शनिवार, 20 अगस्त 2011
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आज धनोल्टी में हमारा दूसरा दिन था, सुबह जब सो कर उठे तो अपने बिस्तर से निकलने का मन ही नहीं हो रहा था ! यहाँ धनोल्टी में अगस्त के महीने में भी काफ़ी ठंड थी इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता था कि नींद खुलने के बाद भी सभी लोग अपने-2 बिस्तर में ही पड़े रहे ! थोड़ी देर बाद जब घड़ी में समय देखा तो सुबह के 7.30 बज रहे थे, फिर तो मैं हिम्मत करके बिस्तर से बाहर निकला और अपने कमरे की खिड़की से ही बाहर झाँक कर देखा, अभी तक धूप नहीं निकली थी और बाहर अभी भी थोड़ा-2 कोहरा छाया हुआ था ! थोड़ी देर बाद ही बाकी लोग भी उठ गए और नित्य-क्रम में लग गए ! आख़िर तपोवन भी तो जाना था, इसलिए सभी लोग फटाफट नहा-धोकर तैयार होने लगे ! तैयार होने के बाद सुबह का नाश्ता करने के लिए हम सब नीचे होटल में चले गए ! वहीं बरामदे में लगी मेज पर बैठ कर नाश्ते का आनंद लिया और फिर रास्ते में अपने साथ ले जाने के लिए कुछ खाने-पीने का सामान भी ले लिया ! मैं वापिस अपने कमरे में गया और रास्ते के लिए ज़रूरत का बाकी समान अपने साथ एक बैग में रखकर तपोवन की चढ़ाई के लिए अपने साथियों के पास नीचे पहुँच गया !
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आज धनोल्टी में हमारा दूसरा दिन था, सुबह जब सो कर उठे तो अपने बिस्तर से निकलने का मन ही नहीं हो रहा था ! यहाँ धनोल्टी में अगस्त के महीने में भी काफ़ी ठंड थी इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता था कि नींद खुलने के बाद भी सभी लोग अपने-2 बिस्तर में ही पड़े रहे ! थोड़ी देर बाद जब घड़ी में समय देखा तो सुबह के 7.30 बज रहे थे, फिर तो मैं हिम्मत करके बिस्तर से बाहर निकला और अपने कमरे की खिड़की से ही बाहर झाँक कर देखा, अभी तक धूप नहीं निकली थी और बाहर अभी भी थोड़ा-2 कोहरा छाया हुआ था ! थोड़ी देर बाद ही बाकी लोग भी उठ गए और नित्य-क्रम में लग गए ! आख़िर तपोवन भी तो जाना था, इसलिए सभी लोग फटाफट नहा-धोकर तैयार होने लगे ! तैयार होने के बाद सुबह का नाश्ता करने के लिए हम सब नीचे होटल में चले गए ! वहीं बरामदे में लगी मेज पर बैठ कर नाश्ते का आनंद लिया और फिर रास्ते में अपने साथ ले जाने के लिए कुछ खाने-पीने का सामान भी ले लिया ! मैं वापिस अपने कमरे में गया और रास्ते के लिए ज़रूरत का बाकी समान अपने साथ एक बैग में रखकर तपोवन की चढ़ाई के लिए अपने साथियों के पास नीचे पहुँच गया !
