शुक्रवार, 12 अगस्त 2016
इस यात्रा पर जाने का मेरा मन तो उस समय से था, जब मैने अपने एक सहकर्मी से लखनिया दरी जल प्रपात के बारे में सुना था ! दरअसल, मेरे एक मित्र ने अपने कॉलेज के दिनों के एक वाकये का ज़िक्र करते हुए इस जल प्रपात के बारे में बताया था कि किस तरह वो अपने दोस्तों के साथ अपनी क्लास छोड़कर इस जल-प्रपात को देखने चले गए थे ! इस झरने के बारे में जैसा विवरण उस मित्र ने दिया था उसे सुनकर इस झरने के प्रति मेरा आकर्षण काफ़ी बढ़ गया था ! फिर जब इंटरनेट पर इस झरने की वीडियो देखी और इसके बारे में पढ़ा तो झरने को देखने की इच्छा बढ़ गई ! झरने से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारियाँ मैने एक डायरी में लिख ली थी ताकि ज़रूरत पड़ने पर अपने अलावा अन्य लोगों को भी लाभान्वित कर सकूँ ! देखते-2 साल बीत गया, लेकिन इस यात्रा पर जाने का संयोग नहीं बना, समय बीतता रहा और इस दौरान कई यात्राएँ भी होती रही, लेकिन लखनिया दरी मेरी यात्रा डायरी के किसी पन्ने में गुमनाम सा पड़ा रहा !
इस दौरान मैं व्हाट्स एप्प पर घुमक्कड़ लोगों के एक ग्रुप से जुड़ा ! इसी ग्रुप पर एक बार जब छुपा हीरा नाम से एक चर्चा चल रही थी जिसमें ग्रुप के सभी लोगों की कुछ ऐसी जगहों के बारे में जानकारी देनी थी जो बहुत ज़्यादा चर्चित ना हो, लेकिन आकर्षण के मामले में कम भी ना हो ! मैने इस चर्चा के दौरान लखानिया दरी जलप्रपात का ज़िक्र किया ! ग्रुप में इक्का-दुक्का लोगों को ही इस जगह के बारे में जानकारी थी, सभी लोग इस जगह के बारे में जानकर् बहुत खुश हुए ! कुछ मित्र तो इस यात्रा पर जाने की योजना भी बनाने लगे ! मैने भी इस बार ठान लिया था कि आगामी वर्षा ऋतु में मुझे भी इस यात्रा पर ज़रूर जाना है ! इस यात्रा पर जाने के लिए मैने बारिश का का समय इसलिए चुना था क्योंकि मौसमी झरनों में बारिश के मौसम में ही पानी आता है और इस झरने का मुख्य स्त्रोत भी बारिश का पानी ही था ! वैसे, एक मित्र बारिश से 2 महीने पहले इस यात्रा पर गए थे लेकिन उस समय वहाँ ना तो ज़्यादा हरियाली थी और ना ही झरने में पर्याप्त पानी !
इस यात्रा पर जाने का मेरा मन तो उस समय से था, जब मैने अपने एक सहकर्मी से लखनिया दरी जल प्रपात के बारे में सुना था ! दरअसल, मेरे एक मित्र ने अपने कॉलेज के दिनों के एक वाकये का ज़िक्र करते हुए इस जल प्रपात के बारे में बताया था कि किस तरह वो अपने दोस्तों के साथ अपनी क्लास छोड़कर इस जल-प्रपात को देखने चले गए थे ! इस झरने के बारे में जैसा विवरण उस मित्र ने दिया था उसे सुनकर इस झरने के प्रति मेरा आकर्षण काफ़ी बढ़ गया था ! फिर जब इंटरनेट पर इस झरने की वीडियो देखी और इसके बारे में पढ़ा तो झरने को देखने की इच्छा बढ़ गई ! झरने से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारियाँ मैने एक डायरी में लिख ली थी ताकि ज़रूरत पड़ने पर अपने अलावा अन्य लोगों को भी लाभान्वित कर सकूँ ! देखते-2 साल बीत गया, लेकिन इस यात्रा पर जाने का संयोग नहीं बना, समय बीतता रहा और इस दौरान कई यात्राएँ भी होती रही, लेकिन लखनिया दरी मेरी यात्रा डायरी के किसी पन्ने में गुमनाम सा पड़ा रहा !
