जयपुर का सिटी पैलेस और हवा महल (City Palace and Hawa Mahal of Jaipur)

शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

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खाना खा-पीकर रात को होटल पहुँचने के बाद आराम करने के लिए अपने कमरे में चल दिए, मन में शंका तो थी कि कहीं पुलिस वाले ने गाड़ी का नंबर ना नोट कर लिया हो ! लेकिन जैसे-2 नींद आने लगी, ये शंका भी चली गई, सुबह नींद खुली तो सबसे पहले होटल के बाहर जाकर अपनी गाड़ी देखी ! भाई, राजस्थान पुलिस अकादमी के सामने होटल था, क्या पता ढूँढते-2 यहाँ पहुँच ही गए हो ! खैर, गाड़ी अपनी जगह पर खड़ी थी, वापिस अपने कमरे में जाकर नहाने-धोने में लग गए, आज हमें जयपुर का सिटी पैलेस और हवा महल जो घूमना था ! पिछले दो दिनों में मैं जयपुर के काफ़ी रास्तों पर घूम चुका था इसलिए मुझे अब यहाँ के रास्तों का थोड़ा-बहुत अंदाज़ा हो गया था ! तैयार होने के बाद हल्का नाश्ता करके हम अपनी गाड़ी लेकर सिटी पैलेस की ओर चल दिए ! आज भी हम उसी मार्ग से जाने वाले थे जिससे कल आमेर गए थे ! आज इस होटल में भी हमारा आख़िरी दिन था इसलिए सिटी पैलेस के लिए निकलने से पहले ही होटल वाले का भुगतान भी कर दिया ! सारा सामान गाड़ी में रखकर सवा नौ बजे तक हम सिटी पैलेस के लिए निकल लिए, हमारा विचार घूमने के बाद दोपहर बाद या शाम को नए होटल में जाने का था ! जयपुर में हम घूमने वाली जगहों के हिसाब से अलग-2 होटलों में रुके थे, बाबा हवेली जयपुर में स्थित तीनों किलों से पास पड़ता है, जबकि हमारा दूसरा होटल जयपुर के मध्य में था जहाँ से अन्य दर्शनीय स्थल पास में थे !
जयपुर का सिटी पैलेस
खैर, चाँदपोल द्वार से अंदर जाने पर बड़ी चौपड़ से बाएँ मुड़कर हम सिटी पैलेस जाने वाले सहायक मार्ग पर हो गए ! पार्किंग स्थल में 60 रुपए अदा करके अपनी गाड़ी खड़ी की और सिटी पैलेस के प्रवेश द्वार की ओर चल दिए ! आगे बढ़ने से पहले थोड़ी जानकारी सिटी पैलेस के बारे में दे देता हूँ, इस पैलेस का निर्माण जयपुर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीए ने सन 1729 में करवाया था ! 1727 में अपनी राजधानी को आमेर से जयपुर स्थानांतरित करने के बाद शहर में कई इमारतों का निर्माण करवाया गया, सिटी पैलेस भी इनमें से एक था ! ये महल राजपूत, मुगल और युरोपियन वास्तुकला का मिला-जुला रूप है ! सिटी पैलेस परिसर में कई इमारतें बनी है जैसे मुबारक महल, चंद्र महल, दीवान-ए-खास, दीवान-ए-आम, महारानी पैलेस इत्यादि ! इनमें से कुछ इमारतों में आम लोगों का प्रवेश वर्जित है, चलिए, जिन जगहों पर जा सकते है बारी-2 से उनकी सैर तो करा ही दूँगा ! सिटी पैलेस की टिकट खिड़की पर पहुँचकर पैलेस में जाने के लिए 100 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से 2 प्रवेश टिकट ले लिए ! थोड़ी आगे जाने पर ही प्रवेश द्वार है, यहाँ अपना टिकट दिखाकर हमने अंदर प्रवेश किया, इस दौरान हमारे सामान सहित हमारी भी तलाशी ली गई ! 