होटल से दिखाई देता एक दृश्य (A view from our hotel in Dhanaulti) |
नीचे से देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे पूरी पहाड़ी पर ही घना जॅंगल हो, पर हक़ीकत में ऐसा नहीं था ! तपोवन भी इसी पहाड़ी पर ही है, मुख्य सड़क पर लगभग एक किलोमीटर चलने के बाद हमारी बाईं ओर सड़क के किनारे से ही एक पगडंडी उपर पहाड़ी पर जाती दिखाई दी ! तपोवन की यात्रा प्रारंभ करने से पहले ही हमने होटल के मालिक से तपोवन जाने के रास्ते की जानकारी ले ली थी ! इस जानकारी के मुताबिक यही रास्ता उपर तपोवन तक जाता है, वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि धनोल्टी में कहीं भी तपोवन जाने के रास्ते की जानकारी दर्शाता कोई भी बोर्ड आपको दिखाई नहीं देगा, ये जानकारी आपको स्थानीय लोगों से ही लेनी पड़ेगी ! नीचे सड़क से देखने पर आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते कि ये पगडंडी उपर जाकर आपको एक खुले मैदान में ले जाएगी, इस पगडंडी पर चलते हुए रास्ते में कुछ घर भी थे ! इन घरों में रहने वाले लोग इसी रास्ते से खच्चरों के उपर लादकर अपनी रोजमर्रा की ज़रूरत का समान ले जाते है !
ये जानकारी हमें कुछ स्थानीय लोगों से बातचीत के दौरान मिली, उन्होनें हमें बताया कि किस तरह लोग खच्चरों के माध्यम से मकान बनाने का ज़रूरी सामान और अन्य वस्तुएँ भी पहाड़ी पर उपर ले जाते है ! अब हमने मुख्य सड़क से अलग हटकर इस पगडंडी पर उपर चढ़ना शुरू कर दिया, रास्ते में हमें कुछ निर्माणाधीन मकान और एक गेस्ट हाउस भी दिखाई दिया, पर उस समय ये गेस्ट हाउस खाली था ! मुझे तो ये सोचकर ही हैरानी हो रही थी कि इस गेस्ट हाउस के बारे में नीचे सड़क पर जाने वाले यात्रियों को कैसे पता चलता होगा कि यहाँ घने जंगलों के बीच में भी कोई गेस्ट-हाउस हो सकता है ! रास्ते में ही हमें कुछ छोटे पर बहुत ही अद्भुत पक्षी और अन्य जीव भी देखने को मिले ! पहाड़ी पर उपर जाते हुए भंवरे की तरह दिखने वाला एक छोटा जीव तो हमारे पीछे ही पड़ गया था ! इसके मुँह पर एक लंबी सी नुकीली चोंच (डॅंक) थी, ये जीव डॅंक मारने के लिए बार-2 हमारे आस-पास आ रहा था !
एक बार तो इस जीव के चक्कर में मैं पहाड़ी पर से गिरते-2 बचा, बड़ी मुश्किल से इस पहाड़ी भंवरे से पीछा छूटा ! जिस पगडंडी पर चल कर हम उपर आ रहे थे, अब तक वो घने जंगलों में गुम हो चुकी थी और जॅंगल में तो पता भी नहीं चल रहा था कि हमें किस रास्ते पर जाना है, पर अक्सर कहते है ना कि अगर किसी अंजान जगह पर जाओ तो अपनी आँख और अपने कान खुले रखते हुए अपने दिमाग़ के घोड़े दौड़ाते रहना चाहिए ! हमने भी इसी बात का अनुसरण किया और जॅंगल में जानवरों के पैरों के निशान का अनुसरण करते हुए हम आगे बढ़ते रहे ! एक-दो जगह रास्ता भी भटके, पर हमें ज़्यादा दिक्कत नही हुई, और दिशा का अंदाज़ा लगाते हुए उपर पहाड़ी पर अपनी चढ़ाई जारी रखी ! अंतत हमारी मेहनत रंग लाई और लगभग 30-35 मिनट उन उबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने के बाद हम लोग एक खुले मैदान में पहुँच गए ! हम लोगों ने कल्पना भी नहीं की थी कि इतनी उँचाई पर ऐसा खुला मैदान भी हो सकता है !
