शनिवार, 16 अक्टूबर 2022
उत्तराखंड की चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव यमुनोत्री धाम है। हिमालय की गोद में बसा यह पवित्र धाम समुद्र तल से लगभग 3,290 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ माँ यमुना का प्राचीन मंदिर है, जहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुँचते हैं। यमुनोत्री धाम के लिए हमारी यह पैदल यात्रा जानकीचट्टी से शुरू हुई। जानकीचट्टी तक आप सड़क मार्ग से निजी वाहन या यातायात के किसी अन्य साधन से पहुँच सकते है लेकिन यहाँ से यमुनोत्री तक का अंतिम 6 किलोमीटर का रास्ता पैदल या घोड़े-खच्चरों तथा पालकी से ही तय करना होता है। शाम को होटल में अपना सामान रखने के बाद टहलते हुए हम जानकीचट्टी पहुंचे, वहीं एक ढाबे पर रात्रि भोजन किया और कुछ समय बिताकर वापिस अपने होटल आराम करने आ गए !
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यमुनोत्री धाम जाते हुए यमुना जी का एक चित्र |
दिनभर सफर की थकान थी तो लेटते ही नींद आ गई, यहाँ रात को सर्दी भी काफी बढ़ गई थी लेकिन गरम बिस्तर थे तो कोई परेशानी नहीं हुई ! सुबह जल्दी सोकर उठे और फटाफट नित्य-क्रम से निबटकर समय से स्नान करके तैयार हो गए । लगभग 6 बजे थे, जब ठंडी हवाओं के बीच सूरज की किरणें पहाड़ों को सुनहरी आभा से रंग रही थीं, तभी हमने अपनी यात्रा का आरंभ किया। हमारे होटल से जानकीचट्टी तक का मार्ग ऊंची चट्टानों के बीच से होकर निकलता था, और ये दूरी लगभग 500 मीटर रही होगी ! जानकीचट्टी एक छोटा-सा कस्बा है, जहाँ से यमुनोत्री की पैदल चढ़ाई शुरू होती है। यहाँ रुकने के लिए छोटे-बड़े सभी तरह के होटल उपलब्ध है और यहाँ श्रद्धालुओं के लिए घोड़े, खच्चर और पालकी जैसी सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं। जो यात्री पैदल यात्रा करने में असमर्थ होते हैं, वे इन साधनों का सहारा लेते हैं। जानकीचट्टी से बर्फ से लदे ऊंचे-2 पहाड़ दिखाई देते है, यहाँ से करीब 300–400 मीटर आगे बढ़ने पर दाईं ओर यमुना नदी पर बना एक पुल आता है। इस पुल को पार करते ही खरसाली गाँव शुरू होता है, जो यमुना जी का शीतकालीन निवास स्थल है। यहाँ माँ यमुना का एक सुंदर मंदिर स्थित है और यह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
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अपने होटल से निकलकर यात्रा की शुरुआत करते हुए |
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इन ऊंचे पहाड़ों के बीच से रास्ता निकलता है |
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यमुनोत्री धाम जाने का पैदल मार्ग यहाँ से शुरू होता है |
