शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2022
उत्तराखंड की वादियों का सफर हमेशा से ही एक अनोखा अनुभव देता है। घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर आगे बढ़ते हुए, कभी गहरी घाटियों में झाँकते हुए तो कभी बर्फ से ढके शिखरों को निहारते हुए – हर मोड़ जैसे एक नई कहानी सुनाता है। यहाँ की हर घाटी, हर मोड़ अपने भीतर न जाने कितनी कहानियाँ समेटे हुए है। इस बार हमारा सफर था लाखामंडल से जानकीचट्टी तक का। यही वह मार्ग है जो आगे चलकर हमें यमुनोत्री धाम तक पहुँचाता है।लाखामण्डल महाभारत काल से जुड़ा हुआ पौराणिक स्थल माना जाता है। कहते हैं कि यहीं कौरवों ने पांडवों को लाक्षागृह में जलाने की योजना बनाई थी। गुफाएँ, मंदिर और पुरानी मूर्तियाँ इस जगह को रहस्यमय और धार्मिक आभा से भर देती हैं।
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बड़कोट से यमुनोत्री जाते हुए |
लाखामंडल के पौराणिक शिव मंदिर में दर्शन कर लौटने के साथ ही हमने अपनी कार का रुख यमुनोत्री मार्ग की ओर मोड़ा। हमें फिर से यमुना नदी पर बना पुराना लोहे का पुल पार करना पड़ा। इस पुल को पार करते हुए नीचे बहती नदी की कलकल ध्वनि और ऊपर उठते पर्वत हमें रोमांचित कर रहे थे। पुल पार करते ही सड़क धीरे-धीरे पहाड़ी रास्तों की ओर बढ़ने लगी। यहाँ से हमारी असली यात्रा शुरू होती है, जो हमें घुमावदार घाटियों से होते हुए जानकीचट्टी तक ले जाने वाली थी। यात्रा लंबी थी और लाखामंडल में तो हमें भोजन मिला नहीं, लेकिन सबको तेज भूख लागि थी ! इसलिए जब पुल से आगे बढ़ते ही हमें सड़क किनारे एक छोटा सा होटल दिखा तो गाड़ी रोक दी । पहाड़ी होटलों के खाने का स्वाद ही अलग होता है। साधारण दाल-चावल, सब्ज़ी और रोटी भी इतनी स्वादिष्ट लगती है कि शहर के बड़े रेस्तराँ का स्वाद भूल जाएँ। खिड़की से बाहर झाँकते ही सामने फैली हरी-भरी घाटियाँ और दूर-दूर तक बिखरे गाँव के घर दिखाई दे रहे थे। मन ने सोचा—यही असली जिंदगी है, जहाँ प्रकृति के साथ जीने का सुख है। |
लाखामंडल में यमुना जी पर बना पुल |
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पुल पार करते समय |
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नौगाँव जाते हुए रास्ते का एक नज़ारे |
भोजन करने के बाद हम आगे बढ़े और नौगाँव पहुँचे। यह छोटा-सा कस्बा यमुनोत्री मार्ग का प्रमुख पड़ाव है। यहीं से एक रास्ता पुरोला होते हुए मोरी की ओर निकलता है। यह वही मार्ग है जो प्रसिद्ध हर-की-दून ट्रेक तक जाता है। एक बार तो मन हुआ कि यमुनोत्री छोड़कर सीधा उस ओर निकल जाएँ। लेकिन हमारा लक्ष्य स्पष्ट था—आज हमें हर हाल में जानकीचट्टी पहुँचना था। नौगाँव से यमुनोत्री अब भी लगभग 57 किलोमीटर दूर था और बरकोट मात्र 10 किलोमीटर।सड़क अब और भी घुमावदार होने लगी, बीच-बीच में कुछ जगह हमें भूस्खलन (landslide) के निशान भी मिले। सड़क पर मिट्टी और पत्थर बिखरे थे, लेकिन सौभाग्य से रास्ता खुला था। लगभग साढ़े तीन बजे तक हम बरकोट पहुँच गए। मौसम साफ था, आसमान नीला और धूप खिली हुई। चारों ओर की हरियाली ऐसी थी कि सफर की थकान जैसे पलभर में गायब हो गई। पहाड़ों की ढलानों पर बसे छोटे-छोटे घर मोतियों की तरह चमक रहे थे। बरकोट दरअसल यमुनोत्री यात्रा का प्रमुख पड़ाव है, इसलिए यहाँ पर यात्रियों की हलचल भी दिखाई दे रही थी।
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नौगाँव जाते हुए एक नजारा |
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आसमान कितना साफ दिखाई दे रहा है |
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नौगाँव तिराहे पर लिया एक चित्र |
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कितने विशाल पहाड़ दिखाई दे रहे है |
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नौगाँव से बड़कोट जाते हुए एक दृश्य |
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घाटी के बीच से बहकर आती यमुना जी |
