जोधपुर का क्लॉक टावर और कुछ प्रसिद्द मंदिर (Temples and Clock Tower of Jodhpur)

रविवार, 24 दिसंबर 2017

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यात्रा के पिछले लेख में आपने बालसमंद और कायलाना झील के बारे में पढ़ा, दोनों झील देखने के बाद हम एक माल में पहुंचे ! अब आगे, मॉल से निकले तो कुछ देर बाद हम राव जोधा की मूर्ति के पास से होकर ही निकले, शहर के बाहर ही बाहर होते हुए हम बाइक वाले के पास पहुंचे ! स्कूटी वापिस करके हमने अपने कागज़ वापिस लिए और पैदल ही जोधपुर के क्लॉक टावर की ओर चल दिए, कल हम क्रिसमस की वजह से क्लॉक टावर नहीं देख पाए थे, इसलिए आज तो इसे देखना ही था ! टहलते हुए कुछ बाज़ारों से निकलकर हम क्लॉक टावर पहुंचे, क्लॉक टावर के पास भी एक बड़ा बाज़ार है जहाँ खान-पान से लेकर साज-सज्जा का सामान मिलता है, बाज़ार के बीच से निकलकर हम क्लॉक टावर के सामने खड़े थे ! चलिए, अन्दर जाने से पहले मैं आपको इस क्लॉक टावर से सम्बंधित कुछ जरुरी जानकारी दे देता हूँ ! सन 1910 में राजा सरदारसिंह के शासनकाल में जोधपुर में नई मंडी के पास एक बाज़ार बनवाया गया, इस बाज़ार का नाम सरदार सिंह के नाम पर ही था ! चौपड़ के आकर में बने इस बाज़ार के बीचों-बीच सौ फुट ऊंचे एक घंटाघर का निर्माण करवाया गया, जिसमें तीन लाख रूपए की घडी लगवाई गई !
जोधपुर के क्लॉक टावर का एक दृश्य

इसमें से एक लाख रूपए तो घडी की कीमत थी, एक लाख रूपए घडी को यहाँ लगाने का खर्च, और एक लाख रूपए इसकी दूसरी अनुकृति ना बनाने (कॉपीराइट) की कीमत के रूप में चुकाए गए ! घंटाघर की मीनार में ऊपर की तीन मंजिलों में ये घड़ी लगी हुई है जो लन्दन की एक नामी कंपनी द्वारा बनाई गई थी ! बाहर से साधारण से दिखने वाले इसके चारों डायल भीतर से एक ही मशीन के विभिन्न यांत्रिक पुर्जों से जुड़े है ! घंटाघर की घड़ी साधारण घड़ियों की तरह फ़नर से नहीं चलती है बल्कि इसे चलाने के लिए तीन मोटे-2 तारों में अलग-2 ठोस लोहे के तीन भार लटके हुए है ! जैसे-2 ये घड़ी चलती है, ये तीनों भार धीरे-2 नीचे की ओर आने लगते है, और सप्ताह भर में ये भार बिल्कुल नीचे आ जाते है ! हर सप्ताह शुक्रवार को इस घडी में चाबी भरी जाती है, जिसके बाद तीनों भार वापिस ऊपर पहुँच जाते है ! इन तीनों भारों में से एक भार 15 मिनट का है जिसका वजन 2 क्विंटल है, दूसरा भार आधा घंटे का है जिसका वजन 1 क्विंटल है, जबकि तीसरा भार एक घंटे का है जिसका वजन सवा क्विंटल है ! इस टावर की तीसरी मंजिल पर घडी का यांत्रिक कक्ष है जहाँ दो बड़े-2 लोहे के गार्डरों पर ये घडी रखी गई है, इसकी लम्बाई 6 फुट और चौड़ाई 2 फुट है !
जोधपुर रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