ऐसे ही एक खुले मैदान का वर्णन मैने अपने त्रिऊंड वाले लेख में भी किया है जहाँ हम लोग 4 घंटे पहाड़ी पर चढ़ाई करने के बाद एक खुले मैदान में पहुँचे थे ! यहाँ लगे एक साइन बोर्ड को देख कर अपना माथा ठनका, इस पर लिखा था ये भूमि एक निजी संपति है इस पर किसी भी तरह का निर्माण कार्य ना करें ! मैं बोला, कमाल है यार, पहाड़ों पर भी निजी संपति, हे भगवान, लोगों ने कहाँ-2 सम्पति बना के रखी है, ऐसे हो रहा है भारत निर्माण ! वहीं थोड़ी दूरी पर हमें एक चरवाहा बकरियाँ चराता हुआ दिखाई दिया, हमने सोचा इस चरवाहे से ही कुछ जानकारी ले ली जाए ! पास जाकर पूछा तो पता चला कि ये सारा इलाक़ा तपोवन ही है, और ये निजी संपति किसी बड़े व्यापारी की है ! उसने हमें ये भी बताया कि अगर पूरी हिमालय श्रंखला देखनी है तो थोड़ा और उँचाई पर जाओ, वहाँ से बहुत ही सुंदर नज़ारा दिखाई देगा ! उसने हमें उस निजी संपाति के अंदर ना जाने के लिए आगाह भी किया, पर हम ठहरे भारतीय, जिस काम को करने के लिए मना किया जाए, उसे किए बिना भला कैसे वापस आ जाते !
चरवाहे से जानकारी लेने के बाद वापस उसी मैदान में आकर बहुत देर तक वहीं फोटो खिंचवाने का सिलसिला चलता रहा, शायद ही ऐसी कोई मुद्रा (पोज़) हो जिसमें हम चारों लोगों ने वहाँ फोटो ना खिंचवाया हो, पर जीतू की तपस्या करते हुए, जयंत का प्राणायाम करते हुए, परमार का जिम केरी, और मेरा हैरान-परेशान दिखने वाला दिया गया पोज़ मुझे अभी तक याद है ! जब फोटो खिंचवाने का सिलसला बंद हुआ तो थोड़ी देर वहीं बैठ कर जलपान किया और फिर से आगे दूसरी पहाड़ी पर चढ़ाई शुरू की ! हम लोग उस निजी संपाति के अंदर से होते हुए ही आगे बढ़े, पीछे से वो चरवाहा आवाज़ लगाता रहा पर हम कहाँ मानने वाले थे ! आज तो हम लोग पूरी मस्ती के मूड में थे, ऐसा लग रहा था जैसे कोई प्रतियोगिता चल रही हो, हम चारों जल्दी से उस पहाड़ी के उपर पहुँचने के लिए एक-दूसरे को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे ! लगभग आधे घंटे की चढ़ाई के बाद हम लोग उस पहाड़ी के शीर्ष बिंदु पर पहुँच गए !
वहाँ पर बहुत ही बड़े-2 पत्थर पड़े हुए थे, और एक जगह तो पत्थरों के ढेर के पास हमें लाल झंडे और कुछ रंगीन कागज के टुकड़े मिले ! शायद किसी ने यहाँ अपने ईष्ट देवता की पूजा की थी, हम लोगों ने दूर से ही हाथ जोड़े और पहाड़ी के दूसरे छोर की ओर चल दिए ! पहाड़ी के छोर पर पहुँच कर वहाँ से नीचे देखने पर हमें हवा में तैरते हुए बादलों के बीच में से पहाड़ों पर बने सीढ़ीनुमा खेत और छोटे-2 घर दिखाई दे रहे थे ! आज मौसम साफ था इसलिए दूर तक का नज़ारा एकदम साफ दिखाई दे रहा था, लोग कहते है कि यहाँ से देखने पर ऋषिकेश तक के पहाड़ दिखाई देते है ! खैर, पहले तो हमने इस नज़ारे को जी भर कर अपनी आँखों से देखा और फिर उसके बाद एक बार फिर से यहाँ भी फोटो खींचने का सिलसिला चल पड़ा, जो काफ़ी देर तक चलता रहा ! जब फोटो खिंचवाने का सिलसिला बंद हुआ तो हम सब वहीं एक बड़े से पत्थर पर बैठ कर दूर दिखाई देती उँची पहाड़ियों को निहारने लगे !