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बड़कोट से एक किलोमीटर पहले |
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बड़कोट से निकलते हुए लिया एक चित्र |
बरकोट से निकले तो रास्ता और रोमांचक हो गया। कहीं गहरी घाटियाँ, कहीं ऊँचे देवदार के पेड़ और कहीं पहाड़ी खेत – हर दृश्य मन को भा रहा था। घुमावदार मोड़ों से गुजरते हुए हम आगे बढ़ने लगे, इस बीच हमें यमुना नदी पर बने एक पुल से होकर उस पार जाना पड़ा। यह दृश्य इतना मोहक था कि गाड़ी रोककर तस्वीर लेने का मन कर गया। सफर का यह हिस्सा बेहद रोचक था। सूरज और पहाड़ों के बीच आँख-मिचौली चल रही थी। कभी सूरज किसी पहाड़ी के पीछे छिप जाता और ठंडी हवा हमें कंपकंपा देती, तो अगले ही मोड़ पर सूरज की सुनहरी किरणें हमारी कार को गर्माहट से भर देतीं। यह खेल पूरे रास्ते चलता रहा और हमारी यात्रा को और यादगार बना गया। लगभग एक घंटे में हम स्यानचट्टी पहुँच गए। इस बीच कई बार यमुना नदी हमारे साथ-साथ बहती रही।
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रास्ते में एक जगह लैंडस्लाइड |
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यमुनोत्री जाते हुए खूबसूरत नज़ारे |
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यहाँ रास्ता अच्छा था |
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यमुना नदी का पुल पार करते हुए एक गाड़ी |
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सड़क निर्माण का काम जारी था
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रास्ता बनाने के लिए काटे गए पहाड़ |
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कोई कस्बा आने वाला है |
स्यानचट्टी के बाद सफर की असली परीक्षा शुरू हुई। यहाँ से सड़क की चौड़ाई अचानक आधी हो गई और चढ़ाई भी तेज़। कार को पहले-दूसरे गियर में डालकर चलाना पड़ा। कई जगहों पर जब सामने से बस या जीप आ जाती, तो गाड़ी को पीछे लेना पड़ता। तीखे मोड़ों पर तो हालात और चुनौतीपूर्ण हो जाते, ड्राइवर की सूझबूझ और अनुभव यहाँ सबसे काम आता है। इस बीच दिल में थोड़ा डर भी था, लेकिन पहाड़ों के सफर की यही तो खूबी है—रोमांच और सुंदरता दोनों साथ-साथ मिलते हैं। धीरे-धीरे हम आगे बढ़े और जल्द ही रानाचट्टी पहुँचे। यह जगह छोटी जरूर है पर यात्रियों के लिए चाय-नाश्ते की दुकानें मिल जाती है। थोड़ा आगे जाने पर हम पहुँचे हनुमानचट्टी। यह यमुनोत्री यात्रा का एक प्रसिद्ध पड़ाव है। यहाँ से कई ट्रेकिंग मार्ग भी निकलते हैं। गुलाबी काँठा और डोडीताल ट्रेक की शुरुआत हनुमान चट्टी से होती है ! यह जगह श्रद्धालुओं और ट्रेकर्स दोनों के लिए खास महत्व रखती है। छोटे-छोटे ढाबे, दुकानें और यात्रियों की भीड़ यहाँ का नजारा बदल देती है। ठंडी हवा में गर्म चाय की चुस्की लेना यहाँ का अपना अलग ही आनंद है।
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पहाड़ों की सूरज संग आँख मिचौली |
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सफर में रोमांच में कोई कमी नहीं आई |
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बीच-2 में कच्चे रास्ते भी मिले |
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इतना ऊंचा पहाड़ |
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स्यानचट्टी पहुँचने वाले है |
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घाटी के बीच से बहती यमुना नदी |
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यहाँ बादल उमड़ने लगे थे |
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यहाँ कुछ देर विश्राम के लिए रुके थे |
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थोड़ा सफर ही बाकी है |

