लाखामंडल से मसूरी की सड़क यात्रा (A Road Trip to Mussoorie)

रविवार, 27 दिसंबर 2009 

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यात्रा के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह हम पहाड़ी की तलहटी में स्थित टाइगर फॉल में स्नान करके वापसी ख़तरनाक चढ़ाई करके अपनी गाड़ी पर पहुँचे ! अब आगे, टाइगर फॉल से वापिस आने के बाद मन काफ़ी रोमांचित हो गया था, सब यही कह रहे थे कि रास्ते में ऐसी एक-दो जगहें और देखने को मिल जाए तो ये मज़ा दुगुना हो जाएगा ! इसी दौरान जयंत बोला कि इसी मार्ग पर यहाँ से 50 किलोमीटर दूर एक जगह है लाखामंडल ! इस जगह के बारे में चकराता के स्थानीय लोगों ने जयंत को बताया था कि लाखामंडल में भी घूमने लायक कुछ जगहें है ! इस बार हम सब जयंत को बड़े ध्यान से सुन रहे थे, उसकी बात ख़त्म होते ही हम सब एक ही स्वर में बोले, ठीक है भाई, लाखामंडल भी घूमते हुए चलेंगे ! अपने पाठकों की जानकारी के लिए बता दूँ कि लाखामंडल एक प्राचीन शिव मंदिर के लिए प्रसिद्द है, जहाँ हर वर्ष हज़ारों श्रद्धालु आते है ! कुछ लोग तो ये भी कहते है कि पांडवों ने अपना कुछ समय यहाँ लाखामंडल में भी व्यतीत किया था ! 

map lakhamandal
लाखामंडल में मानचित्र
दुर्योधन द्वारा बनवाए गए लाक्षागृह से निकलने के लिए पांडवों ने जिस सुरंग का इस्तेमाल किया था वो यहीं लाखामंडल में है ! फिर तो लाखामंडल के बारे में ही चर्चा करते हुए हम सब इस सफ़र पर आगे बढ़ रहे थे, बीच-2 में कार के शीशों में से बाहर के नज़ारे भी देख ले रहे थे ! हालाँकि, सड़क के किनारे नज़ारे को काफ़ी थे पर हम लाखामंडल जाते हुए बीच मार्ग में कहीं रुके नहीं ! कई गाँवों-कस्बों और घाटियों को पार करते हुए, लगभग दो घंटे का सफ़र करने के बाद हम सब एक कस्बे में पहुँचे, सड़क के किनारे लगे एक बोर्ड को पढ़ कर पता चला कि ये लाखामंडल ही था ! यहाँ से मुख्य मार्ग तो सीधे चला जा रहा था, जबकि दाईं ओर एक मार्ग अंदर इस कस्बे में जा रहा था ! दिए गए दिशा-निर्देश अनुसार हम इसी मार्ग पर चल दिए, फिर एक मंदिर के सामने से होते हुए रास्ता बाईं ओर जा रहा था ! यही वो प्राचीन शिव मंदिर था, जिसको देखने लोग देश के अलग-2 हिस्सों से आते है, इस मार्ग से होते हुए हम इस कस्बे के मुख्य बाज़ार में पहुँच गए ! बाज़ार में गाड़ी खड़ी करके हाथ-मुंह धोने के बाद हम सब प्रसाद लेकर पैदल ही शिव मंदिर की ओर चल दिए ! 

