हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध और महाराणा प्रताप संग्रहालय (The Battle of Haldighati and Maharana Pratap Museum)

रविवार, 20 नवंबर 2016 

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यात्रा के पिछले लेख में आपने कुम्भलगढ़ के विश्वप्रसिद्ध किले के बारे में पढ़ा, किला देखने के बाद हम सब यहाँ से निकलकर अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव "हल्दीघाटी" की ओर चल दिए ! अब आगे, जब हम किले से चले थे तो दोपहर के 11:30 बज रहे थे, बढ़िया धूप खिली थी, यहाँ से हल्दीघाटी जाने के 3 मार्ग है, भगवान जाने, हमारे ड्राइवर को पता नहीं था, या वो दूसरे मार्ग खराब थे, वो हमें "बरवाडा" वाले लंबे मार्ग से लेकर गया ! हालाँकि, हमने गाड़ी किलोमीटर के हिसाब से आरक्षित नहीं करवाई थी लेकिन फिर भी वो हमें जिस मार्ग से लेकर गया उससे हल्दीघाटी की दूरी 68 किलोमीटर थी जबकि एक अन्य मार्ग से "कोशीवाड़ा" होते हुए ये दूरी महज 52 किलोमीटर थी ! खैर, जिस मार्ग से हम जा रहे थे, उसके किनारे दोनों ओर दूर-2 तक फैली ऊसर ज़मीन दिखाई दे रही थी और बीच में ये सड़क थी ! इस मार्ग पर जाते हुए रास्ते में कहीं कोई गाँव पड़ जाता तो कुछ लोग दिखाई दे जाते, और गाँव पार होते ही फिर वही सन्नाटा ! ऐसे ही चलते हुए हम एक गाँव के पास जाकर रुके, यहाँ हमने रास्ते में खाने-पीने का कुछ सामान लेने के लिए गाड़ी रोकी !
संग्रहालय के बाहर बनी एक प्रतिमा
जब हमारे दो साथी सामान खरीदने के लिए एक दुकान पर गए हुए थे तो हम सड़क के किनारे गाड़ी खड़े करके बैठे हुए थे ! इसी दौरान हमारी नज़र सड़क के किनारे क्रमबद्ध तरीके से लगे बेरियों के पेड़ों पर पड़ी, ये पेड़ फल से लदे हुए थे, छोटी-2 बेरियाँ पककर लाल हो गई थी ! जितनी देर में हमारे साथी ख़ान-पान का सामान लेकर लौटे, हमने इन बेरियों पर थोड़ा हाथ साफ कर लिया ! यहाँ से आगे बढ़े तो फिर से वही मार्ग शुरू हो गया, दूर-2 तक ना कोई इंसान दिखाई दे रहा था और ना ही कोई जानवर ! बीच-2 में इक्का-दुक्का कोई गाड़ी सामने से आती दिख जाती तो हमारे ड्राइवर को गाड़ी के दो टायर सड़क से नीचे उतारने पड़ जाते ! इस बीच हमें सड़क के किनारे कहीं-2 राजस्थानी लाल-सफेद और काले पत्थर भी दिखाई दिए, भवन निर्माण में प्रयोग होने वाले इन पत्थरों की हर जगह बड़ी माँग रहती है और अधिकतर शहरों में इनकी आपूर्ति राजस्थान से ही की जाती है ! 1 बजने वाले थे जब हम "बरवाडा" पार करने के बाद मुख्य मार्ग को छोड़कर एक अन्य मार्ग पर हो गए, “V” की आकृति में बने इस मार्ग पर हम एक सिरे को छोड़कर दूसरे सिरे पर मुड़ गए ! 

एक बार तो ऐसा लगा जैसे हम वापिस जा रहे हो, लेकिन ऐसा नहीं था, आधे घंटे बाद "महाराणा प्रताप संग्रहालय" (Maharana Pratap Museum) के सामने जाकर हमारा सफ़र ख़त्म हुआ, गाड़ी पार्किंग में खड़ी करने के बाद हम संग्रहालय के मुख्य प्रवेश द्वार की ओर चल दिए ! चलिए, संग्रहालय में अंदर जाने से पहले थोड़ी जानकारी इस स्थान के बारे में दे देता हूँ ! हल्दीघाटी ही वो स्थान है जहाँ महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच 1576 में एक भयंकर युद्ध लड़ा गया था जो आज भी इतिहास में दर्ज है ! राजस्थान में "एकलिंगजी" से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हल्दीघाटी एक दर्रा है जो राजसमंद और पाली जिलों को आपस में जोड़ता है ! उदयपुर से 40 किलोमीटर दूर स्थित इस जगह की मिट्टी हल्दी की तरह पीली है, शायद इसलिए भी इस जगह का नाम हल्दीघाटी पड़ा ! हल्दीघाटी का नाम आते ही वीर राजपूत "महाराणा प्रताप" का नाम याद आता है, इसलिए आपके लिए इस वीर राजपूत के बारे में जानना भी ज़रूरी हो जाता है ! महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को मेवाड़ के राजा "उदय सिंह" के घर हुआ था, बचपन से ही साहसी होने के कारण छोटी उम्र में ही उन्हें अस्त्र-शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा, उनके पिता उदय सिंह उन्हें अपनी तरह एक कुशल योद्धा बनाना चाहते थे ! 

