सारनाथ का चाइना मंदिर (China Temple, Sarnath)

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मूलगंध कूटी विहार से निकलकर बाईं ओर जाने पर एक चौराहा आता है, चौराहे से सीधे जाने पर सड़क के बाईं ओर ही चाइना मंदिर है ! साड़ी उद्योग देखने के बाद हम एक सहायक मार्ग से होते हुए 5 मिनट का सफ़र तय करके चौराहे पर पहुँचे ! इस चौराहे से 2 मिनट की पद यात्रा करने के बाद ही हम चाइना मंदिर के प्रवेश द्वार के ठीक सामने खड़े थे ! इस मंदिर में पिछले मंदिर की अपेक्षा ज़्यादा लोग थे ! मंदिर के प्रवेश द्वार के किनारे दो विशाल स्तंभ है, इस मंदिर की दीवारें लाल और पीले रंग से रंगी गई है और मंदिर की छत को झोपड़ीनुमा आकृति दी गई है ! जाहिर सी बात है चीनी वास्तुकारों ने इस मंदिर की रूप-रेखा तैयार की होगी ! मंदिर परिसर में प्रवेश करने के बाद एक खुला बरामदा है, जो काफ़ी बड़ा है ! थोड़ी आगे बढ़ने पर एक हाल है जिसमें महात्मा बुद्ध के जीवन से संबंधित बहुत से चित्र और अन्य जानकारियों को प्रदर्शनी की तरह लगाया गया है ! यहाँ एक बड़े चार्ट पर दर्शाया गया है कि पूरे विश्व में महात्मा बुद्ध की विशाल मूर्तियाँ कहाँ-2 पर है ! हालाँकि, इस चार्ट पर धूल तो काफ़ी जम गई है लेकिन बहुत उपयोगी जानकारी दी गई है !
चाइना मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगी सुंदर लाइट
हाल के प्रवेश द्वार पर एक सुंदर लाइट लगी हुई है जिसमें चीनी भाषा में कुछ लिखा हुआ है और चीनी संस्कृति को दर्शाती कुछ आकृतियाँ भी बनी हुई है ! जबकि हाल की बाहरी दीवार पर चक्रनुमा मोखले बने है और ऐसे ही एक मोखले के नीचे इस मंदिर के संस्थापक से संबंधित जानकारी दी गई है ! जानकारी के मुताबिक मंदिर का निर्माण चीन के फुकियन क्षेत्र में रहने वाले ली चुन सेंग ने 1939 में करवाया ! इस जानकारी को यहाँ हाल की बाहरी दीवार पर 3-4 भाषाओं में लिखकर एक फ्रेम में लगाया गया है ! चलिए, इस हाल से थोड़ा आगे बढ़ते है, हाल से निकलकर मैं मुख्य भवन की ओर चल दिया ! हाल से निकलते ही मंदिर का तो जैसे नक्शा ही बदल जाता है, बाहर से देखने पर तो ये साधारण सा मंदिर लग रहा था लेकिन बरामदे को पार करने के बाद तो ऐसा लगा जैसे हम किसी और ही जगह पर आ गए हो ! हाल से मुख्य भवन में जाने वाले मार्ग के बीच एक छोटा सा उद्यान बना है जिसमें खूब पेड़-पौधे लगे हुए है ! 

हालाँकि, ये बगीचा बहुत बड़ा तो नहीं है लेकिन इसमें कई तरह के पेड़-पौधे और जगह-2 कई आकृतियाँ बनी हुई है ! फिर चाहे वो अशोक चक्र हो, चार शेरों की मूर्ति, या अन्य आकृतियाँ, सभी एक से बढ़कर एक थी, जो यहाँ आने वाले हर व्यक्ति को प्रभावित करती है ! महात्मा बुद्ध की प्रतिमाएँ इस बगीचे में भी लगी हुई है, इन आकृतियों को देखने के बाद इन्हें बनाने वालों की तारीफ़ किए बिना नहीं रहा जाता ! वाकई, ऐसी बारीक और सुंदर कारीगरी बहुत मुश्किल से ही देखने को मिलती है ! वैसे इस मंदिर के अलावा मुझे सारनाथ में अन्य कई जगहों पर भी महात्मा बुद्ध, अशोक चक्र और चार शेरो की मूर्ति देखने को मिली ! मंदिर के मुख्य मुख्य भवन के प्रवेश द्वार पर सजावट का सामान लगा है जबकि दीवार पर एक मानचित्र बना हुआ है जिसमें युआन चवांग के भारत आने के मार्ग को दर्शाया गया है ! युआन चवांग एक चीनी बौद्ध भिक्षु था, 13 साल की उम्र में ही उसका झुकाव बौद्ध धर्म की ओर हो गया था और 20 साल का होते-2 वो पूर्ण रूप से बौद्ध भिक्षु बन चुका था !

