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नवाब शादत अली ख़ान का मकबरा
लखनऊ के बेगम हज़रत महल पार्क के बारे में तो आपने सुना ही होगा, अगर नहीं सुना तो आपको बता दूँ कि ये पार्क लखनऊ में धरना देने और रेलियों के आयोजन के लिए मशहूर है ! परिवर्तन चौक के पास स्थित इस पार्क को पहले विक्टोरिया पार्क के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में इसका नाम बदलकर बेगम हज़रत महल पार्क कर दिया गया ! इस पार्क के बगल से जाने वाले मार्ग के उस पार एक बड़े मैदान में दो प्राचीन इमारतें है ! मुख्य मार्ग से जाने पर ये दोनों इमारतें अपनी सुंदरता की वजह से अक्सर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच ही लेती है ! परिवर्तन चौक से निकलते समय मैं भी इन इमारतों की सुंदरता से बच नहीं सका और पहली नज़र पड़ते ही इन इमारतों को देखने की इच्छा होने लगी ! मोटरसाइकल चला रहे उदय को जब मैने अपनी इच्छा से अवगत कराया तो उसने मोटरसाइकल इन इमारतों के मुख्य द्वार की ओर मोड़ दी ! इस मैदान के प्रवेश द्वार के सामने पहुँचे तो पता चला कि मोटरसाइकल अंदर ले जाने की व्यवस्था नहीं है, और हमें बाहर भी कोई पार्किंग नहीं दिखाई दी !
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नवाब शादत अली ख़ान का मकबरा |
फिर वहीं सड़क किनारे खड़े एक ठेले वाले से पार्किंग के बारे में पूछा तो वो बोला कि यहाँ कोई आता-जाता नहीं है इसलिए पार्किंग की व्यवस्था भी नहीं है ! इक्का-दुक्का लोग यहाँ आते भी है तो पैदल ही आते है या अपनी गाड़ी हज़रत महल पार्क की पार्किंग में खड़ी करके आते है ! हमने उससे खाने का थोड़ा सामान खरीदा तो वो बोला कि अगर आपको इमारत देखने अंदर जाना है तो अपनी मोटरसाइकल यहीं खड़ी कर जाओ, मैं ध्यान रखूँगा ! हमने अपना हेल्मेट उस ठेले वाले के पास रखा और मोटरसाइकल वहीं सड़क के किनारे खड़ी करके इमारत के प्रवेश द्वार की ओर चल दिए ! अंदर जाने का कोई प्रवेश शुल्क तो था नहीं, इसलिए मुख्य द्वार से सीधे अंदर इमारत परिसर में पहुँच गए ! मुख्य द्वार से आगे बढ़ते ही एक पक्का रास्ता बना है जो आगे जाकर सीढ़ियों से होता हुआ मक़बरे की मुख्य इमारत तक जाता है ! दरअसल, ये मकबरा एक ऊँचे चबूतरे पर बना है और इसके चारों ओर खुला मैदान है जिसमें रंग-बिरंगे फूल लगे है ! ये मकबरा कैसरबाग इलाक़े में आता है और हिंदू-मुस्लिम वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है !
जब हम मकबरा परिसर में पहुँचे तो कुछ लोग बाग-बगीचे की देख-रेख में लगे थे ! हमें अंदर आता देख वहाँ मौजूद लगभग सभी लोग काफ़ी देर तक हमें देखते रहे और फिर अपने-2 काम में लग गए ! उनके हाव-भाव देखकर अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि यहाँ बहुत ज़्यादा लोग नहीं आते, इसलिए आज हमें अंदर आता देख कर उन्हें थोड़ा अचरज तो ज़रूर हुआ होगा ! ये मकबरा अवध के नवाब शादत अली ख़ान का है और मक़बरे के ऊपर बहुमंज़िला इमारत बनी है ! इसी मैदान के दूसरे छोर पर नवाब की बेगम मुर्शीदज़ादी का मकबरा भी बना है, जिसका वर्णन में इस लेख में आगे करूँगा ! शादत अली ख़ान के मक़बरे का निर्माण उनके बेटे गाज़ी-उद्-दीन ने करवाया था ! इस मक़बरे की दीवारों पर धनुष के आकार की अनगिनत खिड़कियाँ और दरवाजे बने है, इमारत की बाहरी दीवारों पर भी बढ़िया कारीगरी की गई है ! इस इमारत के फर्श को बनाने में काले और सफेद रंग के संगमरमर का प्रयोग किया गया है, हालाँकि, काफ़ी समय हो जाने और रख-रखाव के अभाव में इन पत्थरों की चमक फीकी पड़ गई है !
