मसूरी में केंप्टी फॉल है पिकनिक के लिए एक उत्तम स्थान (A Perfect Place for Picnic in Mussoorie – Kempty Fall)

सोमवार, 22 अगस्त 2011

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आज 22 अगस्त है और इस सफ़र का हमारा अंतिम दिन भी, मस्ती भरे 3-4 दिन कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला ! किसी भी सफ़र का अंतिम दिन मुझे बड़ा ही दुखदायी लगता है, आप कहीं भी घूमने गए हों, वापसी के समय मन उदास हो ही जाता है ! मेरी मनोदशा भी कुछ ऐसी ही थी, वापसी का मन तो नहीं हो रहा था, पर अपनी आजीविका के लिए आख़िरकार काम करना भी तो ज़रूरी है ! फिर ये भी सोचा कि इस यात्रा से वापस जाएँगे, तभी तो आगे किसी दूसरी यात्रा पर जाने का विचार बनेगा ! हमेशा की तरह सुबह बिस्तर से उठने के बाद सभी लोग नित्य क्रम में लग गए, फिर भी नहा-धोकर तैयार होते-2 हमें 9 बज गए ! नाश्ते में आलू के पराठे खाने का मन हो रहा था इसलिए अपने होटल के बैरे को बुलाकर हमने आलू के पराठे बनाने के लिए कह दिया ! जब तक हम लोग नहा-धोकर तैयार हुए, हमारा नाश्ता भी तैयार था ! अपना सारा सामान वापस अपने-2 बैग में रखने के बाद हम लोग नाश्ता करने के लिए होटल के हॉल में आकर बैठ गए !
mussoorie road
On the way to Company Garden, Mussoorie
यहाँ के आलू के पराठे ठीक-ठाक ही थे, नाश्ता ख़त्म करते-2 साढ़े नौ बज गए ! नाश्ता करने के बाद हमने होटल वाले को बकाया राशि का भुगतान किया और अपनी गाड़ी लेकर मसूरी से विदा लेते हुए केंप्टी फॉल की ओर चल दिए ! मसूरी से बाहर निकलते हुए रास्ते में घना कोहरा था, सुबह के 10 बजने वाले थे पर कोहरे की वजह से रास्ता भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था! रास्ते में कंपनी गार्डन नाम का एक बगीचा पड़ता है जो यहाँ आने वाले यात्रियों के लिए एक आकर्षण का केंद्र भी है ! इस बगीचे को लोग अंकल गार्डन के नाम से भी जानते है, बगीचे की हरियाली देख कर हमारा भी मोहभंग हो गया और हमने सोचा जाते-2 कंपनी गार्डन भी घूम ही लेते है ! जब हम लोग इस बगीचे में पहुँचे तो यहाँ गिनती के ही लोग थे, पर दिन चढ़ने के साथ यहाँ लोगों की तादात भी बढ़ती गई ! ये बगीचा यहाँ मौजूद विभिन्न परकार के पेड़-पौधों के लिए प्रसिद्ध है, सैकड़ों प्रकार के फूलों की प्रजातियाँ यहाँ मौजूद है ! आप यहाँ से अपनी सहूलियत अनुसार वाजिब दाम में पौधे खरीद कर अपने साथ ले भी जा सकते है ! 

