उदयपुर से माउंट आबू की बस यात्रा (Road Trip to Mount Abu)

वीरवार, 29 दिसंबर 2011

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यात्रा के पिछले लेख में आप सिटी पैलेस और उदयपुर का चिड़ियाघर देख चुके है अब आगे, उदयपुर भ्रमण के बाद अगले दिन घूमने के लिए हमें माउंट आबू जाना था, यहाँ जाने वाली बस की जानकारी हम पिछली शाम को ही ले आए थे ! उदयपुर से माउंट आबू के लिए सुबह हर आधे घंटे में बस चलती है, हम सुबह 7 बजे वाली बस से जाने वाले थे ताकि समय से माउंट आबू पहुँच सके ! सुबह समय से सोकर उठे और जल्दी से नित्य-क्रम से निबट कर अपने साथ ले जाने के लिए एक बैग तैयार किया ! हम माउंट आबू में एक रात रुकने वाले थे इसलिए साथ ले जाने का सामान थोड़ा ज़्यादा हो गया था, गरम कपड़े जो रख लिए थे ! इन दिनों भारतीय क्रिकेट टीम आस्ट्रेलिया दौरे पर थी, इसलिए सुबह 5 बजे मैच देखने के यहाँ घर के कुछ सदस्य उठ जाते थे, इन्होनें ही हमें उदयपुर बस स्टैंड तक छोड़ दिया ! बस स्टैंड पर पहुँचने के बाद हम दोनों एक स्थानीय अधिकारी से माउंट आबू जाने वाली बस के बारे में पूछकर वहीं एक पत्थर की सीट पर बैठ कर बस के डिपो से बाहर आने का इंतज़ार करने लगे !

mini nakki lake
छोटी नक्की झील (A view of Mini Nakki Lake, Mount Abu)
समय सुबह के 6 बजकर 40 मिनट हो रहे थे, दिसंबर का महीना होने के कारण यहाँ भी बहुत ठंड पड़ रही थी, हमारे पास पर्याप्त गरम कपड़े थे इसलिए हमें किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा ! थोड़ी देर में माउंट आबू जाने वाली बस वहाँ आकर खड़ी हो गई, और देखते ही देखते पूरी बस भर गई ! आलम ये हो गया कि बस के चलने से पहले ही कुछ सवारियाँ सीट ना मिलने की वजह से खड़ी भी थी ! हमने मन ही मन सोचा बढ़िया रहा जो हम समय से यहाँ आ गए, वरना अगर ठंड की परवाह करके यहाँ आते हुए हमें देर हो जाती तो शायद इस बस में तो हमें सीट ना मिलती ! फिर जब बस चली और परिचालक ने टिकट काटना शुरू किया तो हमें पता चला कि जो सवारियाँ खड़ी थी, उनका गंतव्य थोड़ी दूर ही था, वरना अगर किसी को यहाँ से माउंट आबू तक खड़े होकर सफ़र करना पड़े तो काफ़ी दिक्कत हो जाती ! शहर से बाहर निकलकर हमारी बस पथरीले रास्ते से होते हुए माउंट आबू की ओर चल दी ! 

सड़क अगर बहुत ज़्यादा अच्छी नहीं थी तो इसे ज़्यादा खराब भी नहीं कह सकते, वैसे राजस्थान में मैने जितनी भी यात्राएँ की है, यहाँ की सड़के मुझे ठीक लगी है ! सड़क के दोनों तरफ दूर तक दिखाई देती ऊसर ज़मीन जहाँ पानी का कहीं नामोनिशान नहीं था ! बीच-2 में कहीं कोई गाँव पड़ जाता तो कुछ मवेशी और दूसरे प्राणी दिख जाते ! रास्ते में कहीं-2 इक्का-दुक्का पेड़ भी थे, जिनके पत्ते मुरझाए हुए थे ! बस रास्ते में जब कहीं रुकती तो कुछ नई सवारियाँ बस में चढ़ जाती और कुछ पुरानी उतर जाती ! ऐसे ही रुकते-चलते हमारी बस माउंट आबू की ओर बढ़ रही थी, मुझे ठीक से तो याद नहीं, पर शायद हमें 4 घंटे का समय लगा ये सफ़र तय करने में, जब परिचालक बोला माउंट आबू जाने वाली सवारियाँ अगले तिराहे पर उतरकर दूसरी सवारी ले लो ! बस यहाँ से पहले आबू रोड बस अड्डे जाएगी, फिर वहाँ से सवारियाँ लेकर आधे घंटे बाद माउंट आबू के लिए चलेगी ! हमने कहाँ टिकट तो तुमने हमें माउंट आबू का दिया है तो बीच में उतरने के लिए क्यों कह रहे हो ! 

इस पर परिचालक बोला, नहीं उतरना तो बैठे रहो, मुझे तो लगा कि अगर किसी सवारी को जल्दी हो तो वो यहाँ से दूसरी सवारी ले ले, क्योंकि बस तो अपने हिसाब से बस स्टैंड होकर ही आगे जाएगी ! हमें बस अड्डे जाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी इसलिए बस से नीचे उतर गए, जिस तिराहे पर हम उतरे वहाँ से आबू रोड बस स्टैंड लगभग 7 किलोमीटर, और माउंट आबू 22 किलोमीटर था, यहाँ ना उतरना मतलब 14 किलोमीटर का अतिरिक्त सफ़र तय करना था, जो हमें आबू रोड बस स्टैंड जाने-आने में लग जाते ! हम अपना समय व्यर्थ नहीं करना चाहते थे. इसलिए परिचालक के कहने पर हम यहीं बस से उतर कर माउंट आबू जाने के लिए किसी दूसरी सवारी का इंतज़ार करने लगे ! थोड़ी देर तक इंतजार करने के बाद जब कोई बस नहीं आई तो वहीं सवारी भर रही एक जीप में हम भी सवार हो गए ! जीप वालों का तो हर जगह यही हाल है, जानवरों की तरह सवारियाँ भर लेते है और किराया पूरा बस जितना ही लेते है !

हम दोनों इस जीप वाले को सवारियाँ भरते हुए काफ़ी देर से देख रहे थे, जीप चालक ने हमें बस से उतरते हुए देखा तो हमसे जीप में बैठने के लिए पूछा भी था, पर हम सोच रहे थे कि अगर बस आ जाए तो उसमें ही चला जाए ! 10 मिनट तक जब कोई बस नहीं आई तो हमने सोचा यहाँ खड़े होकर कुछ फ़ायदा नहीं है, जल्दी से माउंट आबू ही पहुँचते है ! उस जीप वाले ने शायद 20 रुपए प्रति सवारी के हिसाब से किराया लिया ! जीप में भीड़ तो बहुत थी पर फिर भी उसने हम दोनों के बैठने की व्यवस्था कर दी, हमारा सामान उसने जीप की छत पर डाल दिया ! फिर जीप चल दी, 20-22 किलोमीटर के सफ़र को तय करने में भी हमें 40 मिनट से भी अधिक का समय लगा, जिसका कारण था चढ़ाई भरा मार्ग होना ! एक तो जीप में बहुत ज़्यादा सवारियाँ भरी हुई थी और दूसरा ये एकल मार्ग था जिस पर दोनों तरफ का यातायात चल रहा था, इसलिए जीप वाला ज़्यादा तेज नहीं चला सकता था !