प्रवेश द्वार से अंदर जाते ही सामने एक खुला मैदान है, यहाँ आपके बाईं ओर एक बरामदा है जिसमें उस समय प्रयोग की जाने वाली बग्गियाँ एक लाइन से रखी गई है ! इस बरामदे के चारों ओर रस्सियाँ लगाई गई है ताकि कोई अंदर ना जा सके ! बाहर खड़े होकर आप इन्हे देख सकते हो, और यहाँ फोटो खींचने पर भी कोई पाबंदी नहीं है ! यहाँ अलग-2 डिज़ाइन की बग्गियाँ थी, किसी-2 में तो लैंप भी लगे हुए थे, पर ज़्यादा जानकारी यहाँ उपलब्ध नहीं थी ! यहाँ से वापिस मुड़कर सिटी पैलेस के दूसरे प्रवेश द्वार की ओर चले तो हमारी बाईं ओर कुछ राजस्थानी कलाकार वाद्य यंत्र बजाते हुए अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे थे ! इन कलाकारों के सामने ही कुछ तोपें भी प्रदर्शनी के लिए रखी गई थी, इन तोपों को रस्सी से एक-दूसरे से बाँधा गया था ! प्रथम प्रवेश द्वार के बगल में ही दोनों ओर कुछ दुकानें थी जिनके बाहर बरामदे बने थे, इन दुकानों पर राजस्थानी परिधान और अन्य वस्तुएँ मिल रही थी ! दूसरे प्रवेश द्वार से हम अंदर गए तो सामने ही एक चबूतरे पर बड़ा बरामदा था, गुलाबी रंग के इस बरामदे में खूब सजावट की गई थी ! पास जाकर पता चला ये बरामदा दीवान-ए-आम था ! 

सिटी पैलेस की अधिकतर दीवारों पर पीले, गुलाबी और सफेद रंगों का इस्तेमाल किया गया है, दीवान-ए-खास को भी गुलाबी रंग से रंगा गया है ! इस हाल में कभी जयपुर के महाराजा अपने मंत्रियों संग सभाएँ किया करते थे ! हाल के अंदर संगमरमर का फर्श बना है और एक साथ काफ़ी लोगों के बैठने की व्यवस्था भी है ! इस हाल में चाँदी के 2 बड़े-2 पात्र रखे गए है, पात्रों की ऊँचाई 5 फीट से भी ज़्यादा है और हर पात्र में 4000 लीटर पानी आ सकता है ! इन पात्रों का निर्माण 14000 चाँदी के सिक्कों को पिघलाकर किया गया था, हर एक पात्र का वजन 340 किलोग्राम है, दुनिया में सबसे बड़े चाँदी के पात्र होने के कारण इनका नाम गिनीज़ बुक में भी दर्ज है ! प्राप्त जानकारी के अनुसार 1901 में अपनी इंग्लैंड यात्रा के दौरान राजा माधो सिंह द्वितीए ने इन पात्रों का निर्माण करवाया था ताकि अपनी यात्रा के दौरान पीने के लिए इनमें गंगाजल ले जा सके ! यही कारण है कि इन पात्रों को गंगाजली के नाम से भी जाना जाता है ! 

दीवान-ए-खास देखने के बाद हम परिसर में मौजूद अन्य इमारतों को देखने चल दिए ! यहाँ एक द्वार से निकलकर गलियारे को पार करके हम एक मैदान में पहुँचे, मैदान में जो द्वार खुल रहा था उसपर मोर की आकृति बनी हुई थी ! मैदान में हमारे दाएँ ओर चंद्रमहल था, सात मंज़िला इस महल के हर मंज़िल को एक नाम दिया गया है जैसे सुख निवास, रंगा मंदिर, पीतम निवास, चाबी निवास, श्री निवास और मुकुट महल ! महल की दीवारों पर बढ़िया तस्वीरें लगी है और शीशे का भी बेहतरीन काम किया गया है ! वर्तमान में चंद्रमहल के अधिकतर भाग में शाही परिवार के सदस्य रहते है, इसलिए केवल भूमितल पर ही लोगों को जाने की अनुमति है ! महल के सबसे ऊपरी इमारत पर शाही परिवार का झंडा भी लगा है, जब महाराजा महल में होते है तो ये झंडा लहराता रहता है ! महाराजा के महल से बाहर होने पर महारानी का झंडा महल पर लहराता है, बड़ी अजीब बात है, दोनों एक ही परिवार के है फिर झंडे अलग-2 क्यों?

चंद्रमहल देखकर वापिस दीवान-ए-आम के पास से निकलकर हम एक अन्य द्वार से होते हुए मुबारक महल पहुँचे ! प्रवेश द्वार से अंदर जाने पर ठीक सामने मुबारक महल था, वर्तमान में इस महल को टैक्सटाइल गैलरी बना दिया गया है ! इस गैलरी में जयपुर के राजा सवाई माधो सिंह प्रथम के वस्त्रों सहित प्रयोग में लाई जाने वाली अन्य वस्तुओं को सॅंजो कर रखा गया है ! इस गैलरी में फोटोग्राफी वर्जित है, इसलिए कैमरा बैग में रखकर हम संग्राहलय में रखी वस्तुओं को देखने लगे ! प्रवेश द्वार से अंदर जाने पर एक व्यक्ति ने हमारी टिकट देखी और हम आगे बढ़ गए ! इस गैलरी में शीशे के अलग-2 अलमारियाँ बनी है जिसमें उस समय शाही परिवार द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली कालीन, वस्त्र, जूते और पगड़ियाँ रखी गई है ! इन परिधानों से उस समय के रहन-सहन और पहनावों का अनुमान लगाया जा सकता है ! मुबारक महल घूमने में भी काफ़ी समय लगा, यहाँ से बाहर निकले तो इसी परिसर में एक कोने में शस्त्रागार जाने का प्रवेश द्वार था ! 

