पौडी - लैंसडाउन मार्ग पर है खूबसूरत नज़ारे (A Road Trip from Devprayag to Lansdowne)

रविवार, 26 मार्च 2017

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देवप्रयाग से चले तो हमारे पास दो विकल्प थे, या तो हम टिहरी जाकर डैम देखते या फिर यहाँ से पौडी होते हुए लैंसडाउन चले जाते ! हमने सोच-समझकर दूसरा विकल्प चुना, इसकी मुख्य वजह थी कि लैंसडाउन जाते हुए हम कई जगहें देख सकते थे जबकि टिहरी में डैम के अलावा बाकी जगहें थोड़ी दूर है ! फिर एक वजह ये भी थी कि मैने पौडी से अदवानी होते हुए सतपुली जाने वाले मार्ग पर पड़ने वाले घने जॅंगल के बारे में काफ़ी सुन रखा था ! बीनू भाई के ब्लॉग पर इस जगह के बारे में पढ़ा भी था और जंगल की फोटो भी देखी थी, बस तभी से मन में इस जगह को देखने की इच्छा थी ! अपने दोनों साथियों को इस बारे में पहले ही बता दिया था कि इस मार्ग पर नज़ारों के अलावा ज़्यादा कुछ देखने को नहीं मिलेगा ! इस पर उन्होनें कहा था कि तीनों दोस्त साथ में सफ़र कर रहे है इससे ज़्यादा हमें और कुछ नहीं चाहिए ! जहाँ ठीक लगे, ले चल यार, तूने जगह चुनी है तो बढ़िया ही चुनी होगी, बस फिर क्या था दोस्तों का साथ मिला तो हम भी चल दिए एक नए मार्ग पर कुछ नज़ारों की तलाश में !
गग्वारस्यूं घाटी का विहंगम दृश्य (A View of Gagwarsyun Valley)

पौने ग्यारह बजे देवप्रयाग स्थित अपने होटल से पौडी के लिए निकल पड़े ! वैसे इस मार्ग पर जाकर निराश कोई भी नहीं हुआ क्योंकि थोड़ी देर में ही खूबसूरत नज़ारों ने हमारा स्वागत करना शुरू कर दिया ! आधे घंटे भी नहीं चले थे कि हम हरे-भरे पेड़ों से घिरे बलखाते मार्ग पर पहुँच गए, