कांगड़ा घाटी में बिताए कुछ यादगार पल (Time Spent in Kangra Valley)

रविवार, 17 जुलाई 2011 

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यात्रा के पिछले लेख में आप भाग्सू नाग झरने पर घूम चुके है अब आगे, सुबह जब सोकर उठे तो सारी थकान दूर हो चुकी थी और मैं एकदम तरोताज़ा महसूस कर रहा था, मतलब आज की यात्रा के लिए मेरा शरीर बिल्कुल तैयार था ! वैसे आज हमारा विचार डल-झील होते हुए आगे नड्डी की ओर घूमने जाने का था, और ये सारा सफ़र हमें पैदल ही तय करना था ! बिस्तर से उठकर सबसे पहले नित्य-क्रम से फारिक होकर होटल वाले को नाश्ते के लिए बोल दिया, ताकि जब तक हम तैयार हो, हमारा भोजन भी तैयार हो जाए ! आधे घंटे बाद जब हम दोनों तैयार होकर होटल की छत पर पहुँचे जहाँ होटल का रसोई घर था, तो हमारा नाश्ता तैयार हो चुका था ! नाश्ते में हमने गोभी और प्याज़ के पराठे खाए और फिर वापस अपने कमरे में आ गए जोकि भूमितल पर था ! यहाँ आकर हमने अपने साथ आज की यात्रा पर ले जाने के लिए एक छोटा बैग तैयार किया, जिसमें कैमरा, पानी की बोतलें, और कुछ कपड़े रख लिए, ताकि रास्ते में कोई दिक्कत ना हो ! 
hotel in mcleodganj
होटल के कमरे का दृश्य (A view of our Hotel Room)
यात्रा पर अपने साथ ले जाने के लिए चॉकलेट हमने मक्लॉडगंज के मुख्य बाज़ार में एक दुकान से ले लिए !अपने होटल से निकलकर हम दोनों मक्लॉडगंज के मुख्य चौराहे पर पहुँच गए, जहाँ से कई रास्ते अलग-2 दिशाओं में जाते है ! मोनेस्ट्री की तरफ से आने पर आपके बाईं तरफ नीचे की ओर जाने वाला रास्ता, चर्च होता हुआ धर्मशाला को जाता है, जबकि उसी रास्ते के समानांतर उपर की ओर जाने वाला मार्ग, डल-झील होते हुए आगे नड्डी को चला जाता है ! इस चौराहे से दाईं ओर जाने वाला मार्ग भी आगे जाकर दो हिस्सों में विभाजित हो जाता है, जिसमें से आपके दाईं तरफ नीचे जाने वाला मार्ग भाग्सू नाग मंदिर होता हुआ झरने को चला जाता है, जबकि बाईं तरफ उपर वाला मार्ग धर्मकोट, गालू मंदिर होते हुए त्रिऊंड को जाता है ! हम दोनों डल-झील वाले मार्ग पर पैदल ही चल दिए, थोड़ा आगे बढ़ने पर यहाँ का टैक्सी स्टैंड है, जहाँ बहुत सारी गाड़ियाँ खड़ी थी ! 

टैक्सी स्टैंड का मुखिया मक्लॉडगंज के चौराहे पर एक दफ़्तर में बैठा रहता है जो पर्यटकों के आग्रह पर फोन करके यहीं से टैक्सी मंगवा देता था, ये बात हमें कल शाम को चौराहे पर बैठ कर कुल्फी खाते हुए पता चली थी ! उस दौरान हमने देखा कोई भी लोग यहाँ टैक्सी के लिए आते तो ये मुखिया झट से फोन कर देता और एक टैक्सी आ जाती ! टैक्सी स्टैंड को पार करने के बाद रास्ता एकदम खाली था, इक्का-दुक्का गाड़ियाँ ही इस मार्ग पर आ-जा रही थी, मार्ग के दोनों ओर हमें कई नई प्रजातियों के पेड़-पौधे देखने को मिले ! ये रास्ता काफ़ी घुमावदार था, फिर एक मोड़ से आगे बढ़ने पर हमारी बाईं ओर दूर मक्लॉडगंज का बाज़ार दिखने लगा जो बहुत ही सुंदर लग रहा था ! दूर तक दिखाई देते हरे-भरे उँचे-2 चीड़ के पेड़ देख कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने पहाड़ों पर हरी चादर बिछा दी हो ! हम दोनों रुकते-रुकाते इस मार्ग पर अपनी यात्रा जारी रखे हुए थे, कई जगहों पर तो हम दोनों सड़क से उतरकर नीचे घाटी में भी गए ! 