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जाने का मार्ग |
समय बीतने के साथ ही मैने इस यात्रा पर जाने के लिए अपने कई मित्रों से पूछा, लेकिन कोई भी तैयार नही हुआ ! फिर जब अप्रैल में अगस्त महीने की टिकटें खुली, तो मैने 12 अगस्त को वाराणसी जाने की और 14 अगस्त को वापिस आने के लिए शिवगंगा एक्सप्रेस की टिकटें आरक्षित करवा ली ! वाराणसी जाने के लिए मुझे ये ट्रेन सबसे अच्छी लगती है, शाम को 7 बजे नई दिल्ली से चलकर सुबह 7 बजे वाराणसी उतार देती है ! सारा सफ़र सोते हुए ही कट जाता है और थकान भी नहीं होती ! धीरे-2 समय बीतता रहा और यात्रा दिन नज़दीक आने लगा ! इस दौरान मेरे एक मित्र सतप्रकाश को जब मेरी इस यात्रा की जानकारी हुई, तो उसने भी मेरे साथ चलने की इच्छा जताई ! मुझे क्या परेशानी थी, एक से भले दो हो जाएँगे, अगले दिन उसकी भी टिकटें आरक्षित करवा दी !
निर्धारित दिन हम दोनों सुबह अपने दफ़्तर जाते हुए ही यात्रा पर ले जाने वाला अपना भी अपने साथ ले गए, ताकि शाम को काम ख़त्म करने के बाद यात्रा पर निकल सके !
अगस्त का महीना होने के कारण अक्सर रोज ही बारिश हो रही थी वैसे भी इस वर्ष पिछले कुछ वर्षो से कुछ ज़्यादा ही बारिश हुई थी ! शाम 4 बजे जब हम दोनों अपने-2 दफ़्तर से सिकन्दरपुर मेट्रो स्टेशन जाने के लिए निकले तो बारिश हो रही थी ! बारिश से बचते-बचाते मैं एक ऑटो में सवार तो हुआ, लेकिन मेट्रो स्टेशन पर पहुँचते-2 भीग ही गया ! ऑटो से उतरकर सीढ़ियों से होता हुआ मैं सिकन्दरपुर मेट्रो स्टेशन परिसर में पहुँचा, मेट्रो कार्ड दिखाकर और अपना सामान चेक करवा कर मैं सीधा प्लेटफार्म की ओर चल दिया ! सत्प्रकाश हुड्डा सिटी मेट्रो स्टेशन से आने वाला था, फोन पर उस से बात की और मैं अगली मेट्रो में सवार हो गया, जिसमें वो पहले से ही बैठा था ! यहाँ से हमें नई दिल्ली रेलवे स्टेशन तक की यात्रा करनी थी, नई दिल्ली में मेट्रो स्टेशन और रेलवे स्टेशन पास-2 ही है ! यहाँ से नई दिल्ली पहुँचने में वैसे तो 50-55 मिनट का समय लगता है लेकिन अपने पिछले अनुभव की वजह से हम अतिरिक्त समय लेकर चल रहे थे !
घंटे भर की यात्रा के बाद हम नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन पहुँचे, नई दिल्ली का मेट्रो स्टेशन भूमिगत है, सीढ़ियों से होते हुए हम बाहर निकले और रेलवे स्टेशन जाने से पहले वहीं स्टेशन के बाहर एक होटल में रात्रि भोजन के लिए बैठ गए ! 15 से 20 मिनट का समय लगा और हम खाना खाने के बाद स्वचालित सीढ़ियों से होते हुए प्लेटफार्म पर पहुँच गए, जहाँ शिवगंगा से जाने वाली अन्य सवारियाँ भी थी जो ट्रेन के इंतजार में खड़ी थी ! अभी 6 बज रहे थे, मतलब गाड़ी के चलने में अभी एक घंटे का समय था ! प्लेटफार्म पर टहलते हुए हम दोनों एक सीट पर जगह बनाकर बैठ गए ! हमारे अलावा कुछ अन्य लोग भी प्लेटफार्म पर बनी सीटों पर बैठ कर प्रतीक्षा कर रहे थे, जो यात्री परिवार के संग थे वो तो नीचे प्लेटफार्म पर ही अख़बार बिछाकर आराम फरमा रहे थे ! जबकि अकेले यात्रा करने वाले भी काफ़ी लोग थे, ये लोग या तो प्लेटफार्म पर लगे खंबो के किनारे बने सेमेंट के चबूतरो पर बैठे थे या फिर टहल कर अपना समय काट रहे थे ! कुछ ऐसे भी लोग थे जो जगह ना मिलने की वजह से अपने सूटकेस पर ही बैठे हुए थे !
