शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011
इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें !
यात्रा के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह हम उदयपुर से बस यात्रा करके माउंट आबू पहुँचे ! कल दिन भर हम गुरु शिखर, सनसेट पॉइंट और कुछ अन्य जगहें भी घूम चुके है ! अब आगे, जो बंदूक हमने माउंट आबू के माल रोड से खरीदी थी उसे लेकर वापिस होटल आ गए और निशाना लगाने का अभ्यास करने लगे ! रात को निशाना लगाते हुए कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला, सुबह सोकर उठे तो काफ़ी ठंड थी ! हमारे कमरे में खिड़की ना होने के कारण हमें तो पता भी नहीं चल रहा था कि बाहर मौसम के क्या हालात थे ! अपने बेड के सिरहाने स्टूल पर रखी घड़ी उठाकर समय देखा तो सुबह के 7 बजने वाले थे, आज तो ठंड के साथ-2 आलस भी अपने चरम पर थी, इसलिए बिस्तर से बाहर निकलने का मन ही नहीं हुआ ! फिर अचानक से जाने क्या हुआ कि हिम्मत करके बिस्तर से बाहर निकला और बाथरूम की ओर चल दिया ! मुँह धोने के लिए जैसे ही टूटी खोलकर पानी हाथ में लिया, मेरी हिम्मत जवाब दे गई, ऐसा लगा जैसे हाथ में पिघली हुई बरफ ले ली हो, वापस आकर फिर से बिस्तर में लेट गया !
|
नक्की झील जाते हुए (On the way to Nakki Lake)
|
ऐसा महसूस हुआ जैसे आज तापमान और नीचे चला गया था, अभी पिछले दिनों समाचार में भी सुनने को मिला था कि एक दिन यहाँ तापमान दिल्ली से भी कम चला गया था ! बिस्तर में सोते हुए मन में काफ़ी उठा-पटक चल रही थी, कि आज कहाँ-2 घूमना है, क्या-2 देखना है वगेरह-वगेरह ! अब घूमने जाने के लिए ऐसे ही सीधे बिस्तर से निकलकर तो नहीं जा सकते थे, नहा-धोकर तैयार होना भी ज़रूरी था, लगना भी तो चाहिए सभ्य नागरिक है ! बाथरूम से आते समय मैं पानी गरम करने के लिए गीजर चालू कर आया था, जब लगा कि गीजर का पानी गरम हो गया होगा तो आधे घंटे बाद फिर बिस्तर से निकला ! अब तक शशांक भी उठ चुका था, इसलिए बिस्तर से निकलते ही दोनों फटाफट नित्य-क्रम से निबटे और नहाने-धोने में लग गए ! अगले आधे घंटे में हम दोनों तैयार हो चुके थे, पता नहीं शशांक इतनी ठंड में भी कैसे इतने ठंडे पानी से नहा लेता है, मेरी तो हिम्मत नहीं होती ! पता चला, कि यहाँ ठंडे पानी से नहाने के चक्कर में तबीयत खराब हो गई, और घूमने की जगह डॉक्टर के चक्कर लगाने पड़ गए !
खैर, तैयार होकर जब कमरे से बाहर निकले तो होटल के स्वागत कक्ष में बैठा व्यक्ति बोला, सर नाश्ते में क्या लेंगे, हमने कहा कुछ नहीं ! उसने बड़ी अजीब नज़र से हमें देखा, शायद उसे लगा कि मैने उसे ग़लती से "कुछ नहीं" बोल दिया है ! उसकी शंका दूर करने के लिए मैने फिर से अपना जवाब दोहराया, कुछ नहीं लेना नाश्ते में, ये सुनकर वो अपने काम में लग गया ! हमने कहा यहाँ नाश्ते के चक्कर में लेट हो जाएँगे, रास्ते में कुछ मिलेगा तो खा लेंगे, फिर भी होटल से निकलते-2 सुबह के 8 बज चुके थे ! वैसे मैं कहीं घूमने जाते हुए अपने बैग में घूमने के लिए ज़रूरी सामान के अलावा थोड़ा खाने-पीने का सामान भी रख ही लेता हूँ ! होटल से निकलने से पहले हम दोनों ये तय कर चुके थे कि आज सबसे पहले नक्की झील में नौकायान का आनंद लेंगे और फिर वन्य जीव उद्यान जाएँगे ! होटल से निकलने के बाद एक सहायक मार्ग से होते हुए सीधे नक्की झील जाने वाले मार्ग पर पहुँच गए ! नक्की झील हमारे होटल से ज़्यादा दूर नहीं थी, और कल शाम को सनसेट पॉइंट घूमने के दौरान हमने मोटरसाइकल से घूम कर आस-पास के सारे रास्ते भी देख लिए थे !
