शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016
अगले दिन सुबह जब सोकर उठे तो मैं शौर्य को लेकर अपने होटल की छत पर सुबह के नज़ारों का आनंद लेने पहुँच गया ! होटल की छत से दूर पहाड़ी पर जयगढ़ का किला दिखाई दे रहा था, लेकिन हल्की-2 धुन्ध होने के कारण किला साफ नहीं दिखाई दिया ! थोड़ी देर बाद हम दोनों वापिस अपने कमरे में आ गए और घूमने जाने के लिए तैयार होने लगे ! कल शाम को तो सिर्फ़ बिरला मंदिर ही देख पाए थे, इसलिए आज ज़्यादा से ज़्यादा जगहें देखना चाहते थे, कम से कम तीनों किलों को देखने का विचार था ! जयपुर में ही मेरा एक मित्र मोहित चौहान भी रहता है, कल शाम को जब उस से फोन पर बात की तो वो भी हमारे साथ घूमने जाने के लिए तैयार हो गया ! तय हुआ कि सुबह 9 बजे वो हमारे होटल आ जाएगा और फिर हम सब एक साथ घूमने निकल पड़ेंगे ! हम साढ़े आठ बजे तक तैयार हो चुके थे, नाश्ते के लिए जाने से पहले मोहित को फोन किया तो पता चला कि वो अभी सोकर उठा है और तैयार होकर यहाँ आने में ही उसे एक घंटे का समय लग जाएगा ! फोन रखने के बाद हम नाश्ता करने के लिए अपने होटल के डाइनिंग हाल में आ गए, आलू-प्याज के पराठे से सुबह का नाश्ता किया !
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNzMCZ40CswT5L2TMJG90tPcXQBZkoyQmY0z8cwobhRjwbK1fptauMxd5pm4dZwApEv-ZPwRyFp-rLtX16rzbgyzCQrcysOwTgRfiehp761ijinpUTDMruk-d3SX_FbLnPM-iyQ3ZPxBH9/s640/Img19.jpg) |
आमेर पैलेस का दीवान-ए-आम (Diwan-E-Aam of Amer Palace) |
खा-पीकर फारिक हुए तो साढ़े नौ बज चुके थे, वापिस अपने कमरे में आकर थोड़ी देर आराम किया ! मोहित को फिर से फोन किया तो पता चला कि वो घर से निकल चुका है और अगले कुछ मिनटों में ही हमारे होटल पहुँच जाएगा ! फिर आज की यात्रा पर अपने साथ ले जाने वाला खाने-पीने और बाकी ज़रूरत का सामान हमने एक बैग में रखा और होटल से बाहर आ गए ! लगभग साढ़े 10 बजे मोहित यहाँ पहुँचा तो हम बिना देर किए गाड़ी में सवार होकर आमेर के किले की ओर चल दिए ! नेहरू नगर में स्थित अपने होटल से निकलकर हम सब मुख्य मार्ग पर पहुँच गए, यहाँ से बाईं ओर जाने वाला मार्ग चाँदपोल द्वार से होता हुआ पुराने जयपुर में जाता है ! चाँदपोल सहित पुराने जयपुर में प्रवेश करने के 8 द्वार है जिनका वर्णन मैं बाद में करूँगा ! चाँदपोल द्वार के पास जयपुर मेट्रो का निर्माण कार्य चल रहा है, जिसके कारण यहाँ कुछ सड़को पर वन-वे भी किया गया है इसलिए हमेशा जाम की स्थिति बनी रहती है ! वर्तमान में जयपुर के कुछ इलाक़ों में मेट्रो चलती है, आने वाले समय में चाँदपोल द्वार भी मेट्रो से जुड़ जाएगा, और शहर में आवागमन आसान हो जाएगा !
