सोमवार, 25 जनवरी 2016
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देवरिया ताल से वापिस आने के बाद हमने होटल हिमांशु में दोपहर का भोजन किया और होटल वाले से ही कह दिया कि हमारे ऋषिकेश जाने के लिए एक टैक्सी का इंतज़ाम करवा दे ! उसने अपने एक परिचित को फोन लगाया तो वो सिर्फ़ ऊखीमठ तक जाने के लिए ही तैयार हुआ ! सारी गाँव से ऊखीमठ जाने के लिए 500 रुपए में सौदा तय हुआ, सारा सामान लेकर जब हम ऊखीमठ के लिए रवाना हुए तो पौने पाँच बजने वाले थे ! सारी से ऊखीमठ के 15 किलोमीटर के इस सफ़र को तय करने में हमें पौने घंटे लग गए ! ऊखीमठ के मुख्य चौराहे पर जब साढ़े पाँच बजे जीप से उतरे तो यहाँ कई जीप वाले खड़े थे, हम यहाँ से ऋषिकेश या रुद्रप्रयाग जाने के लिए कोई जीप या बस ढूँढने लगे ! पूछताछ पर पता चला कि ऋषिकेश के लिए यहाँ से सुबह 6 बजे एक बस चलती है, फिर पूरे दिन यहाँ से ऋषिकेश के लिए कुछ नहीं मिलता !दिन में यहाँ से रुद्रप्रयाग के लिए शैयर्ड जीपें चलती है लेकिन इस समय यहाँ से शैयर्ड में कुछ भी नहीं मिलने वाला ! इसलिए अगर इस समय हमें रुद्रप्रयाग या ऋषिकेश जाना है तो टैक्सी बुक करवानी पड़ेगी ! 2-3 जीप वालों से जब किराए का पता किया तो ऋषिकेश के लिए 5 हज़ार और रुद्रप्रयाग के लिए 2200 रुपए माँग रहे थे ! काफ़ी मोल-भाव करके एक टैक्सी वाला 1500 रुपए में रुद्रप्रयाग जाने के लिए तैयार हुआ !
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रुद्रप्रयाग में अलकनंदा-मंदाकिनी का संगम (Alaknanda and Mandakini in Rudrprayag) |
एक विकल्प रात को ऊखीमठ में रुककर, सुबह यहाँ से ऋषिकेश की पहली बस पकड़ने का था लेकिन फिर निश्चय किया कि आज रात रुद्रप्रयाग या उससे आगे कहीं रुकेंगे ! जीप में सवार होकर हम सब रुद्रप्रयाग के लिए चल दिए, ऊखीमठ से रुद्रप्रयाग की दूरी 43 किलोमीटर है जिसे हमने डेढ़ घंटे में तय किया ! रुद्रप्रयाग पहुँचे तो अंधेरा हो गया था, इसलिए हमने आज की रात यहीं बिताने का निश्चय किया, मुख्य बाज़ार में 1-2 होटलों में जाकर कमरा देखा तो पसंद नहीं आया ! फिर घूमते हुए गढ़वाल मंडल के होटल में पहुँच गए, यहाँ देखते ही कमरा पसंद आ गया ! इस होटल के कमरे काफ़ी बड़े और साफ-सुथरे थे, जिसमें चार लोग बड़े आराम से रुक सकते थे ! सबसे अच्छी बात ये थी कि कमरे की बालकनी से अलकनंदा-मंदाकिनी का संगम भी दिखाई दे रहा था ! बिना देर किए हमने हाँ कह दिया और सामान लेकर अपने कमरे में आ गए ! ये कमरा हमें 1200 रुपए का मिला और उसपर सर्विस टैक्स, कुल मिलकर 1367 रुपए देने पड़े ! होटल में गरम पानी मिला तो जयंत ने रात्रि स्नान भी कर लिया, फिर थोड़ी देर कमरे में बैठने के बाद रात्रि भोजन के लिए होटल के डाइनिंग हाल में चल दिए !