15 मिनट बाद हम दोनों नक्की झील के प्रवेश द्वार पर पहुँच गए, अंदर ना जाकर पहले झील के किनारे-2 बने सड़क मार्ग पर पैदल ही थोड़ी दूर तक चक्कर लगाया, फिर वापस आकर नक्की झील के मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश किया ! शिकारा और पेडल बोट दोनों का किराया पूछने के बाद हमने 2 सीट वाली पेडल बोट 110 रुपए देकर 1 घंटे के लिए किराए पर ले ली, और झील में नौकायान का आनंद लेने चल दिए ! शिकारा बोट का किराया थोड़ा महँगा था और उसके लिए हमें सवारियों के आने का भी इंतजार करना पड़ता ! वैसे, ये झील बहुत ज़्यादा लंबी-चौड़ी नहीं है, लगभग डेढ़ किलोमीटर में फैली इस झील का एक चक्कर लगाने के बाद हम झील में ही जगह-2 रुककर फोटो भी खींचते रहे ! झील से देखने पर सनसेट पॉइंट के अलावा एक और पहाड़ी दिखाई दी, जिसे लोग टोड-रॉक के नाम से जानते है ! ये पहाड़ मेंढक की आकृति का दिखाई देता है इसलिए इसे टोड राक का नाम दिया गया है ! जैसे-2 दिन चढ़ रहा था, धूप खिलने लगी थी, झील के बीच में ही एक छोटा सा टीला है जहाँ कुछ पक्षी बैठकर धूप सेंकने में लगे थे !
जब झील में नौकायान करते-2 काफ़ी समय हो गया, और पेडल बोट चलाते हुए पैर भी दुखने लगे तो हम वापस अपनी नाव को उस स्थान की ओर ले लाए जहाँ से हम चले थे ! नाव के किराए का भुगतान तो हम पहले ही कर चुके थे, इसलिए उतरने के बाद झील से बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! ये झील तीन ओर से अरावली की पहाड़ियों से घिरी हुई है, यदि आप भी कभी यहाँ आएँ तो इस झील में नौकायान का आनंद अवश्य ले ! नक्की झील घूमने के बाद हम दोनों मुख्य बाज़ार की ओर चल दिए, ताकि थोड़ी पेट-पूजा करने के बाद ट्रेवर टैंक जा सके ! बाज़ार पहुँचकर पहले तो एक होटल में नाश्ता किया, फिर गुरु शिखर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! ट्रेवर टैंक भी इसी मार्ग पर पड़ता है और गुरु शिखर जाने के लिए सवारियाँ (छोटी बसें और जीपें) यहीं से मिलती है, 10 मिनट के इंतज़ार के बाद ही एक जीप आ गई, जिसमें सवार होकर हम दोनों ट्रेवर टैंक के लिए चल दिए !