फिर एक गाँव में से गुजरने पर पंचायती शुल्क के तौर पर प्रति सवारी 2-2 रुपए का शुल्क अदा किया और अपना आगे का सफ़र जारी रखा ! माउंट आबू के बस अड्डे पर उतरने के बाद कुछ स्थानीय एजेंट हमें होटल दिलाने की बात कहते हुए हमारे साथ-2 चलने लगे ! एक एजेंट से जब हमने कमरा दिलाने की बात कही तो वो हमें मुख्य बाज़ार के बाईं ओर स्थित एक खुले मैदान से होते हुए ले गया, यहाँ एक लाइन से कई होटल थे, इन्हीं होटलों में से वो हमें एक में ले गया ! होटल तो कुछ ख़ास नहीं था, पर ना जाने क्यों फिर भी हमने हाँ कर दिया ! कागज़ी कार्यवाही पूरी करने के दौरान होटल कर्मचारी ने हमें बताया कि अगर यहाँ घूमने के लिए आपको मोटरसाइकल चाहिए तो उसका इंतज़ाम भी हम करवा देंगे ! वैसे तो हम खुद भी बाज़ार में जाकर किराए पर मोटरसाइकल ले सकते थे, पर वापस बाज़ार में जाकर मोटरसाइकल लेने का हमारा मन नहीं था इसलिए हमने होटल वाले से ही मोटरसाइकल मंगवाने के लिए कह दिया ! 

थोड़ी देर में एक लड़का मोटरसाइकल लेकर हमारे होटल ही आ गया, पूछने पर उसने 300 रुपए प्रतिदिन किराया बताया ! ये यामाहा की एफ ज़ेड (FZ) मोटरसाइकल थी, जिसमें पेट्रोल हमें खुद ही डलवाना था ! मेरा सुझाव है कि अगर आप कभी यहाँ घूमने आएँ तो खुद से ही मोटरसाइकल किराए पर ले, क्योंकि होटल वाले अपना कमीशन भी जोड़ते है ! मोटरसाइकल लेते समय उसके ब्रेक, लाइट सब चेक कर लें ! मोटरसाइकल लेते हुए मुझे अपना लाइसेन्स गारंटी के तौर पर उस लड़के को देना पड़ा, बदले में उसने मुझे अपना कार्ड दिया जिस पर उसकी दुकान का पता और फ़ोन नंबर लिखे थे ! मोटरसाइकल लेने के बाद हमने एक बैग में खाने-पीने के अलावा दूसरा ज़रूरी सामान रखा और सीधे मुख्य बाज़ार की ओर चल दिए ! यहाँ एक पेट्रोल पंप से मोटरसाइकल में 150 रुपए का पेट्रोल डलवाकर गुरु शिखर की यात्रा शुरू की, जो यहाँ से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है !

आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि माउंट आबू में घूमने के लिए गुरु शिखर, नक्की झील, ट्रेवर टैंक - वन्य जीव उद्यान, सनसेट पॉइंट और दिलवाड़ा मंदिर प्रमुख है ! माउंट आबू से गुरु शिखर जाने वाले मार्ग पर आते ही थोड़ी देर में चढ़ाई भरा मार्ग शुरू हो जाता है, गुरु शिखर जाते हुए हमारी बाईं ओर सड़क के किनारे एक छोटी झील भी पड़ी, जहाँ हम थोड़ी देर के लिए रुके ! इस मोटरसाइकल से उँचाई वाले रास्ते पर चलने में काफ़ी दिक्कत हो रही थी, शशांक बोला, यार इतना दमदार इंजन होने के बावजूद मोटरसाइकल उपर चढ़ने में दिक्कत क्यूँ कर रही है ! फिर झील पर रुकने के दौरान मैने निरीक्षण किया तो पता चला कि मोटरसाइकल की ट्यूनिंग में गड़बड़ थी, जिसकी वजह से इसका पिकअप एकदम ख़त्म था ! मैने ट्यूनिंग सेट करके इसके पिकअप को दुरुस्त किया, और गुरु शिखर के लिए अपना आगे का सफ़र जारी रखा, रुकते-रुकाते हम दोनों 45 मिनट में गुरु शिखर पहुँचे ! 