चाँदपोल द्वार से आगे बढ़े तो एक चौराहा आया, इसे छोटी चौपड़ कहते है ! पुराने जयपुर में मार्ग के दोनों ओर सैकड़ों दुकानें है, जहाँ खाने-पीने से लेकर साज़-सज्जा का सामान मिलता है ! जयपुर के बाज़ारों से संबंधित जानकारी भी मैं अलग से दूँगा, अगर यहाँ देने लगा तो लेख की दिशा बदल जाएगी ! फिलहाल आगे बढ़ते है आज होटल से निकलने में हम वैसे ही लेट हो चुके है ! छोटी चौपड़ से आगे बढ़े तो सड़क किनारे हमारे बाईं ओर त्रिपोलिया द्वार आया, त्रिपोलिया द्वार के सामने से निकलकर अगले चौराहे पर पहुँचे, ये बड़ी चौपड़ है ! बड़ी चौपड़ से बाएँ मुड़कर हम चलते रहे, इस मार्ग पर मुड़ते ही हमारी बाईं ओर हवा महल था, आधा किलोमीटर और आगे बढ़े तो बाईं ओर ही सिटी पैलेस जाने का मार्ग था ! आज हम किला देखने जा रहे थे इसलिए यहाँ नहीं रुके, इन स्थानीय जगहों को कल देखेंगे ! थोड़ी दूर जाने के बाद मुख्य मार्ग दाईं ओर मुड़ गया, हम इसी मार्ग पर चलते रहे और फिर सुभाष चौक से बाएँ मुड़कर पुराने जयपुर से बाहर जाने वाले मार्ग पर पहुँच गए ! बाहर जाने का ये मार्ग ज़ोरावर सिंह द्वार से होकर निकलता है ! अब तक शहर की भीड़-भाड़ ख़त्म हो चुकी थी और मार्ग भी काफ़ी चौड़ा लग रहा था !
सुभाष चौक से साढ़े तीन किलोमीटर चलने के बाद सड़क के दाईं ओर हमें एक झील दिखाई दी ! गाड़ी सड़क के एक किनारे पार्किंग में खड़ी करके हम झील देखने चल दिए, ये मान सागर झील है और इस झील के बीचों-बीच एक महल भी बना है, ये जल महल है ! इस झील का निर्माण आमेर के राजा मान सिंह ने 1610 में करवाया था इसलिए इसका नाम मान सागर झील पड़ा ! सड़क के किनारे से देखने पर झील के बीचों बीच स्थित जलमहल बहुत सुंदर लग लगता है, झील के किनारे दूर तक अरावली पर्वत श्रंखला फैली है, जो झील और जलमहल की खूबसूरती में चार चाँद लगा देती है ! सड़क से जाने पर झील के किनारे-2 एक चारदीवारी बनी है ताकि किसी भी अप्रिय घटना को होने से रोका जा सके ! इस चारदीवारी के पास कुछ स्थानीय बच्चे झील में मौजूद मछलियों और दूसरे जीवों के खाने के लिए चुग्गा बेच रहे थे ! कुछ लोग शौक से तो कुछ पुण्य कमाने के लिए इन बच्चों से चुग्गा लेकर झील में डालते है, आस्था के नाम पर लोग क्या कुछ नहीं करते ?
खैर, हम झील किनारे खड़े होकर जलमहल को निहारते रहे, इस समय सूर्य देव जल महल के ठीक पीछे थे इसलिए फोटो ज़्यादा अच्छी नहीं आ रही थी ! कुछ फोटो खींचने के बाद हमने सड़क किनारे खाने-पीने की दुकान पर जाकर थोड़ी पेट-पूजा और खरीददारी भी की ! इस दौरान शौर्य जब बच्चों की एक स्वचालित कार देखकर उसमें बैठने की ज़िद करने लगा तो उसे उस खिलौना कार की सैर भी कराई ! यहाँ से निबटे तो वापिस अपनी गाड़ी में आकर आमेर के किले की ओर चल दिए ! थोड़ी देर बाद सड़क के दोनों ओर घने जंगल शुरू हो गए, जंगल के उस पार काफ़ी दूर तक ऊँची-2 अरावली पर्वत श्रंखला भी दिखाई दे रही थी ! बरसात में इन पहाड़ों पर जब हरियाली आ जाती है तो इनकी सुंदरता और भी बढ़ जाती है ! यहाँ से किले की ओर जाने वाले मार्ग पर थोड़ी-2 चढ़ाई भी शुरू हो गई, इस मार्ग पर थोड़ी दूरी पर जाकर सड़क के बाईं ओर जयगढ़ और नाहरगढ़ किले की ओर जाने वाला एक मार्ग अलग हुआ ! जल महल से 4-5 किलोमीटर चलने के बाद हम आमेर पहुँच गए, आमेर पैलेस से थोड़ी पहले सड़क के बाईं ओर हमें एक और झील दिखाई दी, ये माओथा झील है !