बौद्ध धर्म से संबंधित जानकारी जुटाने के लिए उसने पूरे चीन का भ्रमण किया, अपने जीवन के एक पड़ाव पर पहुँचकर उसने चीन से भारत का रुख़ किया और यहाँ भी उसने अपने जीवन के 15-16 वर्ष का एक लंबा समय व्यतीत किया, इस दौरान वो भारत के अलग-2 हिस्सों में घूमा ! ऐसे घुमक्कडो के बारे में जानकर बहुत गर्व होता है, बहुत से लोगों के लिए ये प्रेरणादायी होते है ! मैं भी आपको कहाँ से कहाँ ले गया, युआन चवांग को छोड़कर वापिस मंदिर में चलते है जहाँ मैं अब मंदिर के मुख्य हाल में प्रवेश करने ही वाला हूँ ! बगीचे से आगे बढ़कर मैने मुख्य द्वार से होते हुए हाल में प्रवेश किया, जहाँ महात्मा बुद्ध की प्रतिमा लगी हुई है, प्रतिमा के पीछे वाली दीवार को भी बढ़िया से सजाया गया है ! महात्मा बुद्ध की प्रतिमा के आस-पास सजावट का काफ़ी सामान मौजूद था ! यहाँ एक प्रतिमा लाफिंग बुद्धा की भी थी, जिसके अगल-बगल में छोटी-2 कई मूर्तियाँ थी ! कुल मिलाकर इस मंदिर के अंदर की सजावट लाजवाब थी ! 

ये सभी प्रतिमाएँ और सजावट का अन्य सामान एक बड़े चबूतरे पर रखा गया था और चबूतरे के बगल में ही चीनी संस्कृति को दर्शाता साज़-सज्जा का अन्य सामान रखा हुआ था ! जिसमें एक ढोल, एक घंटा, और एक अन्य वाद्य यंत्र रखा हुआ था, इस समय यहाँ मेरे सिवा कोई नहीं था ! मैने भी यहाँ जी भरकर फोटो खींचे, वैसे पता नहीं मुख्य हाल में फोटो खींचने की अनुमति है भी या नहीं ! हालाँकि, अगर ऐसा कुछ होता तो फोटो ना खींचने संबंधित हिदायतें कहीं ना कहीं तो दिखाई दे ही जाती ! मंदिर की दीवारों पर जगह-2 चीनी भाषा में कुछ लिखा हुआ था, अब मुझे तो ये भाषा आती नहीं, अगर आप में से किसी को आती हो तो मुझे भी बताइए कि ये क्या लिखा हुआ था ! ये मंदिर भी बौद्ध धर्म को ही समर्पित है ! चाइना मंदिर घूमने के बाद मैं मंदिर से बाहर निकलकर मुख्य चौराहे की ओर चल दिया ! यहाँ मैने गाइड को उसका मेहनताना दिया और हम दोनों अलग-2 रास्तों पर हो गए ! यहाँ से मैं म्यूज़ीयम की ओर जाने वाले मार्ग पर हो गया जबकि गाइड अपनी नौकरी पर चला गया ! 

