शनिवार, 16 सितम्बर 2017
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यात्रा के पिछले लेख में आपने पढ़ा किस तरह हम गुडगाँव से निकलकर देर रात खाटूश्याम पहुंचे और सुबह जल्दी उठकर मंदिर में दर्शन के लिए चल दिए ! अब आगे, पूजा सामग्री लेकर हम बाहरी प्रवेश द्वार से होते हुए मंदिर परिसर में पहुंचे, यहाँ लोहे के पाइप की रेलिंग नहीं है ! इन रेलिंग रेलिंग को पार करते हुए हम मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार की ओर चल दिए, इस समय तो यहाँ ज्यादा भीड़ नहीं थी, गिनती के कुछ लोग ही मंदिर परिसर में थे ! जैसे-2 दिन चढ़ता जायेगा, यहाँ आने वाले श्रधालुओं की भीड़ भी बढती जाएगी, श्रधालुओं की संख्या बढ़ने पर ये रेलिंग ही भीड़ को नियंत्रित करती है ! लोग कतार में खड़े होकर इन रेलिंग से होते हुए मंदिर के मुख्य भवन में प्रवेश करते है, मुख्य भवन में जाने के लिए आपको कुछ सीढ़ियों से होकर जाना होता है ! इस मंदिर में श्याम के शीश की पूजा होती है, हर सुबह आरती से पहले श्याम का श्रृंगार होता है, और फिर आरती के बाद भोग लगाया जाता है ! इस सारी प्रक्रिया के दौरान मंदिर के द्वार तो खुले रहते है लेकिन मूर्ति के आगे एक पर्दा लगा दिया जाता है, भोग लगाने के बाद आम लोगों के दर्शन हेतु ये पर्दा हटा दिया जाता है ! जब हम मंदिर में पहुंचे तो श्रृंगार की तैयारी चल रही थी, इसलिए हम मुख्य भवन से 10 कदम दूर एक कतार में खड़े होकर प्रतीक्षा करने लगे !
कुंड के पास का एक दृश्य |
चलिए, जब तक यहाँ शृंगार की तैयारी चल रही है मैं आपको इस मंदिर से सम्बंधित थोड़ी जानकारी दे देता हूँ, हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार खाटू श्याम जी कलयुग में भगवान् श्री कृष्ण के अवतार हैं ! खाटू श्याम की कहानी मध्यकालीन महाभारत से शुरू होती है, पहले उन्हें बरबरीक के नाम से जाना जाता था ! बरबरीक, घटोत्कच और नाग कन्या मौरवी के पुत्र थे और बचपन से ही वीर और महान योद्धा थे, उन्होंने युद्ध कला अपनी माँ और भगवान् श्री कृष्ण से सीखी ! बाद में उन्होंने शिवजी की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और वरदान में तीन अमोघ बाण प्राप्त किये ! इन अमोघ बाणों के कारण उन्हें तीन बाणधारी के नाम से भी जाना जाने लगा, अग्निदेव ने भी प्रसन्न होकर उन्हें एक धनुष प्रदान किया जो उन्हें तीनों लोकों में विजयी बनाने में समर्थ था ! जब महाभारत के युद्ध का समाचार बरबरीक को मिला तो उनकी भी इस युद्ध में शामिल होने की इच्छा हुई ! युद्ध में जाने से पहले जब वो अपनी माँ से आशीर्वाद लेने पहुंचे तो उन्होंने अपनी माँ को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन भी दिया ! खाटूश्याम मंदिर का तो नारा भी है “हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा” ! वे अपने तीन बाण और अग्निदेव से प्राप्त धनुष लेकर कुरुक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े !