यहाँ गुरु शिखर में एक मंदिर है, जहाँ जाने के लिए यहाँ सड़क से आपको पैदल ही उपर मंदिर के मुख्य द्वार तक जाना होता है ! हम लोग मंदिर में नहीं गए और मोटरसाइकल से इसी मार्ग पर आगे बढ़ गए, फिर एक जगह रुककर सड़क के किनारे अपनी मोटरसाइकल खड़ी की, और पैदल ही एक पहाड़ी पर चढ़ने लगे ! इस पहाड़ी से देखने पर दूर तक फैली अरावली पर्वतमाला दिखाई दे रही थी, वैसे इन पहाड़ियों पर हरियाली नहीं थी, पर फिर भी ये काफ़ी सुंदर लग रही थी ! काफ़ी देर तक पहाड़ी के उपर बैठने के बाद हम दोनों नीचे उतर आए और वहीं आस पास घूमने लगे ! यहाँ आते हुए हमें रास्ते में देखने लायक कुछ और जगहें भी दिखाई दी थी, इसलिए अब यहाँ से वापसी की राह पकड़ी ! वापस आते हुए भी हम रास्ते में कई जगहों पर रुके, रास्ते में ही दिलवाड़ा मंदिर के अलावा ट्रेवर टैंक वन्य जीव उद्यान भी पड़ता है, जहाँ जाने की कोशिश हमने की पर 5 बजे ये उद्यान बंद हो जाता है, इसलिए निराश होकर वापस लौटना पड़ा !

फिर यहाँ से सीधे नक्की झील के पीछे सनसेट पॉइंट की तरफ चल दिए, जहाँ काफ़ी लोग सूर्यास्त का नज़ारा देखने के लिए एकत्रित हो रहे थे ! नक्की झील के बगल में फैली पहाड़ी पर एक जगह है सनसेट पॉइंट, जहाँ से लोग सूर्यास्त का नज़ारा लेते है, इस पॉइंट से लगभग 600 मीटर पहले ही वाहनों की आवाजाही पर रोक है ! यहाँ से आप या तो पैदल जाइए या फिर स्थानीय लोग घोड़े, और ट्रालियाँ लेकर खड़े रहते है, हम लोग यहाँ से पैदल ही गए ! सड़क के दोनों तरफ फेरी वालों ने दुकानें लगा रखी थी, जहाँ बच्चों के खेलने-कूदने से लेकर महिलाओं के श्रेंगार का सामान उपलब्ध था ! सनसेट पॉइंट पर पहुँचकर देखा तो ऐसा लगा कि दशहरे का रावण देखने आए है, मैने पिछली बार ऐसी भीड़ तो दशहरे के मेले में ही देखी थी ! लोग पहाड़ी के काफ़ी उपर तक सूर्यास्त का नज़ारा देखने के लिए चढ़े हुए थे, एक उँचे से टीले पर जाकर हम दोनों भी बैठ गए और सूर्यास्त होने की प्रतीक्षा करने लगे ! 

सर्दियाँ होने की वजह से दिन काफ़ी छोटे हो गए थे, फिर थोड़ी देर में जब सूर्यास्त होने लगा तो इस सूर्यास्त का नज़ारा लेने के साथ ही सभी लोग अपने-2 गंतव्य की ओर चल दिए ! अब ऐसा लग रहा था जैसे कोई क्रिकेट का मैच हो और आख़िरी रन बनते ही सब स्टेडियम से बाहर निकलने की जल्दबाज़ी में हो ! माउंट आबू के मुख्य बाज़ार को जाने वाले मार्ग पर एकदम से भीड़ काफ़ी बढ़ गई इसलिए हम दोनों भीड़ ख़त्म हो जाने के बाद ही नीचे उतरे ! फिर वहाँ से निकलकर अपनी मोटरसाइकल लेकर बाज़ार की ओर जाने लगे, जब तक हम बाज़ार पहुँचे हल्का-2 अंधेरा हो चुका था ! हमने सोचा मोटरसाइकल का किराया भी दिया है और अभी तक इसमें डलवाया हुआ पेट्रोल भी बचा है, तो क्यों ना जितनी दूर घूम सके, मोटरसाइकल से ही घूम लेते है ! फिर दोनों आबू रोड जाने वाले मार्ग पर हो लिए, 4-5 किलोमीटर जाने के बाद जब अंधेरे की वजह से मार्ग पर दिखना बंद हो गया तो मोटरसाइकल की लाइट जलाई, जो नहीं जली, मुझे लगा लाइट के बटन में कोई दिक्कत होगी ! 

