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लखनऊ के अंबेडकर पार्क का नाम तो आप सबने ही सुना होगा, ये पार्क अपने शुरुआती दिनों में काफ़ी चर्चा में भी रहा था ! लेकिन वो अब पुरानी बात हो गई, लखनऊ में वैसे तो अनेको छोटे-बड़े पार्क है, या अगर यूँ कहें कि लखनऊ पार्कों का गढ़ है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ! लखनऊ के इन पार्कों की श्रेणी में अब एक नाम और जुड़ गया है, जी हाँ, ये है लखनऊ का जनेश्वर मिश्र पार्क ! 376 एकड़ में फैले इस पार्क की नींव उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने सत्ता संभालने के बाद 6 अगस्त 2012 को रखी ! ये पार्क समाजवादी पार्टी के मुखिया श्री मुलायम सिंह यादव का सपना था जिसे उनके बेटे ने पूरा किया ! 168 करोड़ रुपए की लागत से बने इस पार्क को एशिया का सबसे बड़ा पार्क होने का रुतबा भी हासिल है ! 2 साल में तैयार हुए इस पार्क को आम जनता के लिए 5 अगस्त 2014 को खोल दिया गया ! लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन में बने इस पार्क में जाने का मौका मुझे इस नए साल पर अपनी लखनऊ यात्रा के दौरान मिला !
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जनेश्वर मिश्र पार्क का प्रवेश द्वार (Entrance to Janeshwar Mishr Park, Lucknow) |
लखनऊ के मुख्य शहर से बाहर निकलकर गोमती नगर एक्सटेंशन में स्थित ये पार्क समाजवादी पार्टी के नेता जनेश्वर मिश्र को समर्पित है ! नेताजी की स्मृति स्वरूप पार्क के बीच में उनकी 25 फीट की एक प्रतिमा भी लगी है, ये प्रतिमा एक ऐसी ऊँची जगह देख कर लगाई गई है कि पार्क के हर कोने से दिखाई दे सके ! मैं और उदय अपनी मोटरसाइकल पर सवार होकर अंबेडकर पार्क के बगल वाले मार्ग से होते हुए बाईपास रोड पर पहुँच गए, फिर सहारा ऑडिटोरियम के बगल से जाने वाले फ्लाइओवर पर चढ़कर एक रेलवे लाइन को पार किया और पार्क के साथ-2 जाने वाले मार्ग पर पहुँच गए ! इस फ्लाइओवर पर लोग जगह-2 अपनी गाड़ी खड़ी करके फोटो खींचने में लगे थे, वैसे मुझे यहाँ से ऐसा कोई दृश्य नज़र नहीं आ रहा था कि गाड़ी रोककर फोटो खींची जाए ! जब हम दोनों इस पार्क के प्रवेश द्वार के सामने पहुँचे तो नए साल का पहला दिन होने के कारण यहाँ काफ़ी लोग आए हुए थे ! लोगों की भीड़ का आलम ये थे कि गाड़ी खड़ी करने की व्यवस्था भी नहीं थी, इस पार्क के सामने ही एक मैदान में अस्थाई पार्किंग की व्यवस्था है जहाँ लोग अपनी गाड़ियाँ आडी-तिरछी खड़ी करके चले गए थे !