रास्ते में एक बहुत पुराने पेड़ के उपर चढ़कर कुछ फोटो भी खिंचवाए ! ऐसे ही कई घुमावदार रास्तों से होते हुए हम जब एक मोड़ से गुज़रे तो वहाँ सड़क की मरम्मत का काम चल रहा था, बड़े-2 पत्थरों को तार के माध्यम से बाँध कर सड़क पर बिछाया गया था ताकि वर्षा ऋतु में पानी के बहाव के कारण मार्ग बह ना जाए ! मैं पहाड़ों पर सड़क बनते हुए पहली बार देख रहा था इसलिए पत्थरों को तारों से बँधा हुआ देखा तो पहले तो समझ नहीं आया, पर बाद में दिमाग़ लगाया तब इसका कारण पता चला ! सड़क निर्माण के कारण यहाँ वाहनों की लंबी कतार लग गई थी, हम दोनों तो पैदल ही थे इसलिए हमें लाइन में खड़े होने की ज़रूरत नहीं पड़ी ! वहाँ से थोड़ा और आगे बढ़ने पर रास्ता दो भागों में विभाजित हो गया, सामने डल-झील थी, यहाँ से दाईं ओर जाने वाला मार्ग घूम कर झील के दूसरी तरफ जा रहा था जबकि बाईं तरफ जाने वाला मार्ग नड्डी की ओर जाता है ! 

आप लोगों की जानकारी के लिए बता दूँ कि ये श्रीनगर वाली डल-झील नहीं है अपितु यहाँ हिमाचल में भी एक डल-झील है ! वैसे तो ये झील काफ़ी छोटी है पर यहाँ की नौकाएँ देख कर अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि झील में पर्याप्त पानी होने पर यहाँ नौकायान का आनंद भी लिया जा सकता है ! हालाँकि, जिस समय हम वहाँ पहुँचे, झील में ज़्यादा पानी नहीं था इसलिए झील के नवीनीकरण का काम किया जा रहा था ! अब झील में पानी नहीं था या नवीनीकरण के लिए जानबूझ कर झील के पानी को खाली किया गया था, ये मुझे मालूम नहीं ! खैर, हम दोनों झील पर रुके बिना अपनी बाईं ओर जाने वाले झील के साथ-2 बने मार्ग पर चल दिए ! थोड़ा आगे बढ़ने पर सड़क के किनारे उँचाई भरे मोड़ पर एक खुला मैदान था, जहाँ लोग खड़े होकर फोटो खिंचवाने में लगे थे ! यहाँ से देखने पर दूर तक का नज़ारा एकदम साफ दिखाई दे रहा था, थोड़ी देर हम दोनों भी वहाँ रुके ! फिर हमने अपना नड्डी जाने का सफ़र जारी रखा, डल-झील के बाद चढ़ाई भरा मार्ग शुरू हो गया था, एक-2 कदम चलना भारी लगने लगा था ! 

इसलिए हम दोनों सड़क को छोड़ कर, कच्चे पर छोटे रास्ते पर चल दिए जो आगे जाकर फिर से सड़क में ही मिल रहा था ! इसी तरह चलते हुए जब हम एक कस्बे से गुज़रे तो एकदम से मौसम बदल गया, जहाँ अभी तक धूप-छाँव हो रही थी, वहीं एकदम से घना कोहरा छा गया, और चारों तरफ अंधेरा होने लगा ! मौसम में ठंडक भी काफ़ी बढ़ गई, और तेज हवाएँ भी चलने लगी ! एक बार तो हमें लगा कि खराब मौसम में आगे जाना ठीक रहेगा या नहीं, पर उस कस्बे को पार करने के बाद मौसम में थोड़ा सुधार हो गया ! उस कस्बे से निकलने के बाद नड्डी का इलाक़ा शुरू हो गया, यहाँ एक छोटा सा बाज़ार, एक स्कूल और कुछ रिहायशी इमारतें थी ! पक्की सड़क अब कच्चे मार्ग में परिवर्तित हो गई, हालाँकि कुछ निजी गाड़ियाँ इस कच्चे मार्ग पर भी जा रही थी ! हम लोग इसी कच्चे मार्ग पर चलते रहे और अंत में उँचाई पर बने एक ऐसे स्थान पर पहुँच गए जहाँ पर्यटकों की काफ़ी भीड़ थी ! 

इस जगह को लोग सनसेट पॉइंट के नाम से जानते है, यहाँ से दूर-2 तक चारों तरफ खूबसूरत नज़ारे दिखाई दे रहे थे ! पहाड़ों में तो जहाँ से कुछ सुंदर नज़ारे दिखाई देने लगे, यहाँ के स्थानीय लोग उसे एक नाम दे देते है ताकि पर्यटकों से उस पॉइंट को दिखाने के दाम वसूल कर सके, वरना पहाड़ों पर शायद ही कोई ऐसी जगह हो जहाँ से सुंदर नज़ारे ना दिखाई देते हो ! हमने भी यहाँ आकर काफ़ी फोटो लिए, और फिर इसी मार्ग पर आगे बढ़ते हुए एक निजी विद्यालय के प्रांगण में पहुँच गए ! स्कूल का प्रांगण भी काफ़ी दूर तक फैला हुआ था, हम दोनों वहीं एक किनारे घास पर बैठ कर दूर दिखाई देते चीड़ के पेड़ों को निहारने लगे ! यहाँ हमारे अलावा और कोई भी पर्यटक नहीं आया था, क्योंकि गाड़ियों के आने के लिए मार्ग काफ़ी पीछे ही ख़त्म हो गया था ! थोड़ी देर वहाँ बैठ कर बातें करने और हल्का-फुल्का खाने के बाद हम दोनों स्कूल से बाहर आ गए और नीचे घाटी में उतरने लगे ! नीचे उतरने के लिए कोई निश्चित मार्ग तो था नहीं, इसलिए हम लोग पहाड़ी पर मौजूद पेड़ों को पकड़ते हुए नीचे की ओर जा रहे थे ! 

मार्ग में ही हमें कुछ स्थानीए बच्चे बकरियाँ चराते हुए भी मिले, जिन्होनें हमें खाने के लिए कुछ पहाड़ी फल दिए, बदले में हमने उन्हें कुछ रुपए दे दिए ! पहाड़ी से देखने पर दूर नीचे एक झरना दिखाई दे रहा था, हमारा मन इस झरने तक जाने का था, पर यहाँ से इस झरने तक पहुँचने के लिए बीच में पड़ने वाले एक घने जंगल को पार करना था ! देखने पर ही जंगल काफ़ी घना लग रहा था और स्थानीय बच्चों ने तो यहाँ तक कहा कि जंगल में भालू है ! हालाँकि, भालू वाली बात से हम डरे नहीं क्योंकि ऐसे जंगलों के पास रहने वाले लोग अपने बच्चों को ऐसी कुछ मनगढ़ंत कहानियाँ सुना देते है ताकि बच्चे जंगल की ओर ना जाएँ ! उँचाई पर होने की वजह से हम अंदाज़ा लगा कर जैसे-तैसे नीचे झरने तक पहुँच भी जाते, पर झरने से वापस आने के लिए हमारे पास कोई योजना नहीं थी, क्योंकि घने जंगल में दिशा का अनुमान लगाना आसान काम नहीं होता, और अगर बारिश हो जाती, तो फिसलन भरी पहाड़ी पर चढ़ना भी काफ़ी मुश्किल हो जाता ! 

कल भाग्सू नाग झरने पर हमें पंजाब से आए कुछ युवकों का एक समूह मिला था, वो समूह हमें आज यहाँ भी मिला ! हल्की-फुल्की बातचीत के बाद हमारी आपस में दोस्ती भी हो गई, इसी समूह में थे हरपाल पाजी ! फिर काफ़ी देर तक वहीं बैठ कर हरपाल और बाकी लोगों से बातें करते रहे ! जब उपर पहाड़ी पर पहुँचे तो वहाँ हमें एक कॉलेज का समूह भी मिला जो अपनी ट्रैनिंग के लिए यहाँ आया हुआ था, ये छात्र सिविल इंजिनियरिंग के विद्यार्थी थे और अपने प्रॉजेक्ट के लिए ज़रूरी जानकारी एकत्रित करने में लगे थे ! उन लोगों के पास कुछ आधुनिक उपकरण थे, जिसकी मदद से हमने झरने को काफ़ी नज़दीक से देखा, फिर जब एकाएक बारिश शुरू हो गई तो सभी लोग सुरक्षित स्थानों की तरफ भागने लगे ! हम दोनों ने भी बारिश से बचने के लिए एक छत का सहारा लिया, फिर बारिश के धीमा होने पर वापसी की राह पकड़ी ! वापस आते हुए भी हम उसी मार्ग से आए जिस से सुबह गए थे, रास्ते में एक दुकान पर रुककर थोड़ी पेट पूजा की और फिर अपना वापसी का सफ़र जारी रखा ! 

अपने होटल पर पहुँचते-2 शाम हो गई, और थकान की वजह से पैरों में भी दर्द हो रहा था ! होटल पहुँचकर थोड़ी देर आराम करने के बाद हम फिर से मक्लॉडगंज के मुख्य बाज़ार की ओर चल दिए ! यहाँ मुख्य चौराहे के पास बने एक लोहे की सीट पर बैठ कर हम दोनों ने कुछ बौद्ध भिक्षुओं से बातें की और उनकी जीवन शैली को समझने का प्रयास भी ! बौद्ध भिक्षु बनने के लिए आपको पारिवारिक जीवन का त्याग करना पड़ता है, इन बौद्ध भिक्षुओं का अधिकतर समय मोनेस्ट्री में ही व्यतीत होता है ! यहाँ हमारी मुलाकात एक विदेशी पर्यटक से भी हुई, जो एक अँग्रेज़ी पत्रिका के लिए काम करता था और यहाँ भारत में फोटोग्राफी के लिए आया था ! शाम को भी यहाँ से हमें बहुत सुंदर नज़ारे देखने को मिले, काफ़ी देर तक बाज़ार में घूमने के बाद एक होटल में रात्रि का भोजन करके वापस अपने कमरे की ओर चल दिए ! होटल पहुँचकर अगले दिन की यात्रा पर चर्चा करने के बाद हम दोनों अपने-2 बिस्तर पर आराम करने चले गए !
terrace view
होटल की छत का दृश्य (A view from our Hotel)
way to naddi
नड्डी जाने का मार्ग (Way to Naddi, Mcleodganj)
plants in naddi
सड़क किनारे जंगली पौधे
mcleodganj to naddi
नड्डी जाते हुए रास्ते में लिया चित्र
way to naddi
सड़क किनारे आराम करता हुआ शशांक
नड्डी जाते हुए रास्ते में लिया चित्र
naddi
घाटी में नीचे जाते हुए
mcleodganj
पीछे दिखाई देता मकलॉडगंज (Mcleodganj on the back side)
naddi road
घाटी में नीचे उतरता हुआ शशांक
forest near mcleodganj
एक बहुत पुराना पेड़
view from mcleodganj
पीछे दूर तक फैली हरियाली
way to dal lake
डल झील के पास लिया एक चित्र
dal lake
डल झील (Dal Lake, Dharmshala)
near dal lake

dal lake view
झील किनारे बैठ कर सोचते हुए
road to dal lake
बलखाते राहों से गुज़रते हुए
dal lake to naddi
घुमावदार राहें
naddi village