हाल ज़्यादा बड़ा तो नहीं था लेकिन फिर भी एक बार में 20-22 लोगों के खाने की व्यवस्था थी ! यहाँ का खाना स्वादिष्ट लगा, खाने के दौरान काफ़ी देर तक हम लोगों में किसी बात को लेकर चर्चा चलती रही ! खाना खाकर उठे तो यहाँ के एक कर्मचारी से नदियों के संगम पर जाने के रास्ते के बारे में पूछा ! रास्ता बताते हुए उसने हिदायत दी कि रात को वहाँ मत जाना, रात को उधर तेंदुआ घूमता है ! ये सुनकर मैं बोला, यार ये जंगली जानवरों की कहानियाँ बच्चों को सुनाते है, हमें क्यों बता रहा है ? मेरी बात सुनकर वो कर्मचारी खीझ गया, ये खीझ हमें उसके बर्ताव में भी साफ दिखाई दी ! हम वैसे भी दिन भर के थके हुए थे, इसलिए रात में तो संगम पर जाना ही नहीं था, हम तो वहाँ सुबह जाने के लिए जानकारी ले रहे थे ! थोड़ी देर बाद डाइनिंग हाल से निकलकर हम सब टहलते हुए अपने कमरे में आ गए, यहाँ बातें करते हुए कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला ! मुझे सुबह अलकनंदा-मंदाकिनी का संगम देखने जाना था इसलिए डाइनिंग हॉल से आते हुए ही मैने सुबह का अलार्म लगा दिया था !
मंगलवार, 26 जनवरी 2016
सुबह अलार्म बजने पर सबसे पहले मैं ही सोकर उठा, समय 6 बज रहे थे, संगम का दृश्य तो हमारे कमरे की खिड़की से भी दिखाई दे रहा था, लेकिन जो दृश्य कमरे से बाहर निकलकर बालकनी से दिखाई दे रहा था वो अद्भुत था ! बाहर अभी अंधेरा था, इसलिए कुछ साफ नहीं दिखाई दे रहा था लेकिन पानी की गर्जना दूर तक सुनाई दे रही थी ! मैं फटाफट नहा-धोकर तैयार होने लगा, अब तक मेरे बाकी साथी भी उठ गए थे ! कमरे की खिड़की से बाहर झाँककर देखा तो हल्का-2 उजाला भी हो गया था ! मेरे बाद बाकी लोग भी बारी-2 से तैयार होने लगे, इस दौरान मैने अपना सारा सामान अपने बैग में पैक कर लिया ! जीतू और सौरभ के हाव-भाव से स्पष्ट था कि इन दोनों का संगम देखने जाने का कोई विचार नहीं था इसलिए ये आराम से तैयार हो रहे थे ! 8 बज रहे थे जब मैं और जयंत कैमरा लेकर होटल के पीछे वाले रास्ते से नीचे नदी तक जाने वाले मार्ग पर चल दिए, 10 मिनट बाद हम नदी के तट पर थे ! यहाँ स्थानीय लोग नदी से कट्टों में रेत भरकर पीठ पर लादकर ऊपर ले जा रहे थे, भवन निर्माण के लिए मुफ़्त में निर्माण सामग्री मिल जाए तो क्या कहने ?
लेकिन ये था बहुत मेहनत का काम है, नदी के किनारे से मुख्य सड़क काफ़ी ऊँचाई पर था और रास्ता भी काफ़ी ऊँचा-नीचा था ! निर्माण सामग्री पीठ पर लादकर लाना बहुत कठिन था लेकिन गढ़वाली लोग तो मेहनत के लिए जाने ही जाते है ! नदी के किनारे फैली गंदगी देखकर मन बहुत दुखी हुआ, यही नदी आगे जाकर देवप्रयाग में भागीरथी से मिलेगी और गंगा कहलाएगी ! गंगा की पूरे भारतवर्ष में पूजा की जाती है और यहाँ संगम स्थल पर गंदगी के ढेर देखकर दुख तो होता ही है, जगह-2 मलमूत्र पड़ा हुआ था ! बचते-बचाते हम एक साफ जगह पर पहुँचे और यहाँ से नदियों के संगम के कुछ फोटो भी लिए ! वाकई, शानदार नज़ारा था, संगम से पहले दोनों नदियों का जल एकदम शांत था लेकिन संगम के बाद जल प्रवाह काफ़ी तेज था ! यहाँ खड़े होकर एहसास हुआ कि जब इसी शांत नदी ने दो साल पहले विकराल रूप धारण किया था तो खूब तबाही मचाई थी, प्रकृति का भी क्या नियम है चाहे तो आबाद कर दे और चाहे तो बर्बाद ! नदी के उस पार बने एक मंदिर को देखकर मुझे लगा कि वहाँ से संगम का विहंगम दृश्य दिखाई देता, लेकिन समय के अभाव और पैर की चोट के कारण उस पार जाना संभव नहीं हो सका !
