मारवाड़ का ताजमहल - जसवंत थड़ा (Jaswant Thada, A Monument of Rajpoot Kings)

शनिवार, 23 दिसंबर 2017

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यात्रा के पिछले लेख में आप मेहरानगढ़ दुर्ग के महल देख चुके है, किले से निकलने से पहले मैंने आपको चामुंडा देवी के दर्शन भी करवा दिए ! अब आगे, किले से घूमकर निकले तो शाम के साढ़े चार बज रहे थे, मेरी जानकारी के अनुसार जसवंत थड़ा में शाम 5 बजे तक ही प्रवेश मिलता है ! अब यहाँ से निकलकर जसवंत थड़ा पहुँचते-2 ही 15-20 मिनट लग जायेंगे, इसलिए हमारा विचार इसे कल ही देखने का था, लेकिन किले में मौजूद एक सुरक्षा कर्मचारी से पूछने पर पता चला कि शाम साढ़े पांच बजे तक इसमें प्रवेश किया जा सकता है ! ये सुनकर हम किले से निकलकर तेज क़दमों से जसवंत थड़ा की ओर जाने वाले मार्ग पर चल पड़े, एक विचार ऑटो में जाने का भी हुआ लेकिन आस-पास कोई खाली ऑटो ना होने के कारण ये विचार त्याग दिया ! 10-15 मिनट की पद यात्रा करके हम मुख्य मार्ग को छोड़कर जसवंत थड़ा जाने वाले मार्ग पर पहुँच गए, मेहरानगढ़ किले से निकलते ही रास्ते में हमें सड़क किनारे एक तालाब भी दिखाई दिया, लेकिन इसका पानी बहुत गन्दा था इसलिए हमने इसकी फोटो भी नहीं ली ! मुख्य मार्ग से जसवंत थड़ा जाने वाले मार्ग पर मुड़ते ही सड़क के दाईं ओर एक पहाड़ी पर हमें घोड़े पर सवार राव जोधा की मूर्ति दिखाई दी !
जसवंत थड़ा का एक दृश्य

हल्के आसमानी रंग की ये मूर्ति शानदार लग रही थी, लेकिन हमें पहले जसवंत थड़ा देखना था जिसके द्वार बंद होने में बहुत ज्यादा समय नहीं बचा था, इसलिए हम यहाँ ना रूककर तेज क़दमों से जसवंत थड़ा की ओर बढ़ गए ! ये मार्ग बहुत चौड़ा नहीं था, इसपर ज्यादा चहल-पहल भी नहीं थी, इक्का-दुक्का गाड़ियाँ ही आ-जा रही थी, राव जोधा की मूर्ति के पास से ही जसवंत थड़ा की सफ़ेद रंग की ईमारत दिखाई देने लगती है ! इस मूर्ति के सामने सड़क के बाईं ओर ढलान है, ढलान से आगे झाड़ियाँ और झाड़ियों के पास एक झील, खूब लम्बी झील है जो जसवंत थड़ा के पास तक फैली हुई है ! झील के उस पार कुछ अन्य ऊंची पहाड़ियाँ है, कुल मिलाकर यहाँ से शानदार दृश्य दिखाई दे रहे थे, कुछ देर बाद हम जसवंत थड़ा के सामने खड़े थे, यहाँ एक लम्बी-चौड़ी पार्किंग भी है ! 30 रूपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से प्रवेश शुल्क अदा करके हमने टिकट खिड़की से दो टिकट लिए, और एक अधिकारी को प्रवेश द्वार पर दिखाकर स्मारक परिसर में दाखिल हो गए ! चलिए, आगे बढ़ने से पहले आपको इस जगह के बारे में थोड़ी जानकारी दे देता हूँ, जसवंत थड़ा, जोधपुर के 33वें राठौर शासक महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय का समाधि स्थल है, लेकिन कालांतर में ये राठौर वंश के राजाओं का भी स्मृति स्थल बन गया !
जसवंत थड़ा जाते हुए रास्ते में राव जोधा की मूर्ति 
मंदिर के आकार में बने इस स्मारक का निर्माण जसवंत सिंह के बेटे महाराजा सरदार सिंह ने 1906 में करवाया था, सफ़ेद संगमरमर से बने इस स्मारक को “मारवाड़ का ताजमहल” भी कहा जाता है ! वैसे, राठौर वंश के पूर्व राजाओं और रानियों के स्मारक, छतरियां, और देवल मारवाड़ की पूर्व राजधानी मंडोर में स्थित है, जिसका वर्णन मैं अपने मंडोर भ्रमण के दौरान करूँगा ! जसवंत थड़ा के प्रांगण में बने देवालय अपने आप में ही खूबसूरत है लेकिन सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य की लाल किरणें पड़ने पर इनकी ख़ूबसूरती दुगुनी हो जाती है, चाँद की दूधिया रोशनी में इस स्मारक के देवलो को देखना एक रोमांचकारी अनुभव रहता है ! स्मारक के भीतरी भाग में जोधपुर के राजाओं के चित्र लगे है, सफ़ेद संगमरमर से बने इस विशाल स्मृति स्थल में कुछ दुर्लभ पारदर्शी शिलाएं भी है, जिनमें से निकलकर आती सूर्य की किरणें स्मारक की सुन्दरता को बढ़ा देती है ! इस स्मारक को बनाने के लिए जोधपुर से 250 किलोमीटर दूर मकराना से संगमरमर के पत्थर लाए गए थे ! स्मारक के पास एक झील भी है, जिसमें इस समय ज्यादा पानी नहीं था लेकिन फिर भी ये काफी सुन्दर लग रही थी, इस झील का निर्माण महाराजा अभय सिंह ने करवाया था !
जसवंत थड़ा जाते हुए दिखाई देता मेहरानगढ़ दुर्ग 

