साधुपुल - हिमाचल के एक गाँव में यादगार शाम (A Memorable Evening in Sadhupul)

शुक्रवार, 3 जून 2016

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इस यात्रा के पिछले लेख में आपने कसौली में घूमने की स्थानीय जगहों के बारे में पढ़ा ! अब आगे, हम तीनों चर्च से निकले और बस अड्डे में खड़ी अपनी गाड़ी में बैठकर शिमला की ओर चल दिए ! कसौली से निकलकर थोड़ी देर में ही हम धर्मपुर तिराहे पर पहुँच गए, यहाँ से शिमला जाने के लिए हम बाएँ मुड़ गए ! शिमला जाने वाला ये मार्ग खूबसूरत नज़ारों से भरा पड़ा है, सड़क किनारे आप कहीं भी गाड़ी रोक लो, वहीं आपको नज़ारे दिखाई देंगे ! कसौली से शिमला जाते हुए आगे बढ़ने पर एक जगह आती है कंड़ाघाट ! यहाँ एक तिराहा है, इस तिराहे से बाएँ जाने वाला मार्ग शोघी होते हुए शिमला जाता है ! जबकि यहाँ से सीधा जाने वाला मार्ग चैल, कुफरी होते हुए शिमला को जाता है ! हम चैल होते हुए शिमला जाना चाहते थे, इसलिए कंड़ाघाट तिराहे से बाएँ ना मुड़कर सीधे ही चलते रहे ! अपनी गाड़ी होने का हमें ये सुख तो था कि जहाँ मन करता हम नज़ारे देखने के लिए गाड़ी रोक लेते ! कंड़ाघाट पार करने के बाद कई घुमावदार मोडों से होते हुए हम एक पुल पर पहुँचे, यहाँ से आगे जाने के लिए रास्ता नहीं था !
साधुपुल से दिखाई देता एक नज़ारा
पुराना पुल टूट चुका था और नया पुल निर्माणाधीन था, रास्ता बंद होने के कारण गाड़ियाँ मुड़कर वापिस आ रही थी ! पुल के पास खड़े कुछ स्थानीय लोगों से पूछने पर पता चला कि यहाँ से 1 किलोमीटर वापिस जाने पर एक अन्य मार्ग है जो आगे जाकर इसी मार्ग पर मिल जाता है ! यहाँ आते हुए हमने थोड़ी देर पहले मुख्य मार्ग से दाईं ओर जाता एक मार्ग देखा तो था, जो एक पहाड़ी को काट कर हाल में ही बनाया हुआ लग रहा था ! हालाँकि, ये मार्ग तीव्र ढलान वाला था, जिस समय हम वहाँ से निकल रहे थे तो एक स्कॉर्पियो गाड़ी उस मार्ग से उपर आ रही थी ! तीव्र ढलान के कारण स्कॉर्पियो वाले को खूब ज़ोर लगाना पड़ा था, उस समय तो उस मार्ग पर जाना एक दुस्वप्न जैसा था लेकिन किसे पता था कि हमें भी अब घूमकर वापिस उसी मार्ग से जाना पड़ेगा ! वापिस आने के लिए हम भी पुल के पास से गाड़ी मोड़ने लगे ! जिस निर्माणाधीन पुल की हम बात कर रहे है, वो अश्विनी नाम की एक पहाड़ी नदी पर बना है ! इस समय तो नदी में ज़्यादा पानी नहीं था लेकिन बारिश के दिनों में ये नदी बढ़िया वेग से बहती होगी ! 

इस जगह के बारे में और जानकारी एकत्रित करने पर पता चला कि ये साधुपुल है और अश्विनी नदी पर बना ये पुल एक दुर्घटना में क्षतिग्रस्त हुआ था ! 23 अगस्त 2014 को जब एक ट्रक अपनी क्षमता से अधिक भार लेकर इस पुल से गुजरा, तो ये ढह गया ! अब जब ये नया पुल बनकर तैयार हो जाएगा तो इस मार्ग पर फिर से यातायात सुचारू हो जाएगा ! पुराना पुल एक अस्थाई था जबकि अब सीमेंट के पक्के पुल का निर्माण किया जा रहा है, ये पिछले पुल के मुक़ाबले ज़्यादा मजबूत होगा और इसकी भार वहन क्षमता भी अधिक होगी ! खैर, गाड़ी वापिस मोड़ते हुए हमें इस पहाड़ी नदी के किनारे लगे कुछ टेंट और झोपडियाँ दिखाई दी ! टेंट देखकर हमारे मन में लड्डू फूटने लगे, तीनों सोचने लगे कि यहाँ शाम के समय नदी में पैर डालकर बैठना बड़ा सुखद अनुभव रहेगा ! इतने में मनोज बोला, यार आज शाम को यहीं रुकने का प्रोग्राम बनाते है, चैल पहुँचते-2 ही अंधेरा हो जाएगा और वहाँ पहुँचकर भी हमें होटल ढूँढना पड़ेगा, इससे अच्छा यहीं रुक जाते है ! ये सुनकर मैं देवेन्द्र की ओर मुड़ा और पूछा, हाँ गुरुजी, आपकी क्या राय है ? यहाँ रुकना है या आगे चलने का विचार है ? 