जानकारी के लिए बता दूँ कि रुद्रप्रयाग में केदारनाथ से आने वाली मंदाकिनी और बद्रीनाथ से आनी वाली अलकनंदा का संगम होता है ! दोनों के संगम स्थल पर एक मंदिर भी बना है जहाँ से इन नदियों के इस मिलन का एक शानदार दृश्य दिखाई देता है ! नदी के किनारे कुछ समय बिताने के बाद हम वापिस अपने होटल की ओर चल दिए, आधे रास्ते ही पहुँचे थे कि जीतू का फोन आ गया ! मैने उसे डाइनिंग हाल में ही मिलने के लिए कहकर फोन काट दिया ! अगले आधे घंटे में हम नाश्ता करके फारिक होने के बाद हमने डाइनिंग हाल से ही संगम के कुछ फोटो भी खींचे ! बिल चुकाकर वापिस अपने कमरे में गए और अपना-2 सामान लेकर रुद्रप्रयाग के बस अड्डे की ओर चल दिए ! शाम को समय पर हरिद्वार पहुँचने के लिए यहाँ से समय से निकलना ज़रूरी था, ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग जाने पर गढ़वाल मंडल का ये होटल मुख्य बाज़ार से थोड़ा पहले सड़क के बार्ईं ओर स्थित है !
होटल से निकलकर मुख्य मार्ग पर पहुँचे तो यहाँ स्कूली बच्चे एक पंक्ति में 26 जनवरी की परेड के लिए जा रहे थे, इन्हें देखकर मुझे अपनी पिछले वर्ष की शिमला यात्रा याद आ गई !
पिछले वर्ष गणतंत्र दिवस के मौके पर मैं शिमला में था और मुझे वहाँ रंगारंग कार्यक्रम देखने का सौभाग्य मिला था ! मुश्किल से 50 कदम ही चले होने कि हमें सामने से एक बस आती हुई दिखाई दी, हमें देखकर उसके परिचालक ने जब हमसे पूछा तो हमने हरिद्वार जाने का कह दिया ! ये सुनते ही उसने बस सड़क के एक किनारे खड़ी कर दी, हमने अपना सारा सामान बस की डिग्गी में रखा और अंदर जाकर बैठ गए ! यहाँ से चलने के बाद बस रास्ते में कई जगह सवारियों को चढ़ाने और उतारने के लिए रुकी ! बस में बैठने से पहले जब हमने परिचालक से पूछा तो वो बोला कि 4 घंटे में हरिद्वार पहुँच जाएँगे ! हमें मालूम था कि 4 घंटे तो नहीं, लेकिन 5 या साढ़े पाँच घंटे में हरिद्वार पहुँच जाएँगे ! रुद्रप्रयाग से हरिद्वार की यात्रा में शुरू में तो काफ़ी रोमांच था लेकिन दोपहर बाद बोरियत होने लगी ! रुद्रप्रयाग से सुबह साढ़े नौ बजे इस बस में बैठे थे, हरिद्वार आते हुए हमारी बस रास्ते में 15 मिनट के लिए श्रीनगर में और आधे घंटे के लिए ब्यासी में रुकी थी ! इसके बावजूद भी ये सफ़र इतना लंबा हो गया कि ऋषिकेश पहुँचने के बाद बस में बैठे-2 परेशान हो गए !
जबकि चोपता जाते हुए हमारी बस रास्ते में तीन जगह आधे-2 घंटे के लिए रुकी थी और फिर भी सफ़र इतना लंबा नहीं लगा था ! खैर, बस की खिड़की से खूबसूरत नज़ारे तो अब भी दिखाई दे रहे थे, लेकिन मन में यही विचार चल रहे थे कि समय पर स्टेशन पहुँच पाएँगे या नहीं ! ऋषिकेश पार करने के बाद ड्राइवर ने एक कैनाल के साथ जाने वाले मार्ग पर बस मोड़ दी, ये मार्ग एक वन्य क्षेत्र से होकर जा रहा था ! अधिकतर निजी बसें हरिद्वार जाते हुए इसी मार्ग का प्रयोग करती है, जयंत और जीतू जब पिछली बार जोशीमठ गए थे तो वापसी में इसी मार्ग से हरिद्वार आए थे !
ऋषिकेश-हरिद्वार मार्ग पर मिलने वाले जाम से बचने के लिए ये निजी बस चालक इस मार्ग से जाते है, शुरू में तो ये मार्ग काफ़ी अच्छा है, लेकिन थोड़ी देर बाद ये मार्ग राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में जाकर मिल गया ! वन्य क्षेत्र में रास्ता खराब होने के कारण बस यहाँ ज़्यादा रफ़्तार नहीं पकड़ रही थी, ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने से थकान भी महसूस होने लगे ! एक तो हमें वैसे ही देर हो रही थी, रही-सही कसर रास्ते में मिले कुछ साइकल चालकों ने कर दी, इन लोगों का एक समूह था जो साइकल लेकर हरिद्वार से यहाँ राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में चला आया था ! वापसी में जब इनके पसीने छूटने लगे तो ये घर जाने के लिए किसी बस का इंतजार करने लगे !