क्लॉक टावर से दिखाई देता बाज़ार

क्लॉक टावर से दिखाई देता बाज़ार
क्लॉक टावर से दिखाई देता मेहरानगढ़ दुर्ग

क्लॉक टावर से दिखाई देता मेहरानगढ़ दुर्ग
यहीं पर इसका पेंडुलम लगा हुआ है जिसका वजन 50 किलो है, ये घड़ी अद्भुत इसलिए है क्योंकि इसके प्रत्येक 15 मिनट पर टंकोरे बजते है ! प्रत्येक 15 मिनट पर 2 टंकोरे, आधे घंटे पर 4 टंकोरे, पौने घंटे पर 6 टंकोरे, और एक घंटे पर 8 बार ये टंकोरे बजते है, इसके बाद समय बताने के लिए जितना समय हुआ है उतने ही घंटे के टंकोरे बजते है ! मतलब अगर 5 बजे है तो घंटा पूरे होने के 8 टंकोरे बजने के बाद 5 टंकोरे समय बताने के लिए बजते है ! इस घड़ी की एक विशेषता ये भी है कि इसमें हर घंटे के टंकोरे की आवाज़ अलग-2 होती है ! घडी के चारों डायलों का व्यास 6 फुट का है, इसमें बड़ी सुई 3 फुट और छोटी सुई 2 फुट की है, घड़ी पर कंपनी का नाम और निर्माण वर्ष भी अंकित है ! घड़ी की चाबी का वजन 10 किलो है और इसका डायल सफ़ेद कांच का है, इसमें कुछ जगहों पर मरम्मत करके सफ़ेद प्लास्टिक लगाया गया है ! घंटाघर की तीन मंजिलों तक जाने के लिए पक्की सीढियाँ बनी हुई है, जबकि चौथी मंजिल पर जाने के लिए लोहे की सीढियाँ लगाईं गई है ! यहाँ सात धातुओं के बने दो विशालकाय घंटे दो मोटे गार्डरों से लटके हुए है, इन घंटो के ऊपर लगने वाले हथोड़े 5-5 किलों के है !


जोधपुर के क्लॉक टावर का एक दृश्य

क्लॉक टावर से सम्बंधित जानकारी

जोधपुर क्लॉक टावर के विशेषज्ञ मोहम्मद इक़बाल

क्लॉक टावर का एक दृश्य

क्लॉक टावर में बैठा देवेन्द्र 
हम जाकर घंटाघर के प्रथम तल पर बैठ गए, यहाँ से दूर तक की इमारतें एकदम साफ़ दिखाई दे रही थी, एक तरफ जहाँ मेहरानगढ़ का किला दिखाई दे रहा था दूसरी तरफ उन्मेद भवन की ईमारत भी दिखाई दे रही थी ! इस घंटाघर के चारों तरफ लगा बाज़ार भी यहाँ से दिखाई दे रहा था, बड़ा शानदार दृश्य था, इसलिए हम काफी देर तक यहाँ बैठकर बातें करते रहे ! इस दौरान हमने यहाँ से आस-पास की इमारतों के कई चित्र लिए, घंटाघर में बैठकर समय बिताना मेरे लिए ज़िन्दगी के कुछ यादगार लम्हों में से था ! यहाँ से निकले तो हम काफी देर तक जोधपुर के बाज़ार में टहलते रहे, रास्ते में एक चाय की दुकान पर रूककर हमने चाय भी पी ! इसके बाद हम बाज़ार के बीचों-बीच स्थित होटल निरवाना पहुंचे, होटल में जाने के लिए बाज़ार के बीचों-बीच सीढियाँ बनी है जो किसी मंदिर की सीढ़ियों की तरह ही लगती है ! सीढ़ियों से होते हुए हम होटल प्रांगण में पहुंचे, यहाँ एक मंदिर और बगीचा भी था, होटल में पुराने डिजाईन की रंग-बिरंगी लाइटों का बढ़िया इस्तेमाल किया गया था ! होटल के बगीचे में कई प्रजाति के फूल भी थे, कुल मिलकर ये एक बढ़िया होटल था ! सीढ़ियों से होते हुए हम एक बड़े बरामदे में पहुंचे, जहाँ थोड़ी-2 दूरी पर खाने की टेबल लगाईं गई थी, यहाँ का माहौल एकदम शांत था !