एक तो साल का पहला दिन और दूसरा छुट्टी का दिन होने के कारण ऐसा लग रहा था कि सारा लखनऊ शहर ही उठकर ये पार्क देखने चला आया है ! अस्थाई पार्किग की हालत ये थी कि अपनी गाड़ी निकालना तो दूर की बात है पहले उसे ढूँढना ही टेढ़ा काम था ! अगर यहाँ पार्किंग की उचित व्यवस्था होती तो ज़्यादा अच्छा रहता, फिलहाल तो यहाँ के हालात बदतर ही थे ! इस पार्क के सामने ही एक चौराहा है, लेकिन आज ये चौराहा भी जाम पड़ा था और वाहनों की लंबी कतार लगी हुई थी ! यहाँ आने वाले अन्य लोगों की तरह हमने भी पार्क के सामने वाले मैदान में ही अपनी मोटरसाइकल खड़ी की और सड़क पार करते हुए पार्क के प्रवेश द्वार की ओर चल दिए ! वैसे इस पार्क में प्रवेश करने के 4 द्वार है लेकिन हमने गोमती नगर एक्सटेंशन मार्ग पर बने द्वार से प्रवेश किया ! सबसे बड़ी बात कि इस पार्क में कोई प्रवेश शुल्क नहीं है वरना लखनऊ के काफ़ी पार्को में नाम मात्र का ही सही, प्रवेश शुल्क तो है ! पार्क के अंदर प्रवेश द्वार के ठीक सामने खूबसूरत फव्वारे लगे है, जो यहाँ आने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते है ! इस समय भी इस फव्वारे के चारों ओर लोगों की खूब भीड़ लगी थी, लोग फव्वारों के चारों तरफ बनी रेलिंग के किनारे खड़े होकर फोटो खिंचवाने में लगे थे !
यहाँ जमा लोगों की भीड़ देखकर हम दोनों फव्वारों को दूर से देखकर ही बिना रुके आगे बढ़ गए ! प्रवेश द्वार के पास ही हमारी बाईं ओर प्रदर्शनी स्वरूप एक तोप रखी हुई थी, इसके आस-पास भी लोग खड़े होकर फोटो खिंचवाने में लगे थे ! इस तोप की एक-दो फोटो लेने के बाद हम आगे निकल गए, 10 कदम चलते ही हमें वायुसेना का एक विमान भी दिखाई दिया ! ये विमान भी यहाँ प्रदर्शनी के लिए ही लगाया गया था, लोग प्रदर्शनी का पूरा आनंद ले रहे थे ! यहाँ से पार्क के अंदर अलग-2 दिशाओं में जाने के लिए पक्के मार्ग बने हुए है, यहाँ से सीधा जाने वाला मार्ग जनेश्वर मिश्र की प्रतिमा तक जा रहा था ! इस मार्ग पर चलते हुए हम मूर्ति के सामने पहुँचे, पत्थर से बनी ये मूर्ति एक चबूतरे पर रखी गई है ! इस चबूतरे पर जाने के लिए सीढ़ियाँ भी बनी हुई है, मूर्ति के बगल से होते हुए हम दोनों अपनी बाईं ओर जाने वाले मार्ग पर हो लिए ! इस मार्ग पर आगे जाकर एक कृत्रिम झील है, 14 एकड़ में बनी ये झील खूब दूर तक फैली है ! इस पार्क में इसी तरह की एक और झील भी है जो 18 एकड़ में फैली हुई है ! झील के किनारों को पत्थर से पक्का किया गया है और इसके चारों तरफ रेलिंग भी लगी है ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके !
इसके अलावा झील के किनारों पर सुरक्षाकर्मी भी खड़े रहते है जो लोगों को झील में नीचे जाने से रोकते है ! झील का पानी एकदम साफ है, इसलिए तलहटी तक का दृश्य एकदम साफ दिखाई देता है ! इस कृत्रिम झील में जगह-2 फव्वारे भी लगे है जो झील की सुंदरता को बढ़ा देते है ! झील के किनारे जगह-2 खड़े होकर लोग फोटो खिंचवाने में लगे थे, कोई झील की फोटो ले रहा था तो कोई झील के साथ सेल्फी लेने में लगा था ! झील का चक्कर लगाते हुए हम दोनों पार्क के दूसरे हिस्से में जाने वाले पक्के मार्ग पर हो लए ! ये मार्ग काफ़ी दूर तक गया है और इस पर भी काफ़ी लोग टहल रहे थे ! पार्क के अंदर बने मार्ग के दोनों ओर सुंदर बल्ब लगे हुए है, रात में जलते हुए ये काफ़ी सुंदर लगते होंगे ! वैसे इस पार्क में लगाए गए हर सामान पर सत्तारूढ़ पार्टी की झलक साफ दिखाई दे रही थी फिर वो चाहे यहाँ की लाइटें हो, पेड़ों के किनारे लगी ज़ालियाँ या कूड़ेदान ! एक से बढ़कर एक सुंदर सामान का प्रयोग इस पार्क में किया गया है जो यहाँ आने वाले लोगों को काफ़ी प्रभावित करता है !
