भानगढ़ के किले में दोस्तों संग बिताया एक दिन (A Day in Bhangarh Fort)

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पिछले लेख में आपने पढ़ा कि कैसे हम पाराशर धाम की यात्रा करने के बाद वापिस अपने होटल आकर नाश्ते के लिए रुके, नाश्ता करने के बाद हम लोग भानगढ़ के लिए निकल पड़े ! मुख्य मार्ग पर कुछ किलोमीटर चलकर हम उस तिराहे पर पहुँचे जहाँ से भानगढ़ जाने का मार्ग अलग होता है ! इस तिराहे से बाएँ मुड़कर हम भानगढ़ जाने वाले मार्ग पर हो लिए, कुछ दूर जाकर एक सहायक मार्ग दाएँ मुड़ता है ! इसी मार्ग पर आधा किलोमीटर चलने के बाद भानगढ़ का किला है, सुबह जब इस मार्ग से आए थे तो चारों तरफ सन्नाटा था लेकिन अब सड़क के किनारे वाली दुकानें खुल चुकी थी और इस मार्ग पर वाहनों का आवागमन भी था ! एक दुकान से खाने-पीने का थोड़ा सामान लिया और किले की ओर चल दिए ! किले से थोड़ा पहले ही मार्ग पर एक रस्सी से बैरियर लगाकर पार्किंग शुल्क वसूला जा रहा था, वैसे आप इस पार्किंग से थोड़ी पहले गाड़ी खड़ी करके भी किले में जा सकते है, तब आपको पार्किंग शुल्क नहीं देना होगा ! सुरक्षा के लिहाज से हमने 50 रुपए देकर पार्किंग में ही गाड़ी खड़ी करना उचित समझा !
गोपीनाथ मंदिर का एक दृश्य

बैरियर के पास कुछ अस्थाई दुकानों पर मंदिर में चढ़ाने के लिए चने और चिनोरी का प्रसाद बेचा जा रहा था ! पार्किग में गाड़ी खड़ी करके हम किले के प्रवेश द्वार की ओर चल दिए, इस द्वार को पार करते ही दाईं ओर हनुमान जी का एक मंदिर है, जहाँ इस समय कोई भजन चल रहा था ! हम सब मंदिर के सामने हाथ जोड़कर आगे बढ़ गए ! चलिए, आगे बढ़ने से पहले थोड़ी जानकारी इस किले के बारे में दे देता हूँ, इस किले का निर्माण 17वी शताब्दी में राजा मान सिंह प्रथम द्वारा अपने पोते माधो सिंह प्रथम के लिए करवाया गया था ! किले का नाम माधो सिंह ने अपने दादा के नाम पर रखा ! इस किले को भारत की सबसे डरावनी जगहों में शुमार किया जाता है, यही कारण है कि यहाँ आने वाले लोगों की तादात भी लगातार बढ़ रही है ! किले के इतिहास से जुड़ी कई कहानियाँ है, ऐसी ही एक कहानी के अनुसार बाबा बालकनाथ किले परिसर में ही कहीं रहते थे ! ये उनका श्राप था या आदेश, पता नहीं, लेकिन उनके अनुसार किले की सीमा में कोई भी इमारत उनकी कुटिया से ऊँची नहीं होगी ! अगर ऐसा हुआ और किसी इमारत की परछाई उनकी कुटिया पर पड़ी तो परिणामस्वरूप किले परिसर में बनी इमारतें नष्ट होना शुरू हो जाएँगी ! 