देखिए, मैँ भी कहाँ यमुनोत्री की पैदल यात्रा करते-2 आपको खरसाली गाँव लेकर चल पड़ा । आपको जब भी लगे कि मैं यात्रा-वर्णन से भटक रहा हूँ, तो कृपया मुझे याद दिला दीजिए। खैर, खरसाली में स्थित माँ यमुना के मंदिर का विवरण मैं अगले लेख में करूंगा। अभी तो वापस लौटते हैं अपनी यात्रा पर, जहाँ मैं आपको घोड़े, खच्चर और पालकी की व्यवस्था के बारे में बता रहा था। मंदिर तक पहुँचने के लिए घोड़े या खच्चर का एक तरफ का किराया लगभग 1000–1200 रुपए तक होता है। वहीं, पालकी का दोनों ओर का किराया लगभग 4000–6000 रुपए तक रहता है। चूँकि पालकी को चार व्यक्ति अपने कंधों पर उठाकर ले जाते हैं, इसलिए इसका किराया अपेक्षाकृत अधिक होता है। यह किराया यात्रा सीजन, भीड़ और यात्री के वजन के अनुसार थोड़ा-बहुत बदलता रहता है। वैसे पालकी सेवा विशेष रूप से बुजुर्गों और शारीरिक रूप से कमजोर श्रद्धालुओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
यात्रा शुरू किए कुछ ही देर हुई थी कि हम मुख्य सड़क को छोड़कर पैदल मार्ग पर बढ़ चले। यहाँ से धीरे-2 चढ़ाई भी शुरू हो जाती है, इस मार्ग पर चलते ही हमारी दाईं ओर बहती पवित्र यमुना नदी का मधुर कल-कल स्वर वातावरण को संगीत से भरने लगा। कहीं यह नदी गहरी और शांत दिखाई देती है, तो कहीं चट्टानों से टकराकर श्वेत फुहारों के रूप में उछलती है। शुरुआत में रास्ता अपेक्षाकृत चौड़ा है, लेकिन आगे बढ़ने पर यह धीरे-धीरे सँकरा होता जाता है। यात्रियों की सुरक्षा के लिए इस मार्ग के किनारों पर जगह-जगह लोहे की रेलिंग भी लगी हुई है। पैदल मार्ग रिहायशी इलाके से होकर निकलता है जहां दोनों ओर स्थानीय लोगों के निवास स्थान हैं, जिनका जीवन-यापन चारधाम यात्रा से जुड़े कार्यों पर निर्भर रहता हैं। इस गाँव में कुछ घर तो लकड़ी से बने है जो काफी पुराने है और जर्जर हालत में है, लेकिन इनकी बनावट देखने लायक है ! जैसे-2 गाँव से आगे बढ़ते है, बर्फ से लदे कुछ अन्य पहाड़ भी दिखाई देने लगते है, जो इस स्थान की भव्यता में चार-चाँद लगा देते है !
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गाँव से निकलता हुआ पैदल मार्ग |
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पालकी पर यमुनोत्री जाते एक श्रद्धालु |
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गाँव में ऐसे कई पुराने घर थे |
गाँव से निकलते हुए जगह-2 स्थानीय लोग यात्रा पर ले जाने वाली पालकियाँ, पिट्ठू और अपने घोड़े-खच्चरों को सजाने में लगे है ! दर्शन के लिए यमुनोत्री धाम जाने वाले श्रद्धालु इन खच्चरों की बुकिंग पहले ही करा लेते है, सुबह ये लोग अपने घोड़े और पालकियों को सजाकर उन यात्रियों को लेकर मंदिर के लिए प्रस्थान करते है ! जानकीचट्टी से लगभग एक किलोमीटर चलने के बाद इस पैदल मार्ग पर ही एक यात्री विश्राम गृह भी है, जहाँ श्रद्धालु विश्राम करना चाहें तो अग्रिम बुकिंग करके ठहर सकते हैं। यहाँ से यमुनोत्री धाम की दूरी 5 किलोमीटर रह जाती है ! यात्री विश्राम गृह से थोड़ा आगे बढ़ने पर एक भव्य प्रवेश द्वार नज़र आता है, जो इस स्थान की पवित्रता और गरिमा का आभास कराता है। यहाँ इस मार्ग के दाईं ओर माँ यमुना पतली धारा में बहती है लेकिन बारिश के दिनों में नदी का बहाव काफी तेज हो जाता है ! थोड़ा और आगे बढ़ने पर नदी ऊंचे-2 पहाड़ों के बीच से बहती हुई दिखाई देती है ! रास्ता भी पहले के मुकाबले काफी संकरा हो जाता है ! ऊंचे-2 रास्तों से होते हुए हम अपनी चढ़ाई जारी रखते है, बीच-2 में इस पैदल मार्ग पर सीढ़ियाँ भी बनाई गई है !