कभी-2 ऐसे पार्कों को देखकर ऐसा लगता है कि अगर पार्कों की जगह ये पैसा विकास के अन्य कामों में लगाया गया होता तो शायद लोगों को ज़्यादा फ़ायदा होता ! बाकि ये मेरी निजी राय है और यहाँ राय प्रकट करने का हक़ तो सबको ही है ! कुछ लोग मानते है कि पार्क बना देने से शहर में साफ-सफाई रहती है वरना यहाँ गंदगी के ढेर लगे होते ! मैं उन लोगों की बात से सहमत हूँ पर किसी पार्क पर इतना खर्च किए बिना भी साफ-सफाई रखकर उस जगह का सही उपयोग किया जा सकता है ! खैर, इस लेख को एक बहस का मुद्दा ना बनाते हुए वापिस पार्क की ओर चलते है ! इस पार्क में आपको सैकड़ों तरह के पेड़-पौधे मिल जाएँगे फिर चाहे वो सजावट के पौधे हो या औषधि के ! पार्क के कुछ हिस्से में तो घना जंगल भी है जहाँ देश-विदेश से लाए पौधे लगाए गए है ! इन पेड़-पौधों के अलावा आपको इस पार्क में अलग-2 किस्म के पक्षी भी दिखाई देंगे जो सर्दी के मौसम में देश-विदेश से उड़कर यहाँ चले आते है ! पार्क के अंदर बने मार्ग पर जगह-2 सड़क के दोनों ओर कुछ फेरी वाले भी खड़े रहते है जहाँ से आप खाने-पीने का सामान ले सकते है !
इन फेरी वालों पर भी लोगों की अच्छी-ख़ासी भीड़ जमा थी, वैसे पार्क के अंदर हर आयु वर्ग के बच्चों के खेलने-कूदने की व्यवस्था है ! छोटे बच्चों के लिए झूले है तो थोड़ी बड़ी उम्र के बच्चों के लिए खेल-कूद के दूसरे इंतज़ाम है ! उम्रदराज लोगों के टहलने के लिए पार्क में खूब लंबा मार्ग बना है जबकि साइकल चलाने वाले लोगों के लिए भी एक अलग मार्ग बना है ! सड़क के किनारे मैदानों में लोग व्यायाम कर सकते है जबकि आराम करने के लिए जगह-2 पत्थर की कुर्सियाँ भी बनी है ! मतलब कुल मिलाकर इस पार्क में हर आयु वर्ग के लोगों के लिए कुछ ना कुछ है ! मैने यहाँ कुछ प्रकृति प्रेमियों को भी देखा जो अपने कैमरे में तरह-2 के पेड़-पौधों की फोटो खींचने में लगे थे जबकि कुछ अन्य झील के किनारे बनी रेलिंग के पास बैठ कर प्रकृति के इस रूप का आनंद ले रहे थे ! पार्क में बहुत से लोग अपने परिवार संग छुट्टी बिताने आए थे तो कुछ ऐसे प्रेमी-युगल भी देखने को मिले जिन्होनें दीन-दुनिया से दूर एकांत जगह की तलाश में इस पार्क की ओर रुख़ किया था !