इस द्वार से अंदर जाकर सीढ़ियों से होते हुए हम प्रथम तल पर बने शस्त्रागार में पहुँचे, हर संग्रहालय में जाने पर प्रवेश द्वार पर बैठा एक अधिकारी हमारे टिकट पर मोहर लगा देता था ! शस्त्रागार में भी प्रवेश करने के साथ ही हमारी टिकट पर मोहर लग गई, यहाँ भी कैमरे का प्रयोग वर्जित था इसलिए दिखाने के लिए चित्र उपलब्ध नहीं है ! लेकिन इस शस्त्रागार में इतने हथियार रखे थे कि शायद गिनती करते-2 पूरा दिन बीत जाए ! मैने अब तक जीतने भी शस्त्रागार देखे है उनमें से ये सबसे बड़ा था, 2-3 कमरे आपस में जुड़े हुए है और उन सबमें हथियार रखे गए है ! तलवारें, बंदूकें, गुप्तियाँ, भाले, कटारें, ढालें, तोप के गोले और भी ना जाने कौन-2 से हथियार यहाँ रखे थे ! दीवारों से लेकर कमरे तक हथियार से भरे हुए थे, इसके अलावा कमरे में जगह-2 शीशे की अलमारियाँ बनाकर उनमें भी हथियार रखे गए थे ! शस्त्रागार के प्रवेश द्वार पर वेलकम भी हथियारों को सजाकर लिखा गया था, मुझे सिटी पैलेस में सबसे मजेदार जगह ये शस्त्रागार ही लगी ! यहाँ एक पल को भी बोरियत नहीं हुई और हथियारों को देखते हुए आप उस दौर की कल्पना करना शुरू कर देते है !







सिटी पैलेस का द्वितीय प्रवेश द्वार


दीवान-ए-खास
दीवान-ए-खास में सजी एक दुकान




सिटी पैलेस








दीवान-ए-खास


मुबारक महल
मुबारक महल से दिखाई देता दीवान-ए-खास का प्रवेश द्वार


सामने दिखाई दे रही इमारत में बायीं ओर शस्त्रागार है 

जयपुर का हवा महल


शस्त्रागार से निकले तो काफ़ी थकान हो चुकी थी, घूमते हुए काफ़ी समय बीत गया था, भूख-प्यास भी लगने लगी थी ! जंतर-मंतर जाने का मन था लेकिन फिर ना जाने क्या सोचकर सिटी पैलेस से बाहर की ओर चल दिए ! सिटी पैलेस से बाहर आकर थोड़ी पेट-पूजा की और फिर बाहर जाने वाले मार्ग पर पैदल ही चल दिए, यहाँ से एक रास्ता हवा महल की ओर जाता है ! पैदल जाने के लिए ये छोटा और बढ़िया रास्ता है, बड़ी चौपड़ की ओर थोड़ी दूर चलने के बाद हम अपनी दाईं ओर जाने वाले एक मार्ग पर हो लिए ! इस मार्ग पर आगे जाने पर एक स्कूल भी पड़ता है, बगल से ही एक मार्ग आगे चला जाता है, ये मार्ग हवा महल के टिकट घर तक जाता है ! हम इसी मार्ग पर चलते हुए हवा महल पहुँच गए, यहाँ 50 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से 2 टिकट लेकर प्रवेश द्वार से अंदर दाखिल हुए ! प्रवेश करते ही सामने एक फव्वारा लगा है और फव्वारे के चारों ओर खुला मैदान है, मैदान के चारों ओर गलियारा बना है ! इस गलियारे से होते हुए हम हवा महल के प्रथम तल पर जाने के लिए चल दिए ! हवा महल का निर्माण 1799 में जयपुर के राजा सवाई प्रताप सिंह द्वारा करवाया गया था ! 