हमने पहले तो पूरे बगीचे का एक चक्कर लगाया, और फिर वहीं फव्वारों के पास बैठ कर प्रकति के नज़ारों का आनंद लेने लगे ! थोड़ी देर बाद जब हमने अपने आस-पास देखा तो जयंत कहीं दिखाई नहीं दे रहा था, हम समझ गए कि फिर से इसका प्रकृति-प्रेम जाग गया होगा, और ये कहीं फूल-पत्तियों को अपने कैमरें में क़ैद कर रहा होगा ! हमारी सोच के अनुसार बाद में ये हमें अपना कैमरा लेकर मिला भी फूल-पत्तियों के बीच ही ! हम जब इस बगीचे में आए थे तो 10 बजकर 30 मिनट हो रहे थे, और यहाँ घूमते हुए कब डेढ़ घंटे बीत गए पता ही नहीं चला ! अब यहाँ से निकल कर केंप्टी फॉल जाने की बारी थी, पर हमने इस बगीचे में मौजूद “कॉपर ग्रिल” नामक रेस्टोरेंट को देख कर सोचा कि क्यों ना पेट पूजा कर के ही आगे बढ़ा जाए ! इसी बहाने यहाँ के खाने का स्वाद भी पता चल जाएगा और रास्ते में दोबारा खाने के लिए कहीं रुकना भी नहीं पड़ेगा ! वैसे भी 12 बज रहे थे और दोपहर के भोजन का समय होने लगा था, टहलते हुए हम लोग इस रेस्टोरेंट में जाकर बैठ गए !

टेबल पर रखी मेनू में से देखकर अपने खाने का ऑर्डर दे दिया और यात्रा से संबंधित चर्चा करने लगे ! हम लोग बैठ कर बातें कर रहे थे कि तभी 10-15 मिनट बाद हमें खाना परोस दिया गया जोकि बहुत ही स्वादिष्ट था ! पहाड़ों पर घूमते हुए ऐसे बड़े होटलों में तो ऐसा स्वाद कभी-2 ही नसीब होता है, यहाँ का खाना ज़्यादा महँगा भी नहीं था ! आगे का सफ़र बहुत लंबा था इसलिए हमने पेट भरकर खाना खा लिया, क्या पता आगे कहाँ खाना नसीब हो ! खाना खाने के बाद बिल चुकाकर हम सब अपनी गाड़ी में सवार होकर केंप्टी फॉल के लिए रवाना हो गए ! आपको यहाँ एक बात बताना चाहूँगा, कि कंपनी गार्डन पिकनिक के लिए बहुत बढ़िया विकल्प है, यहाँ शांति है, हरियाली है, पेड़-पौधे है, और खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था भी है ! अगर आप पेड़-पौधों से प्यार करते है तो यहाँ आकर निश्चित तौर पर निराश नहीं होंगे, अपितु आप अपने आपको प्रकृति के नज़दीक ही पाएँगे ! यहाँ से आगे बढ़ने पर हम लोग थोड़ी देर की यात्रा करके केंप्टी फॉल पहुँच गए ! 

केंप्टी फॉल कहने को तो एक प्राकृतिक झरना है पर अब ये प्राकृतिक कम और बनावटी ज़्यादा लगता है, जिसका मुख्य कारण है झरने के आस-पास का व्यापारीकरण, जोकि इतना बढ़ गया है कि झरने की सुंदरता कहीं खो सी गई है ! झरने से 300 मीटर पहले सड़क के किनारे गाड़ी खड़ी करके हम लोग सीढ़ियाँ उतरकर इस झरने तक पहुँचे, झरने में नहाने का मन तो था, पर वहाँ लगी भीड़ देख कर अपने मन को मना लिया और झरने के चारों तरफ घूमते हुए आस-पास की फोटो खींचने लगे ! जहाँ ये झरना गिरता है उसके चारों ओर लोगों की सहूलियत के लिए एक बड़ा सा कुंड बना दिया गया है ताकि लोग झरने के पानी में नहाने का आनंद ले सके ! झरने के बगल में मनोरंजन के कुछ अन्य साधन भी है जहाँ आप परिवार संग कुछ समय बिता सकते है ! झरने के पास थोड़ी देर समय बिताने के बाद हम लोग वापस अपनी गाड़ी की ओर चल दिए ! 

आपकी जानकारी के लिए बताना चाहूँगा कि झरने तक जाने वाली सीढ़ियों के दोनों ओर दुकानें है, जहाँ से आप अपने साथ ले जाने के लिए सजावट या फिर अपनी ज़रूरत के अनुसार अन्य दूसरे सामान की खरीददारी कर सकते है ! वापस आने के बाद हम लोग 2-3 किलोमीटर ही चले होंगे कि यातायात पुलिस ने हाथ से इशारा करके गाड़ी रोकने का संकेत दिया ! सड़क के किनारे खड़ी गाड़ियों को देख कर ही हमें अंदाज़ा हो गया था कि यातायात पुलिस वाले गाड़ी के काग़ज़ों की चेकिंग कर रहे है ! जयंत और जीतू गाड़ी के ज़रूरी कागजात लेकर पुलिस वाले के पास गए ! जितनी देर में एक पुलिसकर्मी ने गाड़ी के काग़ज़ देखे उतनी देर में एक अन्य पुलिसकर्मी आकर हमारे सामान की तलाशी लेने लगा कि कहीं हम अपने साथ कोई अवैध सामान तो नहीं ले जा रहे ! हमारे सामान में तो उन्हें कुछ नहीं मिला और गाड़ी के काग़ज़ भी पूरे थे, पर प्रदूषण प्रमाण पत्र ना होने के कारण हमें 300 रुपए का ज़ुर्माना भरना पड़ा ! 

हालाँकि, ये जुर्माना और ज़्यादा भी हो सकता था, अगर हम ये कहकर अपना बचाव ना करते कि हम सब विद्यार्थी है, और परीक्षा के बाद अपनी छुट्टियाँ बिताने यहाँ आए है ! खैर, यहाँ से आगे बढ़ने पर हम रास्ते में कई जगहों पर कहीं अपनी मर्ज़ी से तो कहीं अपनी किस्मत से रुके ! किस्मत इसलिए कि रास्ते में भू-स्खलन की वजह से कई जगह रास्ते बंद थे, ऐसी ही एक जगह जब हम पहुँचे तो पहाड़ खिसकने के कारण पूरा राता बंद हो चुका था ! सड़क के किनारे ही यमुना नदी बह रही थी, जिसका बहाव इतना तेज़ था, कि पानी की आवाज़ दूर तक सुनाई दे रही थी ! हमने गाड़ी से उतर कर देखा तो आगे बढ़ने की बिल्कुल भी गुंजाइश नहीं थी, सड़क पर मलवा हटाने का काम जारी था ! मैने अपने जीवन में यमुना को ऐसे उफनते हुए पहले कभी नहीं देखा था, उफान इतना तेज़ था कि बड़े-2 पत्थर भी पानी की धारा के साथ बहे जा रहे थे, हमने कुछ पत्थरों को पानी में फेंका, जो काफ़ी तेज़ी से आगे बह गए ! जीतू ने गाड़ी वापस घुमाई और हम लोग गाड़ी में बैठकर वापस दूसरे मार्ग की तलाश में चल दिए ! 

हम धनोल्टी आए तो देहरादून होते हुए थे पर जो रास्ता अब हमने चुना था, ये विकासनगर–सहारनपुर होते हुए दिल्ली के लिए जाता है ! हम लोगों को बहुत देर बाद जाकर ये एहसास हुआ कि इस रास्ते पर आना हमारी सबसे बड़ी भूल थी ! खैर, इस बात का विस्तारपूर्वक वर्णन मैं इस लेख में आगे करूँगा, हम लोग रास्ते में रुकते-रुकाते बढ़ रहे थे ! पहाड़ों पर बहुत ही घुमावदार रास्ते थे, ये रास्ते पहाड़ी के चारों ओर घूमते हुए नीचे की ओर जा रहे थे ! इस तरह हम लोग रास्ते में कई पहाड़ियों को पार करते हुए आगे बढ़ते रहे ! रास्ते में हमें कई छोटे-बड़े पानी के झरने भी मिले, जिनमें से एक जगह तो रुककर हमने स्नान भी किया ! वहीं एक और जगह पानी के बहाव की वजह से सड़क का एक हिस्सा टूट कर नीचे गहरी खाई में गिर गया था, बड़ी मुश्किल से उस जगह को हमने पार किया ! ऐसे ही एक पहाड़ी से गुज़रते हुए हमें 2 नदियों का संगम दिखाई दिया, उँचाई से देखने पर बहुत ही सुंदर नज़ारा दिखाई दे रहा था ! 

दोनों नदियों के पानी का रंग अलग-2 था, एक नदी का जल तो एकदम साफ था, जबकि दूसरी नदी अपने साथ मिट्टी बहा कर ला रही थी इसलिए इसका पानी मटमैला था ! पानी के बहाव की वजह से जहाँ ये दोनों नदियाँ मिल रही थी, वहाँ से लगभग 500 मीटर आगे तक दोनों नदियों का जल अलग-2 बहता हुआ प्रतीत हो रहा था ! उँचाई पर खड़े होने की वजह से हमें इस संगम का ये खूबसूरत नज़ारा एकदम साफ दिखाई दे रहा था ! हम लोगों ने वहीं पहाड़ी पर बैठकर थोड़ी देर मस्ती की और फिर आगे बढ़े ! विकास नगर तक पहुँचते-2 पहाड़ी रास्ता ख़त्म हो गया और मैदानी इलाक़ा शुरू हो गया ! यहाँ एक पेट्रोल पंप पर रुककर हमने गाड़ी में पेट्रोल डलवाया और फिर घर पहुँचने की उम्मीद लिए आगे का सफ़र जारी रखा ! आस-पास के लोगों से जानकारी लेने पर पता चला कि ये रास्ता बेहट होते हुए सहारनपुर तक जाता है और फिर वहाँ से आगे नोयडा जाने के कई रास्ते है ! 

विकासनगर से बेहट जाने का रास्ता बहुत ही सुंदर है, ये रास्ता राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में से होकर गुज़रता है, और दोनों तरफ घने जंगल से घिरा हुआ है ! हम लोग जब इस उद्यान में से गुज़रे तो लग ही नहीं रहा था कि हम किसी मैदानी इलाक़े में है, इस उद्यान में इतनी हरियाली और सुंदरता है जो किसी का भी मन मोहने की क्षमता रखती है ! मैने तो ऐसे नज़ारे अक्सर तस्वीरों में ही देखे थे, सड़क के किनारे एक जगह रुककर हम लोगों ने कुछ खूबसूरत चित्र अपने कैमरे में क़ैद किए ! दस मिनट वहाँ बिताने के बाद समय देखा तो शाम के 5 बज रहे थे, हम लोग फिर से गाड़ी में बैठ कर आगे चल दिए ! एक पल तो हमें एहसास हुआ कि भीड़-भाड़ से अलग इस रास्ते पर आकर हमने बहुत अच्छा किया, अगर दूसरे रास्ते से गए होते तो इन खूबसूरत नज़ारों का दीदार करने से वंचित रह जाते ! पर हमारी ये खुशी ज़्यादा देर की नहीं थी क्योंकि जैसे ही हम लोग बेहट पहुँचे, पक्की सड़क बड़े-2 गड्ढों में तब्दील हो गई ! 