हमारे ड्राइवर ने इनके लिए गाड़ी रोक दी और फिर बारी-2 से साइकलें बस की छत पर चढ़ाने लगे ! इस कार्यक्रम में 15-20 मिनट खराब हो गए, हमारे अलावा बस में सवार अन्य सवारियाँ भी बस वाले पर गुस्सा करने लगी, इस बस की अधिकतर सवारियों को हरिद्वार से ट्रेन पकड़नी थी !
हरिद्वार पहुँचने से पहले एक चौराहे पर इन साइकल सवारों को उतारने में फिर से 15 मिनट खराब हो गए, जैसे-तैसे करके साढ़े चार बजे हरिद्वार स्टेशन पहुँचे ! बस से उतरकर तेज़ी से स्टेशन परिसर में पहुँचे ताकि क्लॉक रूम में अपना सामान रखकर हर की पौडी जा सके, लेकिन स्टेशन का क्लॉक रूम उस दिन बंद था ! वापिस स्टेशन से बाहर आए और एक होटल के क्लॉक रूम में अपना सामान रखा ! फिर हर की पौडी जाने के लिए हमने 2 रिक्शे कर लिए, ऑटो नहीं किए क्योंकि ऑटो हमें बाहर ही उतार देता लेकिन रिक्शा बाज़ार के अंदर से होते हुए घाट के काफ़ी नज़दीक छोड़ता है ! 10 मिनट बाद हम रिक्शे से उतरकर हरिद्वार की गलियों में पैदल चल रहे थे, यहाँ पेट पूजा करने के लिए पंडित जी पूड़ी वाले की दुकान पर रुके ! पूड़ियों संग आलू का झोल और पेठे की सब्जी परोसी गई, खाने का स्वाद लाजवाब था और रायते के तो क्या कहने ? खाकर मन तृप्त हो गया !
खाना निबटाकर मैं घाट की ओर तेज कदमों से चल दिया ताकि घर ले जाने के लिए गंगाजल ले सकूँ, घाट पर इस समय बिल्कुल भी भीड़ नहीं थी ! गंगाजल लेकर वापिस अपने साथियों के पास पहुँचा, यहाँ से चले तो सवा पाँच बज रहे थे !
हरिद्वार की भीड़-भाड़ वाली गलियों से होते हुए वापिस मुख्य मार्ग की ओर चल दिए, यहाँ हमें एक बैटरी से चलने वाला रिक्शा मिल गया, जिसने हमें कम समय में ही स्टेशन के बाहर छोड़ दिया ! समय कम होने के कारण इस बार हरिद्वार नहीं घूम पाया, लेकिन कभी पर्याप्त समय लेकर हरिद्वार घूमूंगा ! क्लॉक रूम से अपना सामान लेकर जब स्टेशन पर पहुँचे तो पौने छह बज रहे थे, यहाँ थोड़ी देर इंतजार करने के बाद निर्धारित समय पर हमारी ट्रेन आ गई ! ये चैयर कार थी और हरिद्वार से दिल्ली का सफ़र हमें बैठकर ही तय करना था ! ट्रेन में सवार होकर हमने दिल्ली के लिए सफ़र शुरू किया, फिर तो बारी-2 से खाने-पीने का सामान आता ही रहा ! हम ट्रेन में बैठने से पहले ही पेट-पूजा कर चुके थे इसलिए खाने-पीने से दूर ही रहे ! ट्रेन का सफ़र अच्छा कट गया, कई स्टेशनो पर रुकते-रुकाते रात को ग्यारह बजे हमारी ट्रेन नई दिल्ली पहुँची ! ट्रेन से उतरने से पहले ही हम यहाँ से घर जाने के लिए टैक्सी आरक्षित करवा चुके थे ! रात को साढ़े बारह बजे हम टैक्सी से सौरभ के घर उतरे, मैं आज रात यहीं रुक गया, अगली सुबह यहीं से मैं अपने दफ़्तर चला गया ! तो दोस्तों ये था हमारा तुंगनाथ का सफ़र, जल्द ही किसी नए सफ़र पर लेकर चलूँगा !