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रास्ते में पड़ने वाला यात्री विश्राम गृह |
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दूर दिखाई देते बर्फ से ढके पहाड़ |
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यमुनोत्री धाम जाने का मार्ग इस भव्य प्रवेश द्वार से होकर निकलता है |
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बीच-2 में रास्ते में सीढ़ियाँ भी बनी है |
आगे बढ़ने पर मार्ग के ऊपर लटकती चट्टानों के कई हिस्सों से पानी रिसता रहता है। यहाँ से गुजरते समय मन में यह आभास होता है कि न जाने यह चट्टान कब टूटकर गिर पड़े – और यही डर यात्रा को और रोमांचक बना देता है। एक लोहे के पुल को पार करते हुए बाईं ओर लैंडस्लाइड भी दिखाई दी जहां पहाड़ों से चट्टानें खिसककर नीचे आई हुई थी ! यहाँ से भी पानी की एक धार यमुना जी में आकर मिलती है, हालांकि, फिलहाल यहाँ पानी नहीं था लेकिन बारिश आने पर पहाड़ी के ऊपर से बहकर पानी नदी में आता होगा ! पुल के दाईं ओर इस क्षेत्र में यमुना जी विस्तार अपेक्षाकृत थोड़ा ज्यादा था, क्योंकि इस पुल के नीचे से होकर पानी यमुना जी में मिलता है ! इस पुल को पार करने के बाद नीचे नदी तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी है, हम भी नीचे उतरकर नदी की ओर चल पड़े ! 5 मिनट बाद ही हम नदी के बीच पड़ी विशाल चट्टानों पर बैठकर यमुना जी के शीतल जल में मस्ती कर रहे थे ! पानी बर्फ से भी ठंडा था, यहाँ बैठकर कुछ देर प्रकृति के नज़ारों का आनंद लिया और फिर वापिस अपनी यात्रा पर चल दिए !
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यमुना जी की धार यहाँ ज्यादा नहीं थी |
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दूर से लिया अपने साथियों का एक चित्र |
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यहाँ पानी का बहाव काफी तेज था |
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अभी काफी सफर बचा है |
घुमावदार रास्तों से होते हुए घंटे भर का सफर करके लगभग 9 बजे हम भैरव जी के मंदिर पहुंचे ! यहाँ से यमुनोत्री की दूरी डेढ़ किलोमीटर रह जाती है ! स्थानीय मान्यताओं के अनुसार यात्रा के रक्षक माने जाने वाले भैरव बाबा के दर्शन किए बिना यमुनोत्री धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। श्रद्धालु यहाँ रुककर माथा टेकते हैं और सुरक्षित यात्रा की प्रार्थना करते हैं। जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती गई, वैसे-वैसे रास्ते के दृश्य और भी सुंदर होते गए। एक ओर बर्फ से ढकी पर्वत चोटियाँ, दूसरी ओर नीचे गहरी घाटी और बीच में बहती यमुना नदी का दृश्य देखने लायक है । यात्रा के दौरान रास्ते में पालकियों, पिट्ठू और घोड़े-खच्चरों पर बैठकर मंदिर जाते हुए कई श्रद्धालु मिले ! इस बीच पैदल मार्ग के किनारे जगह-2 खाने-पीने की छोटी-2 दुकानें भी थी जहां चाय, बिस्कुट, नीबू पानी और खान-पान के अन्य सामान उपलब्ध थे ! मंदिर से एक किलोमीटर पहले यात्रियों के बैठने के लिए बैंच भी लगाए गए है ! 500 मीटर दूर से मंदिर दिखाई देने लगता है और नीचे घाटी में बहती नदी भी एक पतली सफेद धार ही प्रतीत होती है !