कुछ लोग मानते है कि ये उनके श्राप का ही असर है कि किले परिसर में बसी ये बस्ती और महल का ऊपरी भाग टूट गया ! वर्तमान में इस किले का अधिकतर हिस्सा क्षत-विक्षत हालत में है, ये महल कभी सात मंज़िला हुआ करता था लेकिन अब इस महल के केवल 4 मंज़िल ही शेष रह गए है ! महल के बाहर स्थित बस्ती को तीन सुरक्षा दीवारों से सुरक्षित किया गया था जिनमें से सबसे बाहरी दीवार में 5 प्रवेश द्वार बने थे, उत्तर से दक्षिण की ओर जाने पर इन द्वारों के नाम है अजमेरी गेट, लाहौरी गेट, हनुमान गेट, फुलवारी गेट और दिल्ली गेट ! हमने हनुमान गेट से अंदर प्रवेश किया, प्रवेश द्वार के पास बने हनुमान मंदिर से आगे बढ़ते ही एक पक्का मार्ग किले की ओर जाता है, इस मार्ग के दोनों ओर क्रमबद्ध तरीके से इमारतें बनी है ! किसी दौर में इस बस्ती में भी जीवन हुआ करता था लेकिन अब तो सब खंडहर में तब्दील हो चुका है ! इन इमारतों के बाहर ही पत्थरों पर कुछ जानकारी दी गई थी जिससे प्राप्त जानकारी के अनुसार यहाँ एक नृत्कियों की हवेली भी थी, शायद उस दौर में शाही दरबार में नृत्य करने वाली नृत्यांगनाएँ यहाँ रहती होंगी ! इन हवेलियों के सामने ही जौहरी बाज़ार था, जो अब खंडहर बन चुका है ! अधिकतर इमारतों के छत ही नहीं थे, जबकि कुछ इमारतें तो पूरी तरह से क्षतिग्रस्त थी ! 

इस बस्ती को पार करने के बाद हम एक दूसरे प्रवेश द्वार पर पहुँच गए, ये त्रिपोलिया द्वार है ! यहाँ से महल ज़्यादा दूर नहीं रह जाता, इस द्वार और महल के बीच एक खुला मैदान है जिसके कोनों पर मंदिर बने हुए है ! सुबह हम सब इसी द्वार के पास से वापिस चले गए थे, द्वार से अंदर प्रवेश करते ही थोड़ी दूरी पर दाईं ओर गोपीनाथ मंदिर है ! चलिए इसी मंदिर से बताना शुरू करता हूँ, ये मंदिर एक ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है, दूर से देखने पर ये सुनहरा दिखाई देता है ! मंदिर की बाहरी दीवारों पर देवी-देवताओं के सुंदर-2 खूब चित्र उकेरे गए है ! सीढ़ियों से होते हुए हमने मंदिर परिसर में प्रवेश किया, अंदर जाने पर पता चलता है कि बाहरी दीवारों की तरह मंदिर की भीतरी दीवारों पर भी बढ़िया कारीगरी की गई है ! ये मंदिर आज भी बढ़िया हालत में है लेकिन अब इन मंदिरों में पूजा नहीं होती ! जिस समय हम मंदिर परिसर में थे मुख्य भवन में वानरों का जमावड़ा लगा हुआ था, लेकिन ये यहाँ आने वाले लोगों को परेशान नहीं करते, जब तक आप कुछ ऊँगली ना करो ! मुख्य भवन में अंदर एक हवन कुंड भी बना हुआ है, जिसके ठीक ऊपर छत पर पत्थरों को काट कर बढ़िया आकृति बनाई गई है ! हमने अंदर-बाहर घूम कर मंदिर के कई चित्र लिए, हमारे अलावा कुछ अन्य लोग भी उस समय मंदिर परिसर में थे ! 

मुख्य भवन में अब कोई मूर्ति नहीं है, लेकिन दीवारों पर सिंदूर के निशान अभी तक बने हुए है, जो इस बात को प्रमाणित करते है कि शायद अभी भी यहाँ लोग चोरी-छुपे पूजा करते है ! वैसे चोरी-छुपे तो लोग सिद्धियाँ हासिल करने के इरादे से पूजा करते है या फिर अपनी किसी मान्यता के लिए छुपकर पूजा करते है ! पता नहीं यहाँ लोग किस मकसद से पूजा करते है? ये मंदिर अंदर से काफ़ी बड़ा है और इसके दीवारों पर ऊपर से लेकर नीचे तक खूब बढ़िया कारीगरी की गई है ! मंदिर परिसर में खड़े होकर बहुत से लोग फोटो खिंचवा रहे थे, मंदिर के पिछले भाग से ही बाहर जाने का एक रास्ता बना है, जो आगे जाकर महल जाने वाले मार्ग में मिल जाता है ! गोपीनाथ मंदिर से निकले तो हम किले परिसर में ही मैदान के दूसरे कोने पर स्थित सोमेश्वर महादेव का मंदिर देखने चल दिए ! सोमेश्वर महादेव मंदिर से सटा एक बड़ा कुंड भी है, जिसका पानी बहुत गंदा था किसी नाले के पानी की तरह, लेकिन फिर भी कुछ लोग इस कुंड में स्नान करने में लगे थे ! पता नहीं ऐसे गंदे पानी में नहा कर खुद को पवित्र कर रहे थे या अपवित्र ! कुछ सीढ़ियाँ चढ़ते हुए हम सब इस मंदिर में दाखिल हुए, इस मंदिर के कई हिस्से इस समय क्षतिग्रस्त हो चुके है और इसके ऊपरी भाग में दरारें भी पड़ने लगी है ! 

