रविवार, 24 जनवरी 2016
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मेरे पिछले लेखों में आपने पढ़ा कि किस तरह हम दिल्ली से हरिद्वार होते हुए चोपता पहुँचे ! दिन-रात के इस सफ़र से हम सब थक गए थे इसलिए रात को खूब अच्छी नींद आई ! सुबह जब आँख खुली तो स्लीपिंग बैग में सोते-2 ही मैने अपनी घड़ी में समय देखा, सुबह के साढ़े सात बज गए थे, लेकिन ठंड की वजह से बिस्तर से बाहर निकलने का मन नहीं हो रहा था ! मैं 6 बजे से पहले उठने वाला इंसान हूँ, अपनी हर यात्रा पर अमूमन सुबह समय से उठ ही जाता हूँ, लेकिन यहाँ की ठंड वाकई जबरदस्त थी जिसने मुझे स्लीपिंग बैग के अंदर सिमटकर रहने को मजबूर कर दिया था ! वैसे यहाँ जयंत के अलावा बाकी सबको अच्छी नींद आई थी, जयंत की परेशानी की वजह थी टेंट में पर्याप्त जगह का ना होना ! वैसे तो हमारा टेंट 4 लोगों के रुकने के लिए पर्याप्त था लेकिन सामान ज़्यादा होने के कारण टेंट में जगह थोड़ी कम थी, इसलिए जयंत को ठीक से नींद नहीं आई और वो सारी रात परेशान ही रहा, सुबह होते ही उसने एलान कर दिया कि आज कुछ भी हो जाए, टेंट में नहीं किसी होटल में रुकेंगे ! सारी रात वो सुबह होने का ही इंतजार करता रहा, जैसे ही मैं हिम्मत करके टेंट से बाहर निकला, जयंत को सोने के लिए जगह मिल गई !
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दुनिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर (Highest Shiv Temple of the world, Tungnath) |
चोपता में ये हमारी पहली सुबह थी, बाहर के नज़ारे देखने के लिए टेंट से निकलना ज़रूरी था इसलिए हिम्मत करके मैं अपने स्लीपिंग बैग से बाहर आकर टेंट से बाहर निकला ! टेंट के बाहर रखे अपने जूते पहनकर मैं बाहर मैदान में टहलने लगा ! हमारी बगल वाले टेंट में रुके हुए लड़के उठ चुके थे और चाय बनाने के लिए आग जलाने की तैयारी कर रहे थे ! मुझे बाहर टहलता देख वो बोले, यार आग जलाने में हमारी मदद कर दो, आवाज़ सुनकर मैं उनके टेंट के पास गया ! रात को तो इन्हें बिना मेहनत के ही जलती हुई आग मिल गई थी, क्योंकि आग जलाने में सारी मेहनत तो हमने की थी ! लेकिन सुबह-2 आग जलाना इतना आसान नहीं था, वजह था सूखी लकड़ी या घास-फूंस का ना होना ! अगर इनका सुबह आग जलाने का विचार था तो रात को ही कुछ सूखी लकड़ियाँ और घास-फूस अपने टेंट में रख लेने चाहिए थे ! रात को सोते जाते हुए लकड़ियाँ अलाव के पास ही रखी हुई थी जो रात भर ओस में भीग गई थी, ओस पड़ने के कारण आस-पास मौजूद घास-फूस भी गीले हो गए थे और जलने में काफ़ी दिक्कत कर रहे थे !
मेरे विचार में पहाड़ों पर या जंगलों में आग जलाने का साधारण सा नियम है और सभी लोग इससे वाकिफ़ भी होंगे, पहले कुछ सूखे तिनको से आग जलाओ और फिर धीरे-2 बड़ी लकड़ियों को इन पर रखते जाओ ताकि देर तक आग बनी रहे ! इन लड़कों ने आग जलाने के लिए अपने पास रखे परफ्यूम से लेकर केरोसिन तक डाल लिया, लेकिन गीली लकड़ियाँ नहीं जली ! इन्हें शायद मुझसे थोड़ी-बहुत उम्मीद थी लेकिन आग के लिए सूखी लकड़ी ना होने के कारण मैने भी मना कर दिया ! केरोसिन डालने के बाद थोड़ी देर तक आग जलती लेकिन फिर बुझ जाती, एक बार तो इन्होने केरोसिन के डिब्बे में ही आग लगा दी, लेकिन फिर भी चाय नहीं बन पाई ! ऐसा थोड़ी ना होता है कि आप सीधे मोटी-2 लकड़ियों को जलाने की कोशिश करो और वो भी तब, जब लकड़ियाँ गीली हो ! अगर पंजाब से आए इन युवकों में से कोई इस लेख को पढ़ रहा हों तो मैं आपको बता दूँ कि मैं तुम्हारी काबिलियत पर संदेह नहीं कर रहा, लेकिन आग जलाने के लिए कुछ नियम होते है ! इन नियमों की अनदेखी करने का परिणाम आप चोपता में देख ही चुके हो !
