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बिरला मंदिर के बाहर पेट-पूजा करते हुए सोच रहा था कि अभी पागल बाबा का मंदिर तो खुला नहीं होगा ! इसलिए क्यों ना पहले श्री कृष्ण जन्मभूमि और द्वारकाधीश मंदिर देख लेता हूँ फिर रंगनाथ मंदिर जाते हुए रास्ते में थोड़ी देर रुककर पागल बाबा का मंदिर भी देख लूँगा ! ऐसा करने से मुझे दो फ़ायदे थे, एक तो कृष्ण जन्मभूमि देखने के लिए मुझे दोबारा वापिस नहीं जाना पड़ता क्योंकि ये दोनों स्थान बाकी मंदिरों से हटकर मथुरा की ओर थे ! दूसरा रंगनाथ मंदिर से वापसी करते हुए अगर समय बचा तो माँ वैष्णो देवी के मंदिर के दर्शन भी हो जाएँगे ! पेट-पूजा करके अपनी मोटरसाइकल उठाई और मथुरा-वृंदावन मार्ग पर मथुरा की तरफ चल दिया ! इस मार्ग पर डेढ़ किलोमीटर चलकर एक तिराहा आता है, कृष्ण जन्मभूमि जाने के लिए आपको इस तिराहे से दाएँ मुड़कर डेढ़ किलोमीटर सीधे चलना होता है, मैं इसी मार्ग पर हो लिया ! फिर एक पुलिस चौकी से आगे बढ़ते ही एक तिराहे से दाएँ मुड़कर मैं एक रिहायशी इलाक़े में पहुँच गया, यहाँ से बमुश्किल 5 मिनट की दूरी पर ही कृष्ण जन्मभूमि है !
कृष्ण जन्मभूमि का प्रवेश द्वार (Shri Krishna Janmbhoomi Entrance) |
आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि कृष्ण जन्मभूमि के खुलने का समय सुबह 5 से दोपहर 12 बजे तक और फिर दोपहर 2 से रात 8 बजे तक है ! मंदिर से 100 मीटर पहले ही आपको अपनी गाड़ी खड़ी करनी होती है, फिर ये दूरी आपको पैदल ही तय करनी होती है ! इस पैदल मार्ग पर जगह-2 पुलिस के बूथ बनाए गए है जो निजी गाड़ियों को अंदर नहीं जाने देते और यहाँ की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी इन्हीं लोगों के पास है ! पुलिस के अलावा सुरक्षाबल की कुछ टुकड़ियाँ भी यहाँ दिखाई दी, सुरक्षाबलों की तैनाती देख कर पूरा इलाक़ा छावनी जैसा लगता है ! हाँ, स्थानीय लोग अपने वाहन लेकर इस इलाक़े में आ-जा सकते है ! मैने अपनी मोटरसाइकल एक दुकान के सामने खड़ी कर दी और कृष्ण जन्मभूमि देखने के लिए पैदल चल दिया ! इस मार्ग के दोनों ओर जगह-2 आपको फेरी वाले दिखाई देंगे जो खाने-पीने से लेकर साज़-सज्जा का सामान बेचते है ! थोड़ी देर की पैदल यात्रा करके मैं कृष्ण जन्मभूमि के सामने गेट नंबर 3 पर पहुँचा, इस द्वार को श्री गोविंद द्वार के नाम से भी जानते है !
प्रवेश द्वार के दोनों ओर प्रहरियों की विशाल मूर्तियाँ बनी हुई है, जो सजीव सी लगती है ! प्रवेश द्वार के दोनों तरफ निरीक्षण कक्ष बने हुए थे, एक महिलाओं के लिए और दूसरा पुरुषों के लिए ! महिलाओं वाले निरीक्षण कक्ष के साथ ही एक सामान घर भी था, जहाँ आप अंदर जाने से पहले अपना सारा सामान जमा करवा सकते है और जन्मभूमि देखने के बाद वापिस ले सकते है ! दरअसल, सामान लेकर अंदर जाने पर मनाही है, इसलिए सामान घर के बाहर अच्छी ख़ासी भीड़ थी ! अंदर जाने वाले हर एक व्यक्ति को इन निरीक्षण कक्षों से होकर गुज़रना था, मैं अपने साथ एक बैग ले गया था, हालाँकि सामान रखने के लाइन उस समय बहुत लंबी तो नहीं थी ! लेकिन अंदर कैमरा ले जाना भी प्रतिबंधित था इसलिए पता नहीं क्यों द्वार के सामने आकर भी अंदर जाने का मेरा मन नहीं हुआ ! फिर एक दो फोटो मैने द्वार के सामने से ही लिए और वापिस अपनी मोटरसाइकल की ओर चल दिया ! हालाँकि, बाद में थोड़ा मलाल तो ज़रूर हुआ कि जन्मभूमि के द्वार तक पहुँचकर भी बिना अंदर गए वापिस आ गया !