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रास्ते में बना एक लोहे का पुल |
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रास्ते में स्थित भैरव जी का मंदिर |
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कई जगह पुल की हालत जर्जर हो गई है |
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पिट्ठू पर बैठकर जाती एक महिला श्रद्धालु |
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रास्ते में ऐसे नज़ारे दिखना आम है |
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पैदल मार्ग पर घोड़े-खच्चर भी खूब मिलते है |
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यमुनोत्री मार्ग पर श्रद्धालुओं के लिए बना विश्राम स्थल |
मंदिर से 200 मीटर पहले ही मार्ग के दोनों ओर कतार में दुकानें सजी है जहां मंदिर में चढ़ाने के लिए प्रसाद से लेकर, माता के श्रंगार का सामान, बच्चों के खिलौने, भोजन और मिठाइयां भी दुकानों के बाहर थाल में रखकर सजाए गए है ! लोग मंदिर से दर्शन के बाद वापिस आकर यहाँ पेट पूजा करते है और घरों के लिए प्रसाद स्वरूप कुछ सामान और अन्य भेंट ले जाते है ! लगभग साढ़े नौ बजे हम मंदिर प्रांगण में पहुंचे ! दर्शन के लिए जाने से पहले श्रद्धालु मंदिर परिसर में बने गर्म पानी के कुंडों में स्नान करते हैं। स्त्री-पुरुषों के लिए अलग-2 गरम पानी के कुंड बने है जिसमें स्नान करके सारे सफर की थकान पलभर में दूर हो जाती है ! गौरीकुंड में श्रद्धालु स्नान करते है जानकी सूर्यकुण्ड में लोग प्रसाद में मिलने वाले कच्चे चावल की पोटली को डालकर पकाते है और फिर उसे ग्रहण करते है ! प्राप्त जानकारी के अनुसार यमुनोत्री मंदिर का निर्माण गढ़वाल नरेश प्रताप शाह ने 19वीं शताब्दी में कराया था। यहाँ माँ यमुना की काले रंग की प्रतिमा विराजमान है, जो शक्ति और संयम की प्रतीक मानी जाती है।
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दूर से दिखाई देता यमुनोत्री धाम |
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मंदिर के पास स्थित दुकानों पर सजी मिठाइयां |
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यहाँ भी यमुना जी की धार ज्यादा तेज नहीं है |
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मुख्य मार्ग से मंदिर आने के लिए यमुना जी पर बना एक पुल |
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यमुना जी मंदिर परिसर में बना स्नान कुंड |
मंदिर के समीप एक गुफा में ऋषि आत्रि की पत्नी अनुसूया की तपस्थली भी मानी जाती है। यात्रा सीजन के मुकाबले फिलहाल यहाँ ज्यादा भीड़ नहीं थी इसलिए हमें दर्शन करने में अधिक समय नहीं लगा। सुना है कि यात्रा सीजन में तो यहाँ घंटों लाइन में लगने के बाद दर्शन होते है ! मंदिर में फोटोग्राफी प्रतिबंधित है तो आपको दर्शन करने के लिए स्वयं यहाँ आना होगा ! मंदिर में दर्शन के बाद हम परिसर में ही एक खाली जगह देखकर बैठ गए, इस बीच एक अन्य मंदिर से आई माता की डोली यहाँ यमुनोत्री धाम में पहुंची, डोली को कंधों पर उठाए श्रद्धालुओं का जोश देखते ही बनता है जो इस डोली के साथ आए ढोल की थाप पर कदम-ताल मिलाते हुए चलते रहते है ! हमने भी माता की इस डोली के मंदिर आगमन पर इस कार्यक्रम का भरपूर आनंद लिया ! 2 घंटे मंदिर में बिताने के बाद हमने भी वापसी की राह पकड़ी, वापिस आते हुए मंदिर के पास ही जलपान की एक दुकान पर रुककर हल्का-फुल्का नाश्ता किया !