सड़क के किनारे रुककर खूब मेहनत करने के बाद भी जब लाइट ने जलने का नाम नहीं लिया, तब मेरी समझ में आया कि बटन नहीं, लाइट ही खराब है ! बहुत गुस्सा आया, सोचा, कमीने ने बिना लाइट और कम ब्रेक की मोटरसाइकल ऐसे पहाड़ी रास्ते पर चलाने के लिए दे दी है ! एक बार तो लगा कि शायद जानबूझ कर बिना लाइट की मोटरसाइकल देते होंगे, ताकि लोग अंधेरा होते ही मोटरसाइकल वापस कर दे ! मैं बोला, बेटा तू सेर है तो हम सवा सेर है, बैग में से टॉर्च निकालकर शशांक टॉर्च से आगे सड़क पर रोशनी दिखाने लगा और मैं थोड़ा धीमी गति से मोटरसाइकल को वापस माउंट आबू के मुख्य बाज़ार की तरफ लाने लगा ! जिस दुकानदार की मोटरसाइकल थी उसका कार्ड हमारे पास था जिसकी मदद से हमने उस दुकान को गुरु-शिखर जाते हुए ही देख लिया था ! हम मोटरसाइकल लेकर काफ़ी देर तक बाज़ार में यहाँ से वहाँ घूमते रहे !

फिर जब महसूस हुआ कि इस तरह मोटरसाइकल पर टॉर्च जलाकर तो हम पर्यटक कम और पुलिस वाले ज़्यादा लग रहे है, वापस उस दुकानदार को उसकी मोटरसाइकल देकर अपना लाइसेन्स वापस ले लिया ! मोटरसाइकल की लाइट और पिकअप खराब होने पर उसे कड़ी फटकार भी लगाई, अगर पेशगी में ही उसका सारा किराया ना दिया होता तो निश्चित तौर पर मैं कुछ कटौती करता ! बाज़ार में एक होटल से खाना खाने के बाद जब टहलने लगे तो वहीं पास वाले मैदान में कोई रंगारंग कार्यक्रम चल रहा था जहाँ जाकर थोड़ी देर तक हमने भी इस कार्यक्रम का आनंद लिया और फिर वापस बाज़ार में लौट आए ! यहाँ स्थानीय दुकानदारों से थोड़ा बहुत खरीददारी भी की जिसमें निशाना लगाने वाली बंदूक प्रमुख थी, इस बंदूक में लोहे के छोटे-2 छर्रे डालते है ! फिर होटल पहुँचकर काफ़ी देर तक बंदूक से निशाना लगाने का अभ्यास करते रहे !
way to guru shikhar
गुरु शिखर जाते हुए (On the way to Guru Shikhar, Mount Abu)
mount abu to guru shikhar
गुरु शिखर जाते हुए (Way to Guru Shikhar, Mount Abu)
way to guru shikhar
गुरु शिखर जाने का मार्ग
guru shikhar
गुरु शिखर
in guru shikhar
निशाना लगाते हुए शशांक
view from guru shikhar
गुरु शिखर से दिखाई देती एक झील (A view from Guru Shikhar, Mount Abu)
guru shikhar hills