इस मार्ग पर सड़क के किनारे क्रमबद्ध तरीके से कई दुकानें सजी हुई थी, इन दुकानों पर सजावट का हर तरह का सामान था, जिसमें बाँस के बने झूमर, जूट के बैग और अन्य कई सामान थे ! म्यूज़ीयम जाते हुए मैं सड़क के किनारे बने एक-दो अन्य मंदिरों में भी गया ! एक अन्य मार्ग धूमेख स्तूप की ओर जा रहा था, दूर से देखने पर लग रहा था जैसे ये मार्ग स्तूप तक खुला हुआ है इसलिए मैं सीढ़ियों से होते हुए इस मार्ग पर चल दिया ! सीढ़ियों से आगे दोनों और दुकानें सजी हुई थी, लेकिन थोड़ी दूर जाकर स्तूप से थोड़ी पहले ये मार्ग भी बंद ही था ! फिर भी मैने यहाँ से भी कुछ फोटो धूमेख स्तूप के ले ही लिए ! थोड़ा समय यहाँ बिताकर मैं वापिस म्यूज़ीयम जाने वाले मार्ग पर चल दिया ! सीढ़ियों से उतरकर मैं वापिस मुख्य मार्ग पर पहुँचा, इस इलाक़े में घूमते हुए लगता ही नहीं है कि आप भारत में कहीं घूम रहे हो ! पूरा इलाक़ा ही जैसे महात्मा बुद्ध को समर्पित है, चारों तरफ बुद्ध ही बुद्ध नज़र आते है !

सड़क के किनारे कुछ खाने-पीने की दुकानें भी थी, एक दुकान पर रुककर मैने दही पी और फिर आगे बढ़ा ! थोड़ी दूर जाकर मैं सड़क किनारे सजी एक और दुकान पर रुका, यहाँ मैने एक मेडिटेशन बाउल देखी ! ये बाउल मेडिटेशन के लिए बड़ी कारगर होती है, दाम पूछा तो 700 रुपए ! दाम सुनकर मैने बाउल वापिस रख दी, जब यही सामान दिल्ली में स्थित तिब्बत मार्केट (मजनू का टीला) में 300-350 का मिल जाएगा तो यहाँ दुगुना दाम क्यों देना ! यहाँ से आगे बढ़ा तो म्यूज़ीयम के प्रवेश द्वार के सामने पहुँच गया, म्यूज़ीयम खुल चुका था लेकिन वहाँ लगे एक बोर्ड पर अंकित जानकारी देखकर मेरा माथा ठनका ! इस जानकारी के अनुसार म्यूज़ीयम में कोई भी सामान या कैमरा ले जाने की अनुमति नहीं थी ! सामान का तो समझ आता है लेकिन बिना कैमरा के अंदर जाने का क्या फ़ायदा ! 

बड़ी असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई, अंदर जाया जाए या ना, अंत में ना जाने का निर्णय लिया ! फिर मैं म्यूज़ीयम के सामने से होता हुआ आगे निकल गया, थोड़ी दूरी पर ही सड़क के दूसरी ओर एक झोपड़ीनुमा इमारत दिखाई दे रही थी, दूर से देखकर मुझे लगा कोई चर्च है ! ये इमारत एक बड़े मैदान के बीचों-बीच थी, प्रवेश द्वार पर भी काफ़ी सुंदर था क्योंकि यहाँ भी झोपड़ी के आकार की ही इमारत बनी हुई थी ! लेकिन प्रवेश द्वार से होते हुए अंदर जाने पर मुझे पता चला ये इमारत चर्च नहीं थी, तो क्या थी ये इमारत ? जानने के लिए अगले लेख की प्रतीक्षा कीजिए !