आगे बढ़ते हुए हम कृष्णा चट्टी पहुँचे। जैसे-जैसे हम ऊँचाई की ओर बढ़ रहे थे, वैसे-वैसे मौसम और ठंडा होता जा रहा था। सड़क अब और सँकरी हो गई थी और मोड़ और तीखे। फिर भी कार ने हमें धीरे-धीरे आगे बढ़ाया और आखिरकार शाम लगभग 6 बजे हम अपने गंतव्य जानकीचट्टी पहुँच गए। यह जगह यमुनोत्री यात्रा का अंतिम पड़ाव है, यहाँ से लगभग 5-6 किलोमीटर की पैदल यात्रा (या खच्चर/पालकी से) करके यात्री यमुनोत्री मंदिर तक पहुँचते हैं। हमने तय किया कि मंदिर की चढ़ाई अगले दिन सुबह करेंगे। इसलिए जानकीचट्टी में ही एक छोटा-सा होटल लेकर रुक गए। जानकीचट्टी समुद्र तल से काफ़ी ऊँचाई पर स्थित है और यहाँ का मौसम अचानक बदल जाता है, यहाँ का मौसम काफी ठंडा था। हम आस पास घूमते हुए बर्फ से आच्छादित पर्वतों का नज़ारा देखने लगे। सूरज की अंतिम किरणें बर्फीली चोटियों पर सुनहरी आभा बिखेर रही थीं – यह दृश्य किसी स्वप्न से कम नहीं था। ठंडी हवा के बीच खड़े होकर उन पर्वतों को निहारना एक अद्भुत अनुभव था। दूर-दूर तक बसा सन्नाटा, बीच-बीच में पक्षियों की आवाज़ और घाटियों में बहती यमुना की गूँज – यह सब मिलकर यात्रा के हर क्षण को यादगार बना रहे थे। |
हनुमान चट्टी से थोड़ा आगे |
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जानकी चट्टी पहुँचने ही वाले है |
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अपने होटल के सामने लिया एक चित्र |
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अपने होटल के सामने लिया एक चित्र |
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ये रास्ता आगे यमुनोत्री ट्रेक मार्ग की ओर जाता है |
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इसी होटल में रात्रि विश्राम के लिए रुके थे |
लाखामंडल से जानकीचट्टी तक का यह सफर केवल सड़क यात्रा नहीं था, बल्कि यह रोमांच, भक्ति और प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ अनुभव था। रास्ते में छोटे कस्बे, घुमावदार पहाड़ी मार्ग, नदी के पुल, हरियाली, सूरज और बादलों की आँख-मिचौली – हर एक पड़ाव ने यात्रा में नया रंग भरा। जब शाम ढले हम जानकीचट्टी पहुँचे तो लगा मानो हम किसी और ही दुनिया में आ गए हों। यह वही जगह है जहाँ से असली अध्यात्मिक यात्रा – यमुनोत्री की चढ़ाई – शुरू होती है। इस सफर ने हमें सिखाया कि पहाड़ों में यात्रा सिर्फ़ मंज़िल तक पहुँचने के लिए नहीं होती, बल्कि हर मोड़, हर घाटी और हर दृश्य का आनंद लेने के लिए होती है।
क्यों जाएँ (Why to go): अगर आपको धार्मिक यात्राएं करना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर आपको उत्तराखंड के चार-धाम की यात्रा पर जरूर जाना चाहिए ! इन धार्मिक स्थलों की यात्रा करके आपको मानसिक शांति और सुख की अनुभूति होगी !
कब जाएँ (Best time to go): वैसे तो आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में यहाँ अलग ही नजारा दिखाई देता है ! लेकिन चार-धाम यात्रा के दौरान इस मार्ग पर भीड़-भाड़ ज्यादा रहती है, इसलिए सितंबर से नवंबर का महीना यहाँ आने के लिए उपयुक्त है तब चार-धाम यात्रा तो जारी रहती है लेकिन मई-जून के मुकाबले ज्यादा भीड़ नहीं रहती !
कैसे जाएँ (How to reach): हरिद्वार या देहरादून आने के लिए आपको देश के अलग-2 हिस्सों से ट्रेन मिल जाएगी ! यहाँ से आगे का सफर करने के लिए आपको उत्तराखंड परिवहन के अलावा निजी बसें भी मिल जाएगी ! आप इस सफर के लिए टैक्सी भी बुक कर सकते है या निजी वाहन से भी ये यात्रा की जा सकती है, निश्चित तौर पर आपको ये यात्रा जीवन भर याद रहेगी !
कहाँ रुके (Where to stay): इस सफर पर आपको यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले हर शहर या कस्बे के आस-पास रुकने के लिए ढेरों विकल्प मिल जाएंगे ! यात्रा सीजन के हिसाब से होटलों का किराया बढ़ता-घटता रहता है, आपको यहाँ 500 रुपए से लेकर 3000 रुपए तक के होटल भी मिल जाएंगे ! आप अपने बजट के हिसाब से किसी भी होटल का चयन कर सकते है !
क्या देखें (Places to see): चार धाम की यात्रा करते हुए आप रास्ते में की धार्मिक स्थल और छोटे-बड़े मंदिरों के दर्शन कर सकते है !
अगले भाग में जारी...
चार धाम यात्रा - यमुनोत्री