वैसे प्लेटफार्म पर बैठ कर ट्रेन की प्रतीक्षा करना भी एक अलग ही अनुभव रहता है, आते-जाते यात्रियों और ट्रेनों को देखना, और ट्रेनों के आवागमन से संबंधित उद्घोषणा सुनना वाकई मजेदार लगता है ! शिवगंगा एक्सप्रेस प्लेटफार्म नंबर 12 से जाने वाली थी इस बीच 13 नंबर प्लेटफार्म पर जब कोई ट्रेन आ जाती तो प्लेटफार्म पर चहल-कदमी तेज हो जाती ! सवारियाँ अपनी सीटों पर पहुँचने के लिए इधर-उधर दौड़ने लगती ! शिवगंगा के आने से पहले एक ट्रेन इसी प्लेटफार्म पर आकर रुकी, ये एक स्पेशल ट्रेन थी जो बिहार की ओर जा रही थी ! इस ट्रेन में ज़्यादा भीड़ नही थी, शायद लोगों को इस स्पेशल ट्रेन की जानकारी ना हो, थोड़ी देर रुकने के बाद ये चल दी ! खैर, जब ये ट्रेन चली गई तो शिवगंगा आकर खड़ी हो गई, लोग अपनी-2 सीटों पर पहुँचने के लिए भागमभाग में लग गए ! हमारी सीटें कन्फर्म थी और ट्रेन के चलने में अभी भी आधे घंटे का समय था इसलिए हम आराम से अपनी सीट पर पहुँचे ! अपना सामान उपर वाली सीट पर रखा और खिड़की के किनारे वाली सीट पर बैठ गए !
एक बात पर मैने गौर किया है कि अमूमन ट्रेन में सफ़र के दौरान आपको कोई ना कोई ज्ञानी ज़रूर मिल जाता है जो या तो सरकार की नीतियों से परेशन होता है या फिर अपनी निजी ज़िंदगी से बहुत मायूस होता है ! ऐसे लोग श्रोता मिलते ही ज्ञान बाँटना शुरू कर देते है फिर चाहे कोई इनकी बात सुने या ना, इन्हें कुछ फ़र्क नहीं पड़ता ! आज हमारा सामना भी ऐसे ही एक आदमी से हुआ, जो सरकार की नीतियों से संबंधित चर्चा लेकर बैठ गया ! हमारा ज्ञान लेने का कोई विचार नहीं था इसलिए थोड़ी देर बाद ही उसे कह दिया कि यार, अच्छे प्रवक्ता हो, किसी पार्टी से क्यूँ नहीं जुड़ जाते ! समझदार आदमी था इसलिए वो हमारा इशारा समझ गया और थोड़ी देर बाद शांत हो गया ! अपने निर्धारित समय पर ट्रेन प्लेटफार्म से चल दी, ट्रेन चलने के बाद तो वो दिखा ही नहीं ! शायद उसकी सीट कन्फर्म नही थी, इसलिए किसी दूसरे डिब्बे में चला गया होगा ! थोड़ी देर तक तो हम दोनों बैठ कर बातें करते रहे, फिर अपनी उपर वाली सीटों पर आराम करने चले गए ! खाना तो हम ट्रेन में चढ़ने से पहले ही खा चुके थे, समय से नींद भी आ गई !