दिलवाड़ा मंदिर पार करने के बाद जब हमारी जीप इस उद्यान के सामने पहुँची तो हम यहाँ उतर गए ! इस उद्यान के खुलने का समय सुबह 9 बजे का है, हमें यहाँ पहुँचते हुए ही 10 बज चुके थे इसलिए प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी ! आगे बढ़ने से पहले थोड़ी जानकारी इस जगह के बारे में दे देता हूँ, ट्रेवर टैंक, माउंट आबू से गुरु शिखर जाने वाले मार्ग पर मुख्य शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक वन्य क्षेत्र में बना सरोवर है ! इस जगह का नाम एक ब्रिटिश इंजिनियर के नाम पर पड़ा है जिसने इस उद्यान की स्थापना की थी, ट्रेवर एक ऐसे स्थान का निर्माण करना चाहते थे जहाँ आकर लोग प्रकृति की सुंदरता का आनंद ले सके ! फिर इस उद्यान में उन्होनें एक सरोवर का निर्माण करवाया जहाँ मगरमच्छ को प्रजनन के लिए रखा जाने लगा ! वन्य क्षेत्र होने के कारण यहाँ अन्य जीव भी रहने लगे ! वर्तमान में इस वन्य क्षेत्र में जंगली भालू, लोमड़ी, मगरमच्छ, मोर, और पक्षियों की कई प्रजातियाँ मौजूद है !
20-20 रुपए के दो प्रवेश टिकट लेकर हमने उद्यान के अंदर प्रवेश किया, टिकट लेते समय अधिकारी से पूछा कि अंदर जंगली जानवर है भी या उद्यान खाली है ! वो बोला, जितना घूमोगे उतना देखोगे, हमने कहा ये भी सही बात है, इस उद्यान में अंदर जाने के लिए एक पक्की सड़क बनी है, कुछ लोग यहाँ गाड़ियों से भी आते है, पर मुझे नहीं लगता कि वो वानरों के अलावा कोई और जंगली जीव देख पाते होंगे ! गाड़ी से आने पर आपको गाड़ी अंदर ले जाने के लिए भी कुछ शुल्क चुकाना पड़ता है, दुपहिया वाहन के लिए 20 रुपए और चार-पहिया के लिए 130 रुपए ! वैसे, अब शायद ये शुल्क बढ़ा दिया गया है ! गाड़ी-मोटर की आवाज़ सुनकर कहाँ कोई जीव बैठा रहेगा, वो तो पहले ही अपने छुपने की व्यवस्था कर लेगा, अगर ऐसे वन्य जीव उद्यानों में आपको कोई जीव देखना है तो पैदल ही आओ, पर सावधानी से ! वरना पता चला जीव देखने के चक्कर में खुद ही किसी दुर्घटना का शिकार हो गए ! हम दोनों पैदल ही इस पक्के मार्ग से होते हुए जॅंगल के अंदर चले जा रहे थे, इस दौरान कई गाड़ियाँ इस मार्ग से गुज़री !
मुझे लगता है गाड़ी से आने वाले लोग यहाँ जीव देखने कम और पिकनिक मनाने ज़्यादा आते है, खैर, लोगों की अपनी-2 मानसिकता है, कोई क्या कह सकता है ! सड़क के किनारे-2 फैली झाड़ियों में जब भी हमें कोई हरकत महसूस होती, हम रुक कर देखने लगते कि शायद कोई जंगली जीव होगा ! लेकिन कभी वानर तो कभी दूसरे जीव देखने को मिलते, इस दौरान हम दोनों काफ़ी चौकन्ने भी रहते ताकि किसी भी अप्रिय घटना से निबटा जा सके ! इसी मार्ग पर चलते हुए हमारी बाईं ओर पत्थर का बना एक चबूतरा दिखाई दिया, जिस पर चढ़कर हमने जॅंगल में काफ़ी दूर तक देखा कि शायद यहाँ उँचाई से कुछ दिख जाए ! चबूतरे से नीचे उतरकर फिर से अंदर जाने वाली सड़क पर चल दिए, जंगल के बीच में से गुज़रते इस मार्ग पर उस समय ऐसा सन्नाटा था कि सूखे पत्तों पर पैर रखने की आवाज़ भी काफ़ी तेज लग रही थी ! अकेले इस मार्ग पर पैदल जाने में तो डर ही लगेगा, पर हम दो लोग थे इसलिए डर नहीं बल्कि एक उत्सुकता थी कि काश कोई जानवर दिख जाए !