दूर से दिखाई देती राव जोधा की मूर्ति

मोड़ से दिखाई देता जसवंत थड़ा 

रास्ते में रूककर फोटो खींचते हुए देवेन्द्र
वैसे, इस परिसर में महाराजा जसवंत सिंह के अलावा महाराजा सुमेर सिंह, सरदार सिंह, उम्मेद सिंह और हनवंत सिंह जी की छतरियां भी बनी हुई है ! स्मारक के सामने एक सुन्दर बगीचा है जिसके बीचों-बीच एक फव्वारा लगा है, बगीचे से स्मारक तक जाने के लिए संगमरमर की सीढियाँ बनी है ! इस स्मारक और बगीचे को बनाने में राजस्थानी और मुग़ल वास्तुकला का प्रयोग किया गया है ! एक अनुमान के मुताबिक इस स्मारक को बनाने में उस समय लगभग 2 लाख 85 हज़ार रूपए का खर्चा आया था ! चलिए, वापिस यात्रा पर लौटते है जहाँ हम मुख्य प्रवेश द्वार से होते हुए स्मारक के पास वाले बगीचे में पहुँच चुके है, इस बगीचे में चलने के लिए पत्थर का पक्का मार्ग बना है ! इन मार्गों को बनाने में अधिकतर लाल पत्थर का प्रयोग हुआ है जबकि स्मारक को बनाने के लिए सफ़ेद संगमरमर का प्रयोग किया गया है ! बगीचे को पार करने के बाद हम सीढ़ियों से होते हुए एक अन्य मैदान में पहुँच गए, जहाँ मैदान के बीचों-बीच एक फव्वारा था, और फव्वारे के ठीक सामने स्मारक तक जाने के लिए फिर से कुछ सीढियाँ बनी थी ! फव्वारे के दूसरी ओर बने मार्ग को पार करने के बाद कुछ अन्य स्मारक भी थे, कुल मिलाकर मुग़ल शैली में बना ये बगीचा शानदार लग रहा था, स्मारक में जाने से पहले कुछ देर हम इसी बगीचे में घूमते रहे !