एक बार जो आँख लगी तो फिर सुबह ही जाकर नींद खुली जब हम इलाहाबाद से आगे निकल चुके थे ! यहाँ से आगे का सफ़र हमने बैठकर पूरा किया, इस दौरान मेरी फोन पर अपने एक फ़ेसबुक मित्र चंद्रेश कुमार से बात हुई ! उन्हें जानकारी थी कि मैं मिर्जापुर की यात्रा पर निकला हूँ, बातचीत के दौरान वो मुझे रामनगर बाईपास तक पहुँचने का रास्ता समझाने लगे ! इसी दौरान उन्होनें मुझे बताया कि आज वो भी मेरे साथ पूरा दिन घूमने वाले थे ! वैसे तो चंद्रेश जी मिर्ज़ापुर के ही रहने वाले है और लखनिया दरी के अलावा आस-पास की लगभग सारी जगहों को घूम चुके है ! मेरे साथ तो वो इसलिए आ रहे थे ताकि इन सभी जगहों को मुझे घुमा सके ! सच में, चंद्रेश जी की ये बात सुनकर ही मेरी तो आधी मुश्किल दूर हो गई ! वैसे, जब कोई अन्य फ़ेसबुक मित्र भी यहाँ घूमने आता है तो चंद्रेश जी समय निकालकर उन लोगों से भी ज़रूर मिलते है !
ट्रेन अपने निर्धारित समय से 10 मिनट की देरी से मंडुवाडीह स्टेशन पर पहुँची !
पहले ये ट्रेन वाराणसी तक जाती थी लेकिन वाराणसी स्टेशन पर बोझ कम करने के लिए अब शिवगंगा के अलावा कुछ अन्य ट्रेनों को भी मंडुवाडीह तक कर दिया गया है ! फिर देखा जाए तो मंडुवाडीह से वाराणसी ज़्यादा दूर भी तो नहीं है ! बमुश्किल 3 किलोमीटर की दूरी होगी, जिसे आप स्टेशन के बाहर खड़े ऑटो या किसी अन्य साधन से तय कर सकते है ! चंद्रेश जी के दिशा-निर्देश के अनुसार हमें मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन से बीएचयू (लंका) तक का ऑटो पकड़ना था ! स्टेशन से यहाँ की दूरी 5 किलोमीटर है जिसके लिए नियमित ऑटो चलते रहते है ! हम दोनों स्टेशन से बाहर आकर लंका जाने वाले एक ऑटो में बैठ गये, ये एक पेट्रोल चालित ऑटो था जिसमें 5 सवारियों के बैठने की जगह थी ! प्रदूषण के लिहाज से ये डीजल ऑटो के मुक़ाबले काफ़ी ठीक है, लेकिन अगर यहाँ पेट्रोल की जगह सीएनजी चालित ऑटो होते तो ज़्यादा अच्छा होता ! कम सवारियों की जगह होने से हमें ये फ़ायदा हुआ कि ज़्यादा देर इंतजार नहीं करना पड़ा ! वरना कई बार तो ऑटो वाले सवारियों के इंतजार में ऑटो में बैठे यात्रियों की दुर्गति कर देते है !
सुबह का समय था तो सड़क पर भी ज़्यादा भीड़ नहीं मिली वरना बनारस की सड़कों पर दिन के समय तो अच्छी-ख़ासी भीड़ देखने को मिलती है !
अगले 10-15 मिनट में ही हम दोनों बीएचयू के सामने वाले चौराहे पर पहुँच गये, यहाँ ऑटो से उतरकर रामनगर बाइपास की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! सड़क के किनारे खाने-पीने का सामान बेचते हुए कई फेरी वाले खड़े थे ! ऐसे ही एक फेरी वाले से हमने चाय और भीगे चने लिए ! कुल्हड़ में चाय पीकर मज़ा आ गया, या यूँ कह लीजिए कि कुल्हड़ में चाय पीने से चाय का स्वाद दुगुना हो गया ! अंकुरित चने भी बढ़िया लग रहे थे, नींबू-प्याज डाल कर खाइए कभी, ताकि आपको भी स्वाद का पता चल सके ! चाय ख़त्म करके हम रामनगर बाइपास जाने के लिए दूसरे ऑटो में सवार हो गए ! बीएचयू से चलकर एक मार्किट से होते हुए ये ऑटो गंगा नदी के तट पर पहुँच गया और फिर कुछ दूर तक नदी के किनारे-2 चलते हुए हम एक राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुँच गए ! ये इलाहाबाद-चंदौली राष्ट्रीय राजमार्ग था, इस मार्ग पर चढ़कर हम एक पक्के पुल से होते हुए नदी के उस पार पहुँच गए !