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माँ यमुना के दर्शन कर लीजिए |
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विजय और मैँ |
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यमुनोत्री धाम में एक अन्य मंदिर से आई डोली का स्वागत करते लोग |
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देवेन्द्र, मैँ और पिताजी |
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वापिस आते हुए मार्ग कुछ ऐसा दिखाई देता है |
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इन्हीं पालकियों में बैठकर कुछ श्रद्धालु मंदिर तक जाते है |
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यमुनोत्री से वापिस आते हुए घुमावदार मार्ग |
हालांकि, ढलान होने के कारण वापसी का सफर ज्यादा मुश्किल नहीं था, लेकिन पहाड़ी से नीचे उतरते हुए घुटनों पर दबाव ज़्यादा महसूस होता है। वापसी में भी खूबसूरत नज़ारों की कोई कमी नहीं है क्योंकि जैसे-2 नीचे उतरते जाते है, दूर से दिखाई देते गाँव और घाटी में बहती नदी काफी सुंदर लगती है ! लगभग 2 घंटे का सफर करके 2 बजे तक हम वापिस जानकीचट्टी पहुँच गए, यहाँ पहुंचते ही फिर से एक-2 चाय की प्याली के साथ बैठकर यात्रा के अपने अनुभव पर चर्चा करते हुए अपने आगे के सफर की योजना भी बनाई ! कुल मिलाकर यमुनोत्री धाम की यह यात्रा केवल एक धार्मिक आस्था नहीं है, बल्कि आत्मिक शांति और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम भी है। यमुना जी की निर्मल धारा के साथ चलते हुए ऐसा लगता है मानो पूरा वातावरण हमें पवित्रता और ऊर्जा से भर रहा हो।
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दोपहर में कुछ इस तरह के नज़ारे दिखाई देते है |
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वापिस आते हुए दूर से दिखाई देता जानकीचट्टी |
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दिन में तो आसमान साफ दिखाई दे रहा है |
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रास्ते में लिया एक अन्य चित्र |
सुबह 6:15 बजे जानकीचट्टी से शुरू हुई हमारी यात्रा हमें 10 बजे यमुनोत्री धाम तक ले गई। रास्ते में भैरव मंदिर, झरनों से भीगे रास्ते, यमुना जी की अनुपम छटा और अंत में यमुनोत्री मंदिर का दिव्य दर्शन – हर क्षण अविस्मरणीय रहा। यात्रा चाहे पैदल हो, घोड़े-खच्चर से या पालकी से – हर यात्री यहाँ पहुँचकर केवल एक ही अनुभव करता है और माँ यमुना की कृपा से यह यात्रा जीवन भर की सबसे पवित्र स्मृति बन जाती है।
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रास्ते से दिखाई देती बर्फ से लदी पहाड़ियाँ |
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यात्रा मार्ग से दिखाई देता खरसाली का बस स्टैंड |
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जानकीचट्टी से लिया एक चित्र |
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जानकीचट्टी में दूरी दर्शाता एक बोर्ड |
क्यों जाएँ (Why to go): अगर आपको धार्मिक यात्राएं करना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर आपको उत्तराखंड के चार-धाम की यात्रा पर जरूर जाना चाहिए ! इन धार्मिक स्थलों की यात्रा करके आपको मानसिक शांति और सुख की अनुभूति होगी !
कब जाएँ (Best time to go): वैसे तो आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में यहाँ अलग ही नजारा दिखाई देता है ! लेकिन चार-धाम यात्रा के दौरान इस मार्ग पर भीड़-भाड़ ज्यादा रहती है, इसलिए सितंबर से नवंबर का महीना यहाँ आने के लिए उपयुक्त है तब चार-धाम यात्रा तो जारी रहती है लेकिन मई-जून के मुकाबले ज्यादा भीड़ नहीं रहती !
कैसे जाएँ (How to reach): हरिद्वार या देहरादून आने के लिए आपको देश के अलग-2 हिस्सों से ट्रेन मिल जाएगी ! यहाँ से आगे का सफर करने के लिए आपको उत्तराखंड परिवहन के अलावा निजी बसें भी मिल जाएगी ! आप इस सफर के लिए टैक्सी भी बुक कर सकते है या निजी वाहन से भी ये यात्रा की जा सकती है, निश्चित तौर पर आपको ये यात्रा जीवन भर याद रहेगी !
कहाँ रुके (Where to stay): इस सफर पर आपको यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले हर शहर या कस्बे के आस-पास रुकने के लिए ढेरों विकल्प मिल जाएंगे ! यात्रा सीजन के हिसाब से होटलों का किराया बढ़ता-घटता रहता है, आपको यहाँ 500 रुपए से लेकर 3000 रुपए तक के होटल भी मिल जाएंगे ! आप अपने बजट के हिसाब से किसी भी होटल का चयन कर सकते है !
क्या देखें (Places to see): चार धाम की यात्रा करते हुए आप रास्ते में की धार्मिक स्थल और छोटे-बड़े मंदिरों के दर्शन कर सकते है !
अगले भाग में जारी...
चार धाम यात्रा - यमुनोत्री