मंदिर की देखरेख शायद अब भगवान भरोसे ही छोड़ दी गई है, मंदिर की दीवारों को काटकर शिवलिंग रखने के लिए जगह बनाए गए है ! हालाँकि, एक शिवलिंग मुझे मंदिर परिसर में ही एक भवन में ताले में बंद भी दिखा ! इस मंदिर में भी भीतरी और बाहरी दीवारों पर खूब बढ़िया चित्रकारी की गई है, मंदिर के ऊपर जाने के लिए सीढ़ियाँ भी बनी है और लोगों को ऊपर जाने की मनाही भी नहीं है ! इसलिए हम सब इन सीढ़ियों से होते हुए मंदिर के ऊपर गए और वहाँ से भी आस-पास के कुछ सुंदर दृश्य देखे ! इस मंदिर के पिछले भाग में घने पेड़ है, इस किले के एक भाग में केवड़े का उत्पादन भी होता है ! यहाँ भी टहलते हुए कुछ लोग काफ़ी दूर तक निकल गए थे ! ये मंदिर भी अच्छे से घूम लेने के बाद हम बाहर आ गए, और मैदान में से होते हुए किले के प्रवेश द्वार की ओर चल दिए ! किले का द्वार यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं है, मुश्किल से 100 मीटर रहा होगा, ये महल तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है और महल के सामने वाला भाग खुला है ! शायद उस समय के वास्तुकारों ने सुरक्षा की दृष्टि से ये जगह तलाश की होगी, ताकि दुश्मन आसानी से किले के आस-पास भी ना फटक सके ! दूर से देखने पर किसी को आसानी से पता भी नहीं चलता कि यहाँ पहाड़ियों के बीच कोई किला भी हो सकता है ! 

किले के ऊपरी भाग से देखने पर पता चलता है कि गोपीनाथ मंदिर के पिछले भाग में एक बड़ा मैदान है जिसकी चारदीवारी की गई है, इस चारदीवारी में बने पत्थर के स्तंभों को देखकर कोई भी अनुमान लगा सकता है कि ये क्षेत्र सैनिकों के अभ्यास के लिए बनाया गया होगा ! किले के अंदर जाने के लिए ठीक-ठाक चढ़ाई करनी पड़ती है, महल के मुख्य प्रवेश द्वार की दीवारें बहुत चौड़ी है ताकि पहरेदारी के लिए सैनिक इसपर खड़े हो सके ! तोप और दूसरे हथियार रखने के लिए दीवारों में मोखले भी बने हुए है, फोटो के शौकीन लोग फोटोग्राफी के लिए इन दीवारों पर भी पहुँच गए थे ! महल के मुख्य कक्ष तक जाने के मार्ग में घुमावदार मोड़ है, वैसे ये सही भी है, चढ़ाई का मार्ग एकदम सीधा देना सही नहीं रहता ! इस मार्ग से होते हुए हम महल के अंदर चल दिए, रास्ते में महल की दीवार के कोने में से एक सुरंग अंदर जा रही थी, मैं और शशांक थोड़ी दूर तक तो इस सुरंग में गए, लेकिन सुरंग में आगे जाकर एक गहरा गड्ढा था इसलिए हमें वापिस मुड़ना पड़ा ! सुरंग से बाहर आकर हम मुख्य मार्ग से चलकर महल में दाखिल हुए, महल के अंदर भी सीढ़ियाँ बनी हुई है और अंदर कई गुप्त दरवाजे भी है ! 