मैदान में टहलते हुए मैं दूर दिखाई दे रहे पहाड़ों को निहार रहा था जो सूर्य के प्रकाश में सुनहरे रंग के दिखाई दे रहे थे ! हमारे टेंट के चारों ओर काफ़ी दूर तक बर्फ गिरी हुई थी, जो काफ़ी सुंदर लग रही थी ! थोड़ी देर बाद ये दृश्य देखने के लिए मेरे बाकी साथी भी टेंट से बाहर आ गए ! कल का पूरा दिन सफ़र में रहने के कारण हम लोग नहा नहीं सके थे, इसलिए आज हमारी पहली प्राथमिकता नहाने की थी ! टेंट से निकलकर हम सब चोपता के मुख्य चौराहे की ओर चल दिए, यहाँ एक होटल में चाय पी और अपने रुकने के लिए एक कमरे का इंतज़ाम भी कर लिया ! होटल नीलकंठ का मालिक वैसे तो एक दिन के 1000 रुपए माँग रहा था लेकिन थोड़ा मोल-भाव करने के बाद 800 रुपए में सौदा तय हो गया, कमरा ठीक-ठाक था, इसमें एक डबल बेड और दो सिंगल बेड लगे थे ! किराए में ही सबके नहाने के लिए गरम पानी भी शामिल था, अलग से लेने पर 30 रुपए प्रति बाल्टी के हिसाब से गरम पानी मिल रहा था ! कमरा लेने के बाद हम वापिस अपने टेंट पर पहुँचे और इसे उखड़ना शुरू कर दिया !
यहाँ से टेंट और अपना बाकी सामान लेकर होटल में पहुँचे और होटल वाले को गरम पानी लाने के लिए कह दिया ! यहाँ हमसे एक गड़बड़ हो गई, अपने आपको वन-विभाग का कर्मचारी बताकर एक युवक हमसे यहाँ कल शाम को मिला था ! टेंट लगाने की एवज में उसने हमसे 100 रुपए भी लिए, और वो कल शाम से ही रट लगाए हुए था कि ऊपर तुंगनाथ में इस समय किसी को भी जाने नहीं दिया जा रहा ! कारण पूछने पर उसने बताया कि ऊपर मंदिर परिसर में और इसके आस-पास की कुछ दुकानों में ताले तोड़कर चोरी की गई है, इसलिए फिलहाल ऊपर लोगों के आवागमन पर रोक लगा दी है ! उसकी बात सुनकर हम अब तक यही मानकर चल रहे थे कि ऊपर तक ना सही, पर जहाँ तक जाने की अनुमति है वहाँ तक जाएँगे और फिर वापिस लौट आएँगे, इसलिए हम आराम से तैयार हो रहे थे ! कमरे में पहुँचकर काफ़ी देर तक तो हम गरम पानी का इंतजार करते रहे और फिर पानी आने के बाद बारी-2 से सभी लोग नहा-धोकर तैयार हुए ! जब हम तैयार होकर खाना खाने के लिए नीचे पहुँचे तो दोपहर के 12:30 बज रहे थे, तुंगनाथ जाने वाले मार्ग के शुरुआत में ही एक दुकान पर बैठकर हमने दोपहर का भोजन किया !