5 मंज़िला इस महल में 953 छोटे-2 झरोखे बने हुए है जिनमें से शाही परिवार की महिलाएँ बाहर शहर की हलचल देखा करती थी ! उस समय परदा प्रथा के कारण शाही परिवार की महिलाएँ बहुत कम ही बाहर निकलती थी, इसलिए हवा महल में ये झरोखे लगाए गए ! इन झरोखों से बाहर के नज़ारे तो दिखाई देते ही है इनमें से हवा भी आती है ! हम हवा महल के हर तल पर गए, अंदर बरामदे बने हुए है जहाँ खड़े होकर इन झरोखों से शहर की झलक दिखाई देती है ! इन झरोखों के पास रंग-बिरंगी शीशे लगे हुए है जो काफ़ी सुंदर लगते है ! बैठने के लिए हर तल पर एक-दो गुंबद भी बने हुए है, हवा महल की ऊँचाई 50 फीट है और यहाँ से सिटी पैलेस, जयगढ़ और नाहरगढ़ के किले भी दिखाई देते है ! शाम को महल में एक लाइट शो भी होता है जो बहुत शानदार रहता होगा ! महल से नीचे आने के बाद हम वापिस सिटी पैलेस में खड़ी अपनी गाड़ी की ओर चल दिए ! घूमते-2 काफ़ी थकान हो गई थी, और अब बच्चे भी परेशान हो रहे थे इसलिए यहाँ से निकलकर अपने होटल जाने का विचार था ! 

पार्किंग से निकलकर 10 मिनट की यात्रा करने के बाद हम अपने नए होटल पहुँच गए, होटल में प्रवेश करने की कुछ औपचारिकताएं पूरी करने के साथ ही अपना सारा सामान कमरे में ले गए, यहाँ आते ही बच्चे सो गए ! मेरे एक फ़ेसबुक मित्र है देवेन्द्र कोठारी जी, जयपुर आने से पहले से ही उनसे बात हुई थी कि जयपुर आने पर उनसे भी मुलाकात करूँगा ! आज वो मुझसे मिलने आने वाले थे, शाम साढ़े तीन बजे वो मिलने आए ! काफ़ी देर तक बैठकर हम दोनों अपनी यात्राओं पर चर्चा करते रहे, काफ़ी मिलनसार है कोठारी जी ! उम्र के इस पड़ाव पर भी उनका घूमने का जज़्बा वाकई क़ाबिले तारीफ़ है, इस समय भी बाइक लेकर पहाड़ों पर घूमने निकल जाते है ! उनका कोई परिचित अस्पताल में दाखिल था इसलिए उन्हें थोड़ी देर बाद जाना पड़ा ! शाम को हम सेंट्रल पार्क घूमने चले गए, लेकिन रात्रि का भोजन अपने होटल में ही किया ! आज जयपुर में हमारा आख़िरी दिन था, अगली सुबह हमें वापसी की राह पकड़नी थी !

अगली सुबह समय से सोकर उठे और नहा-धोकर तैयार होने के बाद अपना सारा सामान पैक कर लिया ! चाय संग हल्का नाश्ता करने के बाद साढ़े आठ बजे हमने वापसी की राह पकड़ ली ! वापसी में हमारा विचार अलवर में सिलीसेढ़ झील देखने का था, मैं तो ये झील पहले भी देख चुका हूँ, जयपुर से लौटते हुए सोचा कि एक बार फिर से झील को देख लिया जाए ! जयपुर से निकलने के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर काफी देर तक चलते रहे, फिर शाहपुरा से अलवर जाने वाले मार्ग पर हो लिए !  रास्ते में हम सरिस्का वन्य उद्यान से भी गुजरे, यहाँ सड़क किनारे जानवरो को देख कर बच्चे भी काफी रोमांचित हुए ! सिलीसेढ़ झील पहुँच कर पनीर के पकोड़ों संग चाय की चुस्कियां ली ! इस समय झील में काफी काम पानी था, लेकिन झील की सुंदरता पहले की तरह बरकरार थी, दोपहर 1 बजे के आस-पास झील से चले तो 4 बजे अपने घर पहुँच गए ! सिलीसेढ़ झील के बारे में जानने के लिए मेरी सरिस्का यात्रा पढ़े ! इसी के साथ जयपुर यात्रा समाप्त होती है, जल्द ही किसी नई यात्रा पर लेकर चलूँगा ! 


हवा महल के प्रवेश द्वार से दिखाई देता एक दृश्य
हवा महल का एक दृश्य














हवा महल से दिखाई देता जंतर-मंतर




देवेन्द्र कोठारी जी के साथ
सरिस्का से अलवर जाते हुए
सरिस्का में सड़क किनारे खड़े कुछ जीव
सिलीसेढ़ झील का प्रवेश द्वार
सिलीसेढ़ झील का एक नज़ारा
सिलीसेढ़ झील का एक नज़ारा
क्यों जाएँ (Why to go Jaipur): अगर आप किले देखने के शौकीन है, राजसी ठाट-बाट का शौक रखते है तो निश्चित तौर पर जयपुर आ सकते है ! इसके अलावा राजस्थानी ख़ान-पान का लुत्फ़ उठाने के लिए भी आप जयपुर आ सकते है !

