दिल्ली से जोधपुर की ट्रेन यात्रा (A Train Journey from Delhi to Jodhpur)

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

केदारनाथ से वापिस आने के बाद 2 महीने बीतने को थे, इस बीच काम की व्यस्तता के कारण किसी भी यात्रा पर जाने का संयोग नहीं बना था, सर्दियों ने दस्तक दे दी थी और ये वर्ष भी अपनी समाप्ति की ओर था ! जब काम करते-2 मन ऊब गया तो आखिरकार दिसंबर के तीसरे सप्ताह में एकदम से घूमने जाने का कीड़ा जाग उठा ! लेकिन इस बार पहाड़ों पर जाने की इच्छा नहीं हो रही थी, इसलिए सोचा क्यों ना इस बार राजस्थान में ही कहीं घूम आऊँ ! क्रिसमस की छुट्टी की वजह से एक लम्बा सप्ताह मिल रहा था, इसलिए मैंने 2 अतिरिक्त छुट्टियाँ लेकर 5 दिवसीय यात्रा की योजना बना ली ! साल का अंत होने के कारण हर जगह अच्छी भीड़-भाड़ मिलने वाली थी, टिकट मिलने की उम्मीद भी ना के बराबर ही थी ! आनन-फानन में ट्रेन की टिकटें देखी तो स्लीपर में ही कन्फर्म टिकटें मिल रही थी ! वैसे राजस्थान वाले रूट पर टिकटों को लेकर ज्यादा मारामारी नहीं थी, वरना इस समय देश के किसी दूसरे हिस्से में कन्फर्म टिकटें मिलना काफी मुश्किल था ! मेरी इस 5 दिवसीय यात्रा पर देवेन्द्र भी मेरे साथ जा रहा था, और हम इस यात्रा में जोधपुर, जैसलमेर, और बीकानेर की यात्रा करने वाले थे ! इससे पहले देवेन्द्र और मैं केदारनाथ और शिमला की यात्रा पर भी साथ जा चुके है ! निर्धारित दिन हम अपने-2 दफ्तर से काम निबटा कर इस यात्रा के लिए निकल पड़े !
जोधपुर रेलवे स्टेशन के बाहर का एक दृश्य

देवेन्द्र अपने ऑफिस से निकलकर मुझे शंकर चौक पर मिला, यहाँ से चलने के बाद गुडगाँव से निकलकर हम उत्तम नगर स्थित देवेन्द्र के घर पहुंचे ! हमारी ट्रेन मंडोर एक्सप्रेस (ट्रेन नंबर 12461) पुरानी दिल्ली से रात 9 बजे की थी, स्टेशन पर जल्दी जाने का कोई फायदा नहीं था इसलिए हम देवेन्द्र के घर कुछ देर रूककर यात्रा का सामान लेते हुए रात्रि भोजन करने के बाद स्टेशन के लिए निकलने वाले थे ! देवेन्द्र ने मुझे अपना बांसुरियों का शानदार संग्रह भी दिखाया, जिसमें 500 रूपए से शुरू होकर 3500 रूपए तक की बांसुरी थी ! भोजन करने के बाद हम शाम 7 बजे देवेन्द्र के घर से पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन जाने के लिए निकल पड़े, घर से निकलने के बाद गली के मोड़ से ही हमें एक बेट्री चालित रिक्शा मिल गया, रिक्शा में सवार होकर हम उत्तम नगर मेट्रो स्टेशन की ओर चल दिए जोकि देवेन्द्र के घर से शायद 2 किलोमीटर दूर था ! कुछ व्यस्त इलाकों से होते हुए हम आगे बढ़ते रहे, रास्ते में एक बाज़ार से भी होकर गुजरे, अच्छा बाज़ार था, खूब रौनक थी, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि दिन के समय यहाँ कितनी भीड़ होती होगी ! सभी रिक्शा चालक एक कतार में चल रहे थे ताकि जाम ना लगे, जाने वाले रिक्शा चालकों की अलग कतार थी तो आने वाले भी एक कतार में ही चल रहे थे !