जिन लोगों ने तुंगनाथ के बारे में पहले नहीं सुना उनकी जानकारी के लिए बता दूँ कि भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर को दुनिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर माना जाता है ! कहते है कि 3680 मीटर की ऊँचाई पर बसा ये मंदिर हज़ारों साल पुराना है और इसकी स्थापना पांडवों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए की थी ! महाभारत युद्ध के बाद युद्ध में हुई क्षति का प्रायशचित करने के उद्देशय से पांडव भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय की ओर चले गए ! पांडवों से छुपने के लिए भगवान शिव ने बैल का रूप धारण कर लिया और गुप्तकाशी में किसी स्थान पर छुप गए ! लेकिन पांडवों ने शिवजी को यहाँ भी ढूँढ लिया, फिर बाद में शिवजी का शरीर बैल के शरीर के रूप में पाँच अलग-2 स्थानों पर मिला ! इन पाँच जगहों से ही पाँचों केदार का अस्तित्व प्रकाश में आया, इन सभी जगहों पर पांडवों ने शिव मंदिर की स्थापना की ! तुंगनाथ इन्हीं पाँच केदारों में से एक है और यहाँ भगवान शिव के हाथ मिले थे, तुंगनाथ से जुड़ी ऐसी और भी कई धार्मिक कहावतें जुड़ी है ! अक्तूबर के अंत में मंदिर के कपाट बंद हो जाते है और फिर अप्रैल के अंत में ये खुलते है, इस मंदिर में दर्शन के लिए हर साल लाखों भक्त आते है ! सर्दियों में तो ट्रेक करने के लिए ये स्थान लोगों की पसंदीदा जगह में आता है !
खा-पीकर निबटे तो 1:30 बज गए थे, यहाँ से धीरे-2 टहलते हुए हम तुंगनाथ जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि चोपता के मुख्य चौराहे के पास ही कुछ सीढ़ियों से होते हुए तुंगनाथ की चढ़ाई शुरू होती है ! इन सीढ़ियों के पास ही कुछ घंटिया भी लगी हुई है, यहाँ से आगे बढ़ने पर एक पक्का मार्ग शुरू हो जाता है जो ऊपर तक जाता है ! इस मार्ग पर दोनों ओर खूब बर्फ गिरी हुई थी, थोड़ी दूर चलने पर ये मार्ग एक घने हरियाली वाले क्षेत्र से होकर निकलता है, इसे जंगल कहना तो उचित नहीं होगा, क्योंकि ये थोड़ी दूर जाने पर ही ख़त्म भी हो जाता है ! ये हरियाली बुरांश के पेड़ों से है, चोपता में मुझे बुरांश के पेड़ बहुतायत में देखने को मिले, अप्रैल माह में जब इन पेड़ों पर फूल खिलते है तो ये और भी खूबसूरत लगते है ! इस हरियाली से बाहर निकलकर थोड़ी दूर चलने पर सड़क के बाईं ओर एक बुग्याल आता है, पहाड़ों पर मौजूद छोटे-बड़े खाली मैदान को बुग्याल कहते है ! बुग्याल के पास ही सड़क के किनारे कुछ दुकानें भी है जो इस समय बंद थी ! तुंगनाथ मंदिर जाने वाला मार्ग खूबसूरत दृश्यों से भरा पड़ा है, इस मार्ग के किनारे जगह-2 लोगों के बैठने के लिए पत्थर की सीटें भी बनी है !
एक बड़ा परिवार इन दुकानों के बाहर रखे पत्थरों पर बैठकर अपनी थकान मिटा रहा था, परिवार के बच्चे बर्फ में आकृतियाँ बना रहे थे ! हमें ऊपर जाता देखकर इस परिवार के एक बुजुर्ग बोले, तुम लोग ऊपर तक नहीं जा पाओगे, बहुत चढ़ाई है, हम लोग भी आधे रास्ते से ही लौट आए है ! मैने मुस्कुरा कर कहा, कोई बात नहीं, जहाँ तक जा सकते है जाएँगे, फिर लौट आएँगे ! चोपता से अभी हम ज़्यादा दूर नहीं आए थे, यहाँ तक का रास्ता एकदम सीधा था, लेकिन बुग्याल से आगे रास्ता घूमता हुआ ऊपर जा रहा था ! इस मार्ग पर सीधे जाते तो काफ़ी समय लगता इसलिए यहाँ से आगे हमें जहाँ भी कोई शॉर्टकट मिला हमने लिया और अपना समय बचाने का हर संभव प्रयास करते रहे ! जब तुंगनाथ के लिए चोपता से निकले थे तो बिल्कुल भी विचार नहीं था कि मंदिर तक जाएँगे, लेकिन बुग्याल क्षेत्र पार करने के बाद तो जैसे निश्चय कर लिया था कि मंदिर तक जाकर ही लौटना है ! तुंगनाथ जाते हुए बीच-2 में कई जगह रास्ता काफ़ी ऊँचा-नीचा और चढ़ाई वाला था लेकिन हम सब रुक-रुककर आगे बढ़ते रहे !