मंदिर यहाँ से 100 मीटर की दूरी पर रहा होगा, मंदिर के प्रवेश द्वार से अंदर जाने पर सीढ़ियों से होते हुए हम मंदिर के मुख्य के प्रांगण में पहुँच गए ! यहाँ एक द्वार जिसके उपर खूब घंटिया लगी थी, से होते हुए हम अपनी बाईं ओर चलकर हम मंदिर के मुख्य भवन में पहुँचे ! भवन का प्रवेश द्वार बहुत छोटा था इसलिए झुक-कर अंदर जाना पड़ा, मुख्य भवन में फोटोग्राफी वर्जित थी इसलिए हमने वहाँ एक भी फोटो नहीं लिया ! पूजा करने के बाद पुजारी ने हमें बताया कि इस मंदिर की स्थापना आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व हुई थी, और हर वर्ष यहाँ हज़ारों श्रद्धालु आते है ! फिर मुख्य भवन से निकलकर हम सब मंदिर के प्रांगण में घूमने लगे ! मंदिर के प्रांगण में बड़े-2 पत्थर बिछे हुए थे और वहाँ बहुत से छोटे-बड़े शिवलिंग थे, स्थानीय लोगों ने बताया था कि यहाँ इस मंदिर में ऐसे लाखों शिवलिंग है इसलिए इस जगह का नाम लाखामंडल है ! वैसे इस बात में कितनी सच्चाई है ये कोई नहीं जानता, क्योंकि, जितने लोग उतनी कहावतें ! मंदिर प्रांगण में ही आगे बढ़ने पर एक बड़ा शिवलिंग भी था, यहाँ भी हमने पूजा की ! 

कहते है कि इस शिवलिंग पर जल चढ़ाने पर आपकी छवि शिवलिंग में दिखाई देती है, और हमने गौर किया कि ऐसा होता भी है ! दरअसल, शिवलिंग पर जब पानी गिरता है तो साफ होने के कारण आपको अपनी छवि इस शिवलिंग में उसी प्रकार दिखाई देती है जैसे कोई छवि किसी शीशे में ! बारी-2 से हम चारों ने इस शिवलिंग की पूजा की, इस दौरान कुछ अन्य भक्त भी मंदिर में मौजूद थे, कुछ स्थानीय भक्त तो कुछ बाहरी ! वापिस आते हुए हमने मंदिर के पुजारी से जितनी जानकारी मिल सकी, ले ली, फिर मंदिर से बाहर आकर वापस अपनी गाड़ी की ओर चल दिए ! गाड़ी के पास पहुँचकर वहीं बाज़ार में एक होटल में जाकर भोजन किया ! भोजन करते हुए वहीं दीवार पर लगे एक मानचित्र से हमें आस-पास की जगहों की भी जानकारी मिली ! हालाँकि, लाक्षागृह वाली सुरंग के बारे में हमें होटल संचालक ने जानकारी दी ! भोजन ख़त्म करके भुगतान करने के बाद अपनी गाड़ी लेकर लाक्षागृह सुरंग देखने चल दिए ! 

ये सुरंग मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग पर है, हमने अपनी गाड़ी वहीं सड़क किनारे रोक दी और सुरंग की ओर चल दिए ! गाड़ी से उतरते ही जयंत तो लगभग दौड़ता हुआ सुरंग में चला गया, पर अगले ही पल जितनी रफ़्तार से वो सुरंग में गया था उस से दुगनी रफ़्तार से वापस भी आ गया ! पूछने पर कहने लगा कि सुरंग में प्रवेश करते ही उसने अंदर किसी जंगली जानवर शायद सियार या लोमड़ी को देखा जो वहीं सुरंग के अंदर सोया हुआ था ! सुरंग के प्रवेश द्वार पर तो सूर्य का प्रकाश बराबर पड़ रहा था इसलिए पर्याप्त रोशनी थी, लेकिन अंदर जाने पर एकदम गुप्प अंधेरा था ! ऐसे में बिना रोशनी के अंदर जाना हमें उचित नहीं लगा, और जयंत भी बाहर गाड़ी में रखे अपने बैग में से टॉर्च लेने ही आया था ! टॉर्च लेकर हमने फिर से उस सुरंग में प्रवेश किया, इस बीच मैने भी अपने मोबाइल की टॉर्च जला ली ! टॉर्च और मोबाइल की रोशनी उस अंधेरे में रास्ता दिखाने के लिए काफ़ी थी, सुरंग में घुसते ही हम सब चारों ओर का निरीक्षण करने लगे ताकि अगर कोई ख़तरा हो तो हम अपना बचाव कर सकें ! 