झील के किनारे गाड़ी खड़ी करने की भी पर्याप्त व्यवस्था है, हमने अपनी गाड़ी खड़ी की और बाहर आकर आस-पास के नज़ारे देखने लगे, यहाँ से किले का खूबसूरत नज़ारा दिखाई देता है ! आज धूप बहुत तेज पड़ रही थी इसलिए गर्मी से बुरा हाल था, गर्मी के कारण ही ज़्यादा देर यहाँ ना रुककर हम आगे बढ़ गए ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि जयपुर से आमेर का किला 12 किलोमीटर दूर है, इस किले को जयपुर के मुख्य आकर्षण में गिना जाता है ! वैसे, जयपुर से पहले राजस्थान की राजधानी आमेर ही थी, राजा जय सिंह द्वितीए ने 1727 में अपनी राजधानी को आमेर से जयपुर स्थानांतरित कर दिया ! आमेर का किला बहुत पुराना है, इसका निर्माण राजा मान सिंह ने 1592 में करवाया था, किले को बनाने में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है ! आमेर के किले को आमेर पैलेस के नाम से भी जाना जाता है, बाहर से देखने पर किले की पुरानी दीवारें भले इस किले की सुंदरता का बखान ना कर पाए, लेकिन अंदर से ये किला वाकई लाजवाब है ! आमेर पैलेस की सुंदरता के कारण ही हर दिन यहाँ हज़ारों पर्यटक और ये लोग आज भी इस पैलेस की तारीफ़ किए बिना नहीं रह पाते !
माओथा झील से आगे बढ़े तो सड़क के दोनों ओर खाने-पीने की कई दुकाने थी, यहीं पर एक-दो पार्किंग स्थल भी है ! जिन लोगों को जानकारी नहीं होती, या जो हाथी की सवारी करना चाहते है वो यहाँ अपनी गाड़ी खड़ी करके किले तक पैदल या हाथी पर बैठकर जाते है ! हमारे साथ मोहित था और उसे इस जगह की बढ़िया जानकारी थी, इसलिए हम अपनी गाड़ी लेकर आगे बढ़ गए ! फिर सड़क के बाईं ओर एक सहायक मार्ग अंदर जा रहा था, इसी मार्ग पर चलकर एक रिहायशी इलाक़े से होते हुए हम किले की ओर चल दिए ! ये रास्ता किले के मुख्य द्वार तक जाता है, किले के बाहर ही पार्किंग की व्यवस्था भी है, यहाँ भी काफ़ी गाड़ियाँ आ-जा रही थी ! इस मार्ग पर चलते हुए हमने गाँव में कुछ प्राचीन मंदिर और एक पुरानी बावली भी देखी, हालाँकि, बावली में ज़्यादा पानी नहीं था लेकिन ये बहुत खूबसूरत थी ! किसी जमाने में ये भी प्रयोग में आती होगी, यहाँ रुककर हमने कुछ फोटो खींचे और फिर आगे बढ़ गए ! किले के प्रवेश द्वार तक पहुँचने से पहले हम एक मंदिर में भी गए, इस मंदिर के प्रांगण से काफ़ी सुंदर नज़ारे दिखाई दे रहे थे !
