पठानकोट से दिल्ली की रेल यात्रा (A Journey from Pathankot to Delhi)

शनिवार, 21 जुलाई 2012

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यात्रा के पिछले लेख में आपने हिमालयन वॉटर फॉल के बारे में पढ़ा, अब आगे, शनिवार सुबह जब मेरी नींद खुली तो मैं बिस्तर में लेटे-2 यही सोच रहा था कि यहाँ हिमाचल में मस्ती भरे 8 दिन कैसे बीत गए पता भी नहीं चला ! अक्सर हमें ऐसा लगता है कि अच्छे पल बहुत जल्दी बीत जाते है और बुरा वक़्त तो ऐसा लगता है मानो कटता ही नहीं ! पर ऐसा नहीं है ये तो हमारे सोचने का नज़रिया है वरना वक़्त तो लगातार एक ही रफ़्तार से चलता रहता  है ! आज सच्चाई का सामना करते हुए काफ़ी दुख हो रहा था, क्योंकि सच्चाई ये थी कि आज यहाँ मक्लोड़गंज में 
हमारा आख़िरी दिन था और हम में से किसी का भी वापिस जाने का बिल्कुल मन नहीं हो रहा था ! मन को बहुत समझाया, पर मन कहाँ मानने वाला था, रह-2 कर यही विचार मन में आ रहे थे कि काश कुछ दिन और यहाँ रह लेते ! वैसे हम यहाँ मक्लॉडगंज से अकेले नहीं जा रहे थे बल्कि हम अपनी यादों में इस खूबसूरत शहर की खूबसूरती को समेट कर अपने साथ ले जा रहे थे ! यहाँ के खूबसूरत पहाड़, कल-कल करते झरने, हरी-भरी वादियाँ और दूर तक दिखाई देती हिमालय पर्वतमाला हमारी आँखों में बस गई थी ! यहाँ बिताए गए हर एक पल की यादें बहुत लंबे समय तक हमारे मन में रहने वाली थी !
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मोनेस्ट्री में विपुल (A view of Monestary, Mcleodganj)
भारी मन से ही सही, बिस्तर से उठे और बारी-2 से नित्य-क्रम में लग गए ! इस दौरान मैं अपने कमरे के बाहर वाले बरामदे में आ कर टहलने लगा ! हालाँकि, हमारी ट्रेन तो पठानकोट से रात को 9 बजे थी पर धर्मशाला से पठानकोट पहुँचने में भी 4 घंटे लग जाते है ! इसलिए योजना के मुताबिक हम सब यहाँ से 11-12 बजे तक निकलने वाले थे ताकि समय से स्टेशन पहुँच सके ! देखा जाए तो इस तरह अब भी हमारे पास दोपहर तक का समय था मक्लोडगंज घूमने के लिए ! इस बार भी कुछ जगहें घूमना बाकी रह गई, जिसमें कांगड़ा का किला, टॉय ट्रेन में सवारी और करेरी झील प्रमुख है, पता नहीं ये शहर मुझे कितनी बार बुलाएगा ! खैर, इसी बहाने यहाँ फिर से आने का मौका तो मिलेगा ! थोड़ी देर तक बरामदे में टहलने के बाद मैं वापस अपने कमरे में गया, जहाँ बाकी लोग नहा-धोकर तैयार हो रहे थे ! इसी बीच हम सब अपना-2 सामान भी पैक करते रहे, ताकि निकलते वक़्त कोई हड़बड़ी ना मचे ! इस तरह सुबह 9 बजे तक हम सब तैयार होकर अपने होटल की छत पर नाश्ते की मेज के सामने बैठे थे !

नाश्ते का ऑर्डर देकर हम लोग आपस में चर्चा करने लगे और हमारी चर्चा इस बात पर चल रही थी कि आज कहाँ घूमने जाया जाए ! ऐसी कौन सी जगह है जहाँ से दोपहर तक घूम कर वापस आया जा सकता है ! 
जगह को लेकर हमारी चर्चा काफ़ी देर तक चलती रही, यहाँ तक कि हमारा नाश्ता भी आ गया पर अभी तक हम निष्कर्ष नहीं निकाल पाए ! दूर जाने का तो मतलब ही नहीं बनता था क्योंकि दूर जाने पर अगर वापसी में देर हो जाती या मौसम खराब होने की वजह से हम रास्ते में कहीं फँस जाते, तो ट्रेन छूटने का डर था ! नाश्ते के दौरान हमारी चर्चा भी चलती रही, फिर नाश्ता ख़त्म होते-2 हमने निष्कर्ष निकाल लिया कि कहीं आस-पास ही घूमने जाया जाए ताकि ज़्यादा थकावट भी ना हो और यहाँ से निकलने में देरी भी ना हो ! आस-पास की जगहों में जाने को तो हम चर्च भी जा सकते थे पर आज आख़िरी दिन था और ये अंतिम जगह थी जहाँ हम जाने वाले थे इसलिए निर्णय लेना किसी एक के हाथ में नहीं था !