कोई एक रिक्शा चालक रुकता तो पीछे लम्बी लाइन लग जाती ! खैर, 15-20 मिनट बाद हम इस व्यस्त इलाके से निकलकर एक खुले मार्ग पर पहुँच गए, भीड़ तो यहाँ भी कम नहीं थी, सब छोटी-बड़ी गाडी वाले एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में थे ! मेट्रो स्टेशन भी सामने ही दिखाई दे रहा था, जाम की स्थिति को देखते हुए हम रिक्शे से उतरकर पैदल ही मेट्रो स्टेशन की ओर चल दिए ! सुरक्षा प्रक्रिया से निकलकर लिफ्ट से होते हुए हम प्लेटफार्म पर पहुंचे, कुछ देर के इन्तजार के बाद हमारी मेट्रो आ गई जिसमें सवार होकर हम पुरानी दिल्ली मेट्रो स्टेशन की ओर चल दिए ! चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन पहुंचकर हम मेट्रो से उतरे और गेट नंबर 3 से निकलने के बाद पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के ठीक सामने खड़े थे ! इस समय स्टेशन के बाहर अच्छी-खासी भीड़ थी, मुख्य प्रवेश द्वार से होते हुए हम अपने सामान की सुरक्षा जांच करवाकर प्लेटफार्म नंबर 2 पर पहुंचे ! पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म ढूँढना भी कोई आसान काम नहीं है, एक ही प्लेटफार्म पर कई प्लेटफार्म जुड़े हुए है ! प्लेटफार्म नंबर भी नई दिल्ली से बिल्कुल विपरीत है वहां पहाडगंज की तरफ से प्लेटफार्म की गिनती शुरू होती है तो यहाँ पुरानी दिल्ली में मेट्रो स्टेशन की तरफ से प्रवेश करने पर ये गिनती शुरू होती है !

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का एक और दृश्य
हम भी प्लेटफार्म नंबर 2 पर थोडा आगे बढे तो आगे प्लेटफार्म नंबर 3 भी था, जहाँ मण्डोर एक्सप्रेस (ट्रेन नंबर 12461) तैयार खड़ी थी ! हमारा आरक्षण आगे वाले कोच में था, जहाँ पहुँचने के लिए हमें काफी पैदल चलना पड़ा ! अपने कोच तक पहुँचते-2 पसीना निकल गया, अगर हम कुछ देर बाद यहाँ पहुँचते तो अपने कोच तक पहुँचते-2 ही ये ट्रेन निकल जाती ! खैर, ट्रेन में चढ़े तो हमारी सीट वाला केबिन सामान से भरा हुआ था, केबिन में पैर तक रखने की जगह नहीं थी ! यात्रियों से पूछताछ की तो पता चला कि एक आदमी जिसका ट्रान्सफर हुआ था वो 10-12 बैग लेकर यात्रा कर रहा था ! वैसे तो उसका आरक्षण भी दिल्ली कैंट से था लेकिन सामान ज्यादा होने के कारण एअरपोर्ट से उतरकर वो सीधा यहाँ दिल्ली स्टेशन ही आ गया ताकि सामान चढाने में कोई दिक्कत ना हो ! खैर, जैसे-तैसे करके हमने भी अपना बैग सीट के नीचे रखा और कमर सीधी करने के लिए बैठ गए ! कुछ देर इन्तजार करने के बाद ट्रेन अपने निर्धारित समय पर स्टेशन से चली और कैंट, पालम, बिजवासन होते हुए गुडगाँव पहुंची ! यहाँ भी कई सवारियां गाडी में चढ़ी, एक बड़ा परिवार भी ट्रेन में चढ़ा, जिसने रात भर ट्रेन में खूब धूम मचाई ! गुडगाँव पार करने के बाद हम अपनी-2 सीटों पर जाकर सो गए, थकान होने के कारण रात को बढ़िया नींद आई !