महल के अलग-2 हिस्सों से होते हुए हम एक कक्ष में पहुँचे, जहाँ बहुत सारी चमगादड़ दीवारों से चिपकी हुई थी ! रात होते ही ये महल में उड़ने लगेंगी, अधिकतर चमगादड़ एक पैर से दीवार पर चिपकी हुई थी, जब वो पैर थक जाएगा तो दूसरे पैर से चिपक जाएगी और ये सिलसिला लगातार चलता रहेगा ! महल के एक एकांत हिस्से में कुछ लोग पूजा-पाठ करने में लगे थे, पता नहीं कोई सामान्य पूजा थी या कोई सिद्धि के लिए पूजा कर रहे थे, हम उनकी पूजा में विध्न डाले बिना ही आगे बढ़ गए ! फिर सीढ़ियों से होते हुए हम महल के ऊपरी भाग में पहुँच गए, महल में कई इमारतों की छतें टूट चुकी है और बहुत से पत्थर इमारत की छतों पर पड़े हुए है ! यहाँ से पहाड़ी के ऊपर बनी एक-दो इमारतें भी दिखाई दे रही थी, बहुत से लोग किले से निकलकर पहाड़ी की चढ़ाई करने में लगे थे, शायद कुछ अच्छे चित्र लेने की चाह में ऊपर गए होंगे ! वजह जो भी हो, लेकिन उनकी हिम्मत को सलाम करता हूँ, जो रोमांच का कोई मौका नहीं छोड़ रहे थे ! किले के जिस भाग में इस समय हम खड़े थे, उसके पिछले हिस्से से पहाड़ी एकदम सटी हुई थी, और सामने वाले हिस्से में बस्ती और किले की सबसे बाहरी दीवार तक का दृश्य एकदम साफ दिखाई दे रहा था ! 

कुल मिलाकर यहाँ से बहुत शानदार दृश्य दिखाई दे रहा था, अगर मौसम ठंडा हो तो यहाँ घंटो बैठकर प्रकृति के नज़ारों का आनंद लिया जा सकता है ! लेकिन आज तेज धूप खिली थी और गर्मी से भी बुरा हाल होने लगा था यहाँ ज़्यादा देर बैठने का कोई फ़ायदा नहीं था ! थोड़ी देर और किले में बिताने के बाद हमने वापसी की राह पकड़ ली ! वापसी में भी हम टहलते हुए ही किले से बाहर आए, किले में घूमते हुए एक पत्थर पर अंकित जानकारी से हमें पता चला था कि किले से थोड़ी दूरी पर एक बावली भी है ! किले से बाहर निकलते हुए सोचा क्यों ना इस बावली को भी देखते हुए चले, दोबारा तो यहाँ पता नहीं कब आना हो ! वैसे इस बावली को देखना भी एक सुखद और रोमांचक अनुभव रहा जिसके विस्तारपूर्वक वर्णन के लिए आपको कहानी के अगले भाग का इंतजार करना पड़ेगा !


 बस्ती की ओर जाते हुए
किले से दिखाई देता एक मंदिर
बस्ती का एक दृश्य
खंडहर हो चुकी बस्ती

खंडहर हो चुकी बस्ती
किले का द्वितीए प्रवेश द्वार
गोपीनाथ मंदिर का प्रवेश द्वार
मंदिर के अंदर हवन कुंड
मंदिर की भीतरी छत पर की गई कारीगरी
मंदिर के भीतर का एक दृश्य
मंदिर की दीवारों पर की गई चित्रकारी
मंदिर की दीवारों पर की गई चित्रकारी
सोमेश्वर मनदिर का एक दृश्य
दूर से दिखाई देता किला
सोमेश्वर मनदिर का एक दृश्य
सोमेश्वर मंदिर के बगल वाला कुंड
सोमेश्वर मंदिर का प्रवेश द्वार
सोमेश्वर मंदिर का प्रवेश द्वार
मंदिर की भीतरी छत पर की गई कारीगरी
सोमेश्वर मंदिर से दिखाई देता गोपीनाथ मंदिर
एक कुआँ जो अब ढक दिया गया है
मंदिर के पीछे - यहाँ केवड़े की फसल उगाई जाती है
किले का प्रवेश द्वार
किले के अंदर से दिखाई देता एक नज़ारा