कब जाएँ (Best time to go Jaipur
): आप साल भर किसी भी महीने में यहाँ जा सकते है लेकिन गर्मियों में यहाँ का तापमान दिल्ली के बराबर ही रहता है और फिर गर्मी में किलों में घूमना भी पीड़ादायक ही रहता है ! बेहतर होगा आप ठंडे मौसम में ही जयपुर का रुख़ करे तो यहाँ घूमने का असली मज़ा ले पाएँगे !

कैसे जाएँ (How to reach Jaipur): दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है, जयपुर दिल्ली के अलावा अन्य कई शहरों से भी रेल, सड़क और वायु तीनों मार्गों से जुड़ा हुआ है ! दिल्ली से हवाई मार्ग से जयपुर जाने पर 1 घंटा, रेलमार्ग से 5-6 घंटे, और सड़क मार्ग से लगभग 5 घंटे का समय लगता है ! आप अपनी सहूलियत के हिसाब से किसी भी मार्ग से जा सकते है !


कहाँ रुके (Where to stay in Jaipur): जयपुर एक पर्यटन स्थल है यहाँ प्रतिदिन घूमने के लिए हज़ारों लोग आते है ! जयपुर में रुकने के लिए बहुत होटल है आप अपनी सुविधा के हिसाब से 500 रुपए से लेकर 7000 रुपए तक के होटलों में रुक सकते है !


क्या देखें (Places to see in Jaipur): जयपुर में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन सिटी पैलेस, आमेर दुर्ग, जयचंद दुर्ग, नाहरगढ़ दुर्ग, हवा महल, जंतर-मंतर, बिरला मंदिर, एल्बर्ट हाल म्यूज़ीयम, जल महल, क्रिकेट स्टेडियम, और चोखी-धानी प्रमुख है ! चोखी-धानी तो अपने आप में घूमने लायक एक शानदार जगह है ! अधिकतर लोग यहाँ राजस्थानी व्यंजन का आनंद लेने जाते है, ये एक गाँव की तरह बनाया गया है जहाँ आप राजस्थानी व्यंजनों के अलावा स्थानीय लोकगीत और लोकनृत्यों का आनंद भी ले सकते है !

समाप्त...

जयपुर यात्रा

  1. दिल्ली से जयपुर की सड़क यात्रा (A Road Trip to Jaipur)
  2. आमेर के किले में बिताए कुछ पल (A Memorable Day in Amer Fort, Jaipur)
  3. जयगढ़ किले में बिताया एक दिन (A Day in Jaigarh Fort, Jaipur)
  4. नाहरगढ दुर्ग और जयपुर के बाज़ार (Nahargarh Fort and Jaipur Markets)
  5. जयपुर का सिटी पैलेस और हवा महल (City Palace and Hawa Mahal of Jaipur)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

2 Comments

  1. इस हाल में चाँदी के 2 बड़े-2 पात्र रखे गए है, पात्रों की ऊँचाई 5 फीट से भी ज़्यादा है और हर पात्र में 4000 लीटर पानी आ सकता है ! इन पात्रों का निर्माण 14000 चाँदी के सिक्कों को पिघलाकर किया गया था, हर एक पात्र का वजन 340 किलोग्राम है, दुनिया में सबसे बड़े चाँदी के पात्र होने के कारण इनका नाम गिनीज़ बुक में भी दर्ज है ! प्राप्त जानकारी के अनुसार 1901 में अपनी इंग्लैंड यात्रा के दौरान राजा माधो सिंह द्वितीए ने इन पात्रों का निर्माण करवाया था ताकि अपनी यात्रा के दौरान पीने के लिए इनमें गंगाजल ले जा सके ! यही कारण है कि इन पात्रों को गंगाजली के नाम से भी जाना जाता है !बहुत ही बेहतरीन और विशिष्ट जानकारी दी है आपने अपनी पोस्ट में प्रदीप जी ! एकदम से सामने लाके रख दिया है सबकुछ ! कोठारी जी से मुलाकात बढ़िया रही होगी !!

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    1. जी धन्यवाद योगी जी, मैने तो वही लिखा जो मुझे वहाँ दिखा ! कोठारी जी से मुलाकात यादगार रही !

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