात द्वार है जबकि किले का आठवां द्वार गुप्त है ! प्रथम द्वार पर हाथियों के हमले से बचाव के लिए नुकीली कीलें लगाईं गई है, अन्य द्वारों में शामिल जयपोल द्वार का निर्माण राजा मान सिंह ने 1806 में जयपुर और बीकानेर की सेनाओं पर अपनी विजय प्राप्त करने के बाद करवाया था ! इसी तरह फ़तेह पोल का निर्माण राजा अजीत सिंह ने मुगलों पर अपनी विजय की स्मृति में 1707 में बनवाया था फ़तेह पोल को विजय द्वार के नाम से भी जाना जाता है ! राव जोधा की चामुंडा माता में अथाह श्रद्धा थी, वैसे चामुंडा देवी जोधपुर के शासकों की कुलदेवी भी है, इसलिए राव जोधा ने 1460 में मेहरानगढ़ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाकर मूर्ति की स्थापना की ! इस मंदिर के द्वार आम जनता के लिए भी खुले थे, क्योंकि चामुंडा देवी मात्र यहाँ के शासकों की ही नहीं बल्कि जोधपुर निवासियों की भी कुलदेवी थी ! आज भी लाखों लोग इस देवी की पूजा करते है, और नवरात्रि के दिनों में यहाँ विशेष पूजा-अर्चना की जाती है ! चलिए, बहुत हो गई जानकारी, मैं टिकट लेकर कतार से निकल चुका हूँ और देवेन्द्र को ढूंढ रहा हूँ, जो भीड़ में कहीं इधर-उधर हो गया है ! अब मैं जैसे-2 मैं किले में घूमते जाऊंगा, आपको उस जगह से सम्बंधित जानकारी देता रहूँगा !
भीड़ से बाहर निकलते ही मुझे देवेन्द्र दिखाई दिया, जो धूप से बचने के लिए छाया में खड़ा था ! यहाँ से निकलकर हम दोनों किला देखने के लिए अन्दर जाने वाले मार्ग पर चल दिए, टिकट घर से थोडा आगे बढ़ते ही बाईं ओर एक रास्ता है जो लिफ्ट की तरफ जाता है ! आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि यहाँ मेहरानगढ़ किले में एक लिफ्ट लगी है जो पर्यटकों को किले के ऊपरी भाग में ले जाती है ! इस लिफ्ट का प्रयोग करने के लिए आपको अलग से 50 रूपए का शुल्क भी अदा करना होता है, लेकिन लिफ्ट का प्रयोग करने पर आप किले का एक भाग नहीं देख पाएंगे ! वैसे, जिन लोगों को चलने में परेशानी होती है या जो ज्यादा चलना नहीं चाहते अधिकतर वही लोग इस लिफ्ट का प्रयोग करते है ! आज इस लिफ्ट में जाने वाले लोगों की लम्बी कतार लगी थी, और वैसे भी हम किले में अधिक से अधिक घूमना चाहते थे इसलिए पैदल ही आगे बढ़ गए ! मेहरानगढ़ के किले को सूर्यवंशियों का किला भी कहा जाता है, ये किला अपने आप में 500 वर्षों का इतिहास समेटे हुए है ! किले के हर प्रवेश द्वार का अपना महत्त्व है, और द्वारों को कुछ इस तरह बनाया गया है कि कोई भी आक्रमणकारी बलपूर्वक इसमें प्रवेश ना कर सके ! इसके लिए द्वार के सामने या तो घुमावदार मोड़ है या फिर बहुत ज्यादा जगह नहीं दी गई ताकि कोई हाथियों से द्वार को तोड़ने का प्रयास ना कर सके !