जब हम किले से 100 मीटर दूर रह गए तो एकदम खड़ी चढ़ाई है, यहाँ हमने 40 रुपए का पार्किंग शुल्क अदा किया और प्रवेश द्वार के सामने से होते हुए पार्किंग स्थल में पहुँचे ! गाड़ी खड़ी करके हम किले के प्रवेश द्वार की ओर चल दिए, फिर टिकट खिड़की पर जाकर 100 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से 3 टिकटें ली ! आमेर पैलेस देखने का शुल्क प्रति व्यक्ति 100 रुपए है जबकि अगर आप संयुक्त टिकट लेते है तो 300 रुपए में आप आमेर पैलेस, जंतर-मंतर, हवा महल, नाहरगढ़ किला, और आल्बर्ट हाल संग्रहालय देख सकते है ! संयुक्त टिकट की अवधि भी दो दिन तक मान्य होती है ! सीढ़ियों से चढ़ते हुए हम पैलेस के प्रवेश द्वार पर पहुँचे, यहाँ टिकट दिखाकर हमने अंदर प्रवेश किया, अंदर जाते ही सामने एक खुला मैदान है ! यहाँ से देखने पर आमेर शहर के अलावा आस-पास की दूसरी इमारतें भी दिखाई देती है, यहाँ खड़े होकर कुछ फोटो खींचे ! इस मैदान में प्रवेश द्वार के ठीक सामने दीवान-ए-आम है, जिसमें आमेर के राजा अपनी प्रजा की समस्याएँ सुना करते थे !
दीवान-ए-आम 40 स्तंभों पर टिका एक बड़ा हाल है, आमेर पैलेस और इसके अंदर की दूसरी इमारतें हिंदू-मुस्लिम वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है ! दीवान-ए-आम का निर्माण राजा जय सिंह ने 1631 से 1640 के बीच में करवाया था ! इस हाल की लंबाई 201 फीट और चौड़ाई 67 फीट है, मुख्य हाल को तीन भागों में बाँटा गया है ! हाल को बनाने में लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल हुआ है, और इसके स्तंभों पर राजस्थानी शिल्पकारों द्वारा खूबसूरत चित्रकारी की गई है ! सभाओं के दौरान राजा इस हाल के बीच में बैठते थे, जबकि उनके मंत्री हाल के उत्तरी और पश्चिमी भाग में बैठा करते थे ! दक्षिणी भाग को खाली रखा जाता था ताकि शाही परिवार की महिलाएँ अपने कक्ष से ही सभा की कार्यवाही देख सके ! इतनी गर्मी में भी इस हाल के अंदर काफ़ी ठंडक थी और यहाँ का नज़ारा भी बहुत खूबसूरत था ! दीवान-ए-आम में कुछ समय बिताने के बाद आगे बढ़े तो शीशमहल देखने के लिए चल दिए, शीशमहल भी 40 स्तंभों पर टिकी आमेर पैलेस में बनी एक बेहतरीन इमारत है ! इस महल को बनाने में हज़ारों शीशों का ऐसा प्रयोग हुआ है कि अगर शीशमहल के अंदर केवल 2 मोमबत्तियाँ ही जला दी जाएँ तो पूरा महल प्रकाश से जगमग हो जाता है !
ये सारी कलाकारी उस दौर के उत्कृष्ट वास्तुकारों की देन है, शीशमहल में अंदर जाने पर पाबंदी है, इसे केवल बाहर बरामदे में खड़े होकर ही देखा जा सकता है ! दिलीप कुमार और मधुबाला की फिल्म मुगल-ए-आज़म का चर्चित गाना " जब प्यार किया तो डरना क्या" इसी शीशमहल में फिल्माया गया था ! इस गाने के चर्चित होने में कलाकारों की अदाकारी के अलावा इस महल का भी बराबर ही योगदान है ! शीशमहल के बगल में ही एक बरामदा है जहाँ से माओथा झील का शानदार नज़ारा दिखाई देता है, झील के बीच में एक सुंदर बगीचा बना हुआ है जिसमें रंग-बिरंगी पौधे लगे है ! इस बगीचे में भी मुगल शैली की झलक साफ दिखाई देती है, बहुत से लोग यहाँ खड़े होकर फोटो खिंचवाने में लगे थे ! शीश महल को दीवान-ए-ख़ास के नाम से भी जाना जाता है इसमें राजा अपने मेहमानों और दूसरे राज्यों से आने वाले प्रतिनिधियों से मुलाकात करते थे ! शीशमहल के ठीक सामने एक बगीचा है, इस्लामिक वास्तुकला से बना होने के कारण इसे मुगल गार्डन कहा जाता है ! षटकोण की आकृति में बने इस बगीचे से महल में जाने के 4 मार्ग है इसलिए इस बगीचे को चारबाग भी कहा जाता है !