जोधपुर के बाज़ार

होटल निरवाना का एक दृश्य

होटल निरवाना का एक दृश्य
जोधपुर के भीड़-भाड़ वाले बाज़ार के बीचों-बीच स्थित ये होटल परिवार संग रात्रि भोजन करने के लिए एक आदर्श स्थान है ! हमने खाने का पूछा तो होटल के एक कर्मचारी ने बताया खाना तैयार होने में अभी समय लगेगा, यहाँ बैठकर इन्तजार करने का हमारा मन नहीं था इसलिए हम भारी मन से होटल से बाहर आ गए और सीढ़ियों से होते हुए फिर से बाज़ार में पहुँच गए ! बाज़ार में फिर से घूमते-घामते हम कुञ्ज बिहारी जी के मंदिर के सामने पहुंचे, इस मंदिर की जोधपुर में काफी मान्यता है ! भगवान् कृष्ण को समर्पित इस मंदिर का निर्माण जोधपुर के महाराज विजय सिंह जी की पत्नी श्रीमती गुलाब राय ने 1790 में करवाया था ! मंदिर की इमारत सफ़ेद रंग की है और मुख्य प्रवेश द्वार बाज़ार से थोड़ी ऊँचाई पर बने एक चबूतरे पर है, जहाँ जाने के लिए मार्ग के किनारे सीढियाँ बनी है ! इन सीढ़ियों से होते हुए हम मंदिर प्रांगण में पहुंचे, प्रार्थना करने के बाद कुछ देर तक हम मंदिर परिसर में ही बैठे रहे, फिर यहाँ से निकले तो इस मंदिर के सामने ही अचलनाथ महादेव जी का एक मंदिर भी था ! मंदिर के बाहर निर्माण सामग्री बिखरी पड़ी थी, शायद मंदिर के पिछले भाग में निर्माण कार्य चल रहा था ! इस मंदिर में भी पूजा करके कुछ देर बैठने के बाद हम बाहर आ गए और मंदिर के बगल में स्थित एक होटल में खाना खाने चल दिए !


जोधपुर का कुञ्ज बिहारी मंदिर

मंदिर के अन्दर के एक दृश्य

कुञ्ज बिहारी के सामने एक अन्य मंदिर

मंदिर के अन्दर के एक दृश्य

मंदिर के अन्दर के एक दृश्य

मंदिर के अन्दर के एक दृश्य
यहाँ हमने पहली बार गुलाब जामुन की सब्जी खाई, जो बहुत स्वादिष्ट बनी थी खाकर मजा आ गया, होटल से खाना खाकर निकले तो अभी पौने नौ बज रहे थे ! हमारी ट्रेन रात 11:30 बजे की थी जिसमें अभी काफी समय बाकि था और अभी से स्टेशन पर जाकर बैठने का हमारा मन नहीं था ! इसलिए एक बार फिर से हम जोधपुर के बाजारों की गलियों में घंटे भर तक घूमते रहे, इसी बहाने हमारा खाना भी पच गया और हमने कई जगहें भी देख ली ! रात पौने दस बजे अपना सामान लेने के लिए हम अपने होटल की ओर चल दिए, जहाँ फ़ोन करके हमने पहले ही बता दिया था कि सामान लेने रात 10 बजे के आस-पास आयेंगे ! होटल से अपना सामान लेकर होटल वाले को धन्यवाद बोलते हुए हम स्टेशन की ओर चल दिए, एक ऑटो वाले से पूछा तो उसने स्टेशन तक जाने के 100 रूपए मांगे, हमने पैदल जाने में ही अपनी भलाई समझी ! वैसे भी अभी हमारे पास काफी समय था, बाज़ार से बाहर निकलते हुए हम उसे दूध वाले के पास जाकर रुके जहाँ हमने कल रात भी दूध पिया था ! 2 गिलास दूध का आदेश देकर हम वहीँ एक बेंच पर बैठ गए, दूध पीते हुए ही जयंत और जीतू का फ़ोन आ गया जो इस समय घूमने के लिए मसूरी से थोड़ी आगे बुरांशवादी गए हुए थे, और आज अपने टेंट में रुके थे !