इस सुरंग में जगह-2 कोनों में खूब चमगादड़ छुपी हुई थी, हमने उन्हें छेड़ा नहीं, इसलिए वो भी हिली नहीं ! वैसे तो ये सुरंग काफ़ी लंबी थी, पर थोड़ा अंदर जाने पर इस सुरंग को बड़े-2 पत्थर डालकर बंद किया गया था ! फिर भी इस बंद मार्ग से छोटे जानवरों के निकलने की पर्याप्त जगह थी ! जयंत ने जो जानवर देखा था इस बार हमें वो दिखाई नहीं दिया, इसलिए हमने अनुमान लगाया कि हो सकता है हमारे आने की आहट सुनकर वो जानवर भाग गया हो या छुप गया हो ! सुरंग के अंदर खड़े होकर हमें खूब फोटो खींची, और थोड़ी देर बाद वापस सुरंग के प्रवेश द्वार पर आ गए जहाँ शिवजी का त्रिशूल रखा हुआ था ! थोड़ी देर वहाँ बिताने के बाद हम सब सुरंग से बाहर आ गए और अपनी गाड़ी में बैठकर दिल्ली के लिए चल दिए ! यहाँ से चलने के बाद हम रास्ते में कई नदी-नालों को पार करते हुए बढ़ते रहे, एक पहाड़ी से गोल-2 घूम के उतरते तो फिर अगली पहाड़ी पर गोल-2 घूम कर चढ़ जाते ! 

पहाड़ों पर अक्सर ऐसे ही रास्ते होते है, हम सारी दोपहरी चलते रहे, रास्ते में एक जगह फिर से डीजल भी भरवाया ! शाम को 5 बजे जाकर हम लोग केंप्टी फॉल पहुँचे, यहाँ सड़क के किनारे सैकड़ों गाड़ियाँ खड़ी थी, सब लोग यहाँ गाड़ियाँ खड़ी करके झरना देखने गए थे ! यहाँ एक मजेदार बात हुई, चार में से दो लोग झरना देखने के पक्ष में थे, जबकि राहुल और पवन झरना देखे बिना ही आगे जाने के लिए कह रहे थे ! हमने कहा यार झरने के इतना पास होकर भी अगर हम यहाँ नहीं घूमे तो यात्रा ख़त्म होने के बाद इस बात का मलाल रहेगा ! क्या पता अगली बार यहाँ आने का मौका कब मिले, ये बात सुनकर पवन तो हमारे साथ झरना देखने के लिए तैयार हो गया पर राहुल अब भी मना ही करता रहा ! उसकी छुट्टियाँ आज ख़त्म हो रही थी, और उसे हर हाल में कल अपने दफ़्तर पहुँचना था ! वैसे छुट्टियाँ तो हमारी भी आज ख़त्म हो रही थी, पर हम लोग कोई भी बहाना बनाकर एक दिन की अतिरिक्त छुट्टी ले सकते थे ! 

जब काफ़ी मनाने के बाद भी राहुल साथ चलने को तैयार नहीं हुआ तो उसकी परवाह किए बिना ही हम तीनों केंप्टी फाल देखने चल दिए ! इस झरने तक जाने के लिए सड़क के किनारे ही सीढ़ियाँ बनी हुई है, और सीढ़ियों के किनारे खाने-पीने से लेकर सजावट के सामान की दुकानें ! राहुल हमारे साथ आने में तो ना-नुकुर कर रहा था पर थोड़ी देर बाद देखा तो वो हमारे पीछे ही आ रहा था, उसे देखकर लगा मरता क्या ना करता ! गाड़ी में बैठ कर हमारी प्रतीक्षा करने से अच्छा शायद उसे झरना देखना लगा, सीढ़ियों से उतरते हुए आज रात मसूरी में रुकने की चर्चा होने लगी ! ये सुनते ही राहुल जोकि हमारे पीछे-2 ही चल रहा था बोला, यार केंप्टी फॉल देख कर निकल ही लेते है, रात को देर से ही सही पर घर पहुँच तो जाएँगे, इस तरह मैं सुबह अपने दफ़्तर भी जा सकूँगा ! हमने कहा, अबे क्या रट लगा रखी है तूने दफ़्तर जाने की, एक दिन छुट्टी कर लेगा तो तेरी कंपनी बंद नहीं हो जाएगी ! 