समय देखा तो दोपहर के 12 बज रहे थे ! वापसी का मन तो नहीं हो रहा था, पर हमें धनोल्टी में अभी और भी जगहों को देखना था और उसके लिए वापस आना ज़रूरी था ! थोड़ी देर बाद हम लोगों ने वापसी की राह पकड़ी, इस बार हम पहाड़ी के दूसरी तरफ से नीचे उतर रहे थे ! नीचे आते हुए एक जगह जयंत और मैं तो बैठ कर प्राणायाम करने लगे ! वहीं दूसरी ओर जीतू और परमार फिर से फोटोग्राफी में लग गए ! तभी मुझे याद आया कि मैं अपना मोबाइल तो उपर पहाड़ी की छोटी पर ही छोड़ आया हूँ ! हुआ यूँ कि एक जगह फोटो खिंचवाते हुए मैने अपना फोन निकाल कर वहीं एक पत्थर पर रख दिया और फिर उसे वापस रखना भूल गया ! फिर क्या था जब बाकि लोगों को इस बात की जानकारी दी तो सबने कहा कि हम तेरा यहीं इंतज़ार कर रहे है, तू वापस जाकर अपना फोन ले आ ! मैं तेज़ कदमों से वापस पहाड़ी के उपर चढ़ने लगा और पहाड़ी की चोटी पर पहुँच कर अपना फोन ढूँढने लगे जोकि उस बड़े पत्थर पर ही रखा था जहाँ हम लोग बैठे थे !
वैसे, इस बार पहाड़ी के उपर अकेले जाने में मुझे थोड़ा डर तो लग रहा था क्योंकि एक तो वहाँ एकदम सन्नाटा था, और दूसरा अगर किसी मुसीबत में फँस जाता तो वहाँ कोई मदद के लिए भी नहीं आने वाला था ! मैने यहाँ पहाड़ी की चोटी से अपने साथियों को आवाज़ लगाकर भी देखा पर उन लोगों तक मेरी आवाज़ नहीं पहुँच रही थी ! मैं फटाफट फोन लेकर अपने मित्रों के पास पहुँचा जहाँ सभी लोग मेरा इंतज़ार कर रहे थे ! इस बार मुझे पहाड़ी की चोटी पर जाकर वापस आने में पहले से आधा समय ही लगा क्योंकि मैं भागता हुआ गया था और भागता हुआ ही वापस आया था ! 10 मिनट की यात्रा के बाद हम फिर से उस खुले मैदान मैं पहुँच चुके थे, जहाँ जाते समय हमें चरवाहा मिला था जो इस समय वहाँ नहीं था ! वापसी में हम उस मैदान में भी नहीं रुके और तेज़ कदमों से नीचे की ओर आने लगे ! इस मैदान की खूबसूरती देखते ही बन रही थी, दूर तक दिखाई देता ढलान वाला हरा-भरा मैदान और ढलान के उस ओर बड़े-2 चीड़ के पेड़ ! मन कर रहा था कि इस खूबसूरती को हमेशा के लिए अपनी आँखों में क़ैद कर लूँ, ऐसी खूबसूरती अपने शहर में तो कहाँ देखने को मिलती है !
फिर हम अपने शहर से इतनी दूर आए भी तो इन्हीं खूबसूरत वादियों के लिए ही थे, उस मैदान में ही एक छोटे से हिस्से को कंटीली तार से बाड़ लगाकर घेरा गया था, और वहीं पर एक बोर्ड भी लगा रखा था जिस पर लिखा था निजी संपति ! अक्सर पहाड़ों पर चढ़ने में जितना समय लगता है उतरने में अपेक्षाकृत उस से कम ही समय लगता है ! हम लोगों को भी तपोवन से नीचे आने में ज़्यादा समय नहीं लगा ! फिर जाते हुए तो हमें रास्ते का भी अंदाज़ा नहीं था इसलिए थोड़ा अधिक समय लगा था, पर उतरते हुए तो उँचाई से देखने पर नीचे के रास्ते दिखाई दे ही रहे थे ! हम सावधानी पूर्वक उतरते हुए थोड़ी देर में ही सुरक्षित नीचे पहुँच गए ! मुख्य सड़क पर आने के बाद हमें अपने होटल तक पहुँचने में 10 मिनट ही लगे ! होटल पहुँच कर चाय पीने के लिए फिर से नीचे बरामदे में ही बैठ गए ! धनोल्टी से मसूरी जाने वाले रास्ते पर तो हम तपोवन घूम आए थे अब चाय पीकर हम लोगों का विचार चम्बा की ओर जाने का था !