शुरू में तो हमें लगा कि ये रास्ता थोड़ी दूर तक ही खराब होगा, पर जैसे-2 हम लोग इस रास्ते पर बढ़ते जा रहे थे, रास्ता और भी खराब होता जा रहा था ! हालाँकि, रास्ते में कई राहगीरों से हमने खराब रास्ते के बारे में पूछा भी, पर उन लोगों ने कहा कि बस थोड़ी दूर तक ही रास्ता खराब है, फिर पक्की सड़क है ! इस रास्ते पर चलते हुए हमने प्रशासन को खूब कोसा, कि हमारे नेता आम आदमी को बढ़िया सड़क तक तो मुहैया करवा नहीं सकते, और टेलीविज़न पर बातें बहुत बड़ी-2 हांकते है ! इस रास्ते पर लगभग 1 घंटे से भी अधिक समय समय तक चलने के बाद खराब रास्ता ख़त्म हुआ और फिर से पक्की सड़क दिखाई दी ! वैसे तो ये दूरी महज 22-23 किलोमीटर की थी, पर इस दूरी ने ही सारे सफ़र का मज़ा किरकिरा कर दिया ! अब तो हमें एहसास होने लगा था कि इस मार्ग पर आकर हमने बहुत बड़ी भूल की है ! हम लोग जब केंप्टी फॉल से निकले थे तो दोपहर के 2 बज रहे थे, और हम लोग ये सोच कर चले थे कि रात को 9-10 बजे तक घर पहुँच जाएँगे ! 

लेकिन हमें तो सहारनपुर पहुँचते-2 ही शाम के 7 बज गए थे, गाड़ी में बैठे-2 भूख भी लगने लगी थी, और गड्ढों भरे रास्ते पर सारा शरीर भी दुखने लगा था ! हम लोग ये जान गए थे कि घर पहुँचने के लिए तो अभी हमें बहुत लंबा सफ़र तय करना है, इसलिए सहारनपुर में रुककर कुछ हल्का भोजन करने का विचार बना ! एक ढाबे पर रुककर हमने कुछ पराठे खाए और अगले आधे घंटे में फिर से अपनी गाड़ी लेकर दिल्ली की ओर दौड़ रहे थे ! अंधेरा होते ही सड़क पर ट्रकों का आवागमन भी तेज हो गया, यहाँ से कई रास्ते दिल्ली के लिए जाते है, पर हमने सोचा कि किसी और रास्ते पर ना जाकर पानीपत-दिल्ली वाले राष्ट्रीय राजमार्ग से चलते है ! रास्ते में लोगों से पूछते हुए हम लोग कई गाँवों को पार करते हुए जब एक गाँव के तिराहे पर पहुँचे तो वहाँ कोई दिशा-सूचक चिन्ह नहीं था ! जयंत ने कहा कि हमें तो सीधे जाने वाले रास्ते पर ही जाना है, सोचने में समय क्यूँ बर्बाद करें ! 

घना अंधेरा हो चुका था और इस समय रास्ता भटकने का मतलब था सारी रात किसी ऐसे ही अंजान मार्ग पर घूमते हुए रात बिताना ! फिर रात में तो कोई रास्ता बताने वाला भी नहीं मिलने वाला था, पता नहीं क्या मन में आया कि थोड़ा सा आगे बढ़ने पर जयंत ने ही एक स्थानीय दुकानदार से पानीपत जाने वाले रास्ते के बारे में पूछ लिया ! उसने बताया कि पानीपत जाने वाला रास्ता तो आप पीछे छोड़ आए हो, तिराहे से आपको सीधे हाथ पर मुड़ना था जबकि आप लोग सीधे चले आए हो ! ये सुनकर सबके रोंगटे खड़े हो गए और सबको अपनी ग़लती का एहसास भी हुआ, फिर ये सोच कर थोड़ी खुशी भी हुई कि अच्छा रहा जो समय रहते हुए इस मार्ग के बारे में पूछ लिया, वरना आगे जाकर फिर से वापस आना पड़ता तो काफ़ी दिक्कत होती ! यहाँ पर एक बार फिर से प्रशासन को जी भरकर कोसा, कि एक तो सड़कें खराब है और दूसरा कोई दिशा-सूचक चिन्ह भी नहीं है ! 

