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लखनऊ भ्रमण के दौरान एक दिन जब मैं अलीगंज में स्थित हनुमान मंदिर के सामने से निकला तो सोचा भगवान के दर्शन ही कर लूँ ! वैसे भी बिना दर्शन किए तो यहाँ से आगे बढ़ने का सवाल ही नहीं था, क्योंकि लखनऊ आने से पहले इस मंदिर के बारे में मैने काफ़ी पढ़ और सुन रखा था ! इसलिए इस मंदिर को भी घूमने जाने वाली जगहों की लिस्ट में स्थान दे ही रखा था ! हनुमान जी का ये मंदिर बड़े मंगल उत्सव के लिए पूरे लखनऊ में प्रसिद्ध है ! बड़ा मंगल उत्सव ज्येष्ठ माह के प्रथम मंगलवार को यहाँ लखनऊ में मनाया जाता है, इस दिन यहाँ एक बड़े मेले का आयोजन होता है ! मेले में आने वाले लोगों की संख्या भी हज़ारों में होती है ! लखनऊ के अधिकतर नवाबों की भगवान हनुमान में खूब आस्था थी इसका प्रमाण इसी बात से मिलता है कि वे लोग इस मेले के आयोजन से लेकर पूजा-पाठ तक में भरपूर सहयोग देते थे ! मंदिर के प्रति नवाबों की आस्था ये दर्शाती है कि नवाब किसी एक धर्म तक सीमित नहीं थे, अपने समय में उन्होनें हर धर्म को बराबरी का दर्जा दिया !
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लखनऊ के अलीगंज का हनुमान मंदिर (Hanuman Temple of Aliganj, Lucknow) |
मंदिर के इतिहास की बात करे तो इस मंदिर का निर्माण मोहम्मद अली शाह की बेगम राबिया ने करवाया था ! कहते है कि एक बार नवाब की बेगम को स्वपन आया जिसमें उन्होनें देखा कि उनके राज्य में एक बगीचे के पास ज़मीन के नीचे भगवान हनुमान की एक विशाल प्रतिमा मौजूद है ! सपने में ही उन्हें ये आदेश भी मिला कि एक मंदिर का निर्माण करवाकर उन्हें इस प्रतिमा को उस मंदिर में ही स्थापित करवाना है ! कुछ समय बाद जब बेगम को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो नवाब ने उस स्थान की खुदाई शुरू करवा दी जहाँ बेगम को स्वपन में मूर्ति दिखाई दी थी ! खुदाई के दौरान उपरोक्त स्थान पर भगवान हनुमान की प्रतिमा मिलने पर सबको ताज्जुब हुआ ! नवाब ने आदेश दिया कि इस मूर्ति की स्थापना बड़े इमामबाड़े के पास एक मंदिर बनाकर उसमें कर दी जाए ! आदेशानुसार जब ये मूर्ति उक्त स्थान से उठाकर बड़े इमामबाड़ा के लिए ले जाई जा रही थी तो जो हाथी इस मूर्ति को उठाकर चल रहे थे वो राह में अलीगंज के पास आराम करने के लिए बैठ गए !
बाद में उन हाथियों को उठाने के लिए काफ़ी मेहनत की गई, लेकिन सब व्यर्थ रहा और हाथी खड़े नहीं हुए ! फिर उस इलाक़े के एक संत की सलाह पर नवाब ने उसी स्थान पर मंदिर बनाने का आदेश दे दिया ! तो इस तरह इस मंदिर की स्थापना हुई, ये इलाक़ा आज अलीगंज क्षेत्र में आता है !
इस मंदिर के बगल में ही एक सरोवर भी है, सरोवर तक जाने के लिए पत्थर की सीढ़ियाँ बनी हुई है ! कभी इस सरोवर पर भी अच्छी भीड़ जुटती थी लेकिन वर्तमान में सरोवर के आस-पास साफ सफाई ना होने के कारण लोगों का आना-जाना काफ़ी कम हो गया है ! वैसे मंदिर निर्माण की तरह बड़े मंगल मेले की शुरुआत को लेकर भी कई कहावतें है, ऐसी ही एक कहावत के अनुसार एक बार नवाब के बेटे बीमार पड़ गए ! उस दौर के बड़े-2 वैद्य भी उस बच्चे की बीमारी का इलाज नहीं कर पाए !