काफ़ी आगे जाने पर ये मार्ग दाईं ओर मुड़ रहा था, वहीं मार्ग के बाईं ओर पानी का एक बड़ा सरोवर था ! सरोवर तक जाने के लिए पत्थर की सीढ़ियाँ बनी हुई है, सीढ़ियों से होते हुए हम दोनों भी सरोवर की ओर चल दिए ! सरोवर को देखकर हमें लगा कि शायद जंगली जानवर यहाँ पानी पीने आते होंगे ! उपर जाने पर सरोवर के किनारे-2 एक पक्का मार्ग बना है और मार्ग पर सरोवर वाली तरफ लोहे की रेलिंग लगी है, ताकि घूमते हुए कोई पानी में ना गिर जाए ! यहाँ झोपड़ी-नुमा आकार 2-3 कमरे बने है, जिनमें लोगों के बैठने की व्यवस्था भी है, मेरा अनुमान है, लोग यहाँ बैठ कर सरोवर में पानी पीने आए जीवों को देखते होंगे ! जब हम सरोवर पर पहुँचे, एक अन्य परिवार वहाँ से वापस लौट रहा था, हम रेलिंग के किनारे खड़े होकर सरोवर के चारों ओर देखने लगे कि शायद कुछ दिखाई दे जाए ! सरोवर के किनारे बने पक्के मार्ग पर खड़े होकर दूर तक फैले सरोवर को देखा जा सकता है, यहाँ से दाईं ओर एक बड़ा पहाड़ है और उस पहाड़ पर दिखाई देती लोहे की रेलिंग, और छतरीनुमा आकार की सीट !
मतलब ये साफ हो गया था कि जॅंगल में अंदर से कहीं उस पहाड़ पर जाने का मार्ग भी है, जबकि यहाँ से बाईं ओर बनी झोपड़ियों को पार करके पैदल जाने का एक कच्चा मार्ग है, जो आगे जाकर दो भागों में बँट जाता है ! इसमें से एक मार्ग तो नीचे सरोवर तक जाता है, जबकि दूसरा मार्ग उपर जंगल में चला जाता है, हम इन दोनों ही मार्गों पर गए ! इस समय सरोवर में पानी तो ज़्यादा नहीं था, पर आस-पास जमा काई को देख कर कोई भी अंदाज़ा लगा सकता था कि कभी इस सरोवर में उपर तक भी पानी रहा होगा ! बाद में पता चला कि सरोवर तक जाने वाले कच्चे मार्ग से वन्य अधिकारी सरोवर में मौजूद जीवों को चारा डालने जाते है, ये सारी बात हमें वहाँ मिले खाद्य पदार्थों को देख कर मिली ! इस सरोवर का मुख्य स्त्रोत बारिश का पानी ही है, बारिश के दिनों में इस उद्यान में भी खूब हरियाली होती होगी और ये सरोवर भी पानी से लबालब रहता होगा ! थोड़ी देर सरोवर पर बिताने के बाद हम वापस उसी मार्ग पर आ गए जो जंगल में जाता है !