आपसी सहमति से ये निर्णय लिया गया कि किसी शांत जगह चला जाए जहाँ से हमें अच्छे नज़ारे भी दिखाई दे और जो जगह अपने होटल से ज़्यादा दूर भी ना हो ! काफ़ी सोच-विचार करने के बाद मोनेस्ट्री हमें अपनी कसौटी पर खरा उतरता दिखाई दे रहा था ! हालाँकि, हम इस यात्रा के दौरान पहले भी एक बार वहाँ जा चुके थे पर वहाँ के शांत वातावरण में जो शांति और सुकून हमें मिला था उसने हमें फिर से अपनी ओर आने को विवश कर दिया ! इसलिए अपना नाश्ता ख़त्म करके हम लोग सुकून के कुछ पल बिताने के लिए मोनेस्ट्री की ओर चल दिए ! अपने होटल से 10 मिनट पैदल यात्रा करके जब हमने मोनेस्ट्री में प्रवेश किया तो सुबह के 10 बजकर 5 मिनट हो रहे थे, यहाँ का वातावरण काफ़ी शांत था क्योंकि आज यहाँ कोई महोत्सव नहीं था ! मोनेस्ट्री में चारों तरफ घूम कर हम लोग आस-पास के नज़ारे देखने लगे, दूर पहाड़ी तक बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा था ! हालाँकि, यहाँ मोनेस्ट्री से देखने पर हमारा होटल तो नहीं दिखाई दे रहा था पर फिर भी मक्लोडगंज का तो लगभग पूरा बाज़ार और दूर पहाड़ी पर बसे गाँव बिल्कुल साफ दिखाई दे रहे थे ! 

थोड़ी देर तक इधर-उधर घूमने के बाद हम सब वहीं मोनेस्ट्री के प्रांगण में लकड़ी के बने एक गोल चबूतरे पर बैठ कर अपनी इस यात्रा के सुखद अनुभवों पर चर्चा करने लगे ! हमारी ये चर्चा भी काफ़ी देर तक चली और जब चर्चा समाप्त हुई तो हितेश हमें जादू के खेल दिखाने लगा ! हालाँकि, हमने उसे पहले ही बता दिया था कि उसके खेल के लिए हमारी ओर से कोई पारितोषिक नहीं मिलेगा ! पर किसी ने कहा है कि एक कलाकार कभी भी अपने हुनर को पैसों में नहीं आँकता ! हमारी बातें सुनने के बाद भी हितेश आगे बढ़ा और अपना जादू का खेल दिखाना शुरू कर दिया ! कुछ देर तक हमने मोनेस्ट्री में खूब मस्ती की, फिर समय देखा तो 11 बजकर 40 मिनट हो रहे थे, हम लोगों का होटल से जाने का समय होने वाला था ! फिर हम मोनेस्ट्री से विदा लेकर बाहर आए और एक स्थानीय दुकान पर चाय पीने के बाद अपने होटल की तरफ चल दिए ! होटल पहुँचकर वहाँ के बकाया बिल का भुगतान किया और अपना-2 बैग लेकर बाहर आ गए !

