शुक्रवार, 22 जनवरी 2016
चोपता यात्रा बहुत दिनों बाद हमारी कोई ऐसी यात्रा थी, जिसकी योजना काफ़ी पहले बन गई थी और अंत में ये यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न भी हुई ! इस यात्रा से पहले ऐसी कई यात्राओं की योजनाएँ बनी, लेकिन कोई भी अपना अंतिम रूप नहीं ले पाई ! लैंसडाउन यात्रा के दौरान भी जब एक मित्र ने अंतिम समय में साथ चलने से मना कर दिया था तो हम 3 मित्रों ने ही वो यात्रा पूरी की ! उसके बाद रेणुकाजी झील जाने की योजना तो बनी लेकिन मेरी वजह से वो यात्रा होते-2 रह गई ! ऐसी और भी कई यात्राएँ थी जो सिर्फ़ योजनाओं में ही रह गई, अगर मैं यहाँ सबका ज़िक्र करने बैठ गया तो इस लेख का उद्देश्य ही बदल जाएगा ! वैसे किसी ने सही कहा है "देर आए दुरुस्त आए" ! चोपता यात्रा की सफलता के बाद शायद हमारे पुराने दिन लौट आए और दोस्तों संग ऐसी यात्राओं पर जाने के द्वार शायद खुल जाएँ ! चलिए, इस यात्रा की शुरुआत करते है, चोपता यात्रा पर हम चार मित्र जयंत कौशिक, सौरभ वत्स, जतिन सोलंकी (जीतू) और मैं जा रहे थे ! सामूहिक यात्रा होने के कारण किसी एक को इस यात्रा के सफल होने का श्रेय देना ठीक नहीं होगा, लेकिन फिर भी सौरभ वत्स ने अगर इस यात्रा की पहल ना की होती तो शायद चोपता जाने के लिए हमें अभी और इंतजार करना पड़ता !
चोपता यात्रा बहुत दिनों बाद हमारी कोई ऐसी यात्रा थी, जिसकी योजना काफ़ी पहले बन गई थी और अंत में ये यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न भी हुई ! इस यात्रा से पहले ऐसी कई यात्राओं की योजनाएँ बनी, लेकिन कोई भी अपना अंतिम रूप नहीं ले पाई ! लैंसडाउन यात्रा के दौरान भी जब एक मित्र ने अंतिम समय में साथ चलने से मना कर दिया था तो हम 3 मित्रों ने ही वो यात्रा पूरी की ! उसके बाद रेणुकाजी झील जाने की योजना तो बनी लेकिन मेरी वजह से वो यात्रा होते-2 रह गई ! ऐसी और भी कई यात्राएँ थी जो सिर्फ़ योजनाओं में ही रह गई, अगर मैं यहाँ सबका ज़िक्र करने बैठ गया तो इस लेख का उद्देश्य ही बदल जाएगा ! वैसे किसी ने सही कहा है "देर आए दुरुस्त आए" ! चोपता यात्रा की सफलता के बाद शायद हमारे पुराने दिन लौट आए और दोस्तों संग ऐसी यात्राओं पर जाने के द्वार शायद खुल जाएँ ! चलिए, इस यात्रा की शुरुआत करते है, चोपता यात्रा पर हम चार मित्र जयंत कौशिक, सौरभ वत्स, जतिन सोलंकी (जीतू) और मैं जा रहे थे ! सामूहिक यात्रा होने के कारण किसी एक को इस यात्रा के सफल होने का श्रेय देना ठीक नहीं होगा, लेकिन फिर भी सौरभ वत्स ने अगर इस यात्रा की पहल ना की होती तो शायद चोपता जाने के लिए हमें अभी और इंतजार करना पड़ता !
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन का एक दृश्य (A view from New Delhi Railway Station) |
वो अलग बात है कि सौरभ की पहल के बाद समय बीतने के साथ-2 इस यात्रा पर जाने वाले बाकी लोगों का उत्साह भी बढ़ता गया ! यात्रा पर जाने के लिए सबकी सहमति मिलने के बाद सौरभ ने दिल्ली से हरिद्वार आने-जाने के लिए ट्रेन में चारों के लिए टिकटें आरक्षित करवा दी ! इस दौरान हम वॅट्स-एप्प पर एक ग्रुप बनाकर नियमित रूप से इस यात्रा से संबंधित चर्चा भी करने लगे ! यात्रा की तैयारी से लेकर बाकी विषयों पर काफ़ी चर्चा हुई ! यात्रा पर अपने साथ ले जाने के लिए ज़रूरी सामानों की एक सूची तैयार करके सब उसके हिसाब से तैयारी करने लगे ! बर्फ में चलने के लिए जूते, सोने के लिए स्लीपिंग बैग और मैट्रीस के अलावा यात्रा के दौरान खाने-पीने का सामान भी हमने खरीद लिया ! जयंत और सौरभ के पास स्लीपिंग बैग और चार लोगों के रुकने के लिए टेंट पहले से ही था ! मैने और जीतू ने तो इस यात्रा से पहले अपने लिए नए रकसेक बैग भी ले लिए, जो अगली यात्राओं पर भी काम आएँगे ! मुझे अपने एक फ़ेसबुक मित्र बीनू कुकरेती से इस यात्रा से संबंधित काफ़ी जानकारी मिली ! दरअसल, पिछले वर्ष 26 जनवरी वाले सप्ताह में वो भी तुंगनाथ गए थे, यात्रा पर ले जाने वाले सामान से लेकर यात्रा से संबंधित कुछ अन्य जानकारियाँ उनसे मिली !
निर्धारित दिन हम सब रात को साढ़े नौ बजे बड़खल मोड़ मेट्रो स्टेशन पर मिलने वाले थे ! सुबह घर से दफ़्तर के लिए निकलते हुए मैने अपना यात्रा बैग भी साथ ले लिया और फरीदाबाद में जयंत के घर रख दिया ! हम दोनों गुड़गाँव में ही कार्यरत है इसलिए घर से दफ़्तर के लिए साथ ही निकले, दिन भर काम करने के बाद शाम को साथ ही फरीदाबाद के लिए वापिस हो लिए ! फरीदाबाद पहुँचकर जीतू और सौरभ को फोन किया तो पता चला कि जीतू नोयडा स्थित अपने दफ़्तर से वापिस घर आ रहा था और सौरभ आज घर से ही काम कर रहा था ! रात साढ़े नौ बजे मेट्रो स्टेशन पर मिलने का कहकर हमने फोन काट दिया, घूमते-घामते घर पहुँचे तो रात के 8 बज गए थे ! यहाँ हमने एक बार फिर से अपने-2 बैग चेक किए कि कहीं यात्रा पर ले जाने के लिए कुछ छूट तो नहीं रहा ! रात 9 बजकर 20 मिनट पर हम दोनों घर से बड़खल मोड़ मेट्रो स्टेशन जाने के लिए निकल लिए ! 10 मिनट की पैदल यात्रा करके जब हम स्टेशन पर पहुँचे तो यहाँ जीतू और सौरभ पहले ही पहुँच चुके थे और हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे ! मेट्रो स्टेशन बिल्कुल खाली था, हम चारों के अलावा कुछ सुरक्षाकर्मी ही यहाँ खड़े थे !
ठंडी हवा सायँ-2 चल रही थी, जिसके कारण ठण्ड भी अपने चरम पर थी ! थोड़ी देर मेट्रो पर खड़े होकर ही बातें करते रहे, इसी बीच जब अगली मेट्रो आई तो इसमें सवार होकर हम चारों नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए प्रस्थान कर गए ! बड़खल मोड़ से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन जाने के लिए मेट्रो से वैसे तो लगभग एक घंटे का समय लगता है लेकिन आज मेट्रो ने भी खूब समय लिया ! एक घंटे के इस सफ़र को तय करने में आज मेट्रो ने डेढ़ घंटे से भी अधिक का समय लिया ! रास्ते में ये जगह-2 खड़ी हो जाती और फिर थोड़ी देर बाद चलती ! वो तो अच्छा रहा कि हम अतिरिक्त समय लेकर चल रहे थे वरना ट्रेन मिलने में हमें दिक्कत हो जाती ! रात 9:45 पर मेट्रो में सवार होकर हम 11:20 बजे नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन उतरे ! अगर आपको भी कभी दिल्ली से ट्रेन पकड़नी हो और मेट्रो से सफ़र करना हो तो अतिरिक्त समय लेकर चलिए, वरना आपको भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है ! हमारी ट्रेन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से रात को 11 बजकर 50 मिनट पर थी !
मेट्रो स्टेशन से निकलकर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की ओर चल दिए, हमारी ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर 15-16 से जाने वाली थी, ये जानकारी हम इंटरनेट से ले चुके थे ! अभी हमारे पास 20 मिनट का समय था और प्लेटफार्म 15 यहाँ से ज़्यादा दूर भी नहीं था, इसलिए रेलवे स्टेशन के बाहर ही एक होटल में हल्की पेट पूजा करने के लिए रुक गए ! पनीर की सब्जी और गरमा-गर्म रोटियों का स्वाद लेने के बाद हम प्लेटफार्म पर चल दिए ! स्वचालित सीढ़ियों से होते हुए हम प्लेटफार्म नंबर 15 पर पहुँचे, जहाँ पहले से काफ़ी यात्री खड़े थे ! पौने बारह बज चुके थे और हमारी ट्रेन का अभी तक कुछ अता-पता नहीं था ! सामान एक किनारे रखकर हम बातें कर रहे थे कि तभी प्लेटफॉर्म पर आती हुई एक ट्रेन हमें दिखाई दी ! ये हमारी ट्रेन ही थी और निर्धारित समय पर आकर स्टेशन पर खड़ी हो गई और फिर 10 मिनट की देरी से यहाँ से चल भी दी ! आधी रात हो गई थी, इसलिए बिना समय गवाएँ हमने अपने-2 बिस्तर लगाए और सुबह साढ़े तीन बजे का अलार्म लगाकर सो गए ! ये ट्रेन दिल्ली से रात पौने बारह बजे चलकर सुबह पौने चार बजे हरिद्वार स्टेशन पर उतार देती है !
उसके बाद आगे ये ट्रेन देहरादून तक जाती है और देहरादून पहुँचने का इसका समय पौने छह बजे का है ! रात को देर से सोने के बावजूद सुबह अलार्म बजने पर नींद खुल गई, खिड़की से बाहर देखा तो कुछ भी अंदाज़ा नहीं हुआ कि ट्रेन कहाँ पहुँची है ! फिर मोबाइल पर ट्रेन की वर्तमान स्थिति देखी तो पता चला कि ये 55 मिनट देरी से चल रही थी ! मतलब अगर ये ट्रेन और लेट नहीं हुई तो हमें पौने-पाँच बजे हरिद्वार उतार देगी ! एक बार फिर से अलार्म लगाकर एक झपकी और ले ली, फिर जब साढ़े चार बजे आँख खुली तो बिना विलंब के हम सबने अपने-2 जूते पहन लिए और गाड़ी के हरिद्वार पहुँचने की प्रतीक्षा करने लगे ! हरिद्वार पहुँचते-2 हमारी ट्रेन ने 5 बजा ही दिए, हरिद्वार में हमारे अलावा अन्य कई यात्री भी ट्रेन से उतरे, अपना-2 सामान लेकर हम सब स्टेशन से बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! हरिद्वार स्टेशन से बाहर निकलने पर सामने ही शंकर भगवान की एक प्रतिमा रखी हुई है, मैने यहाँ रुककर आस-पास की कुछ फोटो खींची !
अभी उजाला नहीं हुआ था, लेकिन कृत्रिम रोशनी में भी हरिद्वार स्टेशन काफ़ी सुंदर लग रहा था ! स्टेशन से बाहर आकर सड़क के उस पार एक दुकान पर रुककर हमने चाय पी, फिर यहीं पास में बने एक टैक्सी स्टैंड पर चोपता जाने के लिए एक टैक्सी वाले से पूछा तो उसने 4 हज़ार रुपए माँगे ! हमने सोचा बस अड्डे चलकर देखते है वहाँ से चोपता जाने के लिए अगर कोई बस में गई तो ठीक है वरना टैक्सी से चलने पर विचार करेंगे ! एक ऑटो में सवार होकर हम सब बस अड्डे के लिए चल दिए, यहाँ 50 रुपए देकर ऑटो से उतरे ! पूछताछ पर पता चला कि ऊखीमठ जाने वाली सरकारी बस तो आधे घंटे पहले जा चुकी है, और यहाँ से ऊखीमठ जाने की अब दूसरी कोई बस नहीं है ! ऑटो से उतरते हुए हमने बस अड्डे के बाहर एक निजी बस देखी थी जिसका परिचालक रुद्रप्रयाग की सवारियाँ ढूँढ रहा था ! हमें ऑटो से उतरते हुए देखते ही वो तेज़ी से हमारे पास आया था, पूछने पर उसने कहा कि चोपता तो नहीं लेकिन आपको रुद्रप्रयाग तक छोड़ दूँगा, वहाँ से आपको शैयर्ड जीप या कोई दूसरी सवारी मिल जाएगी !
वैसे, ऊखीमठ जाने के लिए हरिद्वार से सुबह एक सरकारी बस चलती है, जो इस समय जा चुकी थी और अगली बस का कुछ पता नहीं था, जाएगी भी या नहीं ! दूसरा कोई विकल्प ना होने के कारण हमने रुद्रप्रयाग तक इसी बस में सफ़र करने का निश्चय किया ! अपना आधा सामान बस की डिग्गी में रखकर और आधा अपने साथ लेकर हम सब बस में चढ़ गए ! ड्राइवर के पास वाला कैबिन खाली था, हम चारों अपने बैग लेकर इसी कैबिन में आ गए ! हमारे बैठते ही बस चल दी और हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर दौड़ने लगी, सुबह का समय होने के कारण हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग खाली था ! क्या बस में बैठने का हमारा निर्णय सही था, और कैसा रहा हमारा चोपता तक पहुँचने का सफ़र ? ये सब जानने के लिए यात्रा के अगले लेख का इंतजार कीजिए !
मेट्रो स्टेशन से निकलकर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की ओर चल दिए, हमारी ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर 15-16 से जाने वाली थी, ये जानकारी हम इंटरनेट से ले चुके थे ! अभी हमारे पास 20 मिनट का समय था और प्लेटफार्म 15 यहाँ से ज़्यादा दूर भी नहीं था, इसलिए रेलवे स्टेशन के बाहर ही एक होटल में हल्की पेट पूजा करने के लिए रुक गए ! पनीर की सब्जी और गरमा-गर्म रोटियों का स्वाद लेने के बाद हम प्लेटफार्म पर चल दिए ! स्वचालित सीढ़ियों से होते हुए हम प्लेटफार्म नंबर 15 पर पहुँचे, जहाँ पहले से काफ़ी यात्री खड़े थे ! पौने बारह बज चुके थे और हमारी ट्रेन का अभी तक कुछ अता-पता नहीं था ! सामान एक किनारे रखकर हम बातें कर रहे थे कि तभी प्लेटफॉर्म पर आती हुई एक ट्रेन हमें दिखाई दी ! ये हमारी ट्रेन ही थी और निर्धारित समय पर आकर स्टेशन पर खड़ी हो गई और फिर 10 मिनट की देरी से यहाँ से चल भी दी ! आधी रात हो गई थी, इसलिए बिना समय गवाएँ हमने अपने-2 बिस्तर लगाए और सुबह साढ़े तीन बजे का अलार्म लगाकर सो गए ! ये ट्रेन दिल्ली से रात पौने बारह बजे चलकर सुबह पौने चार बजे हरिद्वार स्टेशन पर उतार देती है !
उसके बाद आगे ये ट्रेन देहरादून तक जाती है और देहरादून पहुँचने का इसका समय पौने छह बजे का है ! रात को देर से सोने के बावजूद सुबह अलार्म बजने पर नींद खुल गई, खिड़की से बाहर देखा तो कुछ भी अंदाज़ा नहीं हुआ कि ट्रेन कहाँ पहुँची है ! फिर मोबाइल पर ट्रेन की वर्तमान स्थिति देखी तो पता चला कि ये 55 मिनट देरी से चल रही थी ! मतलब अगर ये ट्रेन और लेट नहीं हुई तो हमें पौने-पाँच बजे हरिद्वार उतार देगी ! एक बार फिर से अलार्म लगाकर एक झपकी और ले ली, फिर जब साढ़े चार बजे आँख खुली तो बिना विलंब के हम सबने अपने-2 जूते पहन लिए और गाड़ी के हरिद्वार पहुँचने की प्रतीक्षा करने लगे ! हरिद्वार पहुँचते-2 हमारी ट्रेन ने 5 बजा ही दिए, हरिद्वार में हमारे अलावा अन्य कई यात्री भी ट्रेन से उतरे, अपना-2 सामान लेकर हम सब स्टेशन से बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! हरिद्वार स्टेशन से बाहर निकलने पर सामने ही शंकर भगवान की एक प्रतिमा रखी हुई है, मैने यहाँ रुककर आस-पास की कुछ फोटो खींची !
अभी उजाला नहीं हुआ था, लेकिन कृत्रिम रोशनी में भी हरिद्वार स्टेशन काफ़ी सुंदर लग रहा था ! स्टेशन से बाहर आकर सड़क के उस पार एक दुकान पर रुककर हमने चाय पी, फिर यहीं पास में बने एक टैक्सी स्टैंड पर चोपता जाने के लिए एक टैक्सी वाले से पूछा तो उसने 4 हज़ार रुपए माँगे ! हमने सोचा बस अड्डे चलकर देखते है वहाँ से चोपता जाने के लिए अगर कोई बस में गई तो ठीक है वरना टैक्सी से चलने पर विचार करेंगे ! एक ऑटो में सवार होकर हम सब बस अड्डे के लिए चल दिए, यहाँ 50 रुपए देकर ऑटो से उतरे ! पूछताछ पर पता चला कि ऊखीमठ जाने वाली सरकारी बस तो आधे घंटे पहले जा चुकी है, और यहाँ से ऊखीमठ जाने की अब दूसरी कोई बस नहीं है ! ऑटो से उतरते हुए हमने बस अड्डे के बाहर एक निजी बस देखी थी जिसका परिचालक रुद्रप्रयाग की सवारियाँ ढूँढ रहा था ! हमें ऑटो से उतरते हुए देखते ही वो तेज़ी से हमारे पास आया था, पूछने पर उसने कहा कि चोपता तो नहीं लेकिन आपको रुद्रप्रयाग तक छोड़ दूँगा, वहाँ से आपको शैयर्ड जीप या कोई दूसरी सवारी मिल जाएगी !
वैसे, ऊखीमठ जाने के लिए हरिद्वार से सुबह एक सरकारी बस चलती है, जो इस समय जा चुकी थी और अगली बस का कुछ पता नहीं था, जाएगी भी या नहीं ! दूसरा कोई विकल्प ना होने के कारण हमने रुद्रप्रयाग तक इसी बस में सफ़र करने का निश्चय किया ! अपना आधा सामान बस की डिग्गी में रखकर और आधा अपने साथ लेकर हम सब बस में चढ़ गए ! ड्राइवर के पास वाला कैबिन खाली था, हम चारों अपने बैग लेकर इसी कैबिन में आ गए ! हमारे बैठते ही बस चल दी और हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर दौड़ने लगी, सुबह का समय होने के कारण हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग खाली था ! क्या बस में बैठने का हमारा निर्णय सही था, और कैसा रहा हमारा चोपता तक पहुँचने का सफ़र ? ये सब जानने के लिए यात्रा के अगले लेख का इंतजार कीजिए !
बड़खल मोड़ मेट्रो स्टेशन जाते हुए (Way to Badkal Mor Metro Station) |
मेट्रो स्टेशन पर लिया एक चित्र (Beginning os a new Journey) |
हरिद्वार रेलवे स्टेशन के का एक दृश्य (A view of Haridwar Railway Station) |
हरिद्वार रेलवे स्टेशन के बाहर का एक दृश्य (A view from Haridwar Railway Station) |
हरिद्वार रेलवे स्टेशन के बाहर का एक दृश्य (A view from Haridwar Railway Station) |
कब जाएँ (Best time to go Haridwar): आप साल भर किसी भी महीने में यहाँ जा सकते है लेकिन गर्मियों में यहाँ का तापमान दिल्ली से थोड़ा ही कम रहता है इसलिए बेहतर होगा आप ठंडे मौसम में ही हरिद्वार का रुख़ करे तो यहाँ घूमने का असली मज़ा ले पाएँगे !
कैसे जाएँ (How to reach Haridwar): दिल्ली से हरिद्वार की दूरी 222 किलोमीटर है, हरिद्वार दिल्ली के अलावा अन्य कई शहरों से भी रेल, और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है ! दिल्ली से हरिद्वार आने में रेलमार्ग से 5-6 घंटे, और सड़क मार्ग से लगभग 5 घंटे का समय लगता है ! आप अपनी सहूलियत के हिसाब से किसी भी मार्ग से जा सकते है ! दिल्ली से हरिद्वार तक शानदार 4 लेन राजमार्ग बना है !
कहाँ रुके (Where to stay in Haridwar): हरिद्वार एक धार्मिक तीर्थ स्थल है, यहाँ रुकने के लिए सैकड़ों होटल और धर्मशालाएँ है ! आप अपनी मर्ज़ी के अनुसार किसी भी होटल या धर्मशाला में रुक सकते है ! जहाँ धर्मशाला के लिए आपको 200-300 रुपए खर्च करने होंगे, वहीं होटल के लिए आपको 500 से लेकर 2000 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है !
क्या देखें (Places to see in Haridwar): वैसे तो हरिद्वार में घूमने के लिए काफ़ी जगहें है लेकिन हर की पौडी, मनसा देवी मंदिर, चन्डी देवी मंदिर, सप्तऋषि आश्रम, पतंजलि योगपीठ और प्रतिदिन शाम को होने वाली गंगा आरती प्रमुख है ! इसके अलावा हरिद्वार से 22 किलोमीटर दूर रोमांच से भरी दुनिया ऋषिकेश है जहाँ आप रिवर राफ्टिंग से लेकर बंजी जंपिंग तक का आनंद ले सकते है !
अगले भाग में जारी...
तुंगनाथ यात्रा
- दिल्ली से हरिद्वार की ट्रेन यात्रा (A Train Journey to Haridwar)
- हरिद्वार से चोपता की बस यात्रा (A Road Trip to Chopta)
- विश्व का सबसे ऊँचा शिव मंदिर – तुंगनाथ (Tungnath - Highest Shiva Temple in the World)
- तुंगनाथ से चोपता वापसी (Tungnath to Chopta Trek)
- चोपता से सारी गाँव होते हुए देवरिया ताल (Chopta to Deoria Taal via Saari Village)
- ऊखीमठ से रुद्रप्रयाग होते हुए दिल्ली वापसी (Ukimath to New Delhi via Rudrprayag)
चोपता की यात्रा की बढिया शुरूआत हो चुकी है, अगले भाग का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteहाँ त्यागी जी, शुरू कर दी ये यात्रा भी ! बस अब इस यात्रा के लेख आते रहेंगे !
DeletePradeep Ji, Please ask me the short way to Chopta from Hrishikesh via Rudraprayag or Ukhimath?
ReplyDeleteअहमद जी, चोपता जाने के लिए आपको रुद्रप्रयाग होते हुए पहले ऊखीमठ ही जाना होगा ! ऊखीमठ से चोपता के लिए आपको दूसरी सवारी लेनी होगी, हाँ, अगर आप अपनी गाड़ी से जा रहे है तो भी ऊखीमठ होकर ही जाना होगा ! जहाँ तक मैं समझ पा रहा हूँ आपने मैप में जो चोपता देखा है उसकी दूरी रुद्रप्रयाग से 24 किलोमीटर है मैं जिस चोपता की बात कर रहा हूँ वो तुंगनाथ मंदिर जाने के लिए बेस कैंप है ! अगर अभी भी कोई संशय हो तो आपका स्वागत है !
Deleteहरिद्धार पहुँच गए आपके साथ ! अब आगे चलते हैं
ReplyDeleteJi sahi baat, yaatra abhi jaari hai...
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