तुंगनाथ जाते हुए मार्ग में हर पल नज़ारे बदल रहे थे, और हर नज़ारा पिछले नज़ारे से ज़्यादा खूबसूरत लग रहा था, मुख्य मार्ग के दोनों ओर दूर तक गिरी बरफ शानदार दृश्य प्रस्तुत कर रही थी ! रास्ते में हमें जगह-2 झोपड़ीनुमा इमारतें भी देखने को मिली, जिनमें से कुछ की छतें नहीं थी ! मेरे ख्याल से यात्रा सीजन के दौरान यहाँ खाने-पीने का सामान मिलता होगा ! ऐसी ही एक झोपड़ी की छत पर खूब बर्फ लदी हुई थी, बहुत सुंदर दृश्य था, हर आने-जाने वाला इस दृश्य को अपने कैमरे में क़ैद कर रहा था ! दूर तक गिरी बर्फ और बर्फ के उस पार दिखाई देती ऊँची-2 पहाड़ियाँ, यहाँ हमें वो सब-कुछ मिला जिसके लिए हम यहाँ आए थे ! दिल्ली से चले थे तो मन में यही चल रहा था कि चोपता में भरपूर बर्फ मिलेगी भी या नहीं, क्योंकि सुनने में आया था कि इस वर्ष यहाँ काफ़ी कम बर्फ़बारी हुई है, लेकिन यहाँ के नज़ारों ने मन खुश कर दिया ! यहाँ ऊपर जाते हुए खुले मैदान में तेज हवा ठंड तो पैदा कर रही थी लेकिन सूर्य देव की उपस्थिति और ऊपर जाने का जोश इस ठंड को बेअसर साबित कर रहा था !
चढ़ाई के कारण शरीर में गर्मी पैदा हो रही थी इसलिए ठंड महसूस नहीं हो रही थी, रुकने पर ज़रूर ठंड का पता चल रहा था ! धीरे-2 हम काफ़ी ऊँचाई पर पहुँच गए, जैसे-2 ऊँचाई बढ़ती जा रही थी, मुख्य मार्ग पर गिरी बर्फ की परत भी मोटी होती जा रही थी ! अधिकतर जगह नर्म बर्फ थी इसलिए पैर नहीं फिसल रहे थे वरना सख़्त बर्फ पर चलने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती ! कई जगह तो बर्फ पर छोटे जीव-जंतुओं के पैरों के निशान भी देखने को मिले, वो अलग बात है कि हम पहचान नहीं सके कि निशान किस जानवर के थे ! इसी बीच हमें दूर पहाड़ी के ऊपर दो झंडे दिखाई दिए, जिन्हें देखकर जयंत बोला, मुझे पक्के से पता है कि वो झंडे मंदिर प्रांगण में ही है, क्योंकि मैं यहाँ पहले भी आया हुआ हूँ ! हम सब भी बहुत खुश हुए कि चलो अब तो हम पहुँचने ही वाले है, इसलिए तेज कदमों से मंदिर की ओर चढ़ाई जारी रखी ! लेकिन जब झंडे के पास पहुँचे तो उत्साह थोड़ा कम हो गया, क्योंकि ये झंडा मंदिर प्रांगण में नहीं था !
इस मार्ग पर कई जगह छोटे-2 मंदिर बना दिए गए है और कहीं-2 तो पत्थर और मूर्तियाँ रखकर छोटे-2 दीवार खड़े कर दिए गए है ! ये झंडे भी मुख्य भवन के प्रांगण में ना होकर ऐसे ही एक स्थान पर थे, मंदिर जाने वाले लोग यहाँ भी सिर झुकाकर जाते है ! झंडो से थोड़ी आगे बढ़े तो सीधा मार्ग काफ़ी दूर तक जा रहा था, इस मार्ग के दाईं ओर पहाड़ी पर मंदिर दिखाई दे रहा था, इस बार हम आश्वस्त थे क्योंकि मंदिर का मुख्य भवन यहाँ से दिखाई दे रहा था ! जब हम झंडे पर पहुँचकर आराम करने के लिए थोड़ी देर रुके तो सौरभ हमने काफ़ी आगे निकल गया, हम रुक-रुककर आगे बढ़ रहे थे लेकिन झंडे के बाद वो लगातार चलता रहा ! आधे घंटे की चढ़ाई के बाद मैं और जयंत मंदिर के ठीक सामने वाले मैदान में पहुँचे, यहाँ से मुख्य मार्ग तो काफ़ी घूम कर मंदिर तक जा रहा था, जबकि एक चढ़ाई भरा शॉर्टकट मार्ग सीधे मंदिर तक पहुँच रहा था !