होटल से स्टेशन जाते हुए दूध पीने के लिए यहाँ रुके थे
जोधपुर रेलवे स्टेशन का एक दृश्य
इस यात्रा पर साथ चलने के लिए इन्होनें मुझसे पूछा भी था लेकिन मेरा राजस्थान यात्रा का कार्यक्रम पहले ही बन चुका था इसलिए इनके साथ नहीं गया ! कॉलेज के इन दोनों मित्रों से काफी देर तक फ़ोन पर बात होती रही, इस बीच हमने अपने-2 गिलास के दूध भी निबटा लिए, जब मैंने फ़ोन रखा तब साढ़े दस बज रहे थे ! यहाँ से चले तो हमें स्टेशन पहुँचने में ज्यादा समय नहीं लगा, रात पौने ग्यारह बजे हम स्टेशन पर खड़े अपनी ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे ! ट्रेन निर्धारित समय पर आकर प्लेटफार्म पर खड़ी हुई, हमारी कन्फर्म टिकटें थी इसलिए ज्यादा भागा-दौड़ी नहीं करनी थी ! हम अपनी-2 सीट पर जाकर बैठ गए, हमारे केबिन में गुजरात से आए लड़कों का एक बड़ा समूह भी यात्रा कर रहा था, 6-7 लड़के थे ! जोधपुर से जैसलमेर चलने वाली इन रात्रि ट्रेनों में होटल के नाम पर लूटने वाले दलालों का एक गैंग भी यात्रियों के बीच सफ़र करता है, जो सस्ता होटल दिलाने के नाम पर लोगों को खूब लूटते है, अपना-2 शिकार फंसकर ये लोग 1-2 स्टेशन आगे जाकर उतर जाते है ! इस बारे में विस्तृत जानकारी और जोधपुर से जैसलमेर जाने की अपनी ट्रेन यात्रा का वर्णन मैं इस यात्रा के अगले लेख में करूँगा !

क्यों जाएँ (Why to go Jodhpur): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में जोधपुर का रुख कर सकते है !

कब जाएँ (Best time to go Jodhpur): जोधपुर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !

कैसे जाएँ (How to reach Jodhpur): जोधपुर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी 620 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन में सवार होकर रात भर में तय कर सकते है ! मंडोर एक्सप्रेस रोजाना पुरानी दिल्ली से रात 9 बजे चलकर सुबह 8 बजे जोधपुर उतार देती है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो उसके लिए भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जोधपुर जा सकते है ! 

कहाँ रुके (Where to stay near 
Jodhpur): जोधपुर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 600 रूपए से शुरू होकर 3000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !


क्या देखें (Places to see near Jodhpur): जोधपुर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें मेहरानगढ़ किला, जसवंत थड़ा, उन्मेद भवन, मंडोर उद्यान, बालसमंद झील, कायलाना झील, क्लॉक टावर और यहाँ के बाज़ार प्रमुख है ! त्रिपोलिया बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जोधपुर लाख के कड़ों के लिए जाना जाता है इसलिए अगर आप यहाँ घूमने आये है तो अपने परिवार की महिलाओं के लिए ये कड़े ले जाना ना भूलें !


जोधपुर यात्रा समाप्त...

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जोधपुर यात्रा
  1. दिल्ली से जोधपुर की ट्रेन यात्रा (A Train Journey from Delhi to Jodhpur)
  2. जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग का इतिहास (History of Mehrangarh Fort, Jodhpur)
  3. जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग की सैर (A Visit to Mehrangarh Fort, Jodhpur)
  4. मेहरानगढ़ दुर्ग के महल (A Visit to Palaces of Mehrangarh Fort, Jodhpur)
  5. मारवाड़ का ताजमहल - जसवंत थड़ा (Jaswant Thada, A Monument of Rajpoot Kings)
  6. जोधपुर का उम्मेद भवन (Umaid Bhawan Palace, Jodhpur)
  7. रावण की ससुराल और मारवाड़ की पूर्व राजधानी है मण्डोर (Mandor, the Old Capital of Marwar)
  8. जोधपुर की बालसमंद और कायलाना झील (Balasmand and Kaylana Lake of Jodhpur)
  9. जोधपुर का क्लॉक टावर और कुछ प्रसिद्द मंदिर (Temples and Clock Tower of Jodhpur)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

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