27 वर्ष की आयु में जब महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की सत्ता संभाली तो दिल्ली के अलावा आधा मेवाड़ भी मुगलों के अधीन था ! अकबर की नीति अपने अधीन हिंदू राजाओं की शक्ति का प्रयोग कर दूसरे हिंदू राजाओं को को भी अपने अधीन करना था ! मेवाड़ के बचे हुए भाग पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए अकबर निरंतर प्रयासरत था, राजस्थान के कई हिंदू शासक अकबर की शक्ति की आगे घुटने टेक चुके थे लेकिन महाराणा प्रताप ने अपने वंश को कायम रखने और अपने पूर्वजों के मान–मर्यादा की रक्षा के लिए अपना संघर्ष जारी रखा और ये प्रण लिया कि जब तक अपने राज्य को मुगलों से मुक्त नहीं करवा लेंगे, तब तक शाही सुख नहीं भोगेंगे ! अपना महल छोड़कर वो जंगलों में रहने लगे, वे भूमि पर सोया करते थे, मुश्किल समय में घास की रोटी खाकर भी जीवन यापन किया, लेकिन उन्होंने ताउम्र अकबर के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया ! 30 वर्षों तक अकबर ने अपनी पूरी ताक़त लगा दी लेकिन महाराणा प्रताप को झुका नहीं सके, उनकी वीरता, देशभक्ति, और स्वाभिमान का मुगल बादशाह अकबर भी कायल था !

एक समय जब जंगल में राणा के बेटे रोटी खा रहे थे तो उनके हाथ से रोटी लेकर एक जानवर भाग गया, बच्चे को रोता देख राणा बहुत व्यथित हुए ! एक बार तो उन्हें अपना राज छोड़कर जंगल में रहने के निर्णय पर भी शंका होने लगी ! कई बार तो ऐसा भी हुआ कि राणा और उनके साथी खाना खाने बैठे थे और अचानक मुगलों के हमले के कारण उन्हें खाना छोड़कर जाना पड़ा ! जंगलों में रहने के दौरान महाराणा प्रताप ने भीलों की शक्ति को पहचान कर उनके अचानक धावा बोलने की नीति को समझा और इसी छापामार युद्ध कला से कई बार मुगल सेना को कठिनाइयों में डाला ! महाराणा प्रताप ने जिन परिस्थितियों में संघर्ष किया वो वास्तव में काफ़ी जटिल थी ! अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो राजपूतों को भारतीय इतिहास में सम्मानपूर्ण स्थान दिलाने का श्रेय महाराणा प्रताप को ही जाता है ! संधि करने के लिए अकबर ने कई बार अपने दूतों को महाराणा प्रताप के पास भेजा, लेकिन महाराणा ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की ! 

एक प्रस्ताव में तो मुगल बादशाह ने अपने दूत से ये भी कहलवा भेजा था कि अकबर की अधीनता स्वीकार करने के बदले वो महाराणा को आधे भारत की सत्ता सौंप देंगे, लेकिन कोई भी प्रस्ताव राणा को झुका नहीं सका ! 1573 में अंतिम संधि प्रस्ताव अकबर ने मानसिंह के माध्यम से भेजा, जिसे इंकार करने के बाद अकबर ने मेवाड़ का बाहरी राज्यों से संपर्क तोड़ दिया और अपनी सेना को मेवाड़ पर आक्रमण करने का हुक्म दे दिया ! महाराणा को जब इस बात की सूचना मिली तो उन्होनें अपनी सेना को मेवाड़ की राजधानी कुम्भलगढ़ भेज दिया ! वो इस युद्ध को उस पहाड़ी क्षेत्र में लड़ना चाहते थे जिसके कण-2 से मेवाड़ सेना परिचित थी, लेकिन मुगलों को इस इलाक़े का बिल्कुल अनुभव नहीं था ! इस निर्णायक युद्ध में भीलों ने भी महाराणा का बखूबी साथ दिया ! हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा की ओर से लड़े सभी यौद्धाओं का ज़िक्र संग्रहालय के बाहर लगे एक कैलेंडर में किया गया है ! अकबर के आदेश के बाद मुगल सेना ने मेवाड़ को दिल्ली से सूरत तक चारों ओर से घेरना शुरू कर दिया !