किले की भव्यता को बढ़ाने के लिए इस बगीचे का निर्माण किया गया था, जिसमें राजा के लिए सभी सुख-सुविधाएँ मौजूद थी ! आमेर के राजा मौसम के अनुसार अपना निवास स्थान भी बदल लिया करते थे, गर्मियों में वो सुख मंदिर में रहते थे, जबकि सर्दियाँ आने पर वो दीवान-ए-खास (शीशमहल) में चले जाते थे ! इन दोनों निवास स्थानों के बीच में ये बगीचा ही था और राजा के लिए इन दोनों भवनों में सभी सुख-सुविधाएँ मौजूद थी ! शीशमहल के बाहर बने बरामदे से देखने पर ये बगीचा काफ़ी खूबसूरत लगता है, राजा इस बगीचे में भी सुकून के कुछ पल गुज़ारा करते थे, अगर आपको मुगल गार्डन की खूबसूरती देखनी हो तो इसके लिए महल का प्रथम तल उपयुक्त स्थान है ! मुगल गार्डन में लोगों के जाने पर पाबंदी है, लेकिन आप शीशमहल के बाहर बने बरामदे में खड़े होकर इस बगीचे को निहार सकते है ! शीशमहल से एक गलियारे से होते हुए हम सुख मंदिर पहुँचे, इस भवन में भी राजा द्वारा प्रयोग की गई कुछ वस्तुएँ धरोहर के रूप में रखी गई है ! भवन के निचले भाग में एक रेस्तराँ भी है, जहाँ खाने-पीने का सामान मिलता है !
सुख मंदिर घूमने के बाद हम किले से बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिए, एक लंबी गैलरी से होते हुए हम महल से बाहर आ गए ! यहाँ रास्ते में दो बड़ी-2 कढ़ाइयाँ रखी हुई थी, जबकि बगल में ही संग्रहालय तक जाने के लिए सीढ़ियाँ भी बनी हुई थी ! यहाँ से चलकर हम मुख्य प्रवेश द्वार से होते हुए बाहर निकले और पार्किंग स्थल की ओर चल दिए, मुख्य द्वार के सामने कुछ स्थानीय कलाकार मौजूद थे जो रोज़ी-रोटी के लिए अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे थे ! हालाँकि, इक्का-दुक्का लोग ही उनके पास खड़े थे, फिर भी ये लोग सारा दिन उम्मीद लगाए निरंतर अपनी कला का प्रदर्शन करते रहते है ! किले से पार्किंग की ओर जाने वाले मार्ग पर कुछ फेरी वाले भी खड़े थे जो खाने-पीने से लेकर राजस्थानी पगड़ियाँ और अन्य सामान बेच रहे थे ! पार्किंग में पहुँचकर हम अपनी गाड़ी में सवार हुए और किले से बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! यहाँ से निकलकर हम जयगढ़ किला देखने जाएँगे, जिसका वर्णन मैं यात्रा के अगले लेख में करूँगा !
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होटल की छत से दिखाई देता एक दृश्य (A view from our Hotel) |
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होटल की छत से दिखाई देता एक दृश्य (A view from our Hotel) |
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जलमहल के पास एक दृश्य (A view of Jal Mahal, Jaipur) |
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जलमहल के पास एक दृश्य (A view of Jal Mahal, Jaipur) |
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जयगढ़ जाने का मार्ग (On the way to Jaigarh Fort) |
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माओथा झील के पास |
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माओथा झील से दिखाई देता आमेर पैलेस (A view of Amer Palace from Maotha Lake) |
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एक पुरानी बावली |
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आमेर पैलेस का प्रवेश द्वार |
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दीवान-ए-आम, आमेर पैलेस |
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दीवान-ए-आम, आमेर पैलेस |
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दीवान-ए-आम, आमेर पैलेस |
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शीशमहल, आमेर पैलेस |
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शीशमहल, आमेर पैलेस |
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शीशमहल के सामने एक बगीचा |
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शीशमहल |
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शीशमहल के सामने एक बगीचा |
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शीशमहल से दिखाई देती माओथा झील |
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सुख निवास से दिखाई देता शीशमहल |
क्यों जाएँ (Why to go Jaipur): अगर आप किले देखने के शौकीन है, राजसी ठाट-बाट का शौक रखते है तो निश्चित तौर पर जयपुर आ सकते है ! इसके अलावा राजस्थानी ख़ान-पान का लुत्फ़ उठाने के लिए भी आप जयपुर आ सकते है !