झरने पर पहुँचकर हमने इस चर्चा को ख़त्म कर दिया और नहाने के लिए झरने के नीचे चल दिए ! झरने के नीचे पहले से ही काफ़ी पर्यटक थे, इसलिए झरने के नीचे खड़े होने के लिए जगह भी मुश्किल से मिली ! रात को मसूरी में रुकने की बात सुनकर राहुल चिढ़ गया, उसने हमंसे बात करना भी बंद कर दिया और झरने पर ही हम सबसे अलग-थलग हो गया ! इस झरने के आस-पास प्राकृतिक तो कुछ रहा नहीं, यहाँ इतना व्यापारीकरण हो गया है कि झरने की सुंदरता कहीं दब सी गई है ! वैसे झरने के पास खाने-पीने से लेकर मनोरंजन के अच्छे इंतज़ाम थे, फिर भी वो बात नहीं थी जो एक झरने के पास होनी चाहिए ! हमें तो वैसे भी ये कहाँ अच्छी लगने वाली थी, हमारी आँखों में तो टाइगर फॉल की खूबसूरती समाई हुई थी, उसके आगे तो केंपटी फाल फीका ही लग रहा था ! आधा घंटा झरने पर बिताने के बाद हम सब वापस अपनी गाड़ी की ओर चल दिए, सीढ़ियों से उपर चढ़ते हुए हमने घर ले जाने के लिए कुछ सजावट का सामान भी लिया ! 

राहुल को अब अंदेशा हो चुका था कि हम तीनों ने आज रात यहीं मसूरी में रुकने की सलाह बना ली है इसलिए झरने से निकलकर सीधे गाड़ी में जाकर बैठ गया, जबकि हम लोग खरीददारी करने लगे ! थोड़ी देर बाद हम तीनों भी जाकर गाड़ी में बैठे और मसूरी के लिए चल दिए, जोकि यहाँ से 15 किलोमीटर दूर था ! इस बीच हमने राहुल को आज रात मसूरी में रुकने की बात से अवगत भी करा दिया, जिसका उसने कुछ जवाब नहीं दिया ! आज उस बात को सोचता हूँ तो लगता है कि ये ग़लत था, भाई हमारी नौकरी में छुट्टी लेने की दिक्कत नहीं थी पर ज़रूरी नहीं की दूसरे की नौकरी में भी ऐसी पाबंदी ना हो ! अगर हमें अतिरिक्त दिन रुकना था तो सर्व-सहमति से रुकना चाहिए था ! अगले 20 मिनट में हमारी गाड़ी मसूरी के माल रोड पर खड़ी थी और हम अपने रुकने के लिए होटल ढूँढने में लगे थे ! थोड़ी खोजबीन के बाद हमें एक "होटल माल व्यू" में कमरा मिल गया, कमरे का किराया 1000 रुपए ! 

कमरे में अपना सारा सामान रखने के बाद हम चारों माल रोड पर घूमने चल दिए, अब तक अंधेरा हो चुका था और माल रोड पर रौनक काफ़ी बढ़ गई थी ! अब तक राहुल की हमसे बोलचाल शुरू हो चुकी थी, यहाँ भी एक मजेदार घटना घटी ! माल रोड पर घूमते हुए राहुल ने जब वहाँ उसने कुछ घोड़ों को देखा तो उसने घुड़सवारी की ज़िद पकड़ ली, हमने उसे खूब समझाया कि भाई यहाँ अधिकतर छोटे बच्चे ही घुड़सवारी कर रहे हैं लेकिन उसे तो ज़िद थी जो पूरी करनी थी वो घुड़सवारी करके ही माना ! इस दौरान अन्य पर्यटक भी हमारे उस घुड़सवार को देख कर मुस्कुरा रहे थे ! वैसे, इस यात्रा का अंतिम दिन बहुत मजेदार रहा, घुड़सवारी के बाद सम सब काफ़ी देर तक माल रोड पर ही घूमते रहे ! फिर खाना खाने के लिए वापिस अपने होटल आ गए, यहाँ भी राहुल की नौटंकी जारी रही, जब हमने खाने का ऑर्डर दिया तो वो बोला, मैं तो पहले चाय पीऊँगा ! हमने कहा भाई तुझे जैसा करना हो वैसा कर, हमें फ़र्क नहीं पड़ता ! 