शॉर्टकट वाला मार्ग चढ़ाई भरा था और इसपर खूब बर्फ गिरी हुई थी, सौरभ मंदिर पहुँच चुका था और हमें देखकर वो बोला, बर्फ वाले रास्ते से आ जाओ, जल्दी पहुँच जाओगे !
खुला मैदान होने के कारण आवाज़ काफ़ी दूर तक एकदम साफ सुनाई दे रही थी, अगले कुछ मिनटों में हम उस बर्फ वाले रास्ते को पार करके मंदिर तक पहुँच गए ! जीतू अभी हमसे काफ़ी पीछे था और वो पहाड़ो की वीडियो बनाता हुआ आराम से चल रहा था ! मंदिर के द्वार बंद थे इसलिए हमने बाहर से ही प्रार्थना की और फिर मंदिर प्रांगण की फोटो खींचने लगे ! यहाँ मंदिर के आस-पास की सभी दुकानें बंद थी और हमें वहाँ चोरी के कोई लक्षण नहीं दिखाई दिए जैसा वो वन विभाग का कर्मचारी नीचे सबको बता रहा था ! चारों तरफ बर्फ गिरने की वजह से पहाड़ियाँ एकदम सफेद दिखाई दे रही थी, लेकिन इसी बीच एक पहाड़ी के ऊपर घने बादल भी मंडरा रहे थे ! समय शाम के 5 बजने वाले थे, चंद्रशिला की छोटी यहाँ से लगभग 1 किलोमीटर है और इस एक किलोमीटर में ही लगभग 320 मीटर की चढ़ाई है जो बहुत तेज चढ़ाई है ! हमें पता था कि अगर हम अभी चंद्रशिला गए तो ऊपर पहुँचते-2 ही रात हो जाएगी !
यहाँ एक पल तो बड़ा अफ़सोस हुआ कि काश तुंगनाथ की चढ़ाई समय से शुरू कर दी होती तो चंद्रशिला भी आज ही हो आते, लेकिन इसके साथ ही खुशी भी हुई कि चलो तुंगनाथ तो आ ही गए है अगली बार कभी आना हुआ तो चंद्रशिला भी देख लेंगे ! वैसे हमारे पास टॉर्च और गरम कपड़े थे लेकिन पहाड़ी पर मंडरा रहे घने बादल भी हमारे लिए एक बाधा थे, इसलिए चंद्रशिला जाने का विचार त्याग दिया ! पता चला चंद्रशिला गए और मौसम ज़्यादा खराब हो गया तो रुकने की व्यवस्था भी नहीं मिलती ! थोड़ी देर बाद जीतू भी यहाँ पहुँच गया, कुछ समय मंदिर के पास बिताने के बाद हमने वापसी की राह पकड़ी ! वापसी में हमें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा, जिसका वर्णन मैं अपने अगले लेख में करूँगा !