मेवाड़ पर चढ़ाई करते हुए मानसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना जब 18 जून, 1576 को हल्दीघाटी पहुँची तो मुगलों और महाराणा प्रताप के बीच ये युद्ध लड़ा गया ! महाराणा चेतक पर सवार होकर मुगलों से युद्ध कर रहे थे ! मुगलों की सेना में हाथी बहुत अधिक संख्या में थे, हर बार चेतक को इन हाथियों के बीच जाकर युद्ध करना पडता था ! इसलिए हाथियों को भ्रमित करने के लिये चेतक के मुंह पर हाथी की एक नकली सूंड लगा दी जाती थी ताकि वो भी हाथी जैसा ही दिखे ! एक हाथी पर सवार मानसिंह पर हमला करने के लिए जैसे ही चेतक ने छलाँग लगाकर हाथी के सिर पर पैर रखे तो महाराणा ने मानसिंह पर भाले से हमला किया ! इस हमले में महावत तो मारा गया, लेकिन मान सिंह ने हौदे में छुपकर अपनी जान बचा ली, इस हमले के दौरान हाथी की सूंड में बँधी तलवार से चेतक का पिछला पैर बुरी तरह ज़ख्मी हो गया ! घायल चेतक को मुगल सैनिकों ने घेर लिया, महाराणा को संकट में घिरा देखकर झालामान ने बड़ी सूझबूझ से उनका मुकुट अपने सिर पर रखा और युद्ध करने लगे ! 

झालामान का डील-डौल महाराणा से काफ़ी मेल खाता था इसलिए मुगलों को लगा कि वो महाराणा प्रताप ही है ! इस बीच चेतक महाराणा को लेकर सुरक्षित निकल गया, कुछ मुगल सिपाहियों ने चेतक का पीछा भी किया लेकिन चेतक ने एक 24 फीट चौड़े बरसाती नाले को छलाँग लगा दी ! मुगल सैनिक उस पार नहीं जा सके, नाला पार करते ही चेतक गिर पड़ा और कुछ ही देर में उसने दम तोड़ दिया ! इस तरह चेतक ने अपने स्वामी की सेवा करते हुए अपने प्राण दे दिए ! जिस स्थान पर चेतक ने अपने प्राण दिए थे वहाँ चेतक स्मारक भी बनाया गया है ! इस युद्ध में महाराणा प्रताप अपने 20000 सैनिकों के साथ जिस वीरता से मुगलों की विशाल 80000 हथियारबंद सेना से लड़े थे, उसके लिए आज भी उनको याद किया जाता है ! चलिए वापिस अपनी यात्रा पर चलते है जहाँ हम मुख्य प्रवेश द्वार से होते हुए संग्रहालय परिसर में प्रवेश कर चुके है ! इस संग्राहलय में हल्दीघाटी के युद्ध के मैदान के एक मॉडल के अलावा महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़ी कुछ वस्तुओं को भी रखा गया है !

संग्रहालय का प्रवेश द्वार



सुबह 8 बजे से रात्रि 8 बजे तक खुले रहने वाले इस संग्राहलय में महाराणा प्रताप के जीवन को बखूबी दर्शाया गया है ! संग्रहालय परिसर में महाराणा प्रताप और उनके साथियों की तांबे के रंग की प्रतिमाएँ बनाई गई है, प्रतिमाओं के किनारे रेलिंग लगी है जिसके उस पार जाने पर पाबंदी है ! एक प्रतिमा में तो चेतक को मानसिंह के हाथी के ऊपर छलाँग लगाते हुए भी दिखाया गया है ! यहाँ से आगे बढ़े तो एक कक्ष में पहुँच गए, कुछ देर की प्रतीक्षा के बाद हम एक अन्य कक्ष में पहुँचे, जहाँ महाराणा प्रताप के बचपन से लेकर जवानी तक की घटनाओं को चित्रों के माध्यम से दिखाया गया है ! कहीं वो शिक्षा ले रहे है तो कहीं हथियार चलाने का अभ्यास कर रहे है, किसी चित्र में योजना बनाते दिखाई दे रहे है तो कहीं विचार-विमर्श में मग्न है ! कुछ शीशे की अलमारियों में उन हथियारों को भी रखा गया है जो उस युद्ध में प्रयोग में लाए गए थे ! थोड़ी देर में यहाँ हॉल का प्रक्ष मद्धम कर दिया गया और एक फिल्म दिखाई जाने लगी, जिसमें महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़ी बातों को बताया गया था ! 