सुबह समय से नींद खुली, समय 6 बज रहे थे, टॉयलेट जाते हुए मोबाइल में ट्रेन की वर्तमान स्थिति देखी तो पता चला कि ये दो घंटे की देरी से चल रही थी ! रात में इस कोच में ना जाने क्या हुआ, लेकिन अगले कोच में लोगों की बातें सुनकर अंदाजा लग गया कि रात को जो परिवार गुडगाँव से चढ़ा था उनके कारण काफी लोग रात भर परेशान रहे थे ! इस परिवार में कुछ महिलायें भी थी, क्रिसमिस की छुट्टी बिताने के लिए ये लोग भी जोधपुर ही जा रहे थे ! इनके पास एक पोर्टेबल स्पीकर था, लोगों के अनुसार इन्होनें देर रात तक इसी स्पीकर पर खूब संगीत बजाया था, जिसकी वजह से कोच में कई लोग इनसे खफा थे ! सुबह जब मेरी नींद खुली तो उस समय भी स्पीकर पर कोई संगीत ही बज रहा था, कसम से, बिग बॉस की याद आ गई, वहां भी प्रतियोगी सुबह आँख खुलते ही संगीत की धुन पर नाचना शुरू कर देते है ! खैर, मुझे तो ये बढ़िया लगा, अपनी रोजमर्रा की ज़िन्दगी से दूर सुकून के कुछ पल बिताने के लिए ये लोग पूरी मस्ती के मूड में दिखाई दे रहे थे ! इस ट्रेन का जोधपुर पहुँचने का समय सुबह पौने आठ बजे का है, लेकिन लेट होने के कारण अब ये 10 बजे जोधपुर पहुंचेगी ! आठ बजे के बाद अधिकतर लोग तो बेसब्री से ट्रेन के जोधपुर पहुँचने का इन्तजार कर रहे थे, लेकिन जिन लोगों ने ट्रेन की वर्तमान स्थिति इन्टरनेट पर देख ली थी वो निश्चिन्त होकर बैठे थे !

सोकर उठने के बाद मैं खिड़की वाली सीट पर ही बैठा था, रात को ठंडी हवा से बचने के लिए हमने खिड़की बंद कर दी थी ! लेकिन अब मैंने झांककर देखा तो बाहर अच्छी धूप निकल आई थी, धूप का आनंद लेने के लिए मैंने खिड़की खोल दी, लेकिन चलती ट्रेन में खिड़की से हवा भी बड़ी तेज आ रही थी ! आखिरकार साढ़े दस बजे सभी यात्रियों का इन्तजार ख़त्म हुआ जब हमारी ट्रेन जोधपुर स्टेशन पर पहुंची, जोधपुर पहुँचते-2 ये ढाई घंटे लेट हो चुकी थी ! सर्दियों का मौसम था और धुंध की वजह से उत्तर भारत में ट्रेनें इतना लेट हो ही जाती है, ट्रेन से उतरने के बाद हमने सबसे पहले प्लेटफार्म पर रूककर कुछ फोटो खींचे, और फिर सीढ़ियों से होते हुए स्टेशन परिसर से बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! स्टेशन के बाहर निकलते हुए बरामदे में बढ़िया चित्रकारी की गई है, राजस्थानी शासकों के चित्रों को दीवार पर अच्छे से उकेरा गया है जिसमें उन्हें अलग-2 क्रियाकलापों में दिखाया गया है, किसी चित्र में वो युद्ध में जाने की तैयारी कर रहे है तो कहीं युद्ध करते हुए दिखाया गया है ! कुल मिलाकर बढ़िया चित्रकारी की गई है, बीच में जगह-2 बड़े फ्रेम में भी चित्र बनाकर रखे गए है, यहाँ से बाहर जाते हुए लोग अक्सर रूककर इस चित्रकारी को देखने के बाद ही आगे बढ़ते है !