वो बोला, देख लो यार, अगर चैल ज़्यादा दूर नहीं है तो आगे ही चलते है, अगर यहाँ रुकोगे तो भी कोई दिक्कत नहीं है ! मैने घड़ी में समय देखा तो शाम के 5 बज रहे थे, हम कसौली से 53 किलोमीटर दूर आ चुके थे, और यहाँ से चैल अभी भी 15 किलोमीटर दूर था ! जब यहाँ रुकने पर सर्व-सहमति हो गई, तो हम सड़क के किनारे खड़े होकर नीचे देखने लगे ! हमने सोच लिया था कि पहले यहाँ के किराए के बारे में पूछ लेते है, अगर ठीक लगा तो रुक जाएँगे ! सड़क से नीचे खड़े एक लड़के को हमने आवाज़ दी तो वहाँ की देख-रेख करने वाला एक लड़का हमारे पास आ गया ! पूछने पर उसने बताया कि हमारे यहाँ टेंट के अलावा वुडन कॉटेज में रुकने की व्यवस्था भी है, वुडन कॉटेज तो अभी नए बने है, कुछ में तो अभी काम भी चल रहा है ! किराया पूछने पर वो बोला, 3 लोगों के 1500 रुपए दे देना ! 

मैं बोला, यार 1500 रुपए तो बहुत ज़्यादा है, 500 में देना हो तो बता ! उसने मना कर दिया, और वापिस जाने लगा ! उसे जाता हुआ देख, मनोज मेरी ओर देखने लगा, मैं समझ गया कि भाई का यहाँ रुकने का पूरा मन है ! मैने उस लड़के को आवाज़ दी तो वो रुक गया ! मैने कहा, देख भाई शाम हो चुकी है और तेरे यहाँ फिलहाल तो कोई रुकने के लिए आने वाला नहीं है ! हमारा क्या है, हमारे पास तो अपनी गाड़ी है, अगर तेरे यहाँ बात नहीं बनी तो चैल चले जाएँगे ! इस पर वो बोला, सरजी चैल में भी आपको 2000 रुपए से कम में रुकने के लिए कोई होटल नहीं मिलेगा, एक बार चल कर हमारा कॉटेज देख लो, उसके बाद जैसी आपकी मर्ज़ी ! इस पर मैं बोला, देख यार तूने कहा कॉटेज अच्छा है, हमने मान लिया, देखने की ज़रूरत ही नहीं है ! 700 रुपए से ज़्यादा हम नहीं देंगे, अगर तुझे ठीक लगता हो तो बता, वरना कोई बात ही नहीं है ! अंत में कुल मिलाकर 800 में सौदा तय हुआ, फिर उसने एक ऊबड़-खाबड़ रास्ते की ओर इशारा करते हुए कहा कि यहाँ से गाड़ी नीचे उतार लो ! 

ये रास्ता बहुत खराब था, इस पर बड़े-2 पत्थर पड़े थे, थोड़ी देर पहले एक बस इसी मार्ग पर आगे गई थी ! लेकिन बस और कार में बहुत फ़र्क है, मैं मनोज से बोला, यार, गाड़ी को यहीं सड़क के किनारे लगा देते है और पैदल ही चलते है ! नीचे जाने का रास्ता खराब है, गाड़ी ले जाना ठीक नहीं ! वैसे भी मुख्य मार्ग पर पुल टूटा होने के कारण इक्का-दुक्का गाड़ियाँ ही आएँगी, मनोज भी इस बात से सहमत हो गया तो हम गाड़ी को वहीं छोड़कर अपना सामान लेकर नीचे आ गए ! नीचे पहुँचकर देखा तो 2 कॉटेज तो बनकर तैयार हो चुके थे लेकिन 3 कॉटेज अभी भी निर्माणाधीन थे ! हमने अपना सामान एक कॉटेज में रखा और हाथ मुँह धोने के बाद नदी के किनारे चले गए, इस बरसाती नदी में 2 फीट के आस-पास पानी था, लेकिन कुछ जगहों पर पानी थोड़ी ज़्यादा भी था ! नदी के बीच में ही लोगों के बैठने के लिए कुर्सियाँ और मेज लगे हुए थे, ताकि लोग नदी के पानी में पैर डालकर खाने-पीने का आनंद ले सके ! 