भगवान् कृष्ण जानते थे कि अगर बरबरीक इस युद्ध में शामिल हुए तो युद्ध का परिणाम क्या होगा, इसलिए उन्होंने ब्राहमण का भेष धारण करके बरबरीक की परीक्षा लेने के लिए उन्हें रोका ! जब बरबरीक ने श्रीकृष्ण को अपना परिचय देते हुए ये बताया कि वो मात्र तीन बाण से महाभारत के युद्ध में शामिल होने जा रहे है तो श्रीकृष्ण ने उनकी हंसी उड़ाई ! ये सुनकर बरबरीक ने कहा, कि उनका मात्र एक बाण ही शत्रु सेना को परस्त करने के लिए पर्याप्त है, और ऐसा करने के बाद वो वापिस तरकश में आ जायेगा ! ये तीन बाण तो समस्त ब्रह्मांड का विनाश करने के लिए काफी है, यह सुनकर श्रीकृष्ण ने जानबूझ कर उन्हें एक चुनौती दी, और उस पीपल के सभी पत्तों को एक बाण से बेधने को कहा जिसके नीचे खड़े होकर वे दोनों वार्तालाप कर रहे थे ! बरबरीक ने चुनौती स्वीकार करके अपने तूणीर से एक बाण निकाला और ईश्वर का ध्यान करते हुए बाण को पेड़ के पत्तो पर चला दिया ! बाण ने क्षणभर में ही पेड़ के सभी पत्तो को बेध दिया और अंत में श्रीकृष्ण के पैर के चारों ओर चक्कर लगाने लगा, श्रीकृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छुपा लिया था, इसलिए बाण ने उनके पैरों सहित पत्ते को बेध दिया ! कृष्ण जी इस बात से काफी प्रभावित हुए, तत्पश्चात उन्होंने बरबरीक से पूछा कि वो युद्ध में किसके पक्ष में युद्ध करेंगे !
बरबरीक ने अपनी माँ को दिए वचन को दोहराया और कहा युद्ध में जो पक्ष हार रहा होगा वो उसी के पक्ष में युद्ध करेंगे ! श्रीकृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की ही होगी और अगर बरबरीक ने हारते हुए कौरवों का साथ दिया तो परिणाम उनके पक्ष में चला जायेगा ! इसलिए बरबरीक को युद्ध में जाने से रोकने के लिए ब्राह्मण बने श्रीकृष्ण ने वीर बरबरीक से दान की इच्छा व्यक्त की ! बरबरीक वीर होने के साथ-2 दयालु भी थे इसलिए उन्होंने ब्राह्मण को दान देने का वचन दिया ! ब्राह्मण ने उनसे शीश दान माँगा, वीर बरबरीक क्षणभर के लिए तो अचंभित हुए लेकिन अपने वचन पर अडिग रहे ! वो समझ गए कि एक साधारण ब्राह्मण तो इस तरह का दान मांगने से रहा और ब्राह्मण से अपने वास्तविक रूप में आने की प्रार्थना की ! ये सुनकर श्रीकृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ गए और बरबरीक को शीश दान मांगने का कारण भी बताया ! बरबरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वे अंत तक इस युद्ध को देखना चाहते है, श्रीकृष्ण ने उनकी ये प्रार्थना स्वीकार कर ली ! श्रीकृष्ण ने बरबरीक के इस बलिदान से प्रसन्न होकर उन्हें सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत किया ! फिर उनके शीश को युद्धभूमि के पास ही एक पहाड़ी पर रख दिया गया जहाँ से वो पूरे युद्ध को देख सकते थे !
महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद पांडवों में आपसी विवाद होने लगा कि युद्ध में विजय का श्रेय किसे मिलना चाहिए ? इस विवाद को सुलझाने के लिए श्रीकृष्ण ने कहा कि बरबरीक ने सम्पूर्ण युद्ध देखा है इसलिए उनसे बेहतर निर्णायक कौन हो सकता है ! सभी लोग इस बात से सहमत हो गए और उस पहाड़ी की ओर चल दिए जहाँ बरबरीक का शीश रखा था ! बरबरीक ने कहा, उन्हें तो इस युद्धभूमि में चारों तरफ उनका सुदर्शन चक्र ही घूमता हुआ दिखाई दे रहा था जो शत्रु सेना का संहार कर रहा था ! इस युद्ध में उनकी उपस्थिति, युद्धनीति और दूरदर्शिता काफी निर्णायक रही, इसलिए युद्ध में विजय का श्रेय श्रीकृष्ण को ही दिया जाना चाहिए ! श्री कृष्ण ने वीर बरबरीक के महान बलिदान से प्रसन्न होकर उन्हें ये वरदान दिया कि वे कलयुग में उनके श्याम नाम से पूजे जायेंगे ! अगर कोई भी भक्त सच्चे मन और प्रेमभाव से उनकी पूजा करेगा तो उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी और सारे कार्य सफल होंगे ! बरबरीक के शीश को खाटू नगर में दफनाया गया जो वर्तमान में राजस्थान के सीकर जिले में पड़ता है, एक खुदाई के दौरान यहाँ ये शीश प्रकट हुआ, जिसे मंदिर के पुजारी के सुपुर्द कर दिया गया !