अच्छा होता जो अंदर जाकर जन्मभूमि भी देख ही लेता, पता नहीं दोबारा कब मौका मिले ! वापिस आते हुए एक फेरी वाले से गोल-गप्पे खाए और फिर अपनी मोटरसाइकल लेकर द्वारकाधीश मंदिर की ओर चल दिया ! कृष्ण जन्मभूमि से द्वारकाधीश मंदिर की दूरी लगभग पौने दो किलोमीटर है, ये रास्ता एक भीड़-भाड़ वाले इलाक़े से होकर जाता है ! जन्मभूमि से वापिस उसी तिराहे पर पहुँचकर जहाँ बिरला मंदिर से आते हुए हम दाएँ मुड़े थे, एक बार फिर से मैं दाएँ मूड गया, अगर बाएँ मुड़ता तो वापिस बिरला मंदिर पहुँच जाता ! द्वारकाधीश मंदिर के लिए जाने वाला ये मार्ग शुरू में तो काफ़ी खुला है, फिर एक रिहायशी इलाक़े से होते हुए बाज़ार में से होकर निकलता है ! जाहिर सी बात है कि बाज़ार शुरू होते ही रास्ता भी संकरा होने लगा और भीड़-भाड़ भी काफ़ी बढ़ गई ! इस मार्ग पर सीधे जाते हुए आगे जाकर एक चौराहा आया, इस चौराहे से बाईं ओर जाने वाला मार्ग मंदिर तक जाता है ! इसी चौराहे पर एक जामा मस्जिद भी है, मथुरा के जामा मस्जिद के बारे में मुझे पहले जानकारी नहीं थी ! चौराहे से आधा किलोमीटर जाने पर सड़क के दाईं ओर द्वारकाधीश मंदिर है !
मंदिर के सामने से होकर निकल गया और पता भी नहीं चला, आगे जाकर पूछने पर पता चला कि मंदिर तो पीछे रह गया है ! दरअसल, ये मंदिर बाज़ार के बीच में है इसलिए हमेशा भीड़-भाड़ रहती है, अगर कोई ध्यान ना दे तो पता भी नहीं चलता और आप मंदिर से आगे निकल जाते है ! अभी मंदिर का द्वार बंद था, ये मंदिर सुबह साढ़े छह बजे खुलकर साढ़े दस बजे बंद होता है फिर शाम को 4 बजे खुलकर 7 बजे बंद हो जाता है ! मैने सोचा जब तक मंदिर नहीं खुला, यमुना के घाट ही घूम लेता हूँ, यमुना के घाट यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं है ! द्वारकाधीश मंदिर के सामने से जाती हुई एक पतली गली यमुना घाट तक जाती है, और ये ही क्यों इस बाज़ार से ऐसी कई गलियाँ यमुना घाट तक जाती है ! गली में मैने अपनी मोटरसाइकल खड़ी की और पैदल ही यमुना किनारे चल दिया, 10-12 कदम चलकर यमुना घाट पर पहुँच गया ! इस समय यहाँ यमुना घाट पर ज़्यादा लोग नहीं थे, गिनती के 2-4 लोग ही घाट पर घूम रहे थे और कुछ अन्य लोग यमुना में नौकायान का आनंद ले रहे थे !