नदी की ओर जाते हुए हम चिल्ली-पोटेटो और चाय का ऑर्डर दे गए और फिर नदी में पैर डाल कर बैठे गए, पानी एकदम ठंडा था, इसलिए थोड़ी देर में ही सफ़र की सारी थकान दूर हो गई ! इस नदी में छोटी-2 मछलियाँ भी थी, जो बीच-2 में हमारे पैरों को छूकर निकल रही थी ! हम बैठकर बातें कर रहे थे इतने में ही होटल वाला हमारी चाय और खाने का सामान लेकर आ गया ! पानी में बैठ कर हम चाय की चुस्कियाँ लेने लगे, चाय ख़त्म होने के बाद भी बातों का दौर जारी रहा ! नदी में बैठे हुए जब काफ़ी समय हो गया तो हम सब वहाँ से उठकर नदी की दूसरी ओर चल दिए ! जब हम नदी में पैर डालकर बैठे हुए थे तो अंधेरा होने पर हमें नदी के उस पार बढ़िया रोशनी में सज़ा एक होटल दिखाई दे रहा था ! हमारा मन इस होटल में रात्रि भोजन का था इसलिए नदी से निकलकर हम भोजन करने के लिए ही उस होटल में जा रहे थे ! 10 मिनट की पद यात्रा करके हम सब उस होटल तक पहुँचे, जहाँ पहले से ही काफ़ी लोग बैठे हुए थे, फिर भी जगह की कोई कमी नहीं थी, खूब सारी कुर्सियाँ-मेजें लगी हुई थी ! 

हम भी एक मेज को घेरकर बैठ गए, थोड़ी देर बाद एक वेटर हमारे पास आया और बोला, सर अपना ऑर्डर दे दीजिए ! हमारे खाने का ऑर्डर लेकर वो चला गया, इस बीच हम होटल परिसर में घूमकर आस-पास के नज़ारे देखने लगे ! वाकई, ये शानदार होटल था, यहाँ रुकने की व्यवस्था तो नहीं थी लेकिन खाने-पीने का बढ़िया इंतज़ाम था ! कुछ लोग यहाँ व्यावसायिक दौरे पर भी आए हुए थे, उनकी बातचीत से हमें ये आभास हुआ ! खैर, जगह बढ़िया होगी तो लोग तो कहीं से भी पहुँच ही जाएँगे ! घूमते हुए हम अपने टेबल पर भी नज़र बनाए हुए थे कि अगर कोई वेटर हमारा खाना लेकर आ गया तो हम वापिस चले जाएँगे ! पूरे होटल का एक चक्कर काटकर हम वापिस अपनी टेबल पर आकर बैठ गए, जब यहाँ बैठे-2 भी काफ़ी समय हो गया तो हमारा सब्र जवाब देने लगा ! हमने वेटर को बुलाकर पूछा तो वो बोला, कि आपसे पहले जो ऑर्डर मिले थे, पहले उन्हें निबटा रहे है, आपके ऑर्डर में अभी 10-15 मिनट और लगेंगे ! गुस्सा तो आया लेकिन फिर सोचा जहाँ इतनी देर इंतजार किया वहाँ थोड़ी देर और कर लेते है ! 