चाइना मंदिर का प्रवेश द्वार
चाइना मंदिर का प्रवेश द्वार
चाइना मंदिर का प्रवेश द्वार
दीवार पर लगे एक बोर्ड में मंदिर संबंधित जानकारी
हाल से दिखाई देता मुख्य भवन
मुख्य भवन के बाहर लगा एक नक्शा
मुख्य भवन के अंदर का एक दृश्य
मुख्य भवन में बुद्ध की प्रतिमा
मुख्य भवन के अंदर का एक दृश्य
मुख्य भवन में रखे वाद्य यंत्र
मुख्य भवन में रखे वाद्य यंत्र
मुख्य भवन के अंदर का एक दृश्य
मुख्य भवन से दिखाई देता हाल
चाइना मंदिर के उद्यान में बनी आकृति
चाइना मंदिर के उद्यान में बनी आकृति
चाइना मंदिर के उद्यान में बनी आकृति
चाइना मंदिर से म्यूज़ीयम जाते हुए रास्ते में एक मंदिर
सड़क किनारे सजी दुकानें
सड़क किनारे सजी दुकानें
धूमेख स्तूप का एक दृश्य
म्यूज़ीयम के प्रवेश द्वार से एक दृश्य
क्यों जाएँ (Why to go Sarnath): अगर आपकी बौद्ध धर्म में आस्था है या आप बौद्ध धर्म से संबंधित अपना सामान्य ज्ञान बढ़ाना चाहते है तो भारत में सारनाथ से उत्तम शायद ही कोई दूसरी जगह हो ! इसके अलावा वाराणसी में गंगा नदी के किनारे बने घाट, काशी विश्वनाथ का मंदिर, और रामनगर का किला भी देखने के लिए प्रसिद्ध जगहें है ! अगर आप वाराणसी में है तो गंगा नदी के किनारे बने दशावमेघ घाट पर रोज शाम को होने वाली गंगा आरती में ज़रूर शामिल हो !

कब जाएँ (Best time to go Sarnath): आप साल के किसी भी महीने में सारनाथ जा सकते है हर मौसम में यहाँ अलग ही आनंद आता है गर्मी के दिनों में भयंकर गर्मी पड़ती है तो सर्दी भी कड़ाके की रहती है !


कैसे जाएँ (How to reach Sarnath): दिल्ली से सारनाथ जाने के लिए आपको वाराणसी होकर जाना पड़ेगा, वाराणसी दिल्ली से 800 किलोमीटर दूर है, जहाँ जाने के लिए सबसे सस्ता और बढ़िया साधन भारतीय रेल है ! वैसे तो नई दिल्ली से वाराणसी के लिए प्रतिदिन कई ट्रेनें चलती है लेकिन शिवगंगा एक्सप्रेस (12560) इस मार्ग पर चलने वाले सबसे बढ़िया ट्रेन है जो शाम 7 बजे नई दिल्ली से चलकर सुबह 7 बजे वाराणसी उतार देती है ! वाराणसी से सारनाथ जाने के लिए नियमित अंतराल पर ऑटो और बसें चलती रहती है दोनों जगहों के बीच की दूरी महज 10 किलोमीटर है !


कहाँ रुके (Where to stay in Sarnath): सारनाथ में रुकने के लिए कई होटल है लेकिन अगर आप थोड़ी सुख-सुविधाओं वाला होटल चाहते है तो वाराणसी में रुके सकते है ! वाराणसी में 500 रुपए से लेकर 4000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !


क्या देखें (Places to see in Sarnath): सारनाथ घूमते हुए तो ऐसा लगता है जैसे आप एक अलग ही दुनिया में आ गए हो ! हर तरफ महात्मा बुद्ध से संबंधित मंदिर और दर्शनीय स्थल है ! सारनाथ में घूमने के लिए वैसे तो कई जगहें है लेकिन चौखंडी स्तूप, थाई मंदिर, म्यूज़ीयम, अशोक स्तंभ, तिब्बत मंदिर, मूलगंध कूटी विहार, धूमेख स्तूप, बौधि वृक्ष और डियर पार्क प्रमुख है ! 


अगले भाग में जारी...

सारनाथ भ्रमण
  1. दिल्ली से वाराणसी की रेल यात्रा (A train trip to Varanasi from Delhi)
  2. धूमेख स्तूप, बोधिवृक्ष और मूलगंध कूटी विहार (Tourist Attractions in Sarnath, Dhumekh Stoop, and Mulgandh Kuti Vihar Temple) 
  3. सारनाथ का चाइना मंदिर (China Temple in Sarnath)
  4. सारनाथ का थाई मंदिर और चौखंडी स्तूप (Tourist Attractions in Sarnath, Thai Temple and Chaukhandi Stoop)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

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