सरोवर से बाहर आकर जब इस मार्ग पर हम थोड़ा आगे बढ़े तो हमने देखा कि सड़क के दाईं ओर एक पिंजरा बना है, हमें पता नहीं चल पाया कि इस पिंजरे का उपयोग किस लिए किया जाता होगा ! खैर, पिंजरे से थोड़ा और आगे बढ़ने पर एक मार्ग तो सीधा चला जाता है जबकि यहीं से बाईं ओर जाता एक कच्चा मार्ग दिखाई दिया ! हमारे अनुमान के मुताबिक ये मार्ग सरोवर के दाईं ओर स्थित उस पहाड़ के उपर जाने के लिए होगा ! फिर क्या था, चल दिए हम दोनों भी इसी मार्ग पर, बीच में कई जगह मार्ग को बंद करने के लिए कंटीली झाड़ियाँ भी लगाई गई थी ! पर हमें उस मार्ग पर आगे बढ़ने से रोकने के लिए कंटीली झाड़ियाँ काफ़ी नहीं थी ! सारी बाधाएँ पार करते हुए हम लोग वहाँ पहुँच ही गए, जहाँ से उस पहाड़ पर जाने का मार्ग था, यहीं पर एक बहुत पुरानी इमारत भी थी, जो वन विभाग के अधिकारी उपयोग में लाते होंगे ! यहाँ से भी एक मार्ग तो उपर पहाड़ी पर जा रहा था जबकि थोड़ा आगे बढ़ने पर दूसरा मार्ग सरोवर के दूसरे किनारे जा रहा था !
हम दोनों उपर जाने वाले मार्ग पर बढ़ गए, और थोड़ी देर में उस पहाड़ पर पहुँच गए, जहाँ छतरीनुमा आकार की सीट बनी थी, यहाँ से दूर-2 तक का नज़ारा बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा था ! इस पहाड़ पर भी काफ़ी ढलान था इसलिए नीचे गिरने से बचाने के लिए पहाड़ के किनारे लोहे की रेलिंग लगाई गई थी ताकि पर्यटक रेलिंग के किनारे खड़े होकर ही सरोवर या दूर तक फैले जंगल की सुंदरता को निहार सके ! थोड़ी देर बाद पहाड़ी से नीचे आकर हम उस दूसरे मार्ग पर चल दिए, जो सरोवर के दूसरे किनारे जा रहा था ! हम दोनों उस सरोवर के किनारे आकर खड़े ही हुए थे कि अचानक से शशांक की नज़र सरोवर के किनारे उस बड़े पत्थर पर मौजूद एक मगरमच्छ पर पड़ी, जो धूप सेंकने के लिए पानी से बाहर पत्थर पर आ गया था ! एक बार तो डर भी लगा कि सरोवर में मौजूद मगरमच्छ से अंजान हम तो इस कुंड के एकदम किनारे तक गए थे, अगर कुछ अनहोनी घटना हो जाती तो हम मुश्किल में पड़ जाते !
फिर समय के साथ धीरे-2 थोड़ी देर में सारा डर जाता रहा ! सरोवर से वापस आकर हम दोनों फिर से जंगल में अंदर जाने वाले मार्ग की ओर चल दिए, ताकि और भी वन्य जीवों को देख सके ! थोड़ी देर में उन कंटीली झाड़ियों से होते हुए फिर से मुख्य मार्ग पर पहुँच गए जो अंदर जंगल में जा रहा था ! पक्का मार्ग अब तक कच्चे रास्ते में तब्दील हो चुका था, सड़क पर सूखे पत्ते बिखरे हुए थे, और अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो रहा था कि किस दिशा में जाने पर हमें जंगली जानवर दिखाई देंगे ! मुख्य रास्ते के किनारे एक खूब चौड़ा और लंबा गड्ढा था, जिसमें इस समय पानी नहीं था, हम दोनों इस गड्ढे में से होते हुए आगे बढ़े, कि शायद कोई जानवर मिल जाए, लेकिन ये योजना भी असफल रही ! ऐसे ही चलते हुए जंगल में काफ़ी दूर तक निकल गए, फिर आगे बढ़ने पर एक वॉच टावर दिखाई दिया, जिसमें बैठ कर वन्य अधिकारी जंगली जानवरों की गतिविधियों पर नज़र रखते है ! वॉच टावर उँचे स्थान पर बना एक मचान की तरह होता है, जहाँ बैठ कर आप सुरक्षित रहते हुए घने जंगल में दूर तक नज़र रख सकते है !