हमने कहा लगता है यार तुझे हमने ग़लत ही रोक लिया यहाँ, तू अपने दफ़्तर ही चला जाता तो ज़्यादा ठीक रहता ! खाना खाकर फिर से सब माल रोड पर घूमने चल दिए, रात के दस बज रहे थे और माल रोड पर हमारे अलावा गिनती के लोग ही घूम रहे थे ! मसूरी में भी खूब ठंड पड़ रही थी, माल रोड पर घूमते हुए तो ठंड लग ही रही थी, होटल के कमरे में भी सर्दी कम नहीं थी ! देर रात तक माल रोड पर घूमने के बाद जब थक गए तो अपने होटल वापस आ गए, फिर आराम करने के लिए अपने-2 बिस्तर पर चले गए ! सुबह समय से सोकर उठे, हाथ-मुँह धोकर बिना कुछ खाए-पिए ही दिल्ली के लिए निकल लिए ! हमने सोचा अगर नहाने-धोने में लग गए तो देर हो जाएगी, इसलिए आनन-फानन में ही होटल से निकलकर गाड़ी की ओर चल दिए ! हमारी गाड़ी होटल से आधा किलोमीटर दूर एक सार्वजनिक पार्किंग स्थल में खड़ी थी ! मसूरी की भीड़-भाड़ से बचने के लिए और सुबह के नज़ारों का आनंद लेने के लिए यहाँ से समय पर निकलना ज़रूरी था ! 

मसूरी से 6 बजे निकलने के बाद रास्ते में हम शायद ही कहीं रुके, बिना रुके चलने के बावजूद भी हमें फरीदाबाद पहुँचते-2 दोपहर के 4 बज गए ! घर पहुँचने से पहले हमने यात्रा के खर्च का सारा हिसाब करके खर्च आपस में बाँट लिया ! फरीदाबाद उतरने के बाद सब अपने-2 घर रवाना हो गए ! मैं भी कुछ देर तक तो बस के इंतजार में खड़ा रहा लेकिन जब शाम होने लगी तो बस का इंतजार छोड़कर एक ऑटो में सवार हुआ और अपने घर की ओर निकल पड़ा ! अगले पौने घंटे बाद अंधेरा होते-2 अपने घर पहुँच गया, तो दोस्तों इसी के साथ ये सफ़र यहीं ख़त्म होता है, अगले सफ़र पर जल्द ही मुलाकात होगी !

shiv temple in lakhamandal
लाखामंडल में प्राचीन शिव मंदिर (Shiv Temple in LakhaMandal, Uttrakhand)
lakhamandal temple
लाखामंडल में प्राचीन शिव मंदिर (A view of Shiv Temple in LakhaMandal, Uttrakhand)
temple in lakhamandal
Shiv Temple in LakhaMandal, Uttrakhand
famous temple

ancient temple
मुख्य भवन का प्रवेश द्वार
a temple


temple premise
मंदिर प्रांगण में
view from temple

view from temple
मंदिर प्रांगण में


shivling in temple
शिवलिंग की पूजा करता राहुल
शिवलिंग में दिखाई देते हमारी छवि
a view in temple





cave in lakhamandal
लाक्षागृह गुफा (A Cave in LakhaMandal)
inside the cave
गुफा के अंदर

jayant in cave
पापी जयंत तपस्या करता हुआ
a river on the way
राह में पड़ने वाला एक खड्ड

kempty fall
केंप्टी फाल के पास जयंत और पवन
hotel in mussoorie
मसूरी में हमारा होटल
घुड़सवारी करता राहुल (जिद्दी लड़का)
mall road mussoorie
माल रोड मसूरी
sunrise in mussoorie
मसूरी में सूर्योदय (Sunrise in Mussoorie)
parking in mussoorie
होटल से पार्किंग की ओर जाते हुए
क्यों जाएँ (Why to go Chakrata): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो उत्तराखंड में स्थित चकराता का रुख़ कर सकते है ! यहाँ आपको देखने के लिए पहाड़, झरने, जंगल, और रोमांच सबकुछ मिलेगा !