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हमारे टेंट से दिखाई देता एक दृश्य (A view from our Tent in Chopta) |
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चोपता में एक शानदार सुबह (A beautiful morning in Chopta) |
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दूर तक बर्फ गिरी हुई है |
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तुंगनाथ जाने के मार्ग में लिया एक चित्र |
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तुंगनाथ जाने का मार्ग (Way to Tungnath Temple) |
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मंदिर जाने वाले मार्ग के किनारे गिरी बर्फ |
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मंदिर जाने वाले मार्ग के किनारे गिरी बर्फ |
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तुंगनाथ जाने का मार्ग (Way to Tungnath Temple) |
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रास्ते में पड़ने वाला बुग्याल |
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बर्फ से लदी एक झोपड़ी |
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ऊपर से दिखाई देता बुग्याल |
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एक क्षतिग्रस्त झोपड़ी |
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इसी पहाड़ी पर चढ़कर हमें तुंगनाथ जाना है |
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ऊपर से दिखाई देता मार्ग |
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मंदिर जाने वाले मार्ग पर गिरी बर्फ |
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मार्ग से दिखाई देता एक दृश्य |
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मार्ग से दिखाई देता एक दृश्य |
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मार्ग से दिखाई देता एक दृश्य |
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मंदिर जाते हुए लिया एक चित्र |
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इसी झंडे को देखकर ग़लतफहमी हुई थी |
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ऊपर से दिखाई देता घाटी का एक खूबसूरत दृश्य (A beautiful view of valley) |
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पहाड़ी पर गिरी बर्फ की मोटी परत |
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ऊपर आने का शॉर्टकट रास्ता |
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तुंगनाथ जाते हुए रास्ते में एक मंदिर |
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बर्फ से घिरा तुंगनाथ जाने का मार्ग |
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बर्फ से घिरा तुंगनाथ जाने का मार्ग |
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खूब बर्फ गिरी हुई है |
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खूब बर्फ गिरी हुई है |
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ऊँचाई से दिखाई देता एक दृश्य |
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राह में पड़ने वाले मंदिर तक जाने का मार्ग |
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हर नज़ारा लाजवाब है |
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हर नज़ारा लाजवाब है |
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बस मंदिर पहुँचने ही वाले है |
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मुख्य भवन तक जाने का शॉर्टकट मार्ग |
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मंदिर से दिखाई देता नीचे का एक दृश्य |
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इसे देखकर क्या कहेंगे आप ? |
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मंदिर से दिखाई देता नीचे का एक दृश्य |
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मंदिर जाने का मार्ग |
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यात्रा सीजन में इसी प्रवेश मार्ग से मंदिर में दाखिल होते है |
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मंदिर परिसर में एक अन्य मंदिर |
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तुंगनाथ मंदिर का मुख्य भवन |
क्यों जाएँ (Why to go Chopta): अगर आपको धार्मिक स्थलों के अलावा रोमांचक यात्राएँ करना अच्छा लगता है तो चोपता आपके लिए एक बढ़िया विकल्प है ! यहाँ पहाड़ों की ऊँचाई पर स्थित तुंगनाथ मंदिर की छटा देखते ही बनती है !
कब जाएँ (Best time to go Chopta): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में तुंगनाथ जा सकते है लेकिन उत्तराखंड में स्थित चार धामों की तरह तुंगनाथ का मंदिर भी साल के 6 महीने ही खुलता है ! मई के प्रथम सप्ताह में खुलकर ये अक्तूबर के अंतिम सप्ताह में बंद हो जाता है ! मंदिर के द्वार बंद होने के बाद भी लोग ट्रेक करने के लिए यहाँ जाते है, चंद्रशिला जाने के लिए रास्ता तुंगनाथ मंदिर होकर ही जाता है ! गर्मियों के महीनों में भी यहाँ बढ़िया ठंडक रहती है जबकि दिसंबर-जनवरी के महीने में तुंगनाथ में भारी बर्फ़बारी होती है इसलिए कई बार तो रास्ता भी बंद कर दिया जाता है ! बर्फ़बारी के दौरान अगर तुंगनाथ जाने का मन बना रहे है तो अतिरिक्त सावधानी बरतें !
कैसे जाएँ (How to reach Chopta): दिल्ली से चोपता जाने के लिए सबसे अच्छा मार्ग सड़क मार्ग है वैसे आप हरिद्वार तक ट्रेन से और उससे आगे का सफ़र बस, जीप या टैक्सी से भी कर सकते है ! दिल्ली से चोपता की कुल दूरी 405 किलोमीटर है जबकि हरिद्वार से ये दूरी 183 किलोमीटर रह जाती है !दिल्ली से चोपता पहुँचने में आपको 11-12 घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Chopta): चोपता में रुकने के लिए बहुत ज़्यादा विकल्प नहीं है गिनती के 2-4 होटल है जहाँ रुकने के लिए आपको 800 से 1000 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है ! अगर आप टेंट में रुकना चाहते है तो आप अपने साथ लाए टेंट लगा सकते है या ये होटल भी आपको किराए पर टेंट मुहैया करवा देंगे !