हमने वॉच टावर में बैठ कर भी थोड़ी देर इंतज़ार किया कि शायद कोई जानवर दिखाई दे दे, पर यहाँ से भी कुछ देखने को नहीं मिला, फिर थक-हार कर हम दोनों वॉच-टावर से नीचे उतर आए ! चारों तरफ से हताश होने के बाद हम वहीं जंगल में एक किनारे बड़े से पत्थर पर जाकर बैठ गए और अपनी आगे की यात्रा पर विचार करने लगे ! पैदल चलते हुए काफ़ी थकान हो गई थी, और दोपहर होने की वजह से धूप भी तेज लग रही थी ! आपसी सहमति से ये निष्कर्ष निकाला गया कि यहाँ जंगल के बीच में रुक कर खाने-पीने से तो ख़तरा बना रहेगा ! मगरमच्छ वाले सरोवर पर चलकर बैठते है, वहीं हल्की-फुल्की पेट पूजा करने के बाद वापस चल देंगे ! खाने-पीने के लिए थोड़ा सामान हम अपने साथ बैग में लाए थे ! मुड़कर अभी 100 मीटर भी नहीं चले होंगे कि हमें सड़क पार करता एक भेड़िया दिखाई दिया, एक पल को तो हम दोनों रुक गए, पर हमसे ज़्यादा डरपोक वो भेड़िया निकला !
हमें अपनी ओर आता देख वो घने जंगल में भाग गया, अब उसके पीछे जाने का विचार नहीं था, क्या पता अंदर और भी जंगली जानवर एक साथ ही मिल जाते ! खैर, इस जंगल में आकर हमें चाहे मगरमच्छ, वानर, और भेड़िए के अलावा कोई और वन्य जीव देखने को ना मिला हो, पर रोंगटे खड़े कर देने वाला रोमांच भरपूर मिला ! हर मोड़ पर कोई जानवर मिलने की उत्सुकता, और जॅंगल में फैले सन्नाटे को तोड़ती एक आहट बहुत रोमांचकारी थी ! सूखे पत्तों के बीच से गुज़रते हुए जब कोई हल्की सी आहट होती तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते थे, हर पल सतर्क रहना बहुत अच्छा लगा ! इस यात्रा में हमने अपना आपसी तालमेल भी परख लिया, जो शायद आगे किसी और वन्य जीव उद्यान में यात्रा के दौरान काम आए ! सरोवर पर पहुँचकर हमने पहले तो पेट पूजा की और फिर थोड़ा विश्राम करके वापस बाहर की ओर चल दिए ! विश्राम के दौरान मौजूद वहाँ कुछ लोगों से बातचीत करने पर पता चला कि उनका यहाँ आने का अनुभव बहुत ज़्यादा अच्छा नहीं रहा था !
उद्यान से बाहर निकलकर एक जीप में बैठे और वापस माउंट आबू पहुँचकर मुख्य बाज़ार में दोपहर का भोजन किया ! फिर सीधे अपने होटल की ओर चल दिए, जहाँ हमने अपना सारा सामान पहले से ही अपने-2 बैग में रख लिया था ! अपना बैग लेकर बाहर आए और होटल वाले का हिसाब करके बकाया राशि का भुगतान कर दिया ! यहाँ से सीधे बाज़ार के उस हिस्से में पहुँच गए जहाँ से आबू रोड जाने के लिए सवारियाँ मिलती है ! इस बार भी यात्रा के लिए जीप ही मिली, जब हम बैठे तो ये खाली थी, पर थोड़ी देर में ही भर भी गई ! सवारियाँ भर जाने के बाद जीप ने चलना शुरू कर दिया, वापसी के समय रास्ता ढलान वाला था इसलिए आबू-रोड बस अड्डे पहुँचे में ज़्यादा समय नहीं लगा ! यहाँ पहुँच कर उदयपुर जाने वाली बस के बारे में पता किया जो बस अड्डे के दूसरे हिस्से में खड़ी थी ! हम दोनों जाकर बस में बैठ गए और इसके चलने की प्रतीक्षा करने लगे, आधे घंटे बाद बस चली, और फिर बीच राह में एक जगह पंद्रह मिनट के लिए रुकी भी !