एक फोटो अपनी भी हो जाए 

जसवंत थड़ा के बाहर चबूतरे का एक दृश्य 

जसवंत थड़ा के बाहर चबूतरे का एक दृश्य 

जसवंत थड़ा के बाहर चबूतरे का एक दृश्य 
फव्वारे के सामने वाली सीढ़ियों से होते हुए हम उस चबूतरे पर पहुंचे जहाँ ये स्मारक बना था, चबूतरे के फर्श को बनाने में काले और सफ़ेद संगमरमर का प्रयोग हुआ है ! सुरक्षा के लिए चबूतरे के चारों ओर किनारों पर रेलिंग लगी है, और स्मारक की बाहरी दीवारों पर लगे संगमरमर पर जालियों का सुन्दर काम हुआ है, बगल में ही बैठने के लिए कुछ सीटें भी बनी है ! इस स्मारक के ऊपरी भाग में कबूतरों का भी खूब जमावड़ा है, कभी-2 तो ऐसा लगता है जैसे इन कबूतरों ने इस स्मारक को ही अपना स्थाई निवास बना लिया हो, कुछ देर टहलने के बाद हम स्मारक के मुख्य भवन के प्रवेश द्वार की ओर चल दिए ! स्मारक के मुख्य हाल में राठौर वंश के राजाओं के चित्र लगे है और सम्बंधित जानकारी भी चित्रों के नीचे दी गई है, बाहर बढ़िया धूप होने के बावजूद भी स्मारक में अँधेरा था ! सूर्य की रोशनी से अन्दर जितना प्रकाश आ रहा था उसी से थोड़ी-बहुत रोशनी थी, हाल में इन चित्रों के अलावा और कुछ नहीं था ! घूमते हुए हमने कुछ समय इस हाल में बिताया और फिर बाहर आ गए, स्मारक के पिछले हिस्से में झील के उस पार ऊबड़-खाबड़ चट्टान भी दिखाई दे रहे थे और इन चट्टानों से थोडा आगे एक दीवार भी थी ! यहाँ रूककर हमने कुछ चित्र लिए और फिर नीचे फव्वारे के पास वाले मैदान में आकर बैठ गए !


चबूतरे से दिखाई देता बगीचे का एक दृश्य

जसवंत थड़ा के पीछे पहाड़ी का एक दृश्य

जसवंत थड़ा के बाहर चबूतरे का एक दृश्य 

जसवंत थड़ा के पीछे पहाड़ी का एक दृश्य 
जसवंत थड़ा के टिकट के पीछे लिखी जानकारी के अनुसार प्रवेश शुल्क से प्राप्त राशि का प्रयोग इस स्मारक के रख-रखाव, और संरक्षण हेतु किया जाता है ! वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि इस स्मारक का संरक्षण और संचालन मेहरानगढ़ म्यूजियम की देखरेख में एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है जो मारवाड़ के महाराजा गजसिंह द्वितीय के अधीन है ! कुछ देर यहाँ बिताने के बाद हम बाहर आ गए, क्योंकि अभी हमें चौराहे के पास बनी राव जोधा की मूर्ति भी देखनी थी ! स्मारक से निकलकर 8-10 मिनट की पद यात्रा करके हम मूर्ति के पास पहुंचे, एक ऊंचे चट्टान पर स्थित राव जोधा की ये मूर्ति एक चबूतरे पर बनी थी, जिसमें वो एक घोड़े पर सवार होकर कुछ दिखा रहे है, इस मूर्ति के चारों ओर लोहे की रेलिंग लगी है, मूर्ति के चारों ओर घूमकर हमने कई चित्र लिए ! वैसे, अब सूर्यास्त होने में भी ज्यादा देर नहीं थी, सूर्यास्त के समय यहाँ से मेहरानगढ़ किले का एक शानदार दृश्य दिखाई दे रहा था, किले के नीचे जोधपुर शहर की इमारतें भी दिखाई दे रही थी, हमने यहाँ खड़े होकर सूर्यास्त के कई चित्र लिए ! सूर्यास्त होने के बाद हम यहाँ से निकलकर पैदल ही मुख्य मार्ग से होते हुए अपने होटल की ओर चल दिए ! कुछ दूर चलने के बाद हम मुख्य मार्ग को छोड़कर नीचे जाती हुई सीढ़ियों से उतरकर एक रिहायशी इलाके में पहुँच गए !