हमारा होटल मोनेस्ट्री के बिल्कुल पास ही था और वहाँ से मक्लोडगंज का बस स्टैंड लगभग 600-700 मीटर की दूरी पर था ! हम लोग बैग लेकर पैदल ही बस स्टैंड की तरफ चल दिए और 15-20 मिनट में बस स्टैंड पर पहुँच गए ! पूछताछ के बाद पता चला कि धर्मशाला जाने के लिए अगली बस आधे घंटे में आएगी, तो हम लोग वहीं बैठ कर अगली बस का इंतज़ार करने लगे ! बस स्टैंड से देखने पर नीचे धर्मशाला की ओर बहुत ही सुंदर नज़ारे दिखाई दे रहे थे ! हम वो सुंदर नज़ारे देख ही रहे थे कि अचानक काले घने बादलों ने पूरे आसमान को घेर लिया, और चारों तरफ घना अंधेरा छा गया ! एक बार तो हमें लगा कि कहीं बारिश शुरू हो गई तो रास्ते ना बंद हो जाएँ और हम लोग यहीं फंसकर ना रह जाएँ ! पर ऐसा कुछ हुआ नहीं क्योंकि बादल ज़्यादा देर तक वहाँ नहीं रुके और आगे बढ़ गए ! वैसे अब यहाँ का बस स्टैंड काफ़ी बड़ा बना दिया है, पिछले वर्ष ये इतना बड़ा नहीं था ! या ऐसा भी हो सकता है कि ये इतना बड़ा ही रहा हो, पर हमने गौर ना किया हो !

इस बार तो हमें यहाँ आधा घंटा बिताने को मिल गया इसलिए बस स्टैंड भी ठीक से घूम लिए ! आधा घंटे से पहले ही धर्मशाला जाने वाली बस आ गई और हम सब फटाफट इसमें सवार हो गए ! थोड़ी देर बाद जब बस भर गई तो इसने यहाँ चलना शुरू कर दिया, मक्लोडगंज से धर्मशाला जाने का रास्ता सर्पिलाकार है और इसमें बहुत ही घुमावदार मोड़ है ! बारिश के मौसम में तो इस मार्ग पर चलने में मज़ा ही आ जाता है, सड़क के दोनों ओर की हरियाली देखते ही बनती है ! कई जगहों पर रुकते हुए हमारी बस आधे घंटे में धर्मशाला बस स्टैंड पहुँच गई ! धर्मशाला पहुँच कर हमारी उम्मीद के बिल्कुल विपरीत हुआ ! मतलब ये कि हम तो इस उम्मीद में धर्मशाला आए थे कि हमें यहाँ से 15-20 मिनट में ही पठानकोट के लिए बस मिल जाएगी पर ऐसा नहीं हुआ और हमें वहाँ लगभग एक घंटे तक पठानकोट जाने वाली बस के इंतज़ार में खड़ा होना पड़ा !

जब मैं यहाँ पिछले साल आया था तो मुझे यहाँ पर बस की सेवा बहुत अच्छी लगी थी शायद इसलिए कि पिछली बार मुझे बस का ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा था, पर इस बार तो हम निराश ही हुए ! जानकारी के अभाव में पता ही नहीं चल रहा था कि पठानकोट जाने के लिए बस कब आएगी और यहाँ से कितने बजे चलेगी ! 
बस स्टैंड के अधिकारी कुछ बताने को तैयार ही नहीं थे और स्थानीय लोग भी आधी-अधूरी जानकारी ही दे रहे थे ! पर कहते है कि आधी जानकारी होने से तो जानकारी का ना होना ही अच्छा है ! आज यहाँ बस स्टैंड पर काफ़ी भीड़ थी, स्कूली विद्यार्थी भी खूब खड़े थे ! फिर एक घंटे के बाद हमारा इंतज़ार ख़त्म हुआ जब एक वहाँ उद्घोषणा हुई कि पठानकोट जाने वाली बस डिपो से आने वाली है ! हमारा सफ़र काफ़ी लंबा था और हम सीटों को लेकर चिंतित थे इसलिए बस के आते ही हम सब फटाफट जाकर बस में बैठ गए !

समय देखा तो दोपहर के 3 बज रहे थे और सच कहूँ तो मुझे अब चिंता होने लगी थी कि अगर कहीं रास्ते में बस खराब हो गई या जाम में फँस गई तो हमारी ट्रेन भी छूट जाएगी ! पर उपर वाले के आशीर्वाद से ऐसी कुछ भी अप्रिय घटना नहीं घटी और हम लोग शाम को 7 बजे पठानकोट पहुँच गए ! पठानकोट में ऐसा कुछ देखने का तो था नहीं और अभी हमारी ट्रेन के आने में भी 2 घंटे शेष थे ! स्टेशन पर 2 घंटे बिताना अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए सोचा कि क्यों ना स्टेशन जाने से पहले पेट पूजा कर ली जाए ! फिर तो हम वहीं स्टेशन के पास बने एक ढाबे में घुस गए ! पठानकोट में तो इतनी गर्मी लग रही थी कि मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता, पसीना रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था ! आप सोच भी नहीं सकते कि यहाँ से 30-40 किलोमीटर आगे बढ़ने पर ही धर्मशाला जाने के मार्ग में कितना ठंडा मौसम है ! जबकि यहाँ मैदानी इलाक़े में गर्मी से बुरी हालत हो रखी है ! हमारी किस्मत इतनी खराब थी कि जिस ढाबे पर खाना खाने बैठे थे उसकी सर्विस और खाना दोनों बहुत खराब था !