इमारत के ऊपरी भाग में एक बड़ा गुंबद है जिसके ऊपर एक गुलदस्ता बना है ! इस इमारत को बनाने में लखौरी ईंट और चूने के गारे का ईस्तमाल हुआ है ! प्रसिद्ध इतिहासकार "रोशन तक़ुई" ने कभी इस इमारत को देखकर कहा था कि अगर इस इमारत को बनाने में लखौरी ईंट की जगह सफेद संगमरमर का इस्तेमाल हुआ होता तो ये इमारत ताजमहल को भी टक्कर देने की काबिलियत रखता ! वैसे, मक़बरे से पहले इस जगह शादत अली ख़ान का निवास हुआ करता था, शादत अली ख़ान 16 साल तक अवध के नवाब रहे ! फिर सन 1814 में उनकी मृत्यु के बाद जब उनके पुत्र गाज़ी-उद्-दीन सिंघासन पर क़ाबिज़ हुए तो उन्होनें अपना निवास स्थान यहाँ से बदल कर छत्तीस-मंज़िल को बना लिया ! नए निवास स्थान पर जाने के बाद उन्होने अपने पिता के लिए कुछ करने की सोची तो अपने पुराने महल को गिराकर मरहूम पिता के लिए उसी ज़मीन पर उनका मकबरा बनवा दिया ! मकबरा बनने से पहले इस स्थान के आस पास के इलाक़े को ख़ास बाज़ार के नाम से जाना जाता था जो उस दौर के प्रतिष्ठित लोगों, शाही परिवार के सदस्यों, और उनके मेहमानों के लिए था !
बाद में यहाँ मकबरा बना और वर्तमान में ये इलाक़ा क़ैसरबाग में आता है ! इस इमारत की वर्तमान हालत दयनीय है और यहाँ घूमने-फिरने भी शायद ही कोई आता है ! हम दोनों जितनी देर भी इस परिसर में थे हमारे अलावा कोई दूसरा व्यक्ति यहाँ नहीं आया ! यहाँ मौजूद लोगों से मिली जानकारी के मुताबिक इस इमारत में शादत अली ख़ान के अलावा उनके पोते और दूसरे रिश्तेदारों के मक़बरे भी है ! इस इमारत के अंदर जाने पर कोई पाबंदी नहीं है, लेकिन जब हम दोनों इस इमारत के अंदर जा रहे थे कि तभी वहाँ मौजूद एक व्यक्ति ने हमें टोका ! हमारे रुकने के बाद उसने हमसे कहा कि हम दोनों को अंदर जाने के लिए 50 रुपए देने होंगे, मुझे कोई आपत्ति नहीं थी, और मैने जेब से निकालकर उसे पैसे दे भी दिए ! फिर रसीद माँगने पर वो बोला कि रसीद तो नहीं मिलेगी, और वैसे भी घूमने आए हो तो रसीद का क्या करोगे ! आप जूते यहीं उतारकर अंदर जाओ और इमारत को देख लो, ऊपर जाना है तो ऊपर भी चले जाना ! ये सुनकर जब उदय ने उससे पूछा कि अंदर देखने के लिए क्या है, तो वो बोला कि अंदर मक़बरे है ! उदय मुझसे बोला कि भैया मक़बरे देखकर क्या करोगे, हमें फोटो खींचनी थी वो हम खींच ही चुके है तो अंदर नहीं जाते !