दूर से दिखाई देता जसवंत थड़ा 

जसवंत थड़ा के सामने बनी अन्य छतरियां

जसवंत थड़ा का एक और दृश्य

जसवंत थड़ा में बगीचे का एक दृश्य 

राव जोधा की मूर्ति का एक दृश्य 
कुछ घुमावदार रास्तों से होते हुए हम गुलाब सागर तालाब के सामने से निकलकर अमर चौक पहुंचे, अब तक अच्छा-ख़ासा अँधेरा हो चुका था ! अभी से होटल जाकर बैठने का हमारा मन नहीं था, इसलिए हमने सोचा आराम से बाज़ार में घूमेंगे और फिर खाना खाकर ही वापिस होटल जायेंगे ! अमर चौक के पास तिराहे पर एक चाय की दुकान देखकर हम रुक गए, सोचा, चाय पीकर आगे बढ़ेंगे, इसी बहाने घूमने सम्बंधित कुछ जानकारी भी जुटा लेंगे ! 2 चाय का आदेश देकर हमने दुकानदार से बातचीत शुरू कर दी, जब तक चाय बनकर तैयार हुई, अपने मतलब की ज़रूरी जानकारी हम ले चुके थे ! पीतल के भगोने में बनी चाय हमें कांच के गिलास में छानकर दी गई, चाय आते ही हमने अपने बैग से नमकीन-बिस्कुट निकाल लिए ! यहाँ से चलने के बाद हम जोधपुर का घंटाघर देखना चाहते थे, चाय की चुस्कियों के साथ इसी से सम्बंधित चर्चा चलती रही ! चाय का स्वाद इतना बढ़िया था कि हमने फिर से 1-1 चाय का आदेश दे दिया, 10-15 मिनट बाद चाय ख़त्म करके हम वापिस उसी मार्ग पर चल दिए, जिससे चलकर कुछ देर पहले यहाँ आए थे ! इस मार्ग पर कुछ दूर चलने के बाद पहले दाएं मार्ग से मुड़कर पहला चौराहा पार करने के बाद सामने एक मैदान में जोधपुर का घंटाघर है !


चौराहे पर बनी राव जोधा की मूर्ति

चौराहे पर बनी राव जोधा की मूर्ति

राव जोधा की मूर्ति से दिखाई देता मेहरानगढ़ दुर्ग

राव जोधा की मूर्ति से सूर्यास्त का एक दृश्य

राव जोधा की मूर्ति से दिखाई देता चौराहा

राव जोधा की मूर्ति से दिखाई देता जसवंत थड़ा
ये घंटाघर एक भीड़-भाड़ वाले इलाके में है, इसलिए यहाँ हमेशा ही चहल-पहल रहती है ! यहाँ एक बड़ा बाज़ार है, जहाँ खान-पान से लेकर ज़रूरत की अन्य वस्तुएं मिलती है, स्थाई दुकानों के अलावा कुछ अस्थायी दुकानें भी थी ! मेरे हिसाब से जोधपुर में खरीददारी के लिए ये एक अच्छा बाज़ार है, मैंने भी यहाँ से सजावट की वस्तुओं से सम्बंधित कुछ खरीददारी की ! बाज़ार से होते हुए हम क्लॉक टॉवर पहुंचे, यहाँ एक कर्मचारी ने हमें प्रवेश द्वार के पास इन्तजार करने को कहा ! क्रिसमस का दिन होने के कारण यहाँ अच्छी खासी भीड़ थी, हम इन्तजार कर ही रहे थे कि इतने में कुछ स्कूली बच्चों का एक समूह आया, इस समूह में एक यहूदी महिला भी थी जो शायद इन बच्चों की अध्यापिका थी ! ये सब यहाँ क्रिसमस का त्योहार मनाने आए थे, उस महिला ने वहां मौजूद कर्मचारी से लड़-झगड़ कर बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी ! उसने तर्क दिया कि उसके साथ आए बच्चों में कुछ लड़कियां भी थी इसलिए वो नहीं चाहती थी कि जितनी देर वो अपने बच्चों के साथ वहां रहे, कोई भी बाहरी व्यक्ति क्लॉक टावर में प्रवेश करे ! स्कूली बच्चों का ये ग्रुप वहां कुछ रंगारंग कार्यक्रम आयोजित करने वाला था, क्लॉक टावर के कर्मचारी ने आकर हमसे बड़ी विनम्रता से कहा, सर आप लोग कल आ जाइये, आज यहाँ बच्चे कुछ कार्यक्रम करने वाले है !