कब जाएँ (Best time to go Jaipur): आप साल भर किसी भी महीने में यहाँ जा सकते है लेकिन गर्मियों में यहाँ का तापमान दिल्ली के बराबर ही रहता है और फिर गर्मी में किलों में घूमना भी पीड़ादायक ही रहता है ! बेहतर होगा आप ठंडे मौसम में ही जयपुर का रुख़ करे तो यहाँ घूमने का असली मज़ा ले पाएँगे !
कैसे जाएँ (How to reach Jaipur): दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है, जयपुर दिल्ली के अलावा अन्य कई शहरों से भी रेल, सड़क और वायु तीनों मार्गों से जुड़ा हुआ है ! दिल्ली से हवाई मार्ग से जयपुर जाने पर 1 घंटा, रेलमार्ग से 5-6 घंटे, और सड़क मार्ग से लगभग 5 घंटे का समय लगता है ! आप अपनी सहूलियत के हिसाब से किसी भी मार्ग से जा सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay in Jaipur): जयपुर एक पर्यटन स्थल है यहाँ प्रतिदिन घूमने के लिए हज़ारों लोग आते है ! जयपुर में रुकने के लिए बहुत होटल है आप अपनी सुविधा के हिसाब से 500 रुपए से लेकर 7000 रुपए तक के होटलों में रुक सकते है !
क्या देखें (Places to see in Jaipur): जयपुर में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन सिटी पैलेस, आमेर दुर्ग, जयचंद दुर्ग, नाहरगढ़ दुर्ग, हवा महल, जंतर-मंतर, बिरला मंदिर, एल्बर्ट हाल म्यूज़ीयम, जल महल, क्रिकेट स्टेडियम, और चोखी-धानी प्रमुख है ! चोखी-धानी तो अपने आप में घूमने लायक एक शानदार जगह है ! अधिकतर लोग यहाँ राजस्थानी व्यंजन का आनंद लेने जाते है, ये एक गाँव की तरह बनाया गया है जहाँ आप राजस्थानी व्यंजनों के अलावा स्थानीय लोकगीत और लोकनृत्यों का आनंद भी ले सकते है !
अगले भाग में जारी...
जयपुर यात्रा
- दिल्ली से जयपुर की सड़क यात्रा (A Road Trip to Jaipur)
- आमेर के किले में बिताए कुछ पल (A Memorable Day in Amer Fort, Jaipur)
- जयगढ़ किले में बिताया एक दिन (A Day in Jaigarh Fort, Jaipur)
- नाहरगढ दुर्ग और जयपुर के बाज़ार (Nahargarh Fort and Jaipur Markets)
- जयपुर का सिटी पैलेस और हवा महल (City Palace and Hawa Mahal of Jaipur)
जयपुर व आमेर किले के बारे में सटीक जानकारी दी है प्रदीप आपने... पढ़ देख कर अच्छा लगा। पुरानी यादें ताजा कराने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद कोठारी जी !
Deleteबहुत पहले गया था जयपुर शायद 2001 में ! लेकिन तब आमेर अंदर नही जा पाया था समय कम होने की वजह से ! आज पुनः आपके साथ उन जगहों को घूम रहा हूँ ! अच्छा लग रहा है !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी, सुनकर अच्छा लगा कि मेरी यात्रा पढ़कर आपको अपनी यात्रा कि यादें ताजा हो गई !
DeleteHi thanks for posting thiis
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