किले के अंदर से दिखाई देता एक नज़ारा
किले के अंदर बनी एक सुरंग
किले के अंदर का एक दृश्य
किले के अंदर का एक दृश्य
किले के अंदर जाते हुए
किले से दिखाई देता एक और दृश्य
किले से दिखाई देता एक और दृश्य
किले के अंदर ऐसी हज़ारों चमगादड़ थी
क्षतिग्रस्त हो चुका किला
क्षतिग्रस्त हो चुका किला
क्षतिग्रस्त हो चुका किला
किले से दिखाई देती पहाड़ी की चोटी पर बनी एक इमारत


क्यों जाएँ (Why to go Bhangarh): अगर आपको रहस्यमयी और डरावनी जगहों पर घूमना अच्छा लगता है तो भानगढ़ आपके लिए उपयुक्त स्थान है ! भानगढ़ का किला दुनिया की डरावनी जगहों में शुमार है !

कब जाएँ (Best time to go Bhangarh): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में भानगढ़ जा सकते है लेकिन बारिश के मौसम में यहाँ की हरियाली देखने लायक होती है ! इस मौसम में हरे-भरे पहाड़ों के बीच भानगढ़ का किले की खूबसूरती देखने लायक होती है ! हर मौसम में यहाँ अलग ही आनंद आता है गर्मी के दिनों में भयंकर गर्मी पड़ती है तो सर्दी भी कड़ाके की रहती है ! क्योंकि ये किला एक डरावनी जगह है इसलिए रात को इस किले में ना ही जाएँ तो सही रहेगा !


कैसे जाएँ (How to reach Bhangarh): दिल्ली से भानगढ़ की दूरी मात्र 250 किलोमीटर है भानगढ़ रेल और सड़क मार्ग से अच्छे से जुड़ा हुआ है यहाँ का नज़दीकी रेलवे स्टेशन दौसा है जिसकी दूरी भानगढ़ के किले से 29 किलोमीटर है ! दौसा से भानगढ़ जाने के लिए आपको जीपें और अन्य सवारियाँ आसानी से मिल जाएँगी ! जबकि आप सीधे दिल्ली से भानगढ़ निजी गाड़ी से भी जा सकते है, इसके लिए आपको दिल्ली-जयपुर राजमार्ग से होते हुए जयपुर से पहले मनोहरपुर नाम की जगह से आपको बाएँ मुड़ना है ! एक मार्ग अलवर-सरिस्का से होकर भी है वैसे तो इस मार्ग की हालत बहुत लेकिन सरिस्का के बाद थोड़ा खराब और सँकरा मार्ग है !


कहाँ रुके (Where to stay in Bhangarh): भानगढ़ में रुकने के लिए बहुत कम विकल्प है, अधिकतर होटल यहाँ से 15 से 20 किलोमीटर की दूरी पर है ! शुरुआती होटल तो आपको 1000-1200 में मिल जाएँगे लेकिन अगर किसी पैलेस में रुकना चाहते है तो आपको अच्छी ख़ासी जेब ढीली करनी पड़ेगी !


क्या देखें (Places to see in Bhangarh): वैसे तो भानगढ़ और इसके आस-पास देखने के लिए काफ़ी जगहें है लेकिन भानगढ़ का किला, नारायणी माता का मंदिर, पाराशर धाम, सरिस्का वन्य जीव उद्यान, सरिस्का पैलेस, और सिलिसढ़ झील प्रमुख है ! 


अगले भाग में जारी...

भानगढ़ यात्रा
  1. भानगढ़ की एक सड़क यात्रा (A road trip to Bhangarh)
  2. भानगढ़ की वो यादगार रात (A Scary Night in Bhangarh)
  3. भानगढ़ का नारायणी माता मंदिर और पाराशर धाम (Parashar Dham and Narayani Temple in Bhangarh)
  4. भानगढ़ के किले में दोस्तों संग बिताया एक दिन (A Day in Bhangarh Fort)
  5. भानगढ़ के किले से वापसी (Bhangarh to Delhi – Return Journey)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

3 Comments

  1. बढ़िया विवरण व् चित्र

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    1. उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद !

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  2. बढ़िया विवरण व् चित्र

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