जोधपुर के घंटाघर का एक दृश्य
आखिरकार किसी एक को तो समझौता करना ही था, हमने ही अपनी इच्छाओं की बलि दी, हम अभी जोधपुर में एक दिन और थे, लेकिन त्योहार के कारण इन बच्चों को अपना प्रोग्राम आज ही करना था ! हमने सोचा हम तो क्लॉक टॉवर को कल भी देख सकते है इसलिए बच्चों की ख़ुशी के लिए ज्यादा कुछ कहे बिना ही घंटाघर से बाहर आ गए ! यहाँ से बाहर आकर खाना खाने के लिए किसी होटल की तलाश में निकल पड़े, बाज़ार में घूमते हुए हम काफी दूर निकल गए ! फिर स्टेडियम के पास वाली सड़क पर स्थित एक होटल में रात्रि भोजन किया, वापिस आते समय सड़क के किनारे हमें एक दुकान दिखाई दी ! यहाँ खेलने-कूदने से लेकर श्रृंगार और सजावट का दूसरा सामान मौजूद था, यहाँ रूककर हमने बच्चों के लिए कुछ खिलोने ले लिए, खरीददारी के लिए मुझे ये बढ़िया जगह लगी ! यहाँ से चले तो रास्ते एक जगह हमें कुल्हड़ वाला दूध दिखाई दिया, भोजन तो भरपेट किया था लेकिन दूध के लिए थोड़ी जगह बना ही ली, अपने होटल पहुँचते-2 रात के 9 बज ही गए ! यहाँ भी एक मजेदार वाक्या हुआ, हुआ दरअसल कुछ यूं कि होटल पहुंचकर हम अपने कमरे में आ गए ! इस बीच देवेन्द्र ये कहकर होटल की छत पर चला गया कि कुछ देर छत पर टहलने के बाद सोने जाऊंगा !

मैंने सोचा, मैं ही अकेला यहाँ बैठा क्या करूँगा, मैं भी छत पर ही पहुँच गया, तीसरे मंदिर की छत पर पहुंचे तो कुछ लोग यहाँ बैठकर खाना खा रहे थे ! हमारे होटल की रसोई द्वितीय तल पर थी लेकिन बैठकर खाने की व्यवस्था होटल वालों ने तीसरे तल पर भी कर रखी थी ! छत से देखने पर दिखाई दे रहा था कि किले की बाहरी दीवारों पर कृत्रिम रोशनी लगाईं गई थी, जिसके मद्धम प्रकाश में किले का शानदार दृश्य दिखाई दे रहा था ! हम होटल की छत पर रखी कुर्सियों पर बैठकर कुछ देर यूँ ही इस नज़ारे को देखते रहे ! इस बीच यहीं हमसे अगली टेबल पर बैठा एक बंगाली परिवार भोजन कर रहा था, परिवार में पति-पत्नी और 7-8 साल की उम्र के दो बच्चे थे ! उनकी बातचीत से मुझे अंदाजा लग रहा था कि भोजन उनके स्वाद के मुताबिक नहीं था, उसी को लेकर दोनों नाखुश थे ! खाना ख़त्म करने के बाद बंगाली परिवार के मुखिया ने खुद ही हमसे बातचीत शुरू की, औपचारिक पूछताछ से बात आगे बढ़ी तो हमने भी पूछ लिया कि आप कहाँ से घूमने आये हो और आगे कहाँ जाने का विचार है ! उसने बताया कि वो कलकता में किसी सरकारी विभाग में कार्यरत था, छुट्टियाँ लेकर परिवार के संग यहाँ घूमने आया था ! ये आज सुबह ही माउंट आबू से घूमकर यहाँ जोधपुर पहुंचे है और दिन में उन्होंने मेहरानगढ़ का किला देखा था ! 

उक्त व्यक्ति को थोडा और कुरेदा तो पता चला महाशय 15 दिनों की लम्बी यात्रा पर निकले है, कलकता से चलकर हरिद्वार, दिल्ली, माउंट आबू होते हुए आज जोधपुर पहुंचे है, अभी यहाँ से निकलकर जयपुर होते हुए आगरा जायेंगे, आगरा से अपने घर के लिए प्रस्थान करेंगे ! मैंने कहा माउंट आबू गए थे तो उदयपुर भी घूमे होंगे, तो बोला नहीं मुझे किसी दोस्त ने यात्रा का प्लान बनाकर दिया था उसी के हिसाब से घूम रहा हूँ ! मैंने कहा उदयपुर भी माउंट आबू के पास ही स्थित है, जब इतने पास थे तो जाना चाहिए था, इसके बाद घूमने सम्बंधित बातों को लेकर काफी देर तक हमारी बातचीत चलती रही ! बातचीत में अच्छा समय व्यतीत हुआ, फिर आराम करने के लिए हम सभी अपने-2 कमरों में चले गए ! लेकिन एक बात मैं कहना चाहूँगा कि बंगाली लोगों का घूमने में कोई मुकाबला नहीं है ! कमरे में आकर हम दोनों अपने-2 बिस्तर पर आराम करने चले गए, सुबह उठकर हमें जोधपुर में कई जगहें देखनी थी, दिनभर घूमकर अच्छी थकान हो गई थी इसलिए बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई ! चलिए, इसी के साथ यात्रा के इस लेख पर विराम लगाता हूँ, कल आपको उम्मेद भवन की सैर कराई जाएगी !