trek in guru shikhar
गुरु शिखर की चढ़ाई करते हुए शशांक
view from guru shikhar
A view from Guru Shikhar, Mount Abu
aravali hills in guru shikhar
उपर से दिखाई देती अरावली पर्वतमाला (Aravali Range in Mount Abu)
aravali hills
दूर दिखाई देता शशांक
guru shikhar top point
Aravali range behind Shashank
road trip

view from mini nakki

road to guru shikhar
गुरु शिखर से वापस आते हुए (Guru Shikhar Mount Abu Road)
near toad rock

cave on the way
मार्ग में एक जगह लिया गया चित्र
cave in guru shikhar

sunset point
सनसेट पॉइंट पर जमा भीड़ (Sunset Point in Mount Abu)
sunset point in mount abu

view from sunset point
सूर्यास्त का एक दृश्य (A view of Sunset from Sunset Point)
mount abu market
बंदूक की जाँच करता शशांक
mall road market

mall road in mount abu
माउंट आबू का बाज़ार
क्यों जाएँ (Why to go Mount Abu): अगर आप राजस्थान में किसी हिल स्टेशन की तलाश में है तो आपकी तलाश यहाँ माउंट आबू आकर ख़त्म हो जाएगी ! समूचे राजस्थान में एक माउंट आबू ही ऐसा पर्वतीय क्षेत्र है जिसे इसकी हरियाली के लिए जाना जाता है ! यहाँ देखने के लिए पहाड़, झील, वन्य जीव उद्यान, और मंदिर भी है !

कब जाएँ (Best time to go Mount Abu): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए 
माउंट आबू जा सकते है लेकिन सितंबर से मार्च यहाँ घूमने जाने के लिए सबसे बढ़िया मौसम है ! गर्मियों में तो यहाँ बुरा हाल रहता है और झील में नौकायान का आनंद भी ठीक से नहीं ले सकते !

कैसे जाएँ (How to reach Mount Abu): दिल्ली से 
माउंट आबू की दूरी लगभग 764 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से माउंट आबू के लिए नियमित रूप से कई ट्रेने चलती है, जो शाम को दिल्ली से चलकर सुबह जल्दी ही माउंट आबू पहुँचा देती है ! यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड है जिसके दूरी मुख्य शहर से 27 किलोमीटर है ! ट्रेन से दिल्ली से माउंट आबू जाने में 12-13 घंटे का समय लगता है जबकि अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से माउंट आबू के लिए बसें भी चलती है जो 14 से 15 घंटे का समय लेती है ! अगर आप निजी वाहन से माउंट आबू जाने की योजना बना रहे है तो दिल्ली जयपुर राजमार्ग से अजमेर होते हुए माउंट आबू जा सकते है निजी वाहन से आपको 13-14 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा अगर आप हवाई यात्रा का आनंद लेना चाहते है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा उदयपुर जिसकी दूरी यहाँ से 210 किलोमीटर के आस पास है ! हवाई यात्रा में आपको सवा घंटे का समय लगेगा !

कहाँ रुके (Where to stay in Mount Abu): 
माउंट आबू राजस्थान का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रोजाना हज़ारों देशी-विदेशी सैलानी घूमने के लिए आते है ! सैलानियों के रुकने के लिए यहाँ होटलों की भी कोई कमी नहीं है आपको 500 रुपए से लेकर 8000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !

क्या देखें (Places to see in Mount Abu): 
माउंट आबू में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन यहाँ के मुख्य आकर्षण दिलवाड़ा मंदिर, नक्की झील, गुरु शिखर, ट्रेवर टेंक वन्य जीव उद्यान के अलावा कुछ अन्य दर्शनीय स्थल भी है ! जो लोग उदयपुर घूमने आते है वो माउंट आबू के लिए कुछ अतिरिक्त समय लेकर चलते है ! उदयपुर यहाँ से 160 किलोमीटर दूर है, और वहाँ देखने के लिए सिटी पैलेस, लेक पैलेस, सहेलियों की बाड़ी, पिछोला झील, फ़तेह सागर झील, रोपवे, एकलिंगजी मंदिर, जगदीश मंदिर, जैसमंद झील, हल्दीघाटी, कुम्भलगढ़ किला, कुम्भलगढ़ वन्यजीव उद्यान, चित्तौडगढ़ किला और सज्जनगढ़ वन्य जीव उद्यान है !