घाट के किनारे ऊँचे-2 कुछ चबूतरे बने है, इन चबूतरों पर बैठकर यहाँ के पंडे लोगों को पूजा करवाते है ! ऐसे ही एक चबूतरे पर मैं चढ़ गया, यहाँ बिखरी हुई पूजा सामग्री देख कर मुझे अंदाज़ा हो गया कि हाल ही में यहाँ कोई पूजा सम्पन्न हुई है ! फिर वहीं घाट के किनारे दीवारों पर लिखी जानकारी से मुझे यकीन हो गया कि दो दिन पहले ही यहाँ कोई भव्य आयोजन हुआ था ! वैसे यहाँ वानरों का भी खूब आतंक है, चारों तरफ आतंक मचाते हुए वानर दिखाई दे रहे थे ! आने-जाने वाले लोगों के हाथ में खाने-पीने का सामान देख कर तो ये झपट ही पड़ते है, मैने तो ये भी सुना है कि ये वानर लोगों के फोन, पर्स, और चश्मे तक छीन कर ले जाते है ! वानरों से अपना सामान वापिस लेने के लिए आपको यहाँ के स्थानीय लोगों की मदद लेनी पड़ेगी, क्योंकि यहाँ के स्थानीय लोग जानते है कि इन वानरों से कैसे निबटा जाए !
एक बार मेरे एक परिचित ऐसी ही स्थिति में फँस गए थे जब एक वानर उनका चश्मा लेकर भाग गया था, चश्मा वापिस पाने के लिए उन्हें यहाँ के स्थानीय व्यक्ति की मदद लेनी पड़ी थी ! ये तो बात चश्मे की थी इसलिए उस स्थानीय व्यक्ति को ज़्यादा पैसा नहीं देना पड़ा लेकिन अगर आपका पर्स या कोई दूसरा महँगा सामान इन वानरों के पास फँस गया तो अपना सामान वापिस पाने के लिए आपको अच्छी-ख़ासी रकम चुकानी पड़ सकती है ! इसलिए मेरा सुझाव है कि अगर आप कभी वृंदावन आएँ तो ज़रा संभल के रहिएगा, वरना पता चला कि आप भी ऐसी किसी अप्रिय घटना का शिकार हो गए और आपकी यात्रा का मज़ा भी खराब हो गया ! घाट से कुछ फोटो खींचने के बाद मैं थोड़ी देर वहीं बैठ कर चारों ओर के नज़ारे देखता रहा, लेकिन थोड़ी देर में ही बोरियत होने लगी ! इस दौरान वानरों के कई झुंड घाट पर आ गए, अब तो मैने वापिस चलने में ही अपनी भलाई समझी, पता चला मेरा खाली बैग लेने के चक्कर में वानरों ने मुझपर ही हमला बोल दिया !
वापिस द्वारकाधीश मंदिर पहुँचा तो अभी 4 नहीं बजे थे इसलिए मंदिर के द्वार अभी तक बंद ही थे ! अचानक ही मेरी नज़र मंदिर के बाहर लगे सूचना पट्ट पर पड़ी जिसके अनुसार मंदिर के अंदर बैग, कैमरा वगेरह ले जाने की अनुमति नहीं है ! मैने कहा लो जी फिर से वही परेशानी शुरू, अब इस बैग को कहाँ ठिकाने लगाऊं ! सूचना पट्ट पढ़कर मेरा मोहभंग हो गया और यहाँ से भी बिना दर्शन ही वापिस चलने का विचार बना लिया ! इसी जल्दबाज़ी में इस मंदिर की कोई फोटो तक नहीं ले पाया ! यहाँ के बाज़ार में जगह-2 गंदगी के ढेर लगे हुए थे इसलिए वापिस जाकर फोटो लेने का विचार नहीं बना, मोटरसाइकल रोककर कुछ फोटो शहर की गलियों के ही ले लिए और आगे बढ़ गया ! यहाँ से निकलकर मेरा विचार पागल बाबा के मंदिर जाने का था, इस समय तक वो खुल भी गया होगा ! जामा मस्जिद के पास से होता हुआ भीड़-भाड़ से निकलकर मैं एक बार फिर से मथुरा-वृंदावन मार्ग पर पहुँच गया ! पागल बाबा के मंदिर जाने के लिए वृंदावन की ओर चल दिया, इसी मार्ग पर आगे जाकर रंगनाथ जी का मंदिर भी है जिसका वर्णन मैं अपने अगले लेख में करूँगा !
यमुना घाट (Yamuna Ghaat) |
यमुना नदी में नौकायान (Boating in Yamuna) |
द्वारकाधीश मंदिर जाने का मार्ग (Way to Dwarkadheesh Temple) |
द्वारकाधीश मंदिर जाने का मार्ग |
क्यों जाएँ (Why to go Vrindavan): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर धार्मिक नगरी की तलाश में है तो वृंदावन आपके लिए उपयुक्त स्थान है यहाँ भगवान कृष्ण को समर्पित इतने मंदिर है कि आप घूमते-2 थक जाओगे पर यहाँ के मंदिर ख़त्म नहीं होंगे ! वृंदावन के तो कण-2 में कृष्ण भगवान से जुड़ी यादें है, क्योंकि उनका बचपन यहीं ब्रज में ही गुजरा ! कृष्ण भक्तों के लिए इससे उत्तम स्थान पूरी दुनिया में शायद ही कहीं हो !