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होटल के कमरे से दिखाई देती अलकनंदा नदी |
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नदी के किनारे जाते हुए |
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नदी के किनारे का एक दृश्य |
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नदी के किनारे का एक दृश्य |
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नदियों के संगम के बीच में ऊँचाई पर दिखाई दे रहा मंदिर |
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ब्यासी में खाने के लिए रुके |
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एक स्थानीय फल विक्रेता की दुकान का दृश्य |
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एक स्थानीय फल विक्रेता की दुकान का दृश्य |
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हरिद्वार रेलवे स्टेशन का एक दृश्य |
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यहाँ हमने पेट पूजा की |
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हरिद्वार का स्वादिष्ट व्यंजन |
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हर की पौडी का एक दृश्य |
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हर की पौडी का एक दृश्य |
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हर की पौडी का एक दृश्य |
क्यों जाएँ (Why to go Deoria Taal): अगर आपको धार्मिक स्थलों के अलावा रोमांचक यात्राएँ करना अच्छा लगता है तो देवरिया ताल आपके लिए एक बढ़िया विकल्प है ! पहाड़ियों की ऊँचाई पर स्थित इस ताल का धार्मिक महत्व भी है !
कब जाएँ (Best time to go Deoria Taal): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में देवरिया ताल जा सकते है ! गर्मियों के महीनों में भी यहाँ बढ़िया ठंडक रहती है जबकि दिसंबर-जनवरी के महीने में यहाँ भारी बर्फ़बारी होती है ! बर्फ़बारी के दौरान अगर देवरिया ताल जाने का मन बना रहे है तो अतिरिक्त सावधानी बरतें !
कैसे जाएँ (How to reach Deoria Taal): दिल्ली से देवरिया ताल जाने के लिए आपको ऊखीमठ होते हुए सारी गाँव पहुँचना होगा, देवरिया ताल की चढ़ाई सारी गाँव से ही शुरू होती है ! 3 किलोमीटर की चढ़ाई के बाद जब 2438 मीटर की ऊँचाई पर स्थित देवरिया ताल के प्रथम दर्शन होते है तो मन आनंदित हो उठता है ! मौसम साफ हो तो ताल में पहाड़ियों की चोटियों का प्रतिबिंब भी दिखाई देता है ! दिल्ली से देवरिया ताल की कुल दूरी 435 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको 12 से 13 घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Deoria Taal): अगर आप अपना टेंट लेकर जा रहे है तो देवरिया ताल के पास ही टेंट लगाकर रुक सकते है, टेंट लगाने की एवज में आपको एक पर्यावरण शुल्क चुकाना होगा ! वैसे, यहाँ ताल के पास भी आपको टेंट किराए पर मिल जाएगा ! सारी गाँव में रुकने के लिए भी कुछ होटल है, जिसके लिए आपको 500 से 700 रुपए खर्च करने होंगे !
क्या देखें (Places to see in Deoria Taal): देवरिया ताल एक प्राकृतिक झरना है, जिसे देखने के लिए हर साल यहाँ हज़ारों सैलानी आते है ! मौसम साफ हो तो यहाँ से हिमालय की पहाड़ियों के दर्शन भी हो जाते है ! देवरिया ताल से ही तुंगनाथ मंदिर जाने के लिए जंगल से होकर एक पैदल मार्ग है ! रोमांच के शौकीन लोग इस मार्ग पर ट्रेकिंग करते हुए रोहिणी बुग्याल होते हुए तुंगनाथ जा सकते है कुल दूरी 15-16 किलोमीटर के आस-पास है !
समाप्त...
तुंगनाथ यात्रा
- दिल्ली से हरिद्वार की ट्रेन यात्रा (A Train Journey to Haridwar)
- हरिद्वार से चोपता की बस यात्रा (A Road Trip to Chopta)
- विश्व का सबसे ऊँचा शिव मंदिर – तुंगनाथ (Tungnath - Highest Shiva Temple in the World)
- तुंगनाथ से चोपता वापसी (Tungnath to Chopta Trek)
- चोपता से सारी गाँव होते हुए देवरिया ताल (Chopta to Deoria Taal via Saari Village)
- ऊखीमठ से रुद्रप्रयाग होते हुए दिल्ली वापसी (Ukimath to New Delhi via Rudrprayag)
प्रदीप जी रूद्रप्रयाग में जो संगम है सच मे बहुत सुन्दर लगता है । मैं सरकारी गैस्ट हाउस से थोडा आगे रूका था और शाम की आरती देखी थी । अविस्मरणीय अनुभव रहा
ReplyDeleteयोगी जी, मैं इस बार तो आरती में शामिल नहीं हो पाया, देखो अगली बार कब जाना होता है उधर !
DeleteBeautiful description
ReplyDeleteThank You
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