naddi village
यहाँ एकदम से मौसम खराब हो गया
view from naddi
नड्डी से दिखाई देता एक दृश्य (A view from Naddi, Mcleodganj)
naddi in himachal
नड्डी में कुछ रिहायशी इमारतें (Residential Area near Naddi, Mcleodganj)
hills in naddi
Beautiful view from Naddi
view from naddi
मेरे सामने दिखाई दे रही पतली सी लाइन झरने का पानी है
school in naddi
विद्यालय के प्रांगण में बैठा हुआ
group in naddi
पंजाब से आए युवकों के समूह और स्थानीय बच्चे
view of naddi
Dense forest in Naddi, Mcleodganj
क्यों जाएँ (Why to go Dharmshala): अगर आप दिल्ली की गर्मी और भीड़-भाड़ से दूर सुकून के कुछ पल पहाड़ों पर बिताना चाहते है तो आप धर्मशाला-मक्लॉडगंज का रुख़ कर सकते है ! यहाँ घूमने के लिए भी कई जगहें है, जिसमें झरने, किले, चर्च, स्टेडियम, और पहाड़ शामिल है ! ट्रेकिंग के शौकीन लोगों के लिए कुछ बढ़िया ट्रेक भी है !

कब जाएँ (Best time to go Dharmshala): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए धर्मशाला जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में आपको बढ़िया बर्फ मिल जाएगी !

कैसे जाएँ (How to reach Dharmshala): दिल्ली से धर्मशाला की दूरी लगभग 478 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाइए, जम्मू जाने वाली हर ट्रेन पठानकोट होकर ही जाती है ! पठानकोट से धर्मशाला की दूरी महज 90 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी से तय कर सकते है, इस सफ़र में आपके ढाई से तीन घंटे लगेंगे ! अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से धर्मशाला के लिए हिमाचल टूरिज़्म की वोल्वो और हिमाचल परिवहन की सामान्य बसें भी चलती है ! आप निजी गाड़ी से भी धर्मशाला जा सकते है जिसमें आपको दिल्ली से धर्मशाला पहुँचने में 9-10 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा पठानकोट से बैजनाथ तक टॉय ट्रेन भी चलती है जिसमें सफ़र करते हुए धौलाधार की पहाड़ियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! टॉय ट्रेन से पठानकोट से कांगड़ा तक का सफ़र तय करने में आपको साढ़े चार घंटे का समय लगेगा !

कहाँ रुके (Where to stay in Dharmshala): धर्मशाला में रुकने के लिए बहुत होटल है लेकिन अगर आप धर्मशाला जा रहे है तो बेहतर रहेगा आप धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में रुके ! घूमने-फिरने की अधिकतर जगहें मक्लॉडगंज में ही है धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम और कांगड़ा का किला है जिसे आप वापसी में भी देख सकते हो ! मक्लॉडगंज में भी रुकने और खाने-पीने के बहुत विकल्प है, आपको अपने बजट के अनुसार 700 रुपए से शुरू होकर 3000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !

क्या देखें (Places to see in Dharmshala): धर्मशाला में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन अधिकतर जगहें ऊपरी धर्मशाला (Upper Dharmshala) यानि मक्लॉडगंज में है यहाँ के मुख्य आकर्षण भाग्सू नाग मंदिर और झरना, गालू मंदिर, हिमालयन वॉटर फाल, त्रिऊँड ट्रेक, नड्डी, डल झील, सेंट जोन्स चर्च, मोनेस्ट्री और माल रोड है ! जबकि निचले धर्मशाला (Lower Dharmshala) में क्रिकेट स्टेडियम (HPCA Stadium), कांगड़ा का किला (Kangra Fort), और वॉर मेमोरियल है !


अगले भाग में जारी...

धर्मशाला - मक्लॉडगंज यात्रा 
  1. मक्लॉडगंज का एक यादगार सफ़र (A Memorable Trip to Mcleodganj)
  2. भाग्सू नाग झरने में मस्ती (Fun in Bhagsu Naag Waterfall)
  3. कांगड़ा घाटी में बिताए कुछ यादगार पल (Time Spent in Kangra Valley)
  4. मक्लॉडगंज चर्च और धमर्शाला स्टेडियम (A Day in HPCA Stadium, Dharamshala)
  5. मक्लॉडगंज से पालमपुर की बस यात्रा (A Road Trip to Palampur)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

4 Comments

  1. bahut achi pics hai, maza aa gya pics dekh kar :)

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    1. वहाँ जाकर देखोगे तो और भी ज़्यादा अच्छा लगेगा जीतू भाई ! वाकई बहुत शानदार जगह है !

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  2. बेहतरीन यात्रा विवरण प्रदीप जी

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