एक बार खाटू नगर के राजा रूपसिंह चौहान को स्वप्न आया जिसमें उन्हें शीश वाले स्थान पर मंदिर निर्माण और शीश को मंदिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया ! फिर खाटू नरेश ने यहाँ इस मंदिर का निर्माण करवाया और शीश की स्थापना भी की, बाद में मारवाड़ के एक शासक ने इस मंदिर का जीर्णोंद्वार करवाया ! इस मंदिर के दरवाजों पर और मुख्य भवन में खूब चाँदी लगी है, मुख्य भवन में शीश भी स्थापित है, तो ये था इस मंदिर का इतिहास ! चलिए, वापिस मंदिर में लौटते है जहाँ श्रृंगार हो चुका है और अब आरती शुरू होने वाली है, श्याम का श्रृंगार तो देखने लायक था, रंग-बिरंगे फूलों से सुशोभित शीश बहुत सुन्दर लग रहा था ! मंदिर परिसर में फोटो खींचने की मनाही थी इसलिए आपको इस लेख में फोटो की कमी खल सकती है ! आरती शुरू हुई तो कुछ ही देर में भक्तिमय माहौल तैयार हो गया, नतीजन, यहाँ आए सभी लोग प्रभु भक्ति में लीन होकर खुद को प्रभु से जुड़ा हुआ महसूस करते है ! ये आरती आधे घंटे तक चली, इस दौरान चारों तरफ घंटियों की आवाज सुनाई देती है, आरती के बाद हम अपने साथ लाए प्रसाद का भोग लगाते हुए और श्याम के दर्शन करते हुए मंदिर से बाहर आ गए ! जब हम मंदिर से बाहर निकले तब तक यहाँ अच्छी-खासी भीड़ हो चुकी थी, कतारे लोहे की रेलिंग तक पहुँच चुकी थी !
इस मंदिर से निकलकर हम यहाँ से कुछ दूरी पर स्थित एक कुंड की ओर चल दिए, इस कुंड के बगल में कई छोटे-2 मंदिर बने है ! लोग इस कुंड में स्नान भी करते है लेकिन हम अपने होटल से ही स्नान कर आए थे इसलिए कुंड के सामने से होते हुए मंदिर में चल दिए ! यहाँ हमने बारी-2 से सभी मंदिरों में दर्शन किया, और फिर कुछ देर के लिए एक पत्थर पर बैठ गए ! यहाँ आकर वाकई बड़ा आनंद आया, इन मंदिरों को देखकर इनकी प्राचीनता का अंदाजा ही लगाया जा सकता है ! कुछ देर बाद यहाँ से निकलकर हम वापिस अपनी धर्मशाला की ओर चल दिए, रास्ते में रूककर हमने एक जगह पेट पूजा भी की ! पहले एक दुकान पर कचोरी और जलेबी खाई, फिर आगे बढे तो रास्ते में कई पोहे वाले भी दिखाई दिए, हमने एक-2 प्लेट पोहे भी खा लिए ! यहाँ से फारिक हुए तो टहलते हुए अपनी धर्मशाला की ओर चल दिए, धर्मशाला के बाहर ही एक चाय की दुकान थी ! 4 चाय बनाने का आदेश देकर हम अपना सामान लेने धर्मशाला में चल दिए ! जब तक चाय बनकर तैयार हुई, हमने अपना सामान गाडी में रख लिया, चाय बढ़िया थी, एक-2 कप का आदेश फिर से दे दिया ! दूसरी चाय ख़त्म करके हम अपने अगले पड़ाव सालासर बालाजी की ओर चल दिए ! चलिए, इस लेख पर यहीं विराम लगाता हूँ यात्रा के अगले लेख में कुछ नई जगहों की सैर करवाऊंगा !
