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अपनी लखनऊ यात्रा से पहले मैने कुड़ीया घाट से संबंधित इंटरनेट पर जो फोटो देखे थे उनके आधार पर ही इस जगह को मैने लखनऊ में देखने वाली जगहों की अपनी सूची में डाल लिया था ! वैसे कई बार कुछ जगहों का दिखावा बहुत होता है पर असल में जाने पर वहाँ कुछ ख़ास नहीं मिलता ! कुड़ीया घाट पर जाने का अपना अनुभव मैं इस लेख के माध्यम से साझा कर रहा हूँ, इस घाट को लेकर मेरी प्रतिक्रिया मिली-जुली है ! लखनऊ भ्रमण के दौरान जब मैने अधिकतर जगहें घूम ली तो एक शाम को रेजीडेंसी घूमने के बाद थोड़ा समय निकाल कर कुड़ीया घाट पर बिताने के लिए चल दिया ! रेजीडेंसी से इस घाट की दूरी मुश्किल से 3 किलोमीटर है, जहाँ जाने में हमें 10 मिनट का समय लगा ! शहर की भीड़-भाड़ से होते हुए हम मुख्य मार्ग से अलग निकलकर इस घाट तक जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! मेरे और उदय के अलावा आदिल भी हमारे साथ था, 2 मोटरसाइकिलों पर सवार होकर एक बड़े से प्रवेश द्वार से होते हुए हम कुड़ीया घाट की पार्किंग में पहुँचे !
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कुड़ीया घाट का एक दृश्य (A view of Kudiya Ghaat) |
अपनी मोटरसाइकल पार्किंग में खड़ी करके हम तीनों घाट की ओर जाने वाले पैदल मार्ग पर चल दिए, यहाँ पार्किंग का कोई शुल्क नहीं देना पड़ा ! इस समय घाट पर ज़्यादा भीड़ नहीं थी, मुश्किल से 8-10 लोग ही रहे होंगे ! वैसे अगर साफ मौसम हो तो इस घाट से सूर्यास्त का शानदार नज़ारा दिखाई देता है, लेकिन आज मौसम में हल्का-2 कोहरा था ! घाट के किनारे ही कुछ नौका वाले अपनी-2 नावें लेकर खड़े थे और हमें देखते ही कहने लगे कि आइए नाव की सवारी करा देते है ! लखनऊ के अधिकतर लोगों की तरह इन लोगों की तहज़ीब भी ऐसी थी कि अगर नौकायान करने का मन ना हो तो भी करने का मन हो ही जाता है ! वैसे मन तो हमारा भी नहीं था पर फिर जब देखा कि यहाँ घाट पर करने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं है तो सोचा क्यों ना नाव की सवारी का ही लुत्फ़ ले लिया जाए ! घाट के किनारे ही कुछ स्थानीय लोग नदी में मौजूद मछलियों को डालने के लिए चारा भी बेच रहे थे जबकि एक जगह नाव के आरक्षण के लिए पर्ची काटी जा रही थी !
घाट पर ज़्यादा भीड़ होने की स्थिति में यहाँ क्रम से पर्ची काटी जाती होगी, आज तो ये घाट खाली ही पड़ा था ! घाट के किनारे खड़ी एक नौका में 4-5 यात्री बैठे थे, नाव चालक ने हमें भी इसी नौका में बिठा दिया और अन्य यात्रियों की बाट देखने लगा ! थोड़ी देर में ही जब कुछ और लोग भी आ गए तो हम सब को लेकर ये नाव घाट से निकलकर नदी के मध्य में चल दी ! इस नाव में प्रति व्यक्ति किराया मात्र 20 रुपए था, नाव में बैठने से पहले ही पूछने पर नौकाचालक ने बता दिया था कि नदी में दिखाई दे रहे एक निशान तक ही वो नाव लेकर जाएगा और फिर वापिस घाट पर लौट आएगा ! नाव चलने के बाद हम घाट और इसके आस-पास की फोटो खींचने लगे ! हमारी तरह ही नाव में सवार अन्य लोग भी फोटो खींच रहे थे और इसी दौरान जब वे लोग इधर-उधर हुए तो नाव का झुकाव एक तरफ ज़्यादा हो गया ! नाव वाले ने तुरंत हिदायत दी कि नाव में ज़्यादा उछल-कूद मत कीजिए, वरना नाव पलट जाएगी !