यहाँ हम राष्ट्रीय राजमार्ग से उतरकर नीचे की ओर जाने वाले एक मार्ग से होते हुए रामनगर बाइपास पर पहुँच गए !
यहाँ से बाएँ जाने वाला मार्ग रामनगर किले की ओर जाता है जबकि दाईं ओर का मार्ग नारायणपुर होता हुआ चुनार को जाता है ! बीएचयू से रामनगर बाइपास की दूरी 8 किलोमीटर है लेकिन रास्ते में गंगा नदी पर एक पुल निर्माण का कार्य चल रहा है जिसकी वजह से रास्ते में हमेशा ही जाम लगा रहता है ! वैसे, इस पुल के निर्माण से रामनगर किले से बीएचयू की दूरी घटकर काफ़ी कम हो जाएगी ! चंद्रेश भाई से फोन पर बात हुई तो पता चला कि वो हमारा नारायणपुर में इंतजार कर रहे है ! फिर उनके निर्देश अनुसार हम रामनगर बाइपास से नारायणपुर जाने वाले एक ऑटो में बैठ गए ! ये दूरी भी 8-9 किलोमीटर की थी, लेकिन इस मार्ग पर ज़्यादा यातायात नहीं था !
बारिश का मौसम होने की वजह से जगह-2 जलभराव ज़रूर था लेकिन हम बिना किसी परेशानी के नारायणपुर पहुँच गए ! यहाँ चंद्रेश भाई से हमारी पहली मुलाकात हुई, अब तक तो सिर्फ़ फोन पर ही बात होती थी ! उन्हें जानकारी थी कि मेरे साथ एक अन्य मित्र भी है इसलिए वो अपने साथ एक मित्र को भी ले आए ताकि दो मोटरसाइकलों पर आसानी से हम चारों लोग घूमने जा सके ! सुबह से ऑटो में सफ़र करते-2 काफ़ी थकान हो गई थी, आगे का सफ़र हम चंद्रेश भाई की मोटर साइकल से करेंगे जिसका वर्णन मैं अपनी यात्रा के अगले भाग में करूँगा !
क्यों जाएँ (Why to go Mirzapur): अगर आप झरने देखने का शौक रखते है और आपका एक साथ कई झरने देखने का मन हो तो मिर्ज़ापुर चले आइए ! यहाँ विंध्यम फॉल, टांडा फॉल, लखनिया दरी, और सिद्धनाथ दरी के अलावा कई धार्मिक स्थल भी देखने को मिल जाएँगे ! मिर्ज़ापुर में ही जरगो बाँध, और चुनार का प्रसिद्ध किला भी है जिसका ज़िक्र प्रसिद्ध धारावाहिक चंद्रकान्ता में भी ज़िक्र किया गया है !
कब जाएँ (Best time to go Mirzapur): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में मिर्ज़ापुर जा सकते है लेकिन इन झरनों का मुख्य स्त्रोत बारिश का पानी ही है ! इसलिए अगर झरनों का असली मज़ा लेना है तो बारिश के मौसम में जाएँ !
कैसे जाएँ (How to reach Mirzapur): इन झरनों तक पहुँचने के लिए सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन चुनार है जोकि उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में है ! दिल्ली से चुनार लगभग 800 किलोमीटर दूर है, और दिल्ली से चुनार के लिए कई ट्रेनें चलती है ! इसके अलावा आप दिल्ली से वाराणसी होते हुए भी इन झरनों तक जा सकते है हम भी वाराणसी होते हुए ही इन झरनों तक गए थे ! नई दिल्ली से रात्रि ट्रेन लेकर सुबह वाराणसी पहुँच जाइए फिर वहाँ से कोई टैक्सी ले सकते है या ऑटो और बस के माध्यम से भी इन झरनों तक पहुँच सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay in Mirzapur): झरनों के पास तो रुकने के लिए कोई होटल उपलब्ध नहीं है आप चुनार या वाराणसी में किसी होटल में रात्रि विश्राम के लिए रुक सकते है !