10-12 युवकों का एक समूह पार्क के अंदर बने मार्ग के किनारे वाले एक मैदान में बैट-बाल का आनंद ले रहा था, वहीं पास में बैठे कुछ दर्शक उनकी हौंसला-अफजाई करने में लगे थे ! इस पार्क में टहलना काफ़ी अच्छा अनुभव रहा, लेकिन काफ़ी दूर तक चलने के कारण पैरों में थकान हो गई ! वैसे ये पार्क भी इतना बड़ा है कि आप चलते-2 थक जाओगे पर पार्क ख़त्म नहीं होगा ! आराम करने के लिए हम दोनों सड़क के किनारे बनी एक पत्थर की सीट पर बैठ गए ! इस पार्क में पीने के पानी से लेकर शौचालय तक की भी उचित व्यवस्था है ! वैसे अधिकतर भीड़ तो झील के आस-पास और पार्क के प्रवेश द्वार पर ही थी, यहाँ अंदर इतनी मारा-मारी नहीं थी ! थोड़ी देर आराम करने के बाद हम दोनों पार्क से बाहर की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! जिस मार्ग पर हम चल रहे थे वो सीधा पार्क के प्रवेश द्वार तक जाता था ! अंदर आते समय तो हम काफ़ी घूम कर आए थे इसलिए काफ़ी समय लगा लेकिन वापसी में हमें ज़्यादा वक़्त नहीं लगा और 10-15 मिनट में ही हम प्रवेश द्वार पर पहुँच गए !
पार्क से बाहर आए तो जाम के हालात अब भी जस के तस ही थे बल्कि मुझे तो अब और ज़्यादा भीड़ लग रही थी ! पार्क के बाहर भी बहुत से फेरी वाले खड़े रहते है जो खाने-पीने का सामान बेचते है ! एक ठेले वाले से हमने खाने के लिए बर्गर लिए, खाकर देखा तो बेस्वाद, फिर एक दूसरे दुकानदार से गोलगप्पे लिए, ये भी ख़ास नहीं था ! जब यहाँ का स्वाद नहीं भाया तो सोचा कि यहाँ से निकलकर रास्ते में कहीं कुछ खा लेंगे ! पार्किंग में गए तो जहाँ हमने मोटरसाइकल खड़ी की थी, उसके चारों तरफ इतनी गाड़ियाँ खड़ी हो गई थी कि मोटरसाइकल बाहर निकालने तक की जगह नहीं थी ! बड़ी मशक्कत करने के बाद हमने अपनी मोटरसाइकल बाहर निकाली और मुख्य मार्ग से होते हुए वापसी की राह पकड़ी ! पार्किंग की उचित व्यवस्था ना होने के कारण लोगों को यहाँ काफ़ी असुविधा का सामना करना पड़ता है !
उम्मीद है कि आगामी दिनों में प्रशासन यहाँ लोगों की सुविधा के लिए पार्किंग की उचित व्यवस्था भी करवा देगा, ताकि इस मार्ग से जाने वाला यातायात भी बाधित ना हो ! वैसे अगर आप भी इस पार्क में घूमने जाने का विचार बना रहे है तो आपकी सुविधा के लिए कुछ जानकारी दे देता हूँ ! इस पार्क तक आने के लिए यातायात की सुविधा बहुत अच्छी नहीं है इसलिए लोग यहाँ निजी वाहनों से ही आते है ! अगर आपके पास भी निजी वाहन है तो बहुत अच्छा, वरना आप ऑटो करके भी यहाँ आ सकते है ! जब भी यहाँ आना हो तो अपने पास पर्याप्त समय लेकर आए ताकि पार्क को अच्छे से घूम सके, भगदड़ में आएँगे तो परेशान ही होंगे ! खाने-पीने का सामान अपने साथ लेकर चलेंगे तो सुविधा रहेगी, वरना यहाँ के फेरी वालों का स्वाद तो बेकार ही है !