वैसे तो अधिकतर लोग जानते ही होंगे फिर भी बता देता हूँ कि नाव में बैठते समय ये याद रखना होता है कि नाव का संतुलन बना रहे ! ज़रा सी गड़बड़ हुई नहीं कि नाव नदी में उल्टी हो जाएगी ! नाव में किसी भी किनारे जब भार थोड़ा बढ़ जाता है तो नाव का झुकाव उधर की ओर ज़्यादा हो जाता है ! इसलिए नाव में बैठने के बाद ज़्यादा उछल-कूद नहीं मचानी चाहिए, पता चला आपके फोटो खींचने के चक्कर में नाव में सवार सभी लोग नदी में डुबकी लगा बैठे ! बहुत जानकारी दे दी, आप भी कहेंगे कि नाव की सवारी कराते-2 कहाँ पहुँच गया ! वापिस कुड़ीया घाट चलते है जहाँ हमारी नाव घाट से दूर नदी के बीच में जा रही है ! घाट से थोड़ी अंदर जाने पर ही नदी में एक पीपल का पेड़ था और उसके पास ही एक टूटी हुई इमारत ! पता नहीं ये कभी किसी का निवास स्थान रहा होगा या कोई अन्य इमारत ! नौकायान के दौरान जब हम नदी के बीचों-बीच पहुँचे तो यहाँ से हुसैनबाद घंटाघर के अलावा कुछ अन्य इमारतें भी दिखाई दे रही थी !
यहाँ से देखने पर ये शानदार लग रही थी, पर धुन्ध होने की वजह से साफ नहीं दिखाई दे रही थी ! वैसे नदी के मध्य से देखने पर घाट का नज़ारा भी कुछ कम नहीं लग रहा था, रंग-बिरंगी नावे काफ़ी सुंदर लग रही थी ! घाट से थोड़ी आगे बढ़ने पर नदी के किनारे स्थिर पानी होने के कारण काई जम गई थी, इसलिए पानी भी गंदा ही लग रहा था ! घाट के किनारे थोड़ी-2 दूरी पर गुंबादनुमा आकृतियाँ बनी हुई थी, जो घाट की सुंदरता को बढ़ा रही थी ! इंटरनेट पर इन्हीं गुंबादनुमा आकृतियों के फोटो ने ही मुझे यहाँ आने के लिए आकर्षित किया था ! नाव में बैठे हुए ही हमने काफ़ी फोटो खींच लिए, थोड़ी देर बाद जब नाव वापिस घाट पर लौट आई ! नाव से उतरने के बाद भी हमने घाट और इसके चारों ओर के कई फोटो लिए ! घाट के किनारे-2 चलते हुए हम लोग जब ऐसे ही एक गुंबद तक पहुँचे तो यहाँ से थोड़ी दूरी पर ही गोमती नदी के ऊपर पुल निर्माण का कार्य चल रहा था !
हालाँकि, इस पुल से थोड़ी आगे ही एक और पुल है जो वर्तमान में चालू है, इस पुल पर गदर फिल्म का एक दृश्य भी फिल्माया गया था ! इस गुंबद में खड़े होकर काफ़ी सुंदर दृश्य दिखाई दे रहे थे, फिर चाहे वो गोमती नदी का बहता पानी हो या शाम की लालिमा लिए सूर्य देव, दोनों ही दृश्य शानदार लग रहे थे ! कुछ स्थानीय लोगों ने अपने पशु भी यहाँ नदी किनारे बाँध रखे थे, जबकि कुछ अन्य लोग अपनी दिनचर्या में व्यस्त थे ! हमारे अलावा भी कई लोग घाट के पास खड़े होकर इस दृश्य का आनंद ले रहे थे और फोटोग्राफी में लगे हुए थे ! काफ़ी समय यहाँ बिताने के बाद हम तीनों घाट की ओर वापिस चल दिए ! कुछ लोग यहाँ घाट पर पूजा-पाठ के लिए भी आते है ! यहाँ से वापिस पार्किंग की ओर जाते हुए भी रास्ते में हमें कुछ पुराने भवन दिखाई दिए, इनमें से अधिकतर के ऊपर गुंबद की आकृति बनी हुई थी ! पार्किंग से अपनी मोटरसाइकल लेकर हम बाहर चल दिए, थोड़ी देर में ही सहायक मार्ग से निकलकर मुख्य मार्ग पर पहुँच गए !
