तुंगनाथ से चोपता वापसी (Tungnath to Chopta Trek)

रविवार, 24 जनवरी 2016

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पिछले लेख में आपने पढ़ा कि कैसे हम चोपता से तुंगनाथ मंदिर पहुँचे, मंदिर के बाहर से ही दर्शन करने के बाद आस-पास के खूबसूरत दृश्यों को अपने कैमरों में लेते हुए हमने वापसी की राह पकड़ी ! हम जानते थे कि तुंगनाथ से वापसी की राह चढ़ाई के मुक़ाबले काफ़ी आसान है, इसलिए उतरते समय हमें चढ़ाई के मुक़ाबले काफ़ी कम समय लगेगा ! शाम होने लगी थी और सूरज की लालिमा में सफेद बर्फ से लदी पहाड़ियाँ बहुत सुंदर लग रही थी ! जहाँ सूर्य देव अपनी लालिमा लिए डूबने की ओर अग्रसर थे और वहीं हम भी सूर्यास्त की प्रतीक्षा में ही थे ताकि पहाड़ी से सूर्यास्त के बेहतरीन नज़ारे का दीदार कर सके ! इस बीच हम तेज़ी से उतरते हुए काफ़ी नीचे आ गए, थोड़ी देर बाद हम उन दो झंडो तक पहुँच गए, जिन्हें जयंत मंदिर परिसर में बता रहा था ! थोड़ी ओर नीचे आए तो यहाँ से सूर्यास्त का शानदार नज़ारा दिखाई दे रहा था, सब अपना-2 कैमरा चालू करके इन यादगार पलों को सहेजने में लग गए ! यहाँ से कुछ दृश्य तो बिल्कुल ऐसे लग रहे थे जैसे कैलेंडर या कंप्यूटर में वॉलपेपर पर देखने को मिलते है ! हालाँकि, वो चित्र भी किसी ने तो खींचे ही होते है लेकिन अगर आपको अपनी आँखों से ऐसे दृश्य देखने को मिले तो क्या कहने !

तुंगनाथ से वापस आने का मार्ग

सूर्यास्त के नज़ारे देखते हुए हमारा पहाड़ी से नीचे उतरना लगातार जारी था क्योंकि हम जानते थे कि अगर पहाड़ी पर ही अंधेरा हो गया तो नीचे आने में काफ़ी दिक्कत होगी ! ऐसे ही घुमावदार रास्तों से होता हुआ जब मैं एक शॉर्टकट के सहारे पहाड़ी से नीचे आने लगा तो एकदम से मेरा संतुलन बिगड़ गया ! दरअसल, हुआ कुछ यूँ कि मुख्य मार्ग के बगल से एक शॉर्टकट रास्ता नीचे जा रहा था, इस मार्ग से जाने पर हम काफ़ी नीचे पहुँच जाते, क्योंकि मुख्य मार्ग काफ़ी घूमता हुआ नीचे जा रहा था ! जब मैं इस शॉर्टकट पर आगे बढ़ा तो तीव्र ढलान होने के कारण मैं अपनी गति नियंत्रित नहीं कर पाया, फिर भी मैने अपने आपको रोकने की काफ़ी कोशिश की ! इसी बीच मेरा पैर फिसलकर अगली पहाड़ी पर चला गया, यहाँ भी मैं थोड़ी दूर तक तो भागा लेकिन रफ़्तार तेज होने की वजह से मेरा संतुलन बिगड़ गया ! दो पहाड़ियों से गिरता हुआ मैं सीधे एक पत्थर से टकराया, मुझे होश था, लेकिन मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया ! इन कुछ ही पलों में मेरे मन में अच्छे-बुरे काफ़ी ख्याल आए, एक पल को मैने ये भी महसूस किया कि क्या वाकई में मैं गिर गया हूँ या कोई स्वपन देख रहा हूँ ! 