क्यों जाएँ (Why to go Jodhpur): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में जोधपुर का रुख कर सकते है !

कब जाएँ (Best time to go Jodhpur): जोधपुर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !

कैसे जाएँ (How to reach 
Jodhpur): जोधपुर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी 620 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन में सवार होकर रात भर में तय कर सकते है ! मंडोर एक्सप्रेस रोजाना पुरानी दिल्ली से रात 9 बजे चलकर सुबह 8 बजे जोधपुर उतार देती है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो उसके लिए भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जोधपुर जा सकते है ! 


कहाँ रुके (Where to stay near 
Jodhpur): जोधपुर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 600 रूपए से शुरू होकर 3000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !


क्या देखें (Places to see near Jodhpur): जोधपुर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें मेहरानगढ़ किला, जसवंत थड़ा, उन्मेद भवन, मंडोर 
उद्यान, बालसमंद झील, कायलाना झील, क्लॉक टावर और यहाँ के बाज़ार प्रमुख है ! त्रिपोलिया बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जोधपुर लाख के कड़ों के लिए जाना जाता है इसलिए अगर आप यहाँ घूमने आये है तो अपने परिवार की महिलाओं के लिए ये कड़े ले जाना ना भूलें !

अगले भाग में जारी...

जोधपुर यात्रा
  1. दिल्ली से जोधपुर की ट्रेन यात्रा (A Train Journey from Delhi to Jodhpur)
  2. जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग का इतिहास (History of Mehrangarh Fort, Jodhpur)
  3. जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग की सैर (A Visit to Mehrangarh Fort, Jodhpur)
  4. मेहरानगढ़ दुर्ग के महल (A Visit to Palaces of Mehrangarh Fort, Jodhpur)
  5. मारवाड़ का ताजमहल - जसवंत थड़ा (Jaswant Thada, A Monument of Rajpoot Kings)
  6. जोधपुर का उम्मेद भवन (Umaid Bhawan Palace, Jodhpur)
  7. रावण की ससुराल और मारवाड़ की पूर्व राजधानी है मण्डोर (Mandor, the Old Capital of Marwar)
  8. जोधपुर की बालसमंद और कायलाना झील (Balasmand and Kaylana Lake of Jodhpur)
  9. जोधपुर का क्लॉक टावर और कुछ प्रसिद्द मंदिर (Temples and Clock Tower of Jodhpur)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

3 Comments

  1. शायद यहाँ जो छतरियां आपने दिखाई उसी में हम दिल दे चुके सनम की शूटिंग हुई थी एक सीन की पर में पक्का नही कह सकता...बाकी बढ़िया जानकारी...और आप मारवाड़ के ताजमहल को देखेंगे आखरी आधे घंटे में बहुत भाग दौड़ कर गए होंगे मेरे साथ कई बार हुआ है कि आखरी आधे घंटे में पहुच कर जगह देख कर बाजार आया हूं वैसे यह रोमांच भी हो जाता होगा...,

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    1. धन्यवाद प्रतीक भाई, जहाँ तक मुझे जानकारी है इस फिल्म की शूटिंग का एक हिस्सा बड़ा बाग, जैसलमेर में फिल्माया गया था लेकिन जसवंत थड़ा में तो इस फिल्म की शूटिंग से सम्बंधित कोई जानकारी हमें नहीं मिली ! रही दूसरी बात कि कम समय में घूमने में भागम-भाग लग जाती है तो ऐसी स्थिति में परिवार के साथ हो तो थोडा मुश्किल हो जाता है लेकिन दोस्तों के साथ तो फिर भी बात बन जाती है इसलिए हमें तो कोई ज्यादा दिक्कत नहीं हुई !

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