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घाट तक जाने के लिए बड़ा प्रवेश द्वार |
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कुड़ीया घाट का एक दृश्य (A view of Kaudiya Ghaat) |
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नाव से दिखाई देता कुड़ीया घाट का एक दृश्य (A view of Kaudiya Ghaat) |
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नाव से लिया एक और दृश्य |
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नाव से लिया एक और दृश्य |
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नाव से लिया एक और दृश्य |
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घाट के किनारे बनी गुंबदनुमा आकृतियाँ |
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नौकायान का आनंद लेते हुए |
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घाट के किनारे बनी गुंबदनुमा आकृतियाँ |
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नदी पर निर्माणाधीन पुल, इसके पीछे वाले पुल पर गदर की शूटिंग हुई थी |
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मैं और उदय |
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नदी का पानी काफ़ी गंदा हो गया है |
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शाम के समय सूर्य देव |
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उदय और आदिल |
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लालिमा लिए सूर्य देव |
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घाट से वापिस आते हुए लिया एक चित्र |
क्यों जाएँ (Why to go Lucknow): वैसे नवाबों का शहर लखनऊ किसी पहचान का मोहताज नहीं है, इस शहर के बारे में वैसे तो आपने भी सुन ही रखा होगा ! अगर आप प्राचीन इमारतें जैसे इमामबाड़े, भूल-भुलैया, अंबेडकर पार्क, या फिर जनेश्वर मिश्र पार्क घूमने के साथ-2 लखनवी टुंडे कबाब और अन्य शाही व्यंजनों का स्वाद लेना चाहते है तो बेझिझक लखनऊ चले आइए !
कब जाएँ (Best time to go Lucknow): आप साल के किसी भी महीने में लखनऊ जा सकते है ! गर्मियों के महीनों यहाँ भी खूब गर्मी पड़ती है जबकि दिसंबर-जनवरी के महीने में यहाँ बढ़िया ठंड रहती है !
कैसे जाएँ (How to reach Lucknow): दिल्ली से लखनऊ जाने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन भारतीय रेल है दिल्ली से दिनभर लखनऊ के लिए ट्रेनें चलती रहती है किसी भी रात्रि ट्रेन से 8-9 घंटे का सफ़र करके आप प्रात: आराम से लखनऊ पहुँच सकते है ! दिल्ली से लखनऊ जाने का सड़क मार्ग भी शानदार बना है 550 किलोमीटर की इस दूरी को तय करने में भी आपको 7-8 घंटे का समय लग जाएगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Lucknow): लखनऊ एक पर्यटन स्थल है इसलिए यहाँ रुकने के लिए होटलों की कमी नहीं है आप अपनी सुविधा के अनुसार चारबाग रेलवे स्टेशन के आस-पास या शहर के अन्य इलाक़ों में स्थित किसी भी होटक में रुक सकते है ! आपको 500 रुपए से शुरू होकर 4000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Lucknow): लखनऊ में घूमने के लिए बहुत जगहें है जिनमें से छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा, भूल-भुलैया, आसिफी मस्जिद, शाही बावली, रूमी दरवाजा, हुसैनबाद क्लॉक टॉवर, रेजीडेंसी, कौड़िया घाट, शादत अली ख़ान का मकबरा, अंबेडकर पार्क, जनेश्वर मिश्र पार्क, कुकरेल वन और अमीनाबाद प्रमुख है ! इसके अलावा भी लखनऊ में घूमने की बहुत जगहें है 2-3 दिन में आप इन सभी जगहों को देख सकते है !
क्या खरीदे (Things to buy from Lucknow): लखनऊ घूमने आए है तो यादगार के तौर पर भी कुछ ना कुछ ले जाने का मन होगा ! खरीददारी के लिए भी लखनऊ एक बढ़िया शहर है लखनवी कुर्ते और सूट अपने चिकन वर्क के लिए दुनिया भर में मशहूर है ! खाने-पीने के लिए आप अमीनाबाद बाज़ार का रुख़ कर सकते है, यहाँ के टुंडे कबाब का स्वाद आपको ज़िंदगी भर याद रहेगा ! लखनऊ की गुलाब रेवड़ी भी काफ़ी प्रसिद्ध है, रेलवे स्टेशन के बाहर दुकानों पर ये आसानी से मिल जाएगी !
अगले भाग में जारी...
लखनऊ यात्रा
मै ने आप की सारी पोस्ट पढ़ी आपके सारे लेख कमाल के है
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी !
Deleteआपके सारे लेख शानदार है इस पोस्ट ने हमारी लखनऊ की याद आगइ
ReplyDeleteजानकर अच्छा लगा कि मेरे लेख से आपको अपनी यात्रा की यादें ताज़ा हो गई !
Deleteमै ने आप की सारी पोस्ट पढ़ी आपके सारे लेख कमाल के है
ReplyDeleteशानदार फोटु और नाव तो रंगीली है।मस्त 👌
ReplyDeleteसच में, रंग-बिरंगी नावें बहुत अच्छी लगती है !
Deleteबढ़िया घुमक्कडी प्रदीप भाई।
ReplyDeleteधन्यवाद बीनू भाई !
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