खैर, हम लोग उस तिराहे से पानीपत जाने वाली सड़क पर मुड़ गए, काफ़ी देर तक इस संकरे मार्ग पर सफ़र करने के बाद हम लोग अंत में पानीपत वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुँच ही गए ! यहाँ पहुँचने के बाद हमारी जान में जान आई, समय देखा तो रात के 10 बजकर 20 मिनट हो रहे थे ! थोड़ी देर में हम लोग पानीपत के टोल पर पहुँचे जहाँ काफ़ी भीड़ थी, पर जैसे ही टोल पार हुआ, गाड़ी की रफ़्तार अपने-आप ही बढ़ गई ! मैं जानता हूँ कि आप लोगों को इस लेख में कहीं ना कहीं बेहट के बाद चित्रों की कमी ज़रूर खलेगी, पर बेहट पार करने के बाद हम लोगों का मन इतना खराब हुआ कि फोटो लेने के बारे में ना तो किसी को याद रहा और ना ही किसी की इच्छा हुई ! टोल पार करते ही मुझे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला, और जब नींद खुली तो देखा कि सड़क के किनारे बने हवेली नाम के एक रेस्टोरेंट के बाहर हमारी गाड़ी खड़ी थी ! जयंत ने मुझे जगाया कि चल भाई, अंदर चलकर खाना खा लेते है, मैं अचानक ही नींद से उठा और आँखों को मसलते हुए अपनी घड़ी में समय देखा तो 11 बजकर 35 मिनट हो रहे थे ! 

मैने पूछा, दिल्ली पहुँच गए क्या ? जीतू बोला, भाई तू तो सो ही जा, वरना अब फिर से सवालों की झड़ी लगा देगा, तुझे हम दिल्ली पहुँच कर जगा देंगे ! जयंत बोला, कुछ खाना है तो जल्दी से चल वरना यहीं सोता रह, हमें तो बहुत तेज़ भूख लगी है ! भूख तो मुझे भी लगी थी, इसलिए मैं भी नींद में ही उनके पीछे-2 हो लिया ! अंदर जाकर ताज़े पानी से मुँह-हाथ धोए, और फिर खाना खाने के लिए जाकर बैठ गए ! यहाँ का खाना बहुत बढ़िया था, और खाना परोसने वाले बैरों ने राजस्थानी ग्रामीण परिधान धारण कर रखे थे ! कुल मिलकर इस रेस्टोरेंट में ग्रामीण परंपरा को दिखाने की कोशिश की गई थी ! हमने खाने के बाद यहाँ के गुलाब जामुन का स्वाद भी चखा, जोकि बहुत ही नरम और स्वादिष्ट थे ! यहाँ से निकलते हुए सवा बारह बज चुके थे, मैं तो खाने के बाद फिर से आकर गाड़ी में सो गया ! मेरी नींद तब खुली जब हम नोयडा में अपने फ्लैट के बाहर पहुँच चुके थे ! 

समय देखा तो रात के 2 बज रहे थे, हम लोगों ने गाड़ी से अपना सामान उतारा और अपने कमरे में चले गए ! मुझे और परमार को नोयडा छोड़ने के बाद जीतू और जयंत गाड़ी लेकर फरीदाबाद अपने आवास की ओर चल दिए ! सुबह ऑफिस भी जाना था, इसलिए मैं तो बिस्तर पर पड़ते ही सो गया ! तो दोस्तों ये था हमारा मसूरी से नोयडा का सफ़र ! इसी के साथ में अपनी धनोल्टी की यात्रा का समापन करता हूँ, जल्द ही आपको फिर एक नई यात्रा पर लेकर चलूँगा !


uncle garden
अंकल गार्डन (Company Garden Mussoorie)
uncle garden
गार्डन के अंदर (White Rose in Company Garden)
flowers
A flower in Comapny Garden
mussoorie garden

uncle garden

uncle garden mussoorie
Hotel Copper Grill Mussoorie
lunch in mussoorie
Hotel Copper Grill Mussoorie
kempty fall
केंप्टी फाल मसूरी (Kempty Fall Mussoorie)
mussoorie to delhi
नदियों का संगम
driving on hills
चील की उड़ान (Flying like an Eagle)
water fall
रास्ते में एक झरना (Another waterfall on the way)
rajaji national park
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान (A view of Rajaji National Park)
rajaji national park
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान (Somewhere in Rajaji National Park)
क्यों जाएँ (Why to go Mussoorie): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो उत्तराखंड में स्थित मसूरी का रुख़ कर सकते है ! अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर मसूरी को "पहाड़ों की रानी" के नाम से भी जाना जाता है !