चारों तरफ से हताश होने के बाद नवाब की बेगम अपने बच्चे के ठीक होने की उम्मीद लिए जगह-2 घूमी, लेकिन कहीं बात नहीं बनी ! इसी बीच एक दिन जब वो मंदिर के पास से गुज़री तो उनकी मुलाकात मंदिर के पुजारी से हुई ! उन्होनें अपनी समस्या से पुजारी को अवगत कराया तो उन्होनें बेगम से बच्चे को हनुमान जी की मूर्ति के सामने रखकर चले जाने को कहा ! भगवान की कृपा से बच्चा स्वस्थ हो गया, फिर बाद में जब बेगम आई तो बच्चे को ठीक देख कर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ ! जब वो मंदिर में दक्षिणा देने लगी तो पुजारी ने सुझाव दिया कि दक्षिणा देने से अच्छा होगा अगर वो यहाँ एक मेले का आयोजन करवा दे !
इसी बहाने मंदिर की ख्याति भी दूर-2 तक हो जाएगी और ज़्यादा लोग यहाँ दर्शन के लिए आ पाएँगे ! बस तभी से यहाँ हर साल बड़े मंगल के दिन ये मेला लगता है !
मंदिर जाने के लिए हम मुख्य मार्ग से हटकर एक सहायक मार्ग पर हो लिए, ये सहायक मार्ग एक गली से होते हुए मंदिर के सामने तक जाता है ! इस गली में कुछ दुकानें थी जहाँ से आप मंदिर में चढ़ाने के लिए पूजा सामग्री ले सकते है ! मंदिर के मुख्य द्वार के सामने भी दो छोटे-2 मंदिर बने हुए है, जबकि थोड़ी आगे जाने पर मंदिर के बगल में मौजूद सरोवर भी दिखाई देता है ! मंदिर के प्रवेश द्वार पर बड़े-2 घंटे लगे हुए है, सजावट भी काफ़ी अच्छी की गई है ! मुख्य द्वार से मंदिर में प्रवेश करते ही मैने देखा कि सिंदूरी रंग के इस मंदिर की छटा वाकई देखने लायक है ! प्रवेश द्वार से मुख्य भवन तक जाने के लिए एक मार्ग बना है, मार्ग के किनारे रेलिंग लगी है और कुछ स्तंभ भी बने है ! रेलिंग के उस पार एक और मार्ग है जबकि दोनों मार्गों के किनारों पर भी कुछ भवन बने हुए है ! घने पेड़ों से घिरे हुए इस मंदिर में आज ज़्यादा भीड़ नहीं थी, मेरे अलावा गिनती के ही कुछ लोग इस समय मंदिर में मौजूद थे !
मंगलवार को यहाँ निश्चित तौर पर भीड़ रहती होगी, मुख्य भवन में हनुमान जी की एक प्रतिमा लगी है, और लोग इसके सामने खड़े होकर प्रार्थना कर रहे थे ! मैं भी इस प्रार्थना में शामिल हो गया और प्रार्थना करने के बाद मुख्य भवन का एक चक्कर लगाता हुआ मंदिर के दूसरे भाग में पहुँच गया ! ये भाग प्रवेश द्वार से दाईं ओर था, यहाँ प्रभु राम के दर्शन करके के बाद मैने शिवजी के भी दर्शन किए ! यहाँ से आगे बढ़ा तो एक भवन में माता के सात रूपों को देखने का सौभाग्य मिला ! माता की ये मूर्तियाँ इतनी सुंदर थी कि जीवंत सी प्रतीत हो रही थी ! यहाँ माँ के शीतला, महाकाली, संतोषी, दुर्गा, सरस्वती और दो अन्य रूप दिखाए गए थे ! सभी के दर्शन करने के बाद मैं फिर से मुख्य भवन के सामने वाले भाग में आ गया ! मंदिर परिसर में फोटो खींचने पर कोई मनाही नहीं थी इसलिए मैने यहाँ खड़े होकर काफ़ी फोटो खींचे ! थोड़ी देर बाद प्रवेश द्वार से होता हुआ मैं मंदिर से बाहर आ गया और उदय की ओर चल दिया जो यहाँ खड़ा होकर मेरी प्रतीक्षा कर रहा था !