कुंड के पास का एक दृश्य |
क्यों जाएँ (Why to go Khatu Shyam): अगर आपको धार्मिक स्थानों पर जाना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटूश्याम जाकर आप निराश नहीं होंगे ! खाटूश्याम एक धार्मिक स्थल है, यहाँ बरबरीक को समर्पित एक मंदिर है ! भगवान् कृष्ण ने बरबरीक को वरदान दिया था कि कलयुग में वो कृष्ण जी के श्याम नाम से पूजे जायेंगे ! यहाँ दूर-2 से लोग दर्शन के लिए आते है, यहाँ आने वाले लोगों की कतार कभी कम नहीं होती !
कब जाएँ (Best time to go Khatu Shyam): आप साल के किसी भी महीने में खाटूश्याम जा सकते है, वैसे ज्यादा ठण्ड और ज्यादा गर्मी में ना ही जाएँ तो बेहतर होगा ! यहाँ जाने के लिए अक्तूबर-नवम्बर का समय सर्वोत्तम है !
कैसे जाएँ (How to reach Khatu Shyam): दिल्ली से खाटूश्याम की दूरी लगभग 280 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन सड़क मार्ग है दिल्ली से खाटूश्याम जाने के लिए सीधे बस सेवा तो नहीं है लेकिन आप जयपुर जाने वाली किसी भी बस से शाहपुरा तक जा सकते है ! शाहपुरा से खाटूश्याम जाने के लिए कई प्राइवेट सवारियां चलती है जो अजीतगढ़ होते हुए खाटूश्याम तक जाती है ! अगर आप रेल मार्ग से जाना चाहे तो रींगस यहाँ का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो मंदिर से लगभग 18 किलोमीटर दूर है ! स्टेशन से मंदिर जाने के लिए आपको कई सवारियां मिल जाएँगी !
कहाँ रुके (Where to stay near Khatu Shyam): खाटूश्याम में रुकने के लिए मंदिर के आस-पास कई धर्मशालाएँ और होटल है, जिनका किराया भी 500 रूपए से शुरू होकर 1000 रुपए तक है ! इन धर्मशालाओं में ज़रूरत की सभी सुविधाएँ मौजूद है, आप अपनी सहूलियत के हिसाब से कहीं भी रुक सकते है !
क्या देखें (Places to see near Khatu Shyam): खाटूश्याम राजस्थान के सीकड़ जिले में स्थित है यहाँ खाटूश्याम मंदिर के अलावा देखने के लिए अन्य कई स्थल है जिसमें देवगढ़ का किला, हर्षनाथ मंदिर और दंता रामगढ़ किला प्रमुख है ! ये जगहें मुख्य शहर से 40 किलोमीटर क्षेत्र में स्थित है ! देवगढ़ 40 किलोमीटर, रामगढ़ 30 किलोमीटर, और हर्षनाथ मंदिर 38 किलोमीटर दूर है !
अगले भाग में जारी...
खाटूश्याम - सालासर यात्रा
- गुडगाँव से खाटूश्याम की एक सड़क यात्रा (A Road Trip from Gurgaon to Khatu Shyam)
- खाटूश्याम – कलयुग में कृष्ण के अवतार (Khatu Shyam Temple of Rajasthan)
- खाटूश्याम से सालासर बालाजी की सड़क यात्रा (A Road Trip from Khatu Shyam to Salasar Balaji)
- सालासर बालाजी – जहाँ दाढ़ी-मूछ वाले हनुमान जी विराजमान है (Temple of Lord Hanuman in Salasar Balaji)
हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा...कलयुग के अवतार खाटू के श्याम बाबा के बारे में जानकर अच्छा लगा...
ReplyDeleteउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद प्रतीक भाई !
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