कब जाएँ (Best time to go Chakrata): 
वैसे तो आप चकराता साल के किसी भी महीने में जा सकते है, पर अगर आपको हरे-भरे पहाड़ देखने हो और अगर आप झरने देखने का भी शौक रखते हो तो जुलाई-अगस्त उत्तम समय है ! अगर प्राकृतिक दृश्यों का भरपूर आनंद लेना हो तो आप यहाँ मार्च से जून के मौसम में आइए ! सर्दियों के मौसम में यहाँ कड़ाके की सर्दी पड़ती है इसलिए अगर सर्दी में यहाँ जाने की इच्छा हो रही हो तो अपने साथ गर्म कपड़े ज़रूर ले जाएँ !

कैसे जाएँ (How to reach Chakrata): दिल्ली से चकराता की दूरी महज 320 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 8-9 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से देहरादून होते हुए आप चकराता जा सकते है एक मार्ग यमुनानगर-पौंटा साहिब होकर भी चकराता को जाता है ! दोनों ही मार्गों की हालत बढ़िया है ! अगर आप चकराता ट्रेन से जाने का विचार बना रहे है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है, जो देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है ! देहरादून से चकराता महज 88 किलोमीटर दूर है जिसे आप टैक्सी या बस के माध्यम से तय कर सकते है, देहरादून से 10-15 किलोमीटर जाने के बाद पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है !

कहाँ रुके (Where to stay in Chakrata): चकराता उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है पहले यहाँ कम ही लोग जाते थे लेकिन अब यहाँ जाने वाले लोगों की तादात काफ़ी बढ़ गई है ! लोगों की सुविधा के लिए यहाँ रुकने के लिए कई होटल है लेकिन अगर यात्रा सीजन मई-जून में यहाँ जाने की योजना है तो होटल का अग्रिम आरक्षण करवाकर ही जाएँ ! होटल में रुकने के लिए आपको 800 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है !

कहाँ खाएँ (Eating option in Chakrata): चकराता का बाज़ार बहुत बड़ा तो नहीं है लेकिन फिर भी खाने-पीने के लिए ठीक-ठाक दुकानें है ! फिर भी पहाड़ी क्षेत्र है इसलिए ख़ान-पान के ज़्यादा विकल्पों की उम्मीद ना ही रखे तो बेहतर होगा !

क्या देखें (Places to see in Chakrata): चकराता में घूमने के लिए बहुत ज़्यादा विकल्प तो नहीं है फिर भी कुछ जगहें ऐसी है जो यहाँ आने वाले यात्रियों का मन मो लेती है ! इनमें से कुछ जगहें है टाइगर फाल, देवबन, और लाखामंडल !

समाप्त...

चकराता - मसूरी यात्रा
  1. चकराता का एक यादगार सफ़र (A Memorable Trip to Chakrata)
  2. चकराता के जंगल में बिताई एक शाम (A Beautiful Evening in Chakrata)
  3. देवबन के घने जंगल की रोमांचक यात्रा (Road Trip to Deoban, Chakrata)
  4. टाइगर फॉल में दोस्तों संग मस्ती (A Perfect Destination - Tiger Fall)
  5. लाखामंडल से मसूरी की सड़क यात्रा (A Road Trip to Mussoorie)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

9 Comments

  1. Lakhmandal bahut scenic place lag rha hai...peaceful environment

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    1. So, when are you planning to go there ?

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    2. pradeep bhai, tumhare saath hi jaunga, program banao kisi weekend ka jaldi...firday ki leave le lenge :)

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  2. Bahut hi badiya jagah thi.. aapki yatra ka ye part mujhe sabse acha laga..
    isko padne k baad lagta hai aap logo ko Rahul ko jane ka bahut afsos hua hon.. or shayad aap use dubara apne sath na le gae hon..
    kya ye satay hai..

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    1. ऐसा कुछ नहीं है सौरभ भाई, हर यात्रा में थोड़ा ना-नुकुर तो चलती रहती है इसका मतलब ये तो नहीं कि हम किसी के साथ यात्रा करना छोड़ दें !

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  3. बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत ...

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  4. Badhiya post gain,masuri jana trip me anayas jagahon me judne ka achchha udaharan hai,aaj aapka mitr purani yaden taja kar k bahut khush hota hoga ki kaise man na vote huge bhi usne masuri dekh liya

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    1. पता नहीं मित्र खुश होता होगा कि नहीं, पर मुझे तो अपनी इन यात्राओं को याद करके बहुत खुशी मिलती है !

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