हिंदू-मुस्लिम शिल्पकला का प्रतीक - गोविंद देव मंदिर (Beauty of Govind Dev Temple, Vrindavan)

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रंगनाथ मंदिर से बाहर आकर अपनी मोटरसाइकल पर सवार होकर जैसे ही मैं मथुरा-वृंदावन मार्ग पर जाने के लिए आगे बढ़ा, सड़क के दाईं ओर मुझे एक भव्य इमारत दिखाई दी ! पहली ही झलक में इस इमारत की तस्वीर मेरे दिमाग़ में ऐसी छप गई कि इसे देखने की इच्छा मेरे मन में हिलोरे लेने लगी ! इच्छा इतनी तीव्र थी कि चाहकर भी इस इमारत को देखने का मोह में त्याग ना सका ! फिर सड़क के किनारे ही एक उपयुक्त जगह देख कर मैने अपनी मोटरसाइकल खड़ी की और पैदल ही इस इमारत की ओर जाने वाले एक सहायक मार्ग पर चल दिया ! 20-25 कदम चलने के बाद मैं इमारत के ठीक सामने खड़ा था, यहाँ आकर मुझे आभास हुआ कि मोटरसाइकल यहाँ तक भी लाई जा सकती थी ! पर सोचा कोई बात नहीं, इस समय भी वो जहाँ भी खड़ी है, सुरक्षित है ! मंदिर के बाहर लगे एक सूचना पट्ट को पढ़कर पता चला कि ये भव्य इमारत असल में गोविंद देव मंदिर है !

govind dev temple
गोविंद देव मंदिर, वृंदावन (Govind Dev Temple, Vrindavan)
सूचना पट्ट से ये भी मालूम चला कि ये मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है और इसे एक संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है ! वैसे इमारत की वर्तमान स्थिति को देखते हुए लग रहा था कि यहाँ लोगों का आना-जाना बहुत कम ही है ! अगर मंदिर के इतिहास की बार करें तो इस मंदिर का निर्माण सन 1590 में मुगल शासन के दौरान आमेर के राजा भगवान दास के पुत्र राजा मानसिंह द्वारा करवाया गया था ! मंदिर निर्माण में उस समय लगभग 1 करोड़ रुपए की लागत आई और इसे पूरा होने में 5 से 10 वर्ष का समय लगा ! कहा जाता है कि ये मंदिर शुरुआत में सात मंज़िला था लेकिन इसके ऊपर के दो खंड मुगल शासक औरंगजेब ने किसी कारण से नष्ट करवा दिए थे ! वैसे ये मंदिर हिंदू-मुस्लिम वास्तु कला का बेहतरीन नमूना है ! इस मंदिर की लंबाई-चौड़ाई 100-100 फीट है, मंदिर के चारों कोने नुकीले मेहराबों से ढके हुए है ! यूरोपीय शैली से बने ये मेहराब इमारत के विशाल होने का आभास कराते है ! मंदिर के दीवारों की औसत मोटाई लगभग 10 फीट है और मंदिर के बीचों-बीच एक भव्य गुंबद बना है !

इस मंदिर को बनाने में अधिकतर लाल पत्थर का ही प्रयोग हुआ है, कहते है कि मंदिर निर्माण के लिए इन लाल पत्थरों का प्रबंध मुगल शासक अकबर ने करवाया था ! राजा मानसिंह मुगल शासक के अधीन थे इसलिए मंदिर निर्माण में अकबर ने हर संभव मदद की, फिर चाहे वो पत्थरों की उपलब्धता हो या मुस्लिम वास्तु शैली संबंधित जानकारी ! मंदिर निर्माण के समय इस मंदिर के शिल्पकार की सहायता अकबर के प्रभाव में गिने जाने वाले कुछ ईसाई पादरियों ने की थी जिसकी झलक मंदिर के कोनों पर बने मेहराबो में दिखाई देती है ! हिंदू-मुस्लिम शैली से बने इस मंदिर का ऊपर और नीचे का भाग तो हिंदू शिल्पकला का उदाहरण है जबकि मंदिर के बीच का भाग मुस्लिम शिल्प कला को दर्शाता है ! मिश्रित शिल्पकला से बना उत्तरी भारत में ये अपनी किस्म का एक ही नमूना है, वैसे खजुराहो के मंदिर भी इसी शिल्प कला के है ! इतना भव्य मंदिर होने के बाद भी इसकी वर्तमान हालत इतनी दयनीय है कि शब्दों से बता पाना मुश्किल है ! सरकार अगर चाहे तो मंदिर के रख-रखाव पर ध्यान देकर मंदिर का जीर्णोद्वार कर सकती है !

मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुँचकर मैने देखा कि वहाँ मेरे अलावा गिनती के ही कुछ लोग थे जो दर्शन के लिए मंदिर के प्रवेश द्वार पर खड़े थे ! मंदिर के द्वार तो खुले हुए ही थे, पर पता नहीं क्यों लोग फिर भी अंदर जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे ! वृंदावन के अन्य मंदिरों की तरह ये मंदिर भी वानरों के आतंक से अछूता नहीं है, मंदिर के चारों तरफ वानर खूब उछल-कूद मचा रहे थे ! इनकी ओर घूर कर देखने से ये आपको भयभीत तक कर देते है, इसलिए जितना हो सके इन्हें घूर कर देखने से बचना चाहिए ! मंदिर के मुख्य भवन में जाने से पहले मैं इस मंदिर को बाहर से चारों ओर से देख लेना चाहता था इसलिए मैं मंदिर के बगल से जाने वाले मार्ग पर चल दिया ! इस समय कोई संत यहाँ मंदिर के बाहर परिसर में ही उपदेश देने की तैयारी कर रहे थे, उनके कुछ चेले उपदेश से संबंधित तैयारियाँ करने में लगे हुए थे !

एक चेला लाउड स्पीकर लेकर खड़ा था तो दूसरा वीडियो कैमरे से रेकॉर्डिंग कर रहा था, 25-30 लोग भी उन्हें सुनने के लिए घेरा बनाकर खड़े थे ! मैं उन्हें अनदेखा करते हुए मंदिर के बगल वाले गलियारे से होता हुआ मंदिर के पिछले भाग की ओर चल दिया ! इस गलियारे से मैने मंदिर के कुछ चित्र भी लिए, मंदिर की बाहरी दीवारों पर भी बेहरतीन कारीगरी की गई है, जिसे देखकर इसे बनाने वालों की तारीफ़ किए बिना नहीं रहा गया ! मंदिर के बाहरी दीवारों से सटे हुए कई मकान है, ख़ासकर मंदिर के पिछले भाग में ! धीरे-2 मंदिर का चक्कर लगाता हुआ मैं आगे बढ़ता रहा, इस दौरान मैने मंदिर की दीवारों पर लगे जाले और मधुमक्खी का एक छत्ता भी देखा ! मंदिर की हालत इस बात की गवाही दे रहे थे कि मंदिर के प्रति सरकार और लोगों का रैवया कितना उदासीन है !

मंदिर का चक्कर लगाते हुए मैने मंदिर परिसर में ही कुछ स्थानीय लड़को को क्रिकेट खेलते हुए भी देखा ! भाई जब मंदिर के देख-रेख नहीं होगी तो उम्मीद भी क्या कर सकते है, बच्चे ही इसे खेल के मैदान के रूप में ईस्तमाल कर रहे है ! मंदिर का एक पूरा चक्कर लगाते हुए मैं फिर से मुख्य भवन के प्रवेश द्वार पर पहुँच गया ! मंदिर में प्रवेश करने के साथ ही मैं मुख्य भवन के सामने वाले हाल में पहुँच गया ! इस हाल के ऊपरी भाग में गुंबद बना है, और हाल के ठीक सामने भगवान जी की प्रतिमा रखी गई है ! इस समय यहाँ 8-10 लोग खड़े होकर प्रार्थना कर रहे थे, मंदिर के पुजारी कुछ ज्ञानवर्धक बातें बता रहे थे जिसे सब लोग बड़े ध्यान से सुन रहे थे ! मैने भी थोड़ी देर यहाँ खड़े रहकर प्रार्थना की और फिर मंदिर के अंदर वाले भाग को घूम कर देखने लगा !

इस समय मंदिर के अंदर रोशनी नहीं थी, इसलिए अंदर की दीवारों और छत पर की गई कारीगरी ठीक से दिखाई नहीं दे रही थी ! हाँ, मंदिर की खिड़कियों और दरवाजो के आस-पास बाहर से थोड़ी बहुत रोशनी ज़रूर आ रही थी, इस मंदिर के आंतरिक भाग में भी दीवारों पर खूब धूल जमी हुई थी ! ऐसे ही घूमते हुए मुझे मंदिर के अंदर एक कोने में खड़ी एक साइकिल दिखाई दी, शायद मंदिर के किसी सेवक की हो ! ये देखकर बड़ा दुख हुआ कि शिल्पकला का इतना बेहतरीन नमूना देख-रेख के अभाव में सुनसान पड़ा है ! अगर यही हालत रही तो इसे खंडहर में तब्दील होने में भी ज़्यादा समय नहीं लगेगा ! थोड़ी देर मंदिर परिसर में बिताने के बाद मैं बाहर आ गया, शाम के 5 बज रहे थे और सूर्य देव भी डूबने की तैयारी कर रहे थे ! मैने अपनी मोटरसाइकल चालू की और वापसी की राह पकड़ ली, 5 मिनट बाद ही मैं मथुरा-वृंदावन मार्ग पर पहुँच गया !



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मंदिर की दीवारों पर की गई कलाकारी
मंदिर की दीवारों पर की गई कलाकारी
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मंदिर का भीतरी भाग

मंदिर का भीतरी भाग
क्यों जाएँ (Why to go Vrindavan): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर धार्मिक नगरी की तलाश में है तो वृंदावन आपके लिए उपयुक्त स्थान है यहाँ भगवान कृष्ण को समर्पित इतने मंदिर है कि आप घूमते-2 थक जाओगे पर यहाँ के मंदिर ख़त्म नहीं होंगे ! वृंदावन के तो कण-2 में कृष्ण भगवान से जुड़ी यादें है, क्योंकि उनका बचपन यहीं ब्रज में ही गुजरा ! कृष्ण भक्तों के लिए इससे उत्तम स्थान पूरी दुनिया में शायद ही कहीं हो !

कब जाएँ (Best time to go Vrindavan): 
वृंदावन आप साल के किसी भी महीने में किसी भी दिन आ सकते है बस यहाँ के मंदिरों के खुलने और बंद होने का एक निर्धारित समय है अधिकतर मंदिर दोपहर 12 बजे के आस पास बंद हो जाते है ! फिर शाम को 5 बजे खुलते है, इसलिए जब भी वृंदावन आना हो, समय का ज़रूर ध्यान रखें ! 

कैसे जाएँ (How to reach Vrindavan): वृंदावन आने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन रेल मार्ग से है, मथुरा यहाँ का सबसे नज़दीकी बड़ा रेलवे स्टेशन है जो देश के अन्य शहरों से रेल मार्ग से बढ़िया से जुड़ा है ! मथुरा से वृंदावन की दूरी महज 15 किलोमीटर है, रेलवे स्टेशन के बाहर से वृंदावन आने के लिए आपको तमाम साधन मिल जाएँगे ! अगर आप दिल्ली से सड़क मार्ग से वृंदावन आना चाहे तो यमुना एक्सप्रेस वे से होते हुए आ सकते है ! दिल्ली से वृंदावन की कुल दूरी 185 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको ढाई से तीन घंटे का समय लगेगा !

कहाँ रुके (Where to stay in Vrindavan): वृंदावन एक प्रसिद्ध धार्मिक शहर है यहाँ रोजाना दर्शन के लिए हज़ारों यात्री आते है ! लोगों के रुकने के लिए यहाँ तमाम धर्मशालाएँ और होटल है ! आप अपनी सहूलियत के हिसाब से 500 रुपए से लेकर 2500 रुपए तक के होटल ले सकते है !


कहाँ खाएँ (Eating option in Vrindavan): वृंदावन में अच्छा ख़ासा बाज़ार है जहाँ आपको खाने-पीने के तमाम विकल्प मिल जाएँगे ! मथुरा के पेड़े तो दुनिया भर में मशहूर है अगर आप वृंदावन आ रहे है तो यहाँ के पेड़ों के अलावा कचोरियों का स्वाद भी ज़रूर चखें !

क्या देखें (Places to see in Vrindavan): 
ये तो मैं आपको बता ही चुका हूँ कि वृंदावन भगवान कृष्ण की नगरी है यहाँ घूमने के लिए अनगिनत मंदिर है ! फिर भी कुछ मंदिर है जो यहाँ आने वाले लोगों में ख़ासे लोकप्रिय है जिनमें से कुछ है बांके बिहारी मंदिर, प्रेम मंदिर, बिरला मंदिर, जयपुर मंदिर, कृष्ण जन्मभूमि, माँ वैष्णो देवी मंदिर, रंगनाथ मंदिर और गोविंद देव मंदिर !

अगले भाग में जारी...

वृंदावन यात्रा
  1. वृंदावन के प्रेम मंदिर में बिताए कुछ पल (An Hour Spent in Prem Mandir, Vrindavan)
  2. वृंदावन के जयपुर मंदिर की एक झलक (A View of Jaipur Temple in Vrindavan)
  3. वृंदावन का खूबसूरत बिरला मंदिर (Birla Temple of Vrindavan)
  4. श्रीकृष्ण जन्मभूमि और द्वारकाधीश मंदिर (Shri Krishna Janmbhoomi and Dwarkadheesh Temple, Mathura)
  5. वृंदावन का पागल बाबा मंदिर (Pagal Baba Temple of Vrindavan)
  6. भगवान विष्णु को समर्पित रंगनाथ मंदिर (A Temple Dedicated to Lord Vishnu)
  7. हिंदू-मुस्लिम शिल्पकला का प्रतीक - गोविंद देव मंदिर (Beauty of Govind Dev Temple, Vrindavan)
  8. माँ वैष्णो देवी धाम – वृंदावन (Maa Vaishno Devi Temple, Vrindavan)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

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