उसके बाद बस लगातार चलती रही, सवारियाँ चढ़ाने या उतारने के लिए कहीं-2 रुक जाती, रात्रि 9 बजे हम दोनों उदयपुर बस अड्डे पर पहुँच चुके थे ! यहाँ बस से उतरने के बाद घर जाने के लिए हमारे पास ऑटो के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था इसलिए हमने एक 50 रुपए में एक ऑटो वाले को घर छोड़ने के लिए राज़ी किया और 15 मिनट में सीधे हिरण मगरि स्थित शशांक की मौसी के घर पहुँच गए ! घर पहुँचने से पहले ही हमने अपने आने की सूचना दे दी थी, इसलिए घर पहुँचे तो रात्रि का भोजन तैयार था ! रात्रि का भोजन करने के बाद आराम करने के लिए हम अपने-2 बिस्तर में चले गए, थकान होने के कारण किसी से ज़्यादा बात नहीं हो पाई !
|
नक्की झील के किनारे (A view of Nakki Lake, Mount Abu) |
|
(Photo Session near Nakki Lake, Mount Abu) |
|
नक्की झील का प्रवेश द्वार (Entrance of Nakki Lake, Mount Abu) |
|
झील में नौकायान का आनंद लेते हुए (Pedal Boat in Nakki Lake, Mount Abu) |
|
झील में कुछ पक्षी (Birds in Nakki Lake, Mount Abu) |
|
ट्रेवर टैंक जाते हुए (On the way to Travor's Tank Sanctuary, Mount Abu) |
|
On the Way to Travor's Tank Wildlife Sanctuary |
|
ट्रेवर टैंक जाने का मार्ग (Way to Travor's Tank, Mount Abu) |
|
ट्रेवर टैंक जाने का मार्ग |
|
कुंड की ओर जाने का मार्ग |
|
कुंड का एक दृश्य |
|
पहाड़ के उपर से देखने पर कुंड (A view of Tank from the Top) |
|
दिशा दर्शाता एक बोर्ड |
|
वाइल्ड वॉच हट (Watch Tower in Mount Abu) |
|
ट्रेवर टैंक का प्रवेश द्वार |
|
गुरु शिखर - माउंट आबू रोड |
क्यों जाएँ (Why to go Mount Abu): अगर आप राजस्थान में किसी हिल स्टेशन की तलाश में है तो आपकी तलाश यहाँ माउंट आबू आकर ख़त्म हो जाएगी ! समूचे राजस्थान में एक माउंट आबू ही ऐसा पर्वतीय क्षेत्र है जिसे इसकी हरियाली के लिए जाना जाता है ! यहाँ देखने के लिए पहाड़, झील, वन्य जीव उद्यान, और मंदिर भी है !
कब जाएँ (Best time to go Mount Abu): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए माउंट आबू जा सकते है लेकिन सितंबर से मार्च यहाँ घूमने जाने के लिए सबसे बढ़िया मौसम है ! गर्मियों में तो यहाँ बुरा हाल रहता है और झील में नौकायान का आनंद भी ठीक से नहीं ले सकते !