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फव्वारे के पास लिया उदय का एक चित्र |
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प्रवेश द्वार पर प्रदर्शनी के लिए रखी एक तोप |
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पार्क के अंदर बना पक्का मार्ग |
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प्रदर्शनी के लिए रखा एक लड़ाकू विमान |
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दूर दिखाई देती जनेश्वर मिश्र की प्रतिमा |
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पार्क में कृत्रिम झील |
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गजब लग रहे हो उदय |
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झील के किनारे लगी रेलिंग और चलने के लिए बना पक्का मार्ग |
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झील में चलते फव्वारे |
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झील में चलते फव्वारे |
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झील के किनारे लिया एक चित्र |
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पार्क की जानकारी दर्शाता एक बोर्ड |
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झील का एक और दृश्य |
क्यों जाएँ (Why to go Lucknow): वैसे नवाबों का शहर लखनऊ किसी पहचान का मोहताज नहीं है, इस शहर के बारे में वैसे तो आपने भी सुन ही रखा होगा ! अगर आप प्राचीन इमारतें जैसे इमामबाड़े, भूल-भुलैया, अंबेडकर पार्क, या फिर जनेश्वर मिश्र पार्क घूमने के साथ-2 लखनवी टुंडे कबाब और अन्य शाही व्यंजनों का स्वाद लेना चाहते है तो बेझिझक लखनऊ चले आइए !
कब जाएँ (Best time to go Lucknow): आप साल के किसी भी महीने में लखनऊ जा सकते है ! गर्मियों के महीनों यहाँ भी खूब गर्मी पड़ती है जबकि दिसंबर-जनवरी के महीने में यहाँ बढ़िया ठंड रहती है !
कैसे जाएँ (How to reach Lucknow): दिल्ली से लखनऊ जाने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन भारतीय रेल है दिल्ली से दिनभर लखनऊ के लिए ट्रेनें चलती रहती है किसी भी रात्रि ट्रेन से 8-9 घंटे का सफ़र करके आप प्रात: आराम से लखनऊ पहुँच सकते है ! दिल्ली से लखनऊ जाने का सड़क मार्ग भी शानदार बना है 550 किलोमीटर की इस दूरी को तय करने में भी आपको 7-8 घंटे का समय लग जाएगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Lucknow): लखनऊ एक पर्यटन स्थल है इसलिए यहाँ रुकने के लिए होटलों की कमी नहीं है आप अपनी सुविधा के अनुसार चारबाग रेलवे स्टेशन के आस-पास या शहर के अन्य इलाक़ों में स्थित किसी भी होटक में रुक सकते है ! आपको 500 रुपए से शुरू होकर 4000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Lucknow): लखनऊ में घूमने के लिए बहुत जगहें है जिनमें से छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा, भूल-भुलैया, आसिफी मस्जिद, शाही बावली, रूमी दरवाजा, हुसैनबाद क्लॉक टॉवर, रेजीडेंसी, कौड़िया घाट, शादत अली ख़ान का मकबरा, अंबेडकर पार्क, जनेश्वर मिश्र पार्क, कुकरेल वन और अमीनाबाद प्रमुख है ! इसके अलावा भी लखनऊ में घूमने की बहुत जगहें है 2-3 दिन में आप इन सभी जगहों को देख सकते है !
क्या खरीदे (Things to buy from Lucknow): लखनऊ घूमने आए है तो यादगार के तौर पर भी कुछ ना कुछ ले जाने का मन होगा ! खरीददारी के लिए भी लखनऊ एक बढ़िया शहर है लखनवी कुर्ते और सूट अपने चिकन वर्क के लिए दुनिया भर में मशहूर है ! खाने-पीने के लिए आप अमीनाबाद बाज़ार का रुख़ कर सकते है, यहाँ के टुंडे कबाब का स्वाद आपको ज़िंदगी भर याद रहेगा ! लखनऊ की गुलाब रेवड़ी भी काफ़ी प्रसिद्ध है, रेलवे स्टेशन के बाहर दुकानों पर ये आसानी से मिल जाएगी !
अगले भाग में जारी...
लखनऊ यात्रा
शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
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