क्या देखें (Places to see in Mirzapur): मिर्ज़ापुर में देखने के लिए कई जगहें है यहाँ विंध्यम फॉल, टांडा फॉल, लखनिया दरी, और सिद्धनाथ दरी के अलावा कई धार्मिक स्थल भी है ! इन धार्मिक स्थलों में विंध्यवासिनी देवी का मंदिर प्रमुख है ! इसके अलावा परमहंस आश्रम, जरगो बाँध, और चुनार का किला भी यहाँ आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहते है !
अगले भाग में जारी...
मिर्जापुर यात्रा
कब जाएँ (Best time to go Mirzapur): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में मिर्ज़ापुर जा सकते है लेकिन इन झरनों का मुख्य स्त्रोत बारिश का पानी ही है ! इसलिए अगर झरनों का असली मज़ा लेना है तो बारिश के मौसम में जाएँ !
कैसे जाएँ (How to reach Mirzapur): इन झरनों तक पहुँचने के लिए सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन चुनार है जोकि उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में है ! दिल्ली से चुनार लगभग 800 किलोमीटर दूर है, और दिल्ली से चुनार के लिए कई ट्रेनें चलती है ! इसके अलावा आप दिल्ली से वाराणसी होते हुए भी इन झरनों तक जा सकते है हम भी वाराणसी होते हुए ही इन झरनों तक गए थे ! नई दिल्ली से रात्रि ट्रेन लेकर सुबह वाराणसी पहुँच जाइए फिर वहाँ से कोई टैक्सी ले सकते है या ऑटो और बस के माध्यम से भी इन झरनों तक पहुँच सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay in Mirzapur): झरनों के पास तो रुकने के लिए कोई होटल उपलब्ध नहीं है आप चुनार या वाराणसी में किसी होटल में रात्रि विश्राम के लिए रुक सकते है !
क्या देखें (Places to see in Mirzapur): मिर्ज़ापुर में देखने के लिए कई जगहें है यहाँ विंध्यम फॉल, टांडा फॉल, लखनिया दरी, और सिद्धनाथ दरी के अलावा कई धार्मिक स्थल भी है ! इन धार्मिक स्थलों में विंध्यवासिनी देवी का मंदिर प्रमुख है ! इसके अलावा परमहंस आश्रम, जरगो बाँध, और चुनार का किला भी यहाँ आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहते है !
अगले भाग में जारी...
मिर्जापुर यात्रा
- मिर्जापुर यात्रा - दिल्ली से वाराणसी (Mirzapur Trip - Delhi to Varanasi)
- लखनिया दरी और जरगो बाँध भ्रमण (Visit to Lakhaniya Daari and Jargo Dam)
- परमहंस आश्रम, सिद्धनाथ दरी और चुनार के किले का भ्रमण (Visit to Siddhnath Dari, ParamHans Aashram and Chunar Fort)
- रामनगर फ़ोर्ट और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (A Visit to Ramnagar Fort and BHU)
विस्तृत और बहुत ही सूंदर और सभी बातो का समावेश करता लेख....
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक जी
Deleteआपके घुम्मकड़ी दिल से के छुपा हीरे में चर्चा के बाद मै भी सावन के महीने में यहाँ पहुच गया ।
ReplyDeleteबस आपसे मुलाकात होते होते रह गयी ।
धन्यवाद आपका जो खूबसूरत हीरे से रूबरू कराया ।
#दिल से
चलिए, अच्छी बात है कि जगह आपको पसंद आई !
Deleteप्रदिप भाई बहुत सुंदर लेख। चंद्रेश जी जितनी तारीफ की जाए उतना कम होगा। अगले भाग का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई, इस यात्रा के सारे लेख प्रकाशित हो चुके है, मौका मिला तो उन्हें भी पढ़िए !
DeleteNice palace mai bhi ek baar jarur jauga
ReplyDeleteबिल्कुल, ज़रूर जाइए, शानदार जगह है घूमने के लिए !
DeleteMughe bhi jana hai mai kaha se ja sakta hu waha par kaise pahuch sakta hu plsz detail mai bataiye
ReplyDeleteलेख के अंत में कैसे जाएँ में इस स्थान तक पहुँचने के लिए बताया हुआ है !
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