अगले भाग में जारी...

उदयपुर - माउंट आबू यात्रा
  1. दिल्ली से उदयपुर की रेल यात्रा (A Train Trip to Udaipur)
  2. पिछोला झील में नाव की सवारी (Boating in Lake Pichhola)
  3. उदयपुर की शान - सिटी पैलैस (City Palace of Udaipur)
  4. उदयपुर से माउंट आबू की बस यात्रा (Road Trip to Mount Abu)
  5. वन्य जीव उद्यान में रोमांच से भरा एक दिन (A Day Full of Thrill in Wildlife Sanctuary)
  6. झीलों के शहर उदयपुर में आख़िरी शाम (One Day in Beautiful Jaismand Lake)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

9 Comments

  1. एक बहुत बढ़िया यात्रा उदयपुर से माउंट आबू की, ऐसा लगा कि हम भी साथ साथ चल रहे हैं

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    1. उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद हर्षिता जी !!!

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  2. मैं 1998 मई में आबू गई थी जीप ही वहां चलती है हम भी जीप से ही गए थे क्योकि कार बहुत पैसे ले रही थी । हम आबू 6 दिन रुके थे और हर जगह हमने आराम से देखि थी ।गुरु शिखर तक जाकर मन्दिर तक नहीं जाना ठीक नहीं था क्योकि ऊपर एक मन्दिर ही देखने काबिल था और उसका घण्टा जो की आबू की सबसे ऊँची चोटियों में आते है । हमैं निक्की झील तो रोज़ ही घूमने जाते थे।

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    1. दर्शन जी, दिलवाड़ा मंदिर का तो पता चल गया था पर बाकी जगहों के बारे में बताकर आपने मुझमें वहाँ फिर से जाने की ललक जगा दी है ! अगली बार वहाँ जाना हुआ तो इन जगहों को भी ज़रूर देखूँगा ! सुनकर अच्छा लगा कि आपको भी ये जगहें काफ़ी अच्छी लगी थी !

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    2. थॅंक्स प्रदीप अब जब भी दोबारा जाओ तो अचलगढ़ और दिलवाड़ा टेम्पल और टोंड रॉक भी देखकर आना ।

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    3. टोडराक तो देखा था पर बाकी दोनों जगहों को ज़रूर देखूँगा !

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    4. दर्शना जी आप जिस घण्टे की बात कर रही है उस की आवाज गुरुशिखर की चोटि से आबू पर्वत के निचे तक सुनाई देती है और मुझे इस का दुःख है के मैं इस यात्रा में दिलवारा के जैन मंदिर में नहीं जा पाया

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  3. माउंट आबू एक बेहद ही खूबसूरत हिल स्टेशन है मैं माउंट आबू अगस्त २०१३ में गया था। वाकई मेरी ये यात्रा
    बेहद रोमांच पूर्ण रही। प्रदीप जी आप शायद सर्दियों में माउंट आबू गए होंगे और आप को मजा आया होगा , मैं अपने अनुभव से कहु तो अगर आप बारिश क मौसम में जाते तो आप का मजा दोगुना हो जाता। बारिश में भीगते हुए गुरुशिखर की यात्रा और नक्की झील में बोटिंग करने का मजा बेहद ही रोमांचकारी है। और इसी बारिश के मौसम साथ में हरी हरी वादियों के बिच उदयपुर और कुम्भलगढ़ की भी बेहद रोमांचकारी है।

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    1. चलिए, इस बार बारिश में ही जाकर देखता हूँ !

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