तपोवन जाने का मार्ग (Way to Tapovan) |
मार्ग में लिया गया एक चित्र (A view from Road) |
मार्ग में लिया गया एक और चित्र (A beautiful view of valley) |
दूर तक फैले बादल (Cloudy Weather) |
तपोवन जाने का मार्ग (Way to Tapovan) |
तपोवन जाने का मार्ग (Mussoorie Dhanaulti Road) |
उपर से देखने पर एक दृश्य (A view from hill) |
तपोवन से पहले खुला मैदान (A view on the way to Tapovan) |
तपोवन से पहले खुला मैदान (The Beauty of Hills) |
तपोवन से पहले खुला मैदान |
जीत फिल्म का जीतू |
उपर से दिखाई देते सीढीनुमा खेत (A view from hill) |
हम उपर और बादल नीचे (Clouds are roaming around) |
तपोवन में तपस्या करते दो तपस्वी (Waiting for someone) |
चारों तरफ फैले बादल (Clouds all around) |
चारों तरफ फैले बादल |
घने बादलों के बीच जीतू |
दो दोस्तों का मिलन |
अलविदा तपोवन |
प्यासे को केम्पा पिलाता जयंत |
दूर दिखाई देता परमार |
तपोवन से नीचे जाने का मार्ग (Back to Dhanaulti) |
क्यों जाएँ (Why to go Dhanaulti): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो मसूरी से 25 किलोमीटर आगे धनोल्टी का रुख़ कर सकते है ! यहाँ करने के लिए ज़्यादा कुछ तो नहीं है लेकिन प्राकृतिक दृश्यों की यहाँ भरमार है !
कब जाएँ (Best time to go Dhanaulti): धनोल्टी आप साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में धनोल्टी का अलग ही रूप दिखाई देता है ! बारिश के दिनों में यहाँ की हरियाली देखने लायक होती है जबकि सर्दियों के दिनों में यहाँ बर्फ़बारी भी होती है ! लैंसडाउन के बाद धनोल्टी ही दिल्ली के सबसे नज़दीक है जहाँ अगर किस्मत अच्छी हो तो आप बर्फ़बारी का आनंद भी ले सकते है !
कैसे जाएँ (How to reach Dhanaulti): दिल्ली से धनोल्टी की दूरी महज 325 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 7-8 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से धनोल्टी जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मेरठ-मुज़फ़्फ़रनगर-देहरादून होकर है ! दिल्ली से रुड़की तक शानदार 4 लेन राजमार्ग बना है, रुड़की से छुटमलपुर तक एकल मार्ग है जहाँ थोड़ा जाम मिल जाता है ! फिर छुटमलपुर से देहरादून- मसूरी होते हुए धनोल्टी तक शानदार मार्ग है ! अगर आप धनोल्टी ट्रेन से जाने का विचार बना रहे है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है, जो देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है ! देहरादून से धनोल्टी महज 60 किलोमीटर दूर है जिसे आप टैक्सी या बस के माध्यम से तय कर सकते है ! देहरादून से 10-15 किलोमीटर जाने के बाद पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है !