मुझे थोड़ा अटपटा लगा लेकिन मैने उदय से ज़्यादा सवाल-जवाब नहीं किया और वापिस अपने जूते पहन लिए, और उस व्यक्ति से अपने पैसे भी वापिस ले लिए ! हालाँकि, पैसे देते समय वो खीझ भी रहा था कि अभी तो आप अंदर जाने के लिए तैयार थे लेकिन अब एकदम से मना क्यों कर रहे हो ! हमने कहा कि बस मन नहीं है अंदर जाने का, वैसे मुझे अंदेशा था कि वो व्यक्ति हमसे ऐसे ही पैसे ऐंठ रहा था, यहाँ कोई प्रवेश शुल्क नहीं लगता ! अगर लगता तो निश्चित तौर पर प्रवेश टिकट मिलती, मैने ऐसी ऐतिहासिक जगहें भी देखी है जहाँ का प्रवेश शुल्क 5 रुपए होता है और उसके लिए भी प्रवेश टिकट दिया जाता है ! फिर यहाँ तो ये हमसे 50 रुपए ले रहा था, कुछ तो गड़बड़ थी ! खैर, बाद में जब मैने उदय से अंदर ना जाने का कारण पूछा तो वो बोला कि इस इमारत में सिर्फ़ क़ब्रें ही है और यहाँ लोगों का आना-जाना भी बहुत कम है ! किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए उसने अंदर जाना उचित नहीं समझा ! हम दोनों मक़बरे के बाहर ही काफ़ी देर तक घूम कर चारों ओर के फोटो खींचते रहे और फिर इस मैदान के दूसरे छोर की ओर चल दिए !
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मक़बरे जाते हुए मार्ग में लिया एक चित्र |
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मक़बरे का प्रवेश द्वार |
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जानकारी दर्शाता एक बोर्ड |
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मक़बरे तक जाने का पक्का मार्ग |
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मक़बरे का एक और दृश्य |
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चबूतरे से दिखाई देता एक दृश्य |
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शादत अली ख़ान मकबरा |
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पता नहीं क्यों परेशान सा लग रहा हूँ |
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बगल से लिया मक़बरे का एक चित्र |
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मक़बरे के ऊपरी भाग का एक चित्र |
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मक़बरे परिसर में फूल-पौधे |
बेगम मुर्शीदज़ादी का मकबरा
मैदान के इस छोर पर शादत अली ख़ान की बेगम मुर्शीदज़ादी का मकबरा था ! क़ैसरबाग से गुज़रते हुए मुख्य सड़क के किनारे मौजूद इस इमारत पर नज़र तो हर किसी की जाती है पर शायद ही कोई इस इमारत को देखने के लिए अंदर आता हो ! हालाँकि, जब हम यहाँ पहुँचे तो इस इमारत की मरम्मत का काम चल रहा था इसलिए इसके अंदर जाने पर मनाही थी, लेकिन इस इमारत की सुंदरता बाहर से भी कुछ कम नहीं है ! नवाब की बेगम मुर्शीदज़ादी के देहांत के बाद उनके बेटे गाज़ी-उद्-दीन ने उनका मकबरा भी शादत अली ख़ान के मक़बरे के बगल में ही बनवा दिया ! 1824 में निर्मित ये इमारत भी वास्तुकला की दृष्टि से हिंदू-मुस्लिम शैली को प्रदर्शित करती है ! इस इमारत के चारों ओर खूब हरियाली है जो कभी यहाँ आने वाले लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती थी लेकिन अब तो यहाँ बिरला ही कोई आता है ! ये इमारत मीनारों, बुर्ज और गुंबद से बनी है, इमारत के चारों ओर मीनारें बनी है जबकि इसके ऊपरी भाग में एक गुंबद है !
धनुष की आकृति में बने इस इमारत के दरवाजे और खिड़कियाँ शानदार वास्तुकला को प्रदर्शित करते है, इस इमारत की बाहरी दीवारों पर भी बारीक कारीगरी की गई है जो इमारत की सुंदरता में चार-चाँद लगा देती है ! ये इमारत अब अपना प्रारंभिक रूप खो चुकी थी लेकिन भला हो पुरातत्व विभाग का जो इसकी मरम्मत करके इसे इसका प्रारंभिक रूप देने में लगा हुआ है ! ये दोनों मक़बरे पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है और इनकी देख-रेख की ज़िम्मेदारी भी इन्ही की है ! मुर्शीदज़ादी के मक़बरे वाली इमारत की मरम्मत का काम देख कर अच्छा लगा क्योंकि अब ये इमारत फिर से चमकने लगी है ! ये ऐतिहासिक धरोहरें है और अगर इनका रख-रखाव अच्छे से किया गया तो आने वाले समय में ये यहाँ आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकते है ! इस इमारत की भी कुछ फोटो खींचने के बाद हम दोनों यहाँ से बाहर की ओर चल दिए जहाँ हमारी मोटरसाइकल खड़ी थी !