थोड़ी देर बाद एक वेटर हमारा खाना लेकर आ गया, खाने का स्वाद बढ़िया था, पेट भरकर खाया ! भोजन करने के बाद हम काफ़ी देर तक वहीं बैठे रहे ! यहाँ से उठे तो आराम करने के लिए अपने कॉटेज की तरफ लौट आए, मौसम साफ होने के कारण आसमान में टिमटिमाते तारे भी दिखाई दे रहे थे ! बातें करते-2 कब नींद आ गई पता ही नहीं चला, रात को जब सोए थे तो मौसम ठीक था लेकिन पहाड़ी इलाक़ा होने के कारण आधी रात के बाद ठंडक बढ़ गई ! मौसम के बदलाव से हमारे लिए परेशानी की कोई बात नहीं थी क्योंकि कॉटेज में कंबल पहले से ही रखे हुए थे ! अगर आप भी साधुपुल आने का विचार बना रहे है तो आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि यहाँ रुकने के लिए बहुत विकल्प मौजूद है ! क्योंकि जिस होटल में हमने रात्रि भोजन किया था उस से थोड़ी दूरी पर ही पक्के पुल के उस पार नदी किनारे कई टेंट-और झोपडियाँ बनी हुई थी ! हम जहाँ रुके थे वो थोड़ा एकांत इलाक़े में था, खाने-पीने का भी यहाँ बढ़िया इंतज़ाम है ! पीक सीजन में किराया थोड़ा बढ़ जाता है लेकिन मोल-भाव करने से बात बन जाएगी ! 


कसौली से चैल जाने का मार्ग

कसौली से चैल जाने का मार्ग

रास्ते में दिखाई देते नज़ारे

साधुपुल से दिखाई देता घाटी का एक दृश्य

साधुपुल से दिखाई देता घाटी का एक दृश्य



नदी से दिखाई देता एक दृश्य

नदी से दिखाई देता एक दृश्य

इसी कॉटेज में हम रुके थे

नदी में बैठने की व्यवस्था

कॉटेज के अंदर का एक दृश्य

प्रात: काल का एक दृश्य


एक सहायक बरसाती नदी आकर मिलती हुई




मंदिर किनारे एक धार्मिक स्थल



घनी झाड़ियों से जाता एक मार्ग

घनी झाड़ियों से जाता एक मार्ग



झाड़ियों में ब्लुबेरी के फल

इस फल का नाम नहीं पता



हमारे कॉटेज के पास एक छोटा झरना
क्यों जाएँ (Why to go Sadhupul): अगर आप साप्ताहिक अवकाश पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर सुकून के कुछ पल पहाड़ों पर बिताना चाहते है तो आप कसौली चैल मार्ग पर स्थित साधुपुल का रुख़ कर सकते है ! यहाँ नदी में पैर डालकर कुछ देर आस-पास के नज़ारों को देखिए, पल भर में आपकी थकान दूर ना हो जाए तो कहना !

कब जाएँ (Best time to go Sadhupul): आप साल के किसी भी महीने में साधुपुल जा सकते है, यहाँ हमेशा बढ़िया मौसम रहता है !

कैसे जाएँ (How to reach Sadhupul): दिल्ली से कसौली की दूरी लगभग 290 किलोमीटर है, और कसौली से साधुपुल की दूरी 53 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन सड़क मार्ग है दिल्ली से कसौली के लिए प्राइवेट बसें और वोल्वो चलती है जबकि आप निजी गाड़ी से भी जा सकते है ! रेल मार्ग से जाना चाहे तो नई दिल्ली से कालका रेलवे स्टेशन जुड़ा है, कालका से आप टॉय ट्रेन की सवारी का आनंद ले सकते है ! टॉय ट्रेन वाले मार्ग पर साधुपुल के सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन कंड़ाघाट है जहाँ से साधुपुल मात्र 13 किलोमीटर दूर है !

कहाँ रुके (Where to stay in Sadhupul): साधुपुल में रुकने के लिए छोटे-बड़े कई होटल है, लेकिन सबसे अच्छा रहेगा नदी के किनारे किसी टेंट में रुकना, यकीन मानिए ये अनुभव आपको उम्र भर याद रहेगा ! टेंट में रुकने के लिए आपको 800 रुपए से लेकर 1500 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है !

क्या देखें (Places to see in Sadhupul): वैसे तो साधुपुल में देखने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं है लेकिन आप नदी के किनारे टहलते हुए प्राकृतिक नज़ारों का आनंद ले सकते है ! यहाँ आते हुए आप कसौली घूमकर आ सकते है या फिर चैल का रुख़ कर सकते है ! इन दोनों ही जगहों पर देखने लायक कई जगहें है !
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

2 Comments

  1. प्रदीप भाई बहुत सुंदर जगह हैै व उतना ही सुंदर यात्रा वर्णन । फोटो बहुत सुंदर आए है क्या नया कैमरा ले लिया?

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    1. धन्यवाद सचिन भाई, अधिकतर फोटो फोन से ली हुई है कैमरा वोही है सोनी एच 300 !

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