कैसे जाएँ (How to reach Mount Abu): दिल्ली से माउंट आबू की दूरी लगभग 764 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से माउंट आबू के लिए नियमित रूप से कई ट्रेने चलती है, जो शाम को दिल्ली से चलकर सुबह जल्दी ही माउंट आबू पहुँचा देती है ! यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड है जिसके दूरी मुख्य शहर से 27 किलोमीटर है ! ट्रेन से दिल्ली से माउंट आबू जाने में 12-13 घंटे का समय लगता है जबकि अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से माउंट आबू के लिए बसें भी चलती है जो 14 से 15 घंटे का समय लेती है ! अगर आप निजी वाहन से माउंट आबू जाने की योजना बना रहे है तो दिल्ली जयपुर राजमार्ग से अजमेर होते हुए माउंट आबू जा सकते है निजी वाहन से आपको 13-14 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा अगर आप हवाई यात्रा का आनंद लेना चाहते है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा उदयपुर जिसकी दूरी यहाँ से 210 किलोमीटर के आस पास है ! हवाई यात्रा में आपको सवा घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Mount Abu): माउंट आबू राजस्थान का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रोजाना हज़ारों देशी-विदेशी सैलानी घूमने के लिए आते है ! सैलानियों के रुकने के लिए यहाँ होटलों की भी कोई कमी नहीं है आपको 500 रुपए से लेकर 8000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Mount Abu): माउंट आबू में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन यहाँ के मुख्य आकर्षण दिलवाड़ा मंदिर, नक्की झील, गुरु शिखर, ट्रेवर टेंक वन्य जीव उद्यान के अलावा कुछ अन्य दर्शनीय स्थल भी है ! जो लोग उदयपुर घूमने आते है वो माउंट आबू के लिए कुछ अतिरिक्त समय लेकर चलते है ! उदयपुर यहाँ से 160 किलोमीटर दूर है, और वहाँ देखने के लिए सिटी पैलेस, लेक पैलेस, सहेलियों की बाड़ी, पिछोला झील, फ़तेह सागर झील, रोपवे, एकलिंगजी मंदिर, जगदीश मंदिर, जैसमंद झील, हल्दीघाटी, कुम्भलगढ़ किला, कुम्भलगढ़ वन्यजीव उद्यान, चित्तौडगढ़ किला और सज्जनगढ़ वन्य जीव उद्यान है !
अगले भाग में जारी...
उदयपुर - माउंट आबू यात्रा
- दिल्ली से उदयपुर की रेल यात्रा (A Train Trip to Udaipur)
- पिछोला झील में नाव की सवारी (Boating in Lake Pichhola)
- उदयपुर की शान - सिटी पैलैस (City Palace of Udaipur)
- उदयपुर से माउंट आबू की बस यात्रा (Road Trip to Mount Abu)
- वन्य जीव उद्यान में रोमांच से भरा एक दिन (A Day Full of Thrill in Wildlife Sanctuary)
- झीलों के शहर उदयपुर में आख़िरी शाम (One Day in Beautiful Jaismand Lake)
Nice location...valley of death nahi gaye kya ??
ReplyDeleteजीतू भाई हम लोग वैली ऑफ डेथ के करीब से होकर निकल गए..
DeleteNakki lake is very beautiful...nice pics
ReplyDeleteनिक्रॉकी झील को शाम को देखने में बड़ा आनन्द आता है काफी रोणक होती है ।तुमको ब्रह्कुमारी का आश्रम भी देखना था और शिवजी का पुराण मन्दिर भी नाम याद नहीं है पर मेरे ब्लॉग पर लिखा है कभी time मिले तो पढ़ना ।टोंड रोक भी देखने जाना था। गार्डन तो कई है आबू में और मुझे आबू बहुत ही पसन्द आया।
ReplyDeleteब्रहमकुमारी के आश्रम के बारे में तो सुना था पर हम वहाँ गए नहीं, बाकी जगहों के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी और हमारे पास समय भी कम ही था ! आप वहाँ 6 दिन के लिए गए थे तो आपके पास पर्याप्त समय रहा होगा ! आपका ब्लॉग पढ़ कर माउंट आबू के अलावा बाकी जगहों के बारे में भी जानकारी लूँगा !
DeleteThank you Pradeep…The way you described the journey of Nakki Jheel, is really good.
ReplyDeleteIt seems like ….Live feeling of the journey; I am itself the part of this place. And beautiful pics invite me to must go there and feel the beauty of this place ….
Waiting for the next episode…
Thank you Sunita for this appreciation. Next part is also published.
Delete