कब जाएँ (Best time to go Mussoorie): 
मसूरी आप साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में मसूरी घूमने का अलग ही मज़ा है दिन के समय यहाँ भले ही थोड़ी गर्मी रहती है लेकिन शाम के बाद तो यहाँ हमेशा ठंडक हो ही जाती है !

कैसे जाएँ (How to reach Mussoorie): दिल्ली से मसूरी की दूरी महज 280 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 6-7 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से मसूरी जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मेरठ-मुज़फ़्फ़रनगर-देहरादून होकर है ! दिल्ली से रुड़की तक शानदार 4 लेन राजमार्ग बना है, रुड़की से छुटमलपुर तक एकल मार्ग है जहाँ थोड़ा जाम मिल जाता है ! फिर छुटमलपुर से देहरादून होते हुए मसूरी तक शानदार मार्ग है ! अगर आप मसूरी ट्रेन से जाने का विचार बना रहे है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है, जो देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है ! देहरादून से मसूरी महज 33 किलोमीटर दूर है जिसे आप टैक्सी या बस के माध्यम से तय कर सकते है, देहरादून से 10-15 किलोमीटर जाने के बाद पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है !

कहाँ रुके (Where to stay in Mussoorie): मसूरी उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रुकने के लिए बहुत होटल है ! आप अपनी सुविधा अनुसार 800 रुपए से लेकर 3000 रुपए तक का होटल ले सकते है ! सप्ताह के अंत में और ख़ासकर मई-जून में तो यहाँ भयंकर भीड़ रहती है इसलिए इस समय कोशिश करें कि अग्रिम आरक्षण करवा कर ही आए !

कहाँ खाएँ (Eating option in Mussoorie): मसूरी में अच्छा-ख़ासा बाज़ार है, यहाँ आपको अपने स्वाद अनुसार खाने-पीने का हर सामान मिल जाएगा ! अब तक मैं जितने भी हिल स्टेशन पर घूमा हूँ मुझे सबसे अच्छा और बड़ा माल रोड मसूरी का ही लगा है !

क्या देखें (Places to see in Mussoorie): 
मसूरी और इसके आस-पास घूमने की कई जगहें है जिसमें से कैमल बैक रोड, लाल टिब्बा, कंपनी गार्डन, गन हिल, केंपटी फॉल, और माल रोड काफ़ी प्रसिद्ध है ! आप यहाँ से 25 किलोमीटर दूर धनोल्टी का रुख़ भी कर सकते है !

समाप्त...

धनोल्टी यात्रा
  1. दोस्तों संग धनोल्टी का एक सफ़र (A Road Trip from Delhi to Dhanaulti)
  2. धनोल्टी का मुख्य आकर्षण है ईको-पार्क (A Visit to Eco Park, Dhanaulti)
  3. बारिश में देखने लायक होती है धनोल्टी की ख़ूबसूरती (A Rainy Trip to Dhanolti)
  4. सुरकंडा देवी - माँ सती को समर्पित एक स्थान (A Visit to Surkanda Devi Temple)
  5. मसूरी के मालरोड पर एक शाम (An Evening on Mallroad, Musoorie)
  6. मसूरी में केंप्टी फॉल है पिकनिक के लिए एक उत्तम स्थान (A Perfect Place for Picnic in Mussoorie – Kempty Fall)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

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