संग्रहालय के बाहर बनी एक प्रतिमा





हथियार चलाने का अभ्यास करते हुए महाराणा प्रताप


फिल्म ख़त्म होने के बाद यहाँ से आगे बढ़े तो आगे कृत्रिम गुफ़ाएँ बनाई गई है ! इन गुफ़ाओं में भी मद्धम रोशनी रहती है, जैसे-2 हम आगे बढ़ते रहे, अलग-2 हिस्से में मौजूद प्रतिमाओं के माध्यम से महाराणा प्रताप के जीवन की घटनाएँ प्रदर्शित होती रही, और पीछे से उन घटनाओं का वर्णन ऑडियो के माध्यम से होता रहा ! जब एक घटना के प्रदर्शित हो जाती तो उसकी रोशनी बंद कर दी जाती और दूसरी घटना की रोशनी को मद्धम कर दिया जाता, ये सिलसिला काफ़ी देर तक चलता रहा, कृत्रिम गुफ़ाओं में पुल भी बनाए गए है ! इस गुफा में बने चित्रों में से एक में तो महाराणा प्रताप शेर से लड़ते हुए दिखाई देते है, कुल मिलाकर शानदार प्रदर्शनी थी ! यहाँ से आगे बढ़े तो ग्रामीण जीवन को भी चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया था, कई बैलगाड़ियाँ बनाई गई थी और किसानों को काम करते हुए दिखाया गया था ! थोड़ी और आगे बढ़ने पर दुकानें थी, जहाँ शृंगार से लेकर अन्य ज़रूरी सामान उपलब्ध था ! एक जगह ताज़ा गन्ने का रस भी मिल रहा था, बैल को कोल्हू में लगाकर ये रस निकाला जा रहा था !

एक शेर से लड़ते हुए महाराणा

जंगल में बैठकर खाना खाते हुए महाराणा

दुश्मनों से लड़ने की योजना बनाते हुए


जौहर के लिए तैयार होती महिलाएँ



हल्दीघाटी के युद्ध में घायल चेतक 


कोल्हू का बैल
कुछ समय यहाँ बिताने के बाद हम संग्रहालय से बाहर आ गए और अपनी गाड़ी में सवार होकर उदयपुर की ओर चल दिए ! 4 बजे तक हम उदयपुर स्टेशन पहुँच गए, हमारी ट्रेन के आने में अभी काफ़ी समय था, स्टेशन पर भी अभी ख़ान-पान की कोई सुविधा दिखाई नहीं दी ! इसलिए गाड़ी वाले को किसी होटल पर ले चलने को कहा, ताकि पेट-पूजा कर सके ! ड्राइवर हमें स्टेशन से 4-5 किलोमीटर एक होटल पर लेकर गया, यहाँ खाते-पीते एक घंटा लग गया ! बिल चुकाकर यहाँ से फारिक होकर वापिस स्टेशन पहुँचे, यहाँ गाड़ी से उतरकर ड्राइवर को बकाया राशि का भुगतान करने के बाद हम अपना-2 सामान लेकर प्लेटफार्म पर चल दिए ! ट्रेन अपने निर्धारित समय पर प्लेटफार्म पर आकर खड़ी हो गई, ट्रेन में सवार होकर रात्रि सफ़र करने के बाद सुबह 6 बजे हम बल्लभगढ़ पहुँच गए ! यहाँ से बस में सवार होकर अपने घर पहुँचे और फिर तैयार होकर अपने-2 दफ़्तर के लिए रवाना हो गए ! इसी के साथ हमारा ये सफ़र ख़त्म होता है, जल्द ही आपको एक नए सफ़र पर लेकर चलूँगा !