कब जाएँ (Best time to go Dhanaulti): धनोल्टी आप साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में धनोल्टी का अलग ही रूप दिखाई देता है ! बारिश के दिनों में यहाँ की हरियाली देखने लायक होती है जबकि सर्दियों के दिनों में यहाँ बर्फ़बारी भी होती है ! लैंसडाउन के बाद धनोल्टी ही दिल्ली के सबसे नज़दीक है जहाँ अगर किस्मत अच्छी हो तो आप बर्फ़बारी का आनंद भी ले सकते है !
कैसे जाएँ (How to reach Dhanaulti): दिल्ली से धनोल्टी की दूरी महज 325 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 7-8 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से धनोल्टी जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मेरठ-मुज़फ़्फ़रनगर-देहरादून होकर है ! दिल्ली से रुड़की तक शानदार 4 लेन राजमार्ग बना है, रुड़की से छुटमलपुर तक एकल मार्ग है जहाँ थोड़ा जाम मिल जाता है ! फिर छुटमलपुर से देहरादून- मसूरी होते हुए धनोल्टी तक शानदार मार्ग है ! अगर आप धनोल्टी ट्रेन से जाने का विचार बना रहे है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है, जो देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है ! देहरादून से धनोल्टी महज 60 किलोमीटर दूर है जिसे आप टैक्सी या बस के माध्यम से तय कर सकते है ! देहरादून से 10-15 किलोमीटर जाने के बाद पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है !
कहाँ रुके (Where to stay in Dhanaulti): धनोल्टी उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रुकने के लिए बहुत होटल है ! आप अपनी सुविधा अनुसार 800 रुपए से लेकर 3000 रुपए तक का होटल ले सकते है ! धनोल्टी में गढ़वाल मंडल का एक होटल भी है, और जॅंगल के बीच एपल ओरचिड नाम से एक रिज़ॉर्ट भी है !
कहाँ खाएँ (Eating option in Dhanaulti): धनोल्टी का बाज़ार ज़्यादा बड़ा नहीं है और यहाँ खाने-पीने की गिनती की दुकानें ही है ! वैसे तो खाने-पीने का अधिकतर सामान यहाँ मिल ही जाएगा लेकिन अगर कुछ स्पेशल खाने का मन है तो समय से अपने होटल वाले को बता दे !
क्या देखें (Places to see in Dhanaulti): धनोल्टी और इसके आस-पास घूमने की कई जगहें है जैसे ईको पार्क, सुरकंडा देवी मंदिर, और कद्दूखाल ! इसके अलावा आप ईको पार्क के पीछे दिखाई देती ऊँची पहाड़ी पर चढ़ाई भी कर सकते है ! हमने इस जगह को तपोवन नाम दिया था !
अगले भाग में जारी...
- दोस्तों संग धनोल्टी का एक सफ़र (A Road Trip from Delhi to Dhanaulti)
- धनोल्टी का मुख्य आकर्षण है ईको-पार्क (A Visit to Eco Park, Dhanaulti)
- बारिश में देखने लायक होती है धनोल्टी की ख़ूबसूरती (A Rainy Trip to Dhanolti)
- सुरकंडा देवी - माँ सती को समर्पित एक स्थान (A Visit to Surkanda Devi Temple)
- मसूरी के मालरोड पर एक शाम (An Evening on Mallroad, Musoorie)
- मसूरी में केंप्टी फॉल है पिकनिक के लिए एक उत्तम स्थान (A Perfect Place for Picnic in Mussoorie – Kempty Fall)
घर से बाहर हमेशा चौकन्ने रहना जरुरी है क्योकि नजर हटी दुर्धटना घटी।
ReplyDeleteसही कहा आपने ! वैसे मैं चौकन्ना ही रहता हूँ !
Deletedhanulti jana tho kafi bar hua , par kabhi tapovan nahi gaya .....next time will try.
ReplyDeleteइस बार धनौल्टी जाने पर कर आइये ये छोटा सा ट्रेक भी !
Deleteभाई.. धनोल्टी का तपोवन बहुत खूबसूरत लगा....
ReplyDeleteधन्यवाद रितेश भाई !
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