क्या देखें (Places to see in Chopta): चोपता में प्राकृतिक दृश्यों की भरमार है चारों तरह बर्फ से लदी ऊँची-2 पहाड़ियाँ सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती है ! आप किसी भी तरफ सिर उठाकर देखेंगे तो आपको प्रकृति का अलग ही रूप दिखाई देगा ! इसलिए अलावा यहाँ 3680 मीटर की ऊँचाई पर स्थित भगवान शिव का मंदिर है जो दुनिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर माना जाता है ! इस मंदिर से एक किलोमीटर आगे 4000 मीटर की ऊँचाई पर चंद्रशिला है ! चढ़ाई करते हुए हिमालय पर्वत श्रंखलाओं का जो दृश्य दिखाई देता है वो सफ़र की थकान मिटाने के लिए काफ़ी है !
अगले भाग में जारी...
तुंगनाथ यात्रा
- दिल्ली से हरिद्वार की ट्रेन यात्रा (A Train Journey to Haridwar)
- हरिद्वार से चोपता की बस यात्रा (A Road Trip to Chopta)
- विश्व का सबसे ऊँचा शिव मंदिर – तुंगनाथ (Tungnath - Highest Shiva Temple in the World)
- तुंगनाथ से चोपता वापसी (Tungnath to Chopta Trek)
- चोपता से सारी गाँव होते हुए देवरिया ताल (Chopta to Deoria Taal via Saari Village)
- ऊखीमठ से रुद्रप्रयाग होते हुए दिल्ली वापसी (Ukimath to New Delhi via Rudrprayag)
प्रदीप जी तुंगनाथ यात्रा पढकर मजा आ गया, बर्फ कम पडने के बावजूद भी काफी बर्फ दिखाई पड रही है।
ReplyDeleteसचिन भाई, आपको पढ़कर इतना अच्छा लगा तो सोचो हमें वहाँ जाकर कितना मज़ा आया होगा ! हाँ, इस साल कम बर्फ पड़ने के बावजूद भी हमें तो वहाँ खूब बर्फ मिली, ज़्यादा पड़ने पर पता नहीं क्या हाल होता होगा?
Deleteप्रदीप जी......
ReplyDeleteयात्रा लेख वाकई में रोमांचक लगा और फोटूओ ने इस जगह के साक्षात् देखने की कमी को पूरा कर दिया..... चोपता से कितने किलोमीटर का रास्ता है तुंगनाथ जी का ?
धन्यवाद रितेश भाई, चोपता से तुंगनाथ की दूरी 3.5 किलोमीटर के आस-पास है ! रास्ता खूबसूरत नज़ारों से भरा पड़ा है !
Deleteतुंगनाथ मंदिर के दर्शन करके मन प्रसन्न हो गया प्रदीप जी ! बहुत ही खूबसूरत जगह ! रास्ता भी बहुत ही शानदार हैं
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी, वाकई लाजवाब जगह है तुंगनाथ !
Deleteतुम्हारी तो बल्ले बल्ले हो गई प्रदीप क्या बर्फ है ।मजेदार
ReplyDeletehaan ji bilkul sahi kaha aapne, barf dekh kar balle-2 hi ho gai...
Deleteसुन्दर यात्रा वर्णन प्रदीप जी और चित्रों का तो जवाब ही नही ।आपसे प्रसन्न हुए तुंगनाथ महादेव तभी इतनी बर्फ मिली आपको...
ReplyDeleteधन्यवाद त्यागी जी, भगवान प्रसन्न तो थे ही हमसे !
Deleteजिस ढंग से आपने वर्णन किया ,
ReplyDeleteयहाँ की एक एक चीज़ को निहारा
बहुत अच्छा लगा , मज़ा भी आया ,
फ़ोटो बहुत अच्छे हैं
हम लोग फरबरी में जाने का सोच रहे हैं ,
तब कैसा रहेगा बहा का मौसम
धनञ्जय जी, हम लोग भी बर्फ़बारी के दौरान ही गए थे, खूब बर्फ गिरी थी, जहाँ देखो सफ़ेद चादर सी दिखाई देती है ! लेकिन बर्फ में चलते समय सावधानी बरतियेगा वरना शाम होते-2 बर्फ सख्त होकर फिसलन भरी हो जाती है !
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