क्यों जाएँ (Why to go Haldighati): अगर आपकी इतिहास में रूचि है और महाराणा प्रताप से जुड़ी बातें जानना चाहते है तो आप यहाँ जा सकते है ! हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध यहीं लड़ा गया था, किताबों में आपने इस युद्ध के बारे में ज़रूर पढ़ा होगा, यहाँ आकर आपको इतिहास से रूबरू होने का मौका मिलेगा ! इसके अलावा भी हल्दीघाटी और इसके आस-पास घूमने के लिए काफ़ी कुछ है !

कब जाएँ (Best time to go Haldighati): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए माउंट आबू जा सकते है लेकिन सितंबर से मार्च यहाँ घूमने जाने के लिए सबसे बढ़िया मौसम है ! गर्मियों में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !


कैसे जाएँ (How to reach Haldighati): दिल्ली से हल्दीघाटी की दूरी लगभग 637 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है और यहाँ का नज़दीकी रेलवे स्टेशन "उदयपुरहै जिसकी दूरी हल्दीघाटी से महज 45 किलोमीटर है, जिसे आप बस या जीप से 1 घंटे में तय कर सकते है ! दिल्ली से उदयपुर के लिए नियमित रूप से ट्रेनें चलती है, जो रात को दिल्ली से चलकर सुबह उदयपुर पहुँचा देती है ! ट्रेन से दिल्ली से उदयपुर जाने में 12 घंटे का समय लगता है जबकि अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से उदयपुर के लिए बसें भी चलती है जो 14 से 15 घंटे का समय लेती है ! अगर आप निजी वाहन से उदयपुर जाने की योजना बना रहे है तो दिल्ली जयपुर राजमार्ग से अजमेर होते हुए उदयपुर जा सकते है निजी वाहन से आपको 11-12 घंटे का समय लगेगा ! हवाई यात्रा का मज़ा लेना चाहे तो आप सवा घंटे में ही उदयपुर पहुँच जाओगे ! 


कहाँ रुके (Where to stay in Haldighati): हल्दीघाटी में रुकने के बहुत ज़्यादा विकल्प तो नहीं है, फिर भी गिनती के कुछ होटल है, यहाँ घूमने आने पर आप नाथद्वारा या उदयपुर रुक सकते है ! उदयपुर में रुकने के लिए होटलों की कोई कमी नहीं है आपको 500 रुपए से लेकर 8000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !

क्या देखें (Places to see in Haldighati): हल्दीघाटी और इसके आस-पास देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है, जिसमें कुम्भलगढ़ का किला, कुम्भलगढ़ वन्यजीव उद्यान, श्रीनाथजी मंदिर, एकलिंगजी मंदिर, चारभुजा, और द्वारकाधीश मंदिर शामिल है !  इसके अलावा उदयपुर यहाँ से 45 किलोमीटर दूर है, और वहाँ देखने के लिए सिटी पैलेस, लेक पैलेस, सहेलियों की बाड़ी, पिछोला झील, फ़तेह सागर झील, रोपवे, जगदीश मंदिर, जैसमंद झील, चित्तौडगढ़ किला और सज्जनगढ़ वन्य जीव उद्यान है !

समाप्त...

उदयपुर - कुम्भलगढ़ यात्रा

  1. उदयपुर में पहला दिन – स्थानीय भ्रमण (Local Sight Seen in Udaipur)
  2. उदयपुर का सिटी पैलेस, रोपवे और पिछोला झील (City Palace, Ropeway and Lake Pichola of Udaipur)
  3. उदयपुर से माउंट आबू की सड़क यात्रा (A Road Trip from Udaipur to Mount Abu)
  4. दिलवाड़ा के जैन मंदिर (Jain Temple of Delwara, Mount Abu)
  5. माउंट आबू से कुम्भलगढ़ की सड़क यात्रा (A Road Trip From Mount Abu to Kumbhalgarh)
  6. कुम्भलगढ़ का किला - दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार (Kumbhalgarh Fort, The Second Longest Wall of the World)
  7. हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध और महाराणा प्रताप संग्रहालय (The Battle of Haldighati and Maharana Pratap Museum)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

4 Comments

  1. भारत के इतिहास में महाराणा प्रताप जैसे वीर बहुत कम हुए है, महाराणा प्रताप जैसे वीर अपनी मिट्टी के लिये विदेशी हमलावरों से पूरी जिंदगी लडते रहे तो मानसिंह जैसे दोगले भी थे जो इन्ही विदेशियों के साथ मिलकर अपनी मिट्टी के वीरों के खिलाफ काम करने को अपनी शान समझते रहे
    ऐसा ही हाल पृथ्वीराज चौहान के समय रहा, घर के भेदी आज भी यही कर रहे है।

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