जैसे-तैसे करके खाना ख़त्म करके बिल का भुगतान किया और ढाबे से बाहर आ गए ! 
खाने का स्वाद बहुत अजीब सा था जिससे हम सबके मुँह का स्वाद भी बिगड़ गया था, स्वाद बदलने के लिए स्टेशन जाते हुए रास्ते में एक मिठाई की एक दुकान से आधा किलो मिठाई खरीदी ! मिठाई खाने के बाद थोड़ा अच्छा महसूस हुआ और फिर हम लोग आगे स्टेशन की तरफ बढ़ गए ! 8 बजे हम सब स्टेशन पहुँचे, यहाँ बैठ कर काफ़ी देर तक तो ट्रेन का इंतज़ार करते रहे, कई ट्रेन आई और गई, पर जिस ट्रेन में हमें जाना था वो ट्रेन अभी तक नहीं आई थी ! इस बीच कई बार स्टेशन पर बत्ती भी गुल हुई और बत्ती गुल होने पर तो स्टेशन पर एकदम गुप्प अंधेरा छा जा रहा था ! समय देखा तो रात के 8 बजकर 50 मिनट हो गए थे और हमारी ट्रेन का कुछ अता-पता ही नहीं था ! ना तो कोई उद्घोषणा हुई थी और ना ही ट्रेन आने के कुछ संकेत दिखाई दे रहे थे ! जब 9 बजकर 10 मिनट हो गए तब स्टेशन पर धौलाधार एक्सप्रेस के आने की उद्घोषणा हुई, अगले दस मिनट में ट्रेन आकर प्लॅटफॉर्म पर रुकी तो हम सब बिना देरी किए फटाफट से ट्रेन में चढ़ गए !

क्योंकि हमारी सीटें कन्फर्म थी इसलिए परेशानी की कोई बात नहीं थी ! हम सब अपनी-2 सीटों पर बैठ गए और अपना समान सीटों के नीचे रख दिया ! ट्रेन ने ज़्यादा इंतजार नहीं करवाया और 10 मिनट बाद ये चल दी ! रात्रि का भोजन तो हम पहले ही कर चुके थे इसलिए थोड़ी देर तक तो बैठ कर बातें करते रहे और फिर अपनी-2 सीटों पर सो गए ! सुबह जब नींद खुली तो हमारी ट्रेन नागलोई पहुँच चुकी थी, हम लोग उठकर खिड़की के साथ वाली सीट पर बैठ गए ! 8 बजे हमारी ट्रेन पुरानी दिल्ली पहुँच गई, हम सब ट्रेन से उतरे और दिल्ली मेट्रो से बाराखंबा होते हुए शिवाजी ब्रिज रेलवे स्टेशन पहुँच गए ! यहाँ स्टेशन पर थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद पलवल जाने वाली ट्रेन आ गई ! हम सब इस ट्रेन में सवार होकर पलवल के लिए चल दिए, 11 बजे पलवल रेलवे स्टेशन पर उतरे और 15-20 मिनट में अपने घर पहुँच गए ! इसी के साथ हिमाचल यात्रा समाप्त होती है जल्द ही एक नए सफ़र के साथ फिर से मुलाकात होगी !

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मोनेस्ट्री में आराम करते हुए
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मोनेस्ट्री में आराम करते हुए
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जादू के खेल दिखाता हितेश
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कुश्ती के गुण सिखाता शशांक


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मोनेस्ट्री के प्रांगण में
मोनेस्ट्री से बाहर जाते हुए
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बस का इंतजार करते हुए
बस का इंतजार करते हुए हितेश
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ऑटो में स्टेशन जाते हुए विपुल
क्यों जाएँ (Why to go Dharmshala): अगर आप दिल्ली की गर्मी और भीड़-भाड़ से दूर सुकून के कुछ पल पहाड़ों पर बिताना चाहते है तो आप धर्मशाला-मक्लॉडगंज का रुख़ कर सकते है ! यहाँ घूमने के लिए भी कई जगहें है, जिसमें झरने, किले, चर्च, स्टेडियम, और पहाड़ शामिल है ! ट्रेकिंग के शौकीन लोगों के लिए कुछ बढ़िया ट्रेक भी है !