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मंदिर के बाहर का एक दृश्य |
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मंदिर का प्रवेश द्वार (Entrance of the Temple) |
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ऐसी कई घंटियाँ मंदिर परिसर में लगी हुई थी |
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मंदिर परिसर का एक दृश्य |
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मुख्य भवन का एक दृश्य |
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मुख्य भवन का एक दृश्य |
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मुख्य भवन की परिक्रमा लगाने का मार्ग |
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मुख्य भवन की परिक्रमा लगाने का मार्ग |
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भगवान राम दरबार |
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शंकर और गणेश जी की प्रतिमा |
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मुख्य भवन से दिखाई देता प्रवेश द्वार |
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मंदिर परिसर की अन्य इमारतें |
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माँ के विभिन्न रूप |
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माँ के विभिन्न रूप |
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माँ के विभिन्न रूप |
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माँ के विभिन्न रूप |
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माँ के विभिन्न रूप |
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मंदिर परिसर की अन्य इमारतें |
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मुख्य भवन का एक और दृश्य |
क्यों जाएँ (Why to go Lucknow): वैसे नवाबों का शहर लखनऊ किसी पहचान का मोहताज नहीं है, इस शहर के बारे में वैसे तो आपने भी सुन ही रखा होगा ! अगर आप प्राचीन इमारतें जैसे इमामबाड़े, भूल-भुलैया, अंबेडकर पार्क, या फिर जनेश्वर मिश्र पार्क घूमने के साथ-2 लखनवी टुंडे कबाब और अन्य शाही व्यंजनों का स्वाद लेना चाहते है तो बेझिझक लखनऊ चले आइए !
कब जाएँ (Best time to go Lucknow): आप साल के किसी भी महीने में लखनऊ जा सकते है ! गर्मियों के महीनों यहाँ भी खूब गर्मी पड़ती है जबकि दिसंबर-जनवरी के महीने में यहाँ बढ़िया ठंड रहती है !
कैसे जाएँ (How to reach Lucknow): दिल्ली से लखनऊ जाने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन भारतीय रेल है दिल्ली से दिनभर लखनऊ के लिए ट्रेनें चलती रहती है किसी भी रात्रि ट्रेन से 8-9 घंटे का सफ़र करके आप प्रात: आराम से लखनऊ पहुँच सकते है ! दिल्ली से लखनऊ जाने का सड़क मार्ग भी शानदार बना है 550 किलोमीटर की इस दूरी को तय करने में भी आपको 7-8 घंटे का समय लग जाएगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Lucknow): लखनऊ एक पर्यटन स्थल है इसलिए यहाँ रुकने के लिए होटलों की कमी नहीं है आप अपनी सुविधा के अनुसार चारबाग रेलवे स्टेशन के आस-पास या शहर के अन्य इलाक़ों में स्थित किसी भी होटक में रुक सकते है ! आपको 500 रुपए से शुरू होकर 4000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Lucknow): लखनऊ में घूमने के लिए बहुत जगहें है जिनमें से छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा, भूल-भुलैया, आसिफी मस्जिद, शाही बावली, रूमी दरवाजा, हुसैनबाद क्लॉक टॉवर, रेजीडेंसी, कौड़िया घाट, शादत अली ख़ान का मकबरा, अंबेडकर पार्क, जनेश्वर मिश्र पार्क, कुकरेल वन और अमीनाबाद प्रमुख है ! इसके अलावा भी लखनऊ में घूमने की बहुत जगहें है 2-3 दिन में आप इन सभी जगहों को देख सकते है !
क्या खरीदे (Things to buy from Lucknow): लखनऊ घूमने आए है तो यादगार के तौर पर भी कुछ ना कुछ ले जाने का मन होगा ! खरीददारी के लिए भी लखनऊ एक बढ़िया शहर है लखनवी कुर्ते और सूट अपने चिकन वर्क के लिए दुनिया भर में मशहूर है ! खाने-पीने के लिए आप अमीनाबाद बाज़ार का रुख़ कर सकते है, यहाँ के टुंडे कबाब का स्वाद आपको ज़िंदगी भर याद रहेगा ! लखनऊ की गुलाब रेवड़ी भी काफ़ी प्रसिद्ध है, रेलवे स्टेशन के बाहर दुकानों पर ये आसानी से मिल जाएगी !
अगले भाग में जारी...
लखनऊ यात्रा
शानदार प्रदीप भाई मंदिर वाकई मे अच्छा है
ReplyDeleteजी धन्यवाद !
Deleteप्रदीप जी आज आपकी यात्राओं को पढ़ा, अच्छा लगा, कभी इधर जाना हुआ तो बहुत काम आएगी आपकी ये पोस्ट।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई, मैं तो कहूँगा कि समय निकालकर ज़रूर जाइए लखनऊ !
Deleteये मंदिर मेरा देखा हुआ है, नवाबों की आस्था देख कर बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा हर्षिता जी, नवाबों की आस्था देखकर अच्छा लगा !
Deleteबढ़िया दर्शन करवा दिए प्रदीप भाई हमको तो यहाँ बैठे बैठे।
ReplyDeleteबीनू भाई, बस कोशिश करता हूँ अपनी नज़र से जगह दिखाने की !
Deletedhanyabaad bhai
ReplyDeleteaabhaar !
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