हिम्मत करके खड़ा हुआ तो देखा कि मेरे बाकी साथी अभी काफ़ी पीछे ऊँचाई पर ही थे ! शायद उन्हें भी लगा होगा कि अभी तो मैं उनसे थोड़ी ही आगे चल रहा था इतनी जल्दी कहाँ गायब हो गया ! चलने के कारण शरीर गर्म था इसलिए पता नहीं चला कि कितनी चोट आई है, खुद को संभालते हुए जब मैने अपने घुटने की ओर देखा तो वहाँ से खून बह रहा था ! एक पत्थर का नुकीला सिरा मेरे घुटने को चीर गया था, ट्रैक पेंट फट गई थी, चश्मा छिटककर दूर जा गिरा था, लेकिन बैग पीठ पर सलामत था ! माथा भी पत्थर से टकराने के कारण सूज कर नीला पड़ गया था, और आँख के नीचे चेहरे पर भी कुछ घाव थे ! ये सबकुछ इतनी जल्दी घटित हुआ था कि मुझे समझ ही नहीं आया कि क्या प्रतिक्रिया दूँ ! उस समय मुझे कुछ नहीं पता चल रहा था कि ये सिर्फ़ ऊपर की चोट है या हड्डी में भी कुछ नुकसान हुआ है, चेहरे पर और घुटने में दर्द ज़रूर हो रहा था ! मैने ज़ोर से आवाज़ लगाई और अपने बाकी साथियों से बोला, भाई लोगों मैं गिर गया हूँ और मुझे काफ़ी चोट आई है ! ये सुनते ही जयंत बोला, और नौटंकी कर ले कमीने, हम तुझे कब से बोल रहे थे कि आराम से चल, लेकिन तू सुनता कहाँ है किसी की ! 

मुझ तक पहुँचने से पहले किसी को भी नहीं पता था कि मुझे कितनी चोट आई है ? तेज कदमों से चलते हुए बाकी साथी मुझ तक पहुँचे और मेरी ट्रैक पैंट ऊपर करके जब उन्होने मेरे घुटने को देखा तो यहाँ एक गहरा घाव था ! इन लोगों ने फटाफट बैग से एक पट्टी और दवाई निकालकर मेरी चोट पर लगाई, जिससे मुझे काफ़ी राहत मिली ! इन्होनें मुझे अपना पैर हिलाकर देखने को कहा ताकि पता चल सके कि चोट हड्डी तक है या सिर्फ़ ऊपर ही लगी है ! चेहरे पर ही हाथ लगाकर देखा तो अंदाज़ा लग गया कि ये ऊपर ही ही चोट थी ! भगवान की कृपा रही कि गंभीर चोट नहीं आई, अब भी मैं उस घटना के बारे में सोचता हूँ तो सहम जाता हूँ कि ये हादसा ज़्यादा ख़तरनाक भी हो सकता था, वो तो भगवान की कृपा रही कि थोड़ी चोट में ही मामला निबट गया ! दवा लगाने के साथ ही सबने मुझे मुझे नसीयत दे दी, कि अब तू तेज नहीं चलेगा, तेज क्या तू अकेला ही नहीं चलेगा ! इसके बाद जयंत मुझे सारे रास्ते सहारा देता हुआ नीचे तक लाया, जीतू और सौरभ भी एक दूसरे का हाथ पकड़कर सावधानी से चल रहे थे ! यहाँ से चले तो अंधेरा हो गया था और हमारे अलावा इक्का-दुक्का लोग ही थे जो इस मार्ग पर चल रहे थे ! 

जिस दौरान मैं नीचे गिरा था नज़ारे तो उस समय भी बढ़िया दिखाई दे रहे थे लेकिन सब मेरी देख-रेख में लग गए और कई नज़ारे छूट गए ! जैसे-2 समय बीतता जा रहा था, ठंड बढ़ने लगी थी और रास्ते में पड़ी बर्फ भी दोपहर की अपेक्षा काफ़ी सख़्त हो गई थी ! सुबह तो इस मार्ग पर आराम से चलकर आ गए थे लेकिन इस समय तक अधिकतर बर्फ सख़्त हो गई थी और बार-2 पैर फिसल रहे थे ! नीचे अपने होटल तक आने में जीतू और बाकी लोग भी कई बार फिसलकर गिरे, लेकिन गनीमत थी कि किसी को गंभीर चोट नहीं लगी ! अंधेरा होने के कारण रास्ते के दोनों ओर गहन सन्नाटा था, सन्नाटे के बीच झींगुरों और दूसरे छोटे जीवों की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी ! अपने होटल तक पहुँचते-2 साढ़े सात बज गए थे, यहाँ आकर हम सीधे अपने कमरे में चले गए ! बल्ब जलाकर देखा तो बिजली आ रही थी, सुबह जब होटल में आए थे तो बिजली नहीं थी ! दरअसल, यहाँ चोपता में बिजली नहीं है इसलिए सौर ऊर्जा का प्रयोग करके रात को हर कमरे में एक-दो छोटे बल्ब जला दिए जाते है जो सुबह होते ही बंद भी कर दिए जाते है ! ये सारी जानकारी हमें होटल वाले ने दी थी, यहाँ के अधिकतर होटलों में सौर ऊर्जा से ही बिजली की आपूर्ति की जाती है !