जोधपुर रेलवे स्टेशन के एक दृश्य

जोधपुर रेलवे स्टेशन के एक दृश्य

जोधपुर स्टेशन से बाहर निकलते हुए बरामदे का एक दृश्य
ऐसी चित्रकारी हमें उदयपुर रेलवे स्टेशन पर भी देखने को मिली थी, वैसे राजस्थान में आपको कई स्टेशनों पर इस तरह की चित्रकारी देखने को मिल जाएगी ! स्टेशन से बाहर निकलते ही दाईं ओर प्रदर्शनी के लिए एक इंजन रखा गया है, भाप के इस इंजन को भारतीय रेलवे के 150 गौरवपूर्ण वर्ष पूरे होने पर प्रदर्शनी स्वरुप यहाँ 2002 में रखा गया था ! जोधपुर आने वाले सैलानियों के लिए ये भी आकर्षण का केंद्र रहता है, लोग इस इंजन के चारों तरफ खड़े होकर फोटो खिंचवाते रहते है ! काले और हरे रंग के इस इंजन के अगले भाग में सुनहरे रंग का सूर्य बनाया गया है जबकि पिछले भाग में एक केबिन बना है जहाँ चालक और सहायक चालक के बैठने की व्यवस्था है ! पहिये के पास वाले हिस्से को सिल्वर रंग से रंगा गया है तो पहिये के ठीक ऊपर खड़े होने की व्यवस्था है जिसके किनारे रेलिंग लगी है ! विद्दयुत इंजन आने के बाद भाप और डीजल इंजन पटरियों पर दिखने बंद हो गए है, डीजल इंजन तो फिर भी किसी-2 क्षेत्र में पटरियों पर दौड़ते हुए दिख जाते है लेकिन भाप इंजन तो अब प्रदर्शनियों तक ही सीमित रह गए है ! वैसे बढ़िया रख-रखाव के कारण जोधपुर रेलवे स्टेशन के बाहर रखा ये इंजन आज भी नए जैसा लगता है ! आगे बढ़ने से पहले हमने भी यहाँ रूककर कुछ फोटो खींचे और इस इंजन से सम्बंधित जरुरी जानकारी ली !


जोधपुर रेलवे स्टेशन के बाहर भाप इंजन


जोधपुर रेलवे स्टेशन के बाहर भाप इंजन
दिसंबर का महीना होने के कारण यहाँ भी बढ़िया ठण्ड पड़ रही थी, प्लेटफार्म पर तो तेज हवा भी चल रही थी, हालांकि, यहाँ हवा से तो थोड़ी राहत थी लेकिन ठण्ड पूरा जोर मार रही थी ! यहाँ से चले तो हमारा पहला काम एक होटल देखना था ताकि घूमने जाने से पहले नहा-धोकर तैयार हो सके, उदयपुर में तो स्टेशन से बाहर निकलते ही हमें होटल दिलाने वाले दलालों ने घेर लिया था लेकिन यहाँ ऐसा नहीं था ! शायद ही हमें कोई आदमी मिला जिसने होटल दिलाने से सम्बंधित बात की, वैसे ये बढ़िया भी था, अपने आप होटल ढूंढेंगे तो शहर भी घूम लेंगे और अपनी पसंद का होटल भी मिल जायेगा ! स्टेशन से बाहर निकलने के बाद एक ऑटो में सवार होकर हम अपने लिए होटल ढूँढने निकल पड़े, इस बीच हम मोबाइल पर ओयो रूम पर भी होटल ढूंढते रहे ! हमने सोचा, तकनीक का कुछ तो फायदा उठाया जाए, 1-2 होटल हमें पसंद भी आए लेकिन इसी बीच ऑटो वाला हमें लेकर शहर के बीचों-बीच त्रिपोलिया बाज़ार से होता हुआ मानक चौराहे पर जाकर रुका ! यहाँ आस-पास कई होटल थे, ऑटो से उतरकर मैं एक होटल (सरवर गेस्ट हाउस) में कमरा देखने गया, कमरा ठीक-ठाक था लेकिन ओयो रूम वाले होटल के मुकाबले तो फीका ही था ! कमरा देखने के बाद इसका किराया पूछा तो होटल वाले ने 1200 रूपए बताया, मैं बोला इतने में तो हमें ओयो रूम में इससे भी बढ़िया कमरा मिल रहा है !