जयपोल द्वार से अन्दर जाने पर दिखाई देता दृश्य |
जयपोल द्वार के पास रखी एक तोप |
किले का एक प्रवेश द्वार |
जयपोल द्वार के पास दे दिखाई देता किले का एक भाग |
किले का एक दृश्य |
किले के अन्दर से प्रवेश द्वार का एक दृश्य |
यहाँ भारत के विशाल थार रेगिस्तान के छोर पर स्थापित राठौर साम्राज्य तब से लेकर आज तक मारवाड़ कहलाता है, मारवाड़ यानि "मृत्यु की धरती" ! मेहरानगढ़ की दीवारों में मध्यकालीन से लेकर आधुनिक भारत का इतिहास समाया हुआ है ! पिछली पांच शताब्दियों से राठौर शासकों ने मारवाड़ राज्य पर यहीं से राज किया, ये किला राठौर शासकों की एक प्रमुख पहचान है और इन शासकों की विरासत का संरक्षक भी है क्योंकि इस किले में राज परिवार से सम्बंधित अनेकों वस्तुएं सहेज कर रखी गई है ! यहाँ राठौर वंश के रीति-रिवाज के अनुरूप कई धार्मिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है, और तीज-त्याहारों को भी बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है ! सन 1972 में महाराजा गज सिंह द्वितीय द्वारा एक ट्रस्ट का गठन कर इस किले को आगंतुकों के लिए खोल दिया गया, ताकि वे अपने वंश के गौरव को आम लोगों तक पहुंचा सके ! महाराजा गज सिंह द्वितीय जोधपुर के 39वें राठौर शासक है और वर्तमान में जोधपुर के उन्मेद भवन में रहते है, जो यहाँ से 4-5 किलोमीटर की दूरी पर है, मेहरानगढ़ के किले से उन्मेद भवन दिखाई देता है ! ये लेख काफी लम्बा हो गया है इसलिए इस पर यहीं विराम लगाता हूँ, अगले लेख में मैं आपको किले के अन्दर बने महलों के दर्शन करवाऊंगा !
क्यों जाएँ (Why to go Jodhpur): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में जोधपुर का रुख कर सकते है !
कब जाएँ (Best time to go Jodhpur): जोधपुर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !
कैसे जाएँ (How to reach Jodhpur): जोधपुर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी 620 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन में सवार होकर रात भर में तय कर सकते है ! मंडोर एक्सप्रेस रोजाना पुरानी दिल्ली से रात 9 बजे चलकर सुबह 8 बजे जोधपुर उतार देती है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो उसके लिए भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जोधपुर जा सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay near Jodhpur): जोधपुर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 600 रूपए से शुरू होकर 3000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !
क्या देखें (Places to see near Jodhpur): जोधपुर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें मेहरानगढ़ किला, जसवंत थड़ा, उन्मेद भवन, मंडोर उद्यान, बालसमंद झील, कायलाना झील, क्लॉक टावर और यहाँ के बाज़ार प्रमुख है ! त्रिपोलिया बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जोधपुर लाख के कड़ों के लिए जाना जाता है इसलिए अगर आप यहाँ घूमने आये है तो अपने परिवार की महिलाओं के लिए ये कड़े ले जाना ना भूलें !
अगले भाग में जारी...
जोधपुर यात्रा
- दिल्ली से जोधपुर की ट्रेन यात्रा (A Train Journey from Delhi to Jodhpur)
- जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग का इतिहास (History of Mehrangarh Fort, Jodhpur)
- जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग की सैर (A Visit to Mehrangarh Fort, Jodhpur)
- मेहरानगढ़ दुर्ग के महल (A Visit to Palaces of Mehrangarh Fort, Jodhpur)
- मारवाड़ का ताजमहल - जसवंत थड़ा (Jaswant Thada, A Monument of Rajpoot Kings)
- जोधपुर का उम्मेद भवन (Umaid Bhawan Palace, Jodhpur)
- रावण की ससुराल और मारवाड़ की पूर्व राजधानी है मण्डोर (Mandor, the Old Capital of Marwar)
- जोधपुर की बालसमंद और कायलाना झील (Balasmand and Kaylana Lake of Jodhpur)
- जोधपुर का क्लॉक टावर और कुछ प्रसिद्द मंदिर (Temples and Clock Tower of Jodhpur)