कब जाएँ (Best time to go Dharmshala): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए धर्मशाला जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में आपको बढ़िया बर्फ मिल जाएगी !

कैसे जाएँ (How to reach Dharmshala): दिल्ली से धर्मशाला की दूरी लगभग 478 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाइए, जम्मू जाने वाली हर ट्रेन पठानकोट होकर ही जाती है ! पठानकोट से धर्मशाला की दूरी महज 90 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी से तय कर सकते है, इस सफ़र में आपके ढाई से तीन घंटे लगेंगे ! अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से धर्मशाला के लिए हिमाचल टूरिज़्म की वोल्वो और हिमाचल परिवहन की सामान्य बसें भी चलती है ! आप निजी गाड़ी से भी धर्मशाला जा सकते है जिसमें आपको दिल्ली से धर्मशाला पहुँचने में 9-10 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा पठानकोट से बैजनाथ तक टॉय ट्रेन भी चलती है जिसमें सफ़र करते हुए धौलाधार की पहाड़ियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! टॉय ट्रेन से पठानकोट से कांगड़ा तक का सफ़र तय करने में आपको साढ़े चार घंटे का समय लगेगा !

कहाँ रुके (Where to stay in Dharmshala): धर्मशाला में रुकने के लिए बहुत होटल है लेकिन अगर आप धर्मशाला जा रहे है तो बेहतर रहेगा आप धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में रुके ! घूमने-फिरने की अधिकतर जगहें मक्लॉडगंज में ही है धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम और कांगड़ा का किला है जिसे आप वापसी में भी देख सकते हो ! मक्लॉडगंज में भी रुकने और खाने-पीने के बहुत विकल्प है, आपको अपने बजट के अनुसार 700 रुपए से शुरू होकर 3000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !

क्या देखें (Places to see in Dharmshala): धर्मशाला में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन अधिकतर जगहें ऊपरी धर्मशाला (Upper Dharmshala) यानि मक्लॉडगंज में है यहाँ के मुख्य आकर्षण भाग्सू नाग मंदिर और झरना, गालू मंदिर, हिमालयन वॉटर फाल, त्रिऊँड ट्रेक, नड्डी, डल झील, सेंट जोन्स चर्च, मोनेस्ट्री और माल रोड है ! जबकि निचले धर्मशाला (Lower Dharmshala) में क्रिकेट स्टेडियम (HPCA Stadium), कांगड़ा का किला (Kangra Fort), और वॉर मेमोरियल है !


समाप्त...

डलहौजी - धर्मशाला यात्रा
  1. दिल्ली से डलहौजी की रेल यात्रा (A Train Trip to Dalhousie)
  2. पंज-पुला की बारिश में एक शाम (An Evening in Panch Pula)
  3. खजियार – देश में विदेश का एहसास (Natural Beauty of Khajjar)
  4. कालाटोप के जंगलों में दोस्तों संग बिताया एक दिन ( A Walk in Kalatop Wildlife Sanctuary)
  5. डलहौज़ी से धर्मशाला की बस यात्रा (A Road Trip to Dharmshala)
  6. दोस्तों संग त्रिउंड में बिताया एक दिन (An Awesome Trek to Triund)
  7. मोनेस्ट्री में बिताए सुकून के कुछ पल (A Day in Mcleodganj Monastery)
  8. हिमालयन वाटर फाल - एक अनछुआ झरना (Untouched Himachal – Himalyan Water Fall)
  9. पठानकोट से दिल्ली की रेल यात्रा (A Journey from Pathankot to Delhi)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

5 Comments

  1. लैप्पी जी शानदार ज़िंदाबाद ज़बरदस्त।

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  2. लैप्पी जी शानदार ज़िंदाबाद ज़बरदस्त।

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  3. सी भी यात्रा से वापस आते हुवे मन भारी हो ही जाता है,और अगर पहाड़ों से वापस आना हो तो ये भारीपन और बढ़ जाता है,खैर ये तो नियम ही है जब एक जगह से वापस आएंगे तभी दूसरी जगह जा पाएंगे,यात्रा के सुखद समापन पर बहुत बहुत बधाइयाँ

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