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मुर्शीदज़ादी के मक़बरे की जानकारी |
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सड़क से दिखाई देता मकबरा |
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शादत अली ख़ान के मक़बरे से दिखाई देता मुर्शीदज़ादी का मकबरा |
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मक़बरे का एक और दृश्य |
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मरम्मत का काम ज़ोरों पर है |
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मुर्शीदज़ादी के मक़बरे से दिखाई देता शादत अली ख़ान का मकबरा |
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मरम्मत का काम ज़ोरों पर है |
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मकबरा परिसर में लिया एक चित्र |
क्यों जाएँ (Why to go Lucknow): वैसे नवाबों का शहर लखनऊ किसी पहचान का मोहताज नहीं है, इस शहर के बारे में वैसे तो आपने भी सुन ही रखा होगा ! अगर आप प्राचीन इमारतें जैसे इमामबाड़े, भूल-भुलैया, अंबेडकर पार्क, या फिर जनेश्वर मिश्र पार्क घूमने के साथ-2 लखनवी टुंडे कबाब और अन्य शाही व्यंजनों का स्वाद लेना चाहते है तो बेझिझक लखनऊ चले आइए !
कब जाएँ (Best time to go Lucknow): आप साल के किसी भी महीने में लखनऊ जा सकते है ! गर्मियों के महीनों यहाँ भी खूब गर्मी पड़ती है जबकि दिसंबर-जनवरी के महीने में यहाँ बढ़िया ठंड रहती है !
कैसे जाएँ (How to reach Lucknow): दिल्ली से लखनऊ जाने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन भारतीय रेल है दिल्ली से दिनभर लखनऊ के लिए ट्रेनें चलती रहती है किसी भी रात्रि ट्रेन से 8-9 घंटे का सफ़र करके आप प्रात: आराम से लखनऊ पहुँच सकते है ! दिल्ली से लखनऊ जाने का सड़क मार्ग भी शानदार बना है 550 किलोमीटर की इस दूरी को तय करने में भी आपको 7-8 घंटे का समय लग जाएगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Lucknow): लखनऊ एक पर्यटन स्थल है इसलिए यहाँ रुकने के लिए होटलों की कमी नहीं है आप अपनी सुविधा के अनुसार चारबाग रेलवे स्टेशन के आस-पास या शहर के अन्य इलाक़ों में स्थित किसी भी होटक में रुक सकते है ! आपको 500 रुपए से शुरू होकर 4000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Lucknow): लखनऊ में घूमने के लिए बहुत जगहें है जिनमें से छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा, भूल-भुलैया, आसिफी मस्जिद, शाही बावली, रूमी दरवाजा, हुसैनबाद क्लॉक टॉवर, रेजीडेंसी, कौड़िया घाट, शादत अली ख़ान का मकबरा, अंबेडकर पार्क, जनेश्वर मिश्र पार्क, कुकरेल वन और अमीनाबाद प्रमुख है ! इसके अलावा भी लखनऊ में घूमने की बहुत जगहें है 2-3 दिन में आप इन सभी जगहों को देख सकते है !
क्या खरीदे (Things to buy from Lucknow): लखनऊ घूमने आए है तो यादगार के तौर पर भी कुछ ना कुछ ले जाने का मन होगा ! खरीददारी के लिए भी लखनऊ एक बढ़िया शहर है लखनवी कुर्ते और सूट अपने चिकन वर्क के लिए दुनिया भर में मशहूर है ! खाने-पीने के लिए आप अमीनाबाद बाज़ार का रुख़ कर सकते है, यहाँ के टुंडे कबाब का स्वाद आपको ज़िंदगी भर याद रहेगा ! लखनऊ की गुलाब रेवड़ी भी काफ़ी प्रसिद्ध है, रेलवे स्टेशन के बाहर दुकानों पर ये आसानी से मिल जाएगी !
अगले भाग में जारी...
लखनऊ यात्रा
बहुत बढ़िया प्रदीप ! सुबह-ए-बनारस की तरह दुनिया शाम-ए-अवध को भी जानती है पर शायद सरकारों की उदासीनता और जनता में जागरूकता में कमी की वजह से यह सब इमारते अब खण्डहरों में ही तब्दील होने के कगार पर हैं।
ReplyDeleteआपकी बात से मैं सहमत हूँ पाहवा जी !
Deleteभाई आप ने पैसे नहीं देके ठिक किया
ReplyDeleteबहुत सुंदर मकबरा है जब लोग इसे देखने नहीं आते तो ईतना सुंदर बाग़ बनाने की जरूर ही क्या है।
ReplyDeleteकाफ़ी कुछ तो राजनीति की वजह से है !
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