कब जाएँ (Best time to go Vrindavan): वृंदावन आप साल के किसी भी महीने में किसी भी दिन आ सकते है बस यहाँ के मंदिरों के खुलने और बंद होने का एक निर्धारित समय है अधिकतर मंदिर दोपहर 12 बजे के आस पास बंद हो जाते है ! फिर शाम को 5 बजे खुलते है, इसलिए जब भी वृंदावन आना हो, समय का ज़रूर ध्यान रखें !
कैसे जाएँ (How to reach Vrindavan): वृंदावन आने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन रेल मार्ग से है, मथुरा यहाँ का सबसे नज़दीकी बड़ा रेलवे स्टेशन है जो देश के अन्य शहरों से रेल मार्ग से बढ़िया से जुड़ा है ! मथुरा से वृंदावन की दूरी महज 15 किलोमीटर है, रेलवे स्टेशन के बाहर से वृंदावन आने के लिए आपको तमाम साधन मिल जाएँगे ! अगर आप दिल्ली से सड़क मार्ग से वृंदावन आना चाहे तो यमुना एक्सप्रेस वे से होते हुए आ सकते है ! दिल्ली से वृंदावन की कुल दूरी 185 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको ढाई से तीन घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Vrindavan): वृंदावन एक प्रसिद्ध धार्मिक शहर है यहाँ रोजाना दर्शन के लिए हज़ारों यात्री आते है ! लोगों के रुकने के लिए यहाँ तमाम धर्मशालाएँ और होटल है ! आप अपनी सहूलियत के हिसाब से 500 रुपए से लेकर 2500 रुपए तक के होटल ले सकते है !
कहाँ खाएँ (Eating option in Vrindavan): वृंदावन में अच्छा ख़ासा बाज़ार है जहाँ आपको खाने-पीने के तमाम विकल्प मिल जाएँगे ! मथुरा के पेड़े तो दुनिया भर में मशहूर है अगर आप वृंदावन आ रहे है तो यहाँ के पेड़ों के अलावा कचोरियों का स्वाद भी ज़रूर चखें !
क्या देखें (Places to see in Vrindavan): ये तो मैं आपको बता ही चुका हूँ कि वृंदावन भगवान कृष्ण की नगरी है यहाँ घूमने के लिए अनगिनत मंदिर है ! फिर भी कुछ मंदिर है जो यहाँ आने वाले लोगों में ख़ासे लोकप्रिय है जिनमें से कुछ है बांके बिहारी मंदिर, प्रेम मंदिर, बिरला मंदिर, जयपुर मंदिर, कृष्ण जन्मभूमि, माँ वैष्णो देवी मंदिर, रंगनाथ मंदिर और गोविंद देव मंदिर !
अगले भाग में जारी...
वृंदावन यात्रा
- वृंदावन के प्रेम मंदिर में बिताए कुछ पल (An Hour Spent in Prem Mandir, Vrindavan)
- वृंदावन के जयपुर मंदिर की एक झलक (A View of Jaipur Temple in Vrindavan)
- वृंदावन का खूबसूरत बिरला मंदिर (Birla Temple of Vrindavan)
- श्रीकृष्ण जन्मभूमि और द्वारकाधीश मंदिर (Shri Krishna Janmbhoomi and Dwarkadheesh Temple, Mathura)
- वृंदावन का पागल बाबा मंदिर (Pagal Baba Temple of Vrindavan)
- भगवान विष्णु को समर्पित रंगनाथ मंदिर (A Temple Dedicated to Lord Vishnu)
- हिंदू-मुस्लिम शिल्पकला का प्रतीक - गोविंद देव मंदिर (Beauty of Govind Dev Temple, Vrindavan)
- माँ वैष्णो देवी धाम – वृंदावन (Maa Vaishno Devi Temple, Vrindavan)
बहुत बढ़िया ! सुंदर आध्यात्मिक यात्रा
ReplyDeleteयोगी जी, जानकार अच्छा लगा कि लेख आपको पसंद आया !
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