भानगढ़ के किले से वापसी (Bhangarh to Delhi – Return Journey)

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किले से निकलकर हम पार्किंग स्थल पर पहुँचे, जो प्रवेश द्वार के ठीक सामने था, जब हम किले से बाहर निकल रहे थे तो काफ़ी लोग एक साथ किले में जा रहे थे ! जैसे-2 दिन बढ़ता जाएगा, यहाँ आने वाले लोगों की तादात भी बढ़ती जाएगी और फिर शाम होते-2 सब अपने घर लौट जाएँगे ! बाहर आते हुए ध्यान आया कि किले से थोड़ी दूरी पर एक बावली और कुछ अन्य इमारतें भी है गाड़ी पार्किंग में ही छोड़कर हम लोग मुख्य मार्ग से हटकर एक कच्चे मार्ग पर चल दिए ! जिस इमारत की मैं बात कर रहा हूँ वो किसी का मकबरा था, कहते है ये किसी हिंदू शासक का मकबरा है जिसने बाद में इस्लाम धर्म अपना लिया था ! मुख्य मार्ग से हटकर कच्चे रास्ते से होते हुए हम इस मक़बरे की ओर चल दिए ! दूर से देखने पर ही ये मकबरा बहुत सुंदर लग रहा था, थोड़ी देर बाद हम मक़बरे के पास पहुँच गए ! ये मकबरा एक ऊँचे चबूतरे पर बना है और अंदर जाने के लिए पत्थर की सीढ़ियाँ भी बनी है ! जिस समय हम मक़बरे पर पहुँचे, वहाँ कुछ स्थानीय बच्चे खेल रहे थे !
मक़बरे का एक दृश्य
इस मक़बरे की दीवारों को गंदा करने में लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी, सबकी आशिकी और भड़ास इन बेजुबान दीवारों पर ही निकली है ! मक़बरे की दीवारों पर किसी ने अपने प्यार का इज़हार कर रखा है तो किसी ने गालियाँ लिख रखी है ! वैसे, देखने तो हम बावली जा रहे थे, लेकिन रास्ते में ही ये मकबरा दिख गया तो सोचा इसे भी देखते ही चले ! ये मकबरा चारों ओर से देखने पर एक जैसा ही लगता है. इसके चारों कोनों पर छोटे-2 गुंबद जबकि बीच में एक बड़ा गुंबद बना हुआ है ! मक़बरे के भीतर चारों तरफ बरामदा है और बीच में मुख्य कक्ष है, बरामदे के बाहर बने चबूतरे पर चढ़कर हमने मक़बरे का अंदर-बाहर से मुआयना किया, और फिर थोड़ा समय यहाँ बिताने के बाद आगे बढ़ गए ! यहाँ से बावली का कुछ अता-पता नहीं चल रहा था, किले में एक पत्थर पर अंकित हमें जो जानकारी मिली थी उसके हिसाब से ये बावली इस मक़बरे से उत्तर-पूर्व दिशा में थी ! 

दिशा का अंदाज़ा लगाते हुए हम बावली को देखने के मकसद से आगे बढ़ते रहे, रास्ते में हमें एक कुआँ भी दिखा ! इस कुएँ के आस-पास भी कभी कोई इमारत रही होगी, जिसके अब सिर्फ़ अवशेष ही दिखाई दे रहे थे, ये कुआँ ज़्यादा गहरा नहीं था ! समय दोपहर के ग्यारह बजने वाले थे और गर्मी अपने चरम पर थी, मार्च के महीने में ही भयंकर गर्मी का एहसास होने लगा था ! थोड़ी देर की मेहनत के बाद हम बावली तक पहुँच गए, इस बावली की चारदीवारी ज़मीन से ज़्यादा ऊँची नहीं थी, मुझे शंका है कि आने वाले समय में शायद ये बावली विलुप्त ही हो जाए ! इस बावली में जाने का प्रवेश द्वार पत्थरों का बना हुआ है, बावली परिसर अभी भी सुरक्षित है, वो अलग बात है कि पूरा परिसर ज़मीन से नीचे है ! सीढ़ियों से उतरकर हमने बावली में प्रवेश किया, बावली की दीवारों में कई दरवाजे, खिड़कियाँ और मोखले बने हुए है ! इस बावली का कुछ हिस्सा मिट्टी से ढक भी गया है, अंदर से देखने पर मुझे ये बावली शानदार लगी, एकदम शांत, लेकिन खूबसूरत ! 