होटल से बाहर आकर मैंने देवेन्द्र को कमरे से सम्बंधित जानकारी दी, आपसी सलाह-मशवरा के बाद जाकर देवेन्द्र भी ये कमरा देख आया ! मैंने होटल वाले से थोडा मोलभाव किया तो 700 रूपए में बात बन गई ! होटल से बाहर आकर मैंने ऑटो वाले को 20 रूपए देकर फारिक किया और सामान लेकर होटल के प्रथम तल पर पहुँच गया जहाँ हमारा कमरा था ! इस बीच देवेन्द्र होटल में रुकने सम्बंधित कागजी कार्यवाही पूरी कर आया ! फिर बारी-2 से हम दोनों नहा-धोकर फारिक हुए, होटल वाले से नाश्ते सम्बंधित बात की तो पता चला खाना तैयार होने में थोडा समय लग जायेगा ! हम पहले ही लेट हो चुके थे, साधे बारह बज रहे थे और खाने के चक्कर में रुकते तो दोपहर यहीं बिताना पड़ता ! इसलिए एक बैग में खाने-पीने का कुछ सामान लेकर हम मेहरानगढ़ जाने वाले पैदल मार्ग की ओर चल दिए ! आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि यहाँ से मेहरानगढ़ किला जाने के लिए ऑटो भी चलते है जबकि बाज़ार के बीच में से एक पैदल मार्ग भी किले की ओर जाता है ! हम इसी मार्ग से जा रहे थे, थोड़ी खड़ी चढ़ाई है, लेकिन इस मार्ग से किले की ओर जाने पर पूरे शहर का शानदार दृश्य दिखाई देता है ! किले तक पहुँचने और मेहरानगढ़ किले के भ्रमण सम्बंधित जानकारी मैं इस यात्रा के अगले लेख में दूंगा, फिल्हाल इस लेख पर यहीं विराम लगाता हूँ !

क्यों जाएँ (Why to go Jodhpur): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में स्थित जोधपुर का रुख कर सकते है ! 

कब जाएँ (Best time to go Jodhpur
): जोधपुर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !

कैसे जाएँ (How to reach 
Jodhpur): जोधपुर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी 620 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन में सवार होकर रात भर में तय कर सकते है ! मंडोर एक्सप्रेस रोजाना पुरानी दिल्ली से रात 9 बजे चलकर सुबह 8 बजे जोधपुर उतार देती है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो उसके लिए भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जोधपुर जा सकते है  ! 

कहाँ रुके (Where to stay near 
Jodhpur): जोधपुर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 600 रूपए से शुरू होकर 3000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !

क्या देखें (Places to see near Jodhpur): जोधपुर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें मेहरानगढ़ किला, जसवंत थड़ा, उन्मेद भवन, मंडोर उद्यान, बालसमंद झील, कायलाना झील, क्लॉक टावर और यहाँ के बाज़ार प्रमुख है ! त्रिपोलिया बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जोधपुर लाख के कड़ों के लिए जाना जाता है इसलिए अगर आप यहाँ घूमने आये है तो अपने परिवार की महिलाओं के लिए ये कड़े ले जाना ना भूलें !

अगले भाग में जारी...

जोधपुर यात्रा
  1. दिल्ली से जोधपुर की ट्रेन यात्रा (A Train Journey from Delhi to Jodhpur)
  2. जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग का इतिहास (History of Mehrangarh Fort, Jodhpur)
  3. जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग की सैर (A Visit to Mehrangarh Fort, Jodhpur)
  4. मेहरानगढ़ दुर्ग के महल (A Visit to Palaces of Mehrangarh Fort, Jodhpur)
  5. मारवाड़ का ताजमहल - जसवंत थड़ा (Jaswant Thada, A Monument of Rajpoot Kings)
  6. जोधपुर का उम्मेद भवन (Umaid Bhawan Palace, Jodhpur)
  7. रावण की ससुराल और मारवाड़ की पूर्व राजधानी है मण्डोर (Mandor, the Old Capital of Marwar)
  8. जोधपुर की बालसमंद और कायलाना झील (Balasmand and Kaylana Lake of Jodhpur)
  9. जोधपुर का क्लॉक टावर और कुछ प्रसिद्द मंदिर (Temples and Clock Tower of Jodhpur)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

3 Comments

  1. अप्रतिम लेखन प्रदीप जी👌👌👌

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    1. उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद नितेश जी !

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