कमरे में आते ही मैं अपने बिस्तर पर लेट गया, दर्द के मारे मुझसे चला नहीं जा रहा था लेकिन फिर भी हिम्मत करके यहाँ तक आ गया था ! जयंत भी कल रात को सो नहीं सका था इसलिए वो भी आराम करने के लिए अपने बिस्तर में चला गया ! फिर जब जीतू और सौरभ रात्रि भोजन के लिए बाहर गए तो मेरे लिए खाना वो कमरे में ही ले आए ! खाना खाते हुए हमारे बगल वाले कमरे से आ रही तेज-2 आवाज़ें हमारा ध्यान अपनी ओर खींच रही थी ! इसमें कुछ युवक रुके हुए थे और किसी बात को लेकर बहस कर रहे थे ! काफ़ी देर तक उनकी आवाज़ें आती रही, जीतू उनकी आवाज़ सुनकर काफ़ी गुस्से में था लेकिन फिर हमने कहा कि छोड़ ना यार, आराम से रज़ाई में मुँह करके सो जा ! भोजन करने के दौरान इस बात पर चर्चा चलती रही कि कल देवरिया ताल देखने के लिए मैं सबके साथ चलूँगा या नहीं ? थोड़ी देर बाद सभी लोग आराम करने के लिए अपने-2 बिस्तर में चले गए, आज एक बार फिर मेरे दोस्तों ने मेरा बखूबी साथ दिया ! क्या मैं कल बाकि लोगों के साथ देवरिया ताल की यात्रा पर जा सकूँगा या होटल में रहकर ही आराम करूँगा ? ये सब जानने के लिए यात्रा के अगले भाग का इंतजार कीजिए !


मंदिर से वापिस भी इसी बर्फ़ीले मार्ग से आए थे
मार्ग से दिखाई देता एक शानदार नज़ारा
मार्ग से दिखाई देता एक शानदार नज़ारा
बर्फ के किनारे गहरी खाई थी
मंदिर से वापिस आने का मार्ग
दूर तक बर्फ ही बर्फ गिरी हुई है
सौरभ वत्स मंदिर से वापिस आते हुए
सूर्य की लालिमा फोटो में भी दिखाई दे रही है
मंदिर से वापिस आते हुए
सूर्य की लालिमा फोटो में भी दिखाई दे रही है
बर्फ से लदी पहाड़ियाँ
सूर्य देव डूबने की तैयारी में
रास्ते में लिया एक और चित्र
किसी को भी आकर्षित करने के लिए ये नज़ारे काफ़ी है
पहाड़ी से सूर्यास्त का एक दृश्य
मंदिर से वापिस आते हुए जीतू
ऐसे नज़ारों की यहाँ भरमार थी
पहाड़ी से सूर्यास्त का एक दृश्य
पहाड़ी से सूर्यास्त का एक दृश्य
ऐसे नज़ारों की यहाँ भरमार थी
क्यों जाएँ (Why to go Chopta): अगर आपको धार्मिक स्थलों के अलावा रोमांचक यात्राएँ करना अच्छा लगता है तो चोपता आपके लिए एक बढ़िया विकल्प है ! यहाँ पहाड़ों की ऊँचाई पर स्थित तुंगनाथ मंदिर की छटा देखते ही बनती है !

कब जाएँ (Best time to go Chopta
): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में तुंगनाथ जा सकते है लेकिन उत्तराखंड में स्थित चार धामों की तरह तुंगनाथ का मंदिर भी साल के 6 महीने ही खुलता है ! मई के प्रथम सप्ताह में खुलकर ये अक्तूबर के अंतिम सप्ताह में बंद हो जाता है ! मंदिर के द्वार बंद होने के बाद भी लोग ट्रेक करने के लिए यहाँ जाते है, चंद्रशिला जाने के लिए रास्ता तुंगनाथ मंदिर होकर ही जाता है ! गर्मियों के महीनों में भी यहाँ बढ़िया ठंडक रहती है जबकि दिसंबर-जनवरी के महीने में तुंगनाथ में भारी बर्फ़बारी होती है इसलिए कई बार तो रास्ता भी बंद कर दिया जाता है ! बर्फ़बारी के दौरान अगर तुंगनाथ जाने का मन बना रहे है तो अतिरिक्त सावधानी बरतें !

कैसे जाएँ (How to reach Chopta): दिल्ली से चोपता जाने के लिए सबसे अच्छा मार्ग सड़क मार्ग है वैसे आप हरिद्वार तक ट्रेन से और उससे आगे का सफ़र बस, जीप या टैक्सी से भी कर सकते है ! दिल्ली से चोपता की कुल दूरी 405 किलोमीटर है जबकि हरिद्वार से ये दूरी 183 किलोमीटर रह जाती है !
दिल्ली से चोपता पहुँचने में आपको 11-12 घंटे का समय लगेगा !

कहाँ रुके (Where to stay in Chopta): चोपता में रुकने के लिए बहुत ज़्यादा विकल्प नहीं है गिनती के 2-4 होटल है जहाँ रुकने के लिए आपको 800 से 1000 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है ! अगर आप टेंट में रुकना चाहते है तो आप अपने साथ लाए टेंट लगा सकते है या ये होटल भी  आपको किराए पर टेंट मुहैया करवा देंगे !


क्या देखें (Places to see in Chopta
): चोपता में प्राकृतिक दृश्यों की भरमार है चारों तरह बर्फ से लदी ऊँची-2 पहाड़ियाँ सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती है ! आप किसी भी तरफ सिर उठाकर देखेंगे तो आपको प्रकृति का अलग ही रूप दिखाई देगा ! इसलिए अलावा यहाँ 3680 मीटर की ऊँचाई पर स्थित भगवान शिव का मंदिर है जो दुनिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर माना जाता है ! इस मंदिर से एक किलोमीटर आगे 4000 मीटर की ऊँचाई पर चंद्रशिला है ! चढ़ाई करते हुए हिमालय पर्वत श्रंखलाओं का जो दृश्य दिखाई देता है वो सफ़र की थकान मिटाने के लिए काफ़ी है !

अगले भाग में जारी...

तुंगनाथ यात्रा
  1. दिल्ली से हरिद्वार की ट्रेन यात्रा (A Train Journey to Haridwar)
  2. हरिद्वार से चोपता की बस यात्रा (A Road Trip to Chopta)
  3. विश्व का सबसे ऊँचा शिव मंदिर – तुंगनाथ (Tungnath - Highest Shiva Temple in the World)
  4. तुंगनाथ से चोपता वापसी (Tungnath to Chopta Trek)
  5. चोपता से सारी गाँव होते हुए देवरिया ताल (Chopta to Deoria Taal via Saari Village)
  6. ऊखीमठ से रुद्रप्रयाग होते हुए दिल्ली वापसी (Ukimath to New Delhi via Rudrprayag)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

9 Comments

  1. प्रदीप जी इतनी भी क्या जल्दी थी, उतरने की जो चोट लगवा बैठे, भाई ध्यान से चला करो।

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    1. सचिन भाई, ग़लतियों से ही सीख मिलती है !

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  2. चोपता के दिलकश नज़ारे। Thanks.

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  3. चोपता के दिलकश नज़ारे। Thanks.

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  4. प्रदीप भाई ,यात्रा बहुत अच्छी चल रही है फ़ोटो भी बहुत सुन्दर हैँ।पर आपके चोट लगने का बहुत दुःख है।जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिये ये सीख हमें भी मिलती है खासकर पहाड़ों पर।

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    1. रूपेश भाई, ग़लतियों से ही सबक मिलती है ये चोट आगे के लिए एक सबक का काम करेगी ! वैसे अब ये चोट ठीक हो गई है और मैं जयपुर यात्रा करके इसी साप्ताह लौटा हूँ !

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  5. बहुत ही अच्छा वर्णन किया आपने
    मई 1 dec 2016 को जा रहा हु चोपता
    आपके इस ब्लॉग से मुझे चार गुनी ज्यादा उत्सुकता होने लगी वहां जाने की धन्यवाद

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    1. जानकर अच्छा लगा कि लेख पढ़कर आपका मनोबल बढ़ा !

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