हालाँकि, मैने अब तक जो बावलियाँ देखी है उसके मुक़ाबले ये बावली काफ़ी छोटी है, लेकिन जैसी भी है, शानदार है ! कई दरवाज़ों से होते हुए हम बावली से जुड़े उस कुएँ तक पहुँच गए, जो बावली से जुड़ा हुआ है ! हालाँकि, अब ये कुआँ सूख चुका है और इसमें मिट्टी भर गई है, किले की तरह ही इस बावली को देखने में भी खूब मज़ा आया ! बावली में जगह-2 पूजा सामग्री बिखरी पड़ी थी, जिसमें इत्र की शीशियाँ, अगरबत्तियाँ और पूजा के अन्य सामान शामिल थे ! वापसी के दौरान बावली में ही एक जगह हमें कबूतर के पंख बिखरे हुए मिले और बगल में ही एक छुरी भी दिखाई दी, जिसपर कलाया (पूजा में प्रयोग होने वाला लाल धागा) बाँधा गया था ! देखकर कोई भी अनुमान लगा लेता कि यहाँ कबूतर और अन्य जीवों की बलि दी जाती होगी ! इसके अलावा दीवारों पर जगह-2 सिंदूर लगाए गये थे, शायद किसी ख़ास मौके पर लोग यहाँ सिद्धियाँ पाने के लिए बलि चढ़ाते है और पूजा करते है ! जब सारा परिसर घूम लिए तो हम चारों बाहर की ओर चल दिए ! 

मुझे एक बात जो सबसे ज़्यादा अखरी वो ये थी कि भानगढ़ का किला, किले के बाहर बना मकबरा, और ये बावली सब पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित घोषित है लेकिन किले को छोड़कर बाकी किसी भी जगह पर जानकारी से संबंधित कोई भी सूचना पट्ट नहीं लगाया गया है ! हाँ, पुरातत्व विभाग ने इमारत के संरक्षित होने संबंधी जानकारी एक बोर्ड पर ज़रूर दे रखी है, उसी के आस-पास इन जगहों से संबंधित जानकारी भी दे देते तो यहाँ आने वाले लोगों को काफ़ी सुविधा रहती ! बावली से बाहर आकर हम वापिस मुख्य मार्ग की ओर चल दिए, जहाँ हमारी गाड़ी खड़ी थी ! थोड़ी दूरी पर ही हमें एक और पुरानी इमारत दिखाई दी, सोचा इसे भी देखते चलते है ! इस इमारत की ओर जाते हुए रास्ते में हमें एक और कुआँ दिखाई दिया, जिसके बगल में ही एक जनरेटर भी लगा था, कुएँ में इस समय पानी तो था, लेकिन काफ़ी नीचे था ! ये कुआँ काफ़ी गहरा था, पुष्टि करने के लिए हमने पास ही पड़ा एक बड़ा पत्थर उठा कर कुएँ में फेंका जो काफ़ी देर बाद पानी तक पहुँचा ! 

जनरेटर का इस्तेमाल कुएँ से पानी खींचने के लिए किया जाता है, आस-पास काफ़ी खेत थे ! इस कुएँ से आगे जो इमारत हमें दिखाई दे रही थी वो भी किसी का मकबरा ही था लेकिन झाड़ियों के बीच में होने के कारण हम इस मक़बरे पर नहीं गए ! दूर से ही कुछ फोटो लेकर आगे बढ़ गए और अपनी गाड़ी के पास आकर ही रुके, पार्किंग स्थल के पास ही एक गन्ने के जूस वाला खड़ा था ! इतनी गर्मी में जूस दिख जाए तो फिर कहाँ रुका जाता है, वापिस आने से पहले हमने 1-1 गिलास गन्ने का रस पिया ! वापसी के दौरान हमने रास्ते में खाने के लिए कुछ चने भी लिए, फिर किले तक आने वाले सहायक मार्ग से होते हुए हम मुख्य मार्ग पर पहुँचे ! भानगढ़ आते हुए रास्ते में हमें कई जुगाड़ दिखे, पहले ये हमारे शहर में भी खूब चलते थे लेकिन धीरे-2 इनका चलना ख़त्म हो गया ! फिर भी ये उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कई हिस्सों में आज भी चलन में है ! 

कल जब हम यहाँ आए थे तो रात होने के कारण रास्ते की खूबसूरती नहीं देख पाए थे, लेकिन आज दिन के समय वापसी करने पर हमें सारे खूबसूरत नज़ारे देखने को मिले ! अज़बगढ़ के किले के पास आकर थोड़ी देर के लिए हम रुके, लेकिन ये किला काफ़ी ऊँचाई पर था और धूप होने के कारण ऊपर चढ़ने का मन किसी का नहीं था ! वैसे पता नहीं इस किले में अंदर देखने के लिए कुछ है भी या नहीं ! दूर से ही एक-दो फोटो लेने के बाद हमने वापसी का अपना सफ़र जारी रखा ! शायद 1 बजे के आस-पास हम सरिस्का पहुँचे, फिर अलवर आते हुए रास्ते में एक जगह रुककर कचौरियाँ खाई और घर के लिए अलवर का मशहूर मिल्क केक भी लिया ! यहाँ से चले तो सोहना में योगेश को छोड़ते हुए 4 बजे के आस-पास हम अपने घर पहुँचे ! तो इस तरह हमारा भानगढ़ का सफ़र यहीं ख़त्म होता है, जल्द ही एक नए सफ़र पर आपसे फिर मुलाकात होगी !


दूर से दिखाई देता मकबरा
मक़बरे का एक दृश्य
मक़बरे का एक और दृश्य 
मक़बरे का एक और दृश्य
रास्ते में दिखाई देता एक कुआँ
बावली का प्रवेश द्वार
बावली के अंदर का एक दृश्य
बावली के अंदर का एक दृश्य
बावली से जुड़ा कुआँ
बावली के अंदर का एक दृश्य
बलि का सामान
बावली से बाहर आते हुए
बावली से दिखाई देता मकबरा
बावली से थोड़ी दूरी पर एक और मकबरा
एक और कुआँ
दूसरे मक़बरे का एक और दृश्य
जनरेटर से चलने वाला एक जुगाड़
अज़बगढ़ किले के पास एक मंदिर
अज़बगढ़ का किला
एक और इमारत

क्यों जाएँ (Why to go Bhangarh): अगर आपको रहस्यमयी और डरावनी जगहों पर घूमना अच्छा लगता है तो भानगढ़ आपके लिए उपयुक्त स्थान है ! भानगढ़ का किला दुनिया की डरावनी जगहों में शुमार है !

कब जाएँ (Best time to go Bhangarh): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में भानगढ़ जा सकते है लेकिन बारिश के मौसम में यहाँ की हरियाली देखने लायक होती है ! इस मौसम में हरे-भरे पहाड़ों के बीच भानगढ़ का किले की खूबसूरती देखने लायक होती है ! हर मौसम में यहाँ अलग ही आनंद आता है गर्मी के दिनों में भयंकर गर्मी पड़ती है तो सर्दी भी कड़ाके की रहती है ! क्योंकि ये किला एक डरावनी जगह है इसलिए रात को इस किले में ना ही जाएँ तो सही रहेगा !


कैसे जाएँ (How to reach Bhangarh): दिल्ली से भानगढ़ की दूरी मात्र 250 किलोमीटर है भानगढ़ रेल और सड़क मार्ग से अच्छे से जुड़ा हुआ है यहाँ का नज़दीकी रेलवे स्टेशन दौसा है जिसकी दूरी भानगढ़ के किले से 29 किलोमीटर है ! दौसा से भानगढ़ जाने के लिए आपको जीपें और अन्य सवारियाँ आसानी से मिल जाएँगी ! जबकि आप सीधे दिल्ली से भानगढ़ निजी गाड़ी से भी जा सकते है, इसके लिए आपको दिल्ली-जयपुर राजमार्ग से होते हुए जयपुर से पहले मनोहरपुर नाम की जगह से आपको बाएँ मुड़ना है ! एक मार्ग अलवर-सरिस्का से होकर भी है वैसे तो इस मार्ग की हालत बहुत लेकिन सरिस्का के बाद थोड़ा खराब और सँकरा मार्ग है !


कहाँ रुके (Where to stay in Bhangarh): भानगढ़ में रुकने के लिए बहुत कम विकल्प है, अधिकतर होटल यहाँ से 15 से 20 किलोमीटर की दूरी पर है ! शुरुआती होटल तो आपको 1000-1200 में मिल जाएँगे लेकिन अगर किसी पैलेस में रुकना चाहते है तो आपको अच्छी ख़ासी जेब ढीली करनी पड़ेगी !


क्या देखें (Places to see in Bhangarh): वैसे तो भानगढ़ और इसके आस-पास देखने के लिए काफ़ी जगहें है लेकिन भानगढ़ का किला, नारायणी माता का मंदिर, पाराशर धाम, सरिस्का वन्य जीव उद्यान, सरिस्का पैलेस, और सिलिसढ़ झील प्रमुख है ! 


भानगढ़ यात्रा
  1. भानगढ़ की एक सड़क यात्रा (A road trip to Bhangarh)
  2. भानगढ़ की वो यादगार रात (A Scary Night in Bhangarh)
  3. भानगढ़ का नारायणी माता मंदिर और पाराशर धाम (Parashar Dham and Narayani Temple in Bhangarh)
  4. भानगढ़ के किले में दोस्तों संग बिताया एक दिन (A Day in Bhangarh Fort)
  5. भानगढ़ के किले से वापसी (Bhangarh to Delhi – Return Journey)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

2 Comments

  1. भानगढ़ के बारे में बढ़िया लेख...और फोटो ...प्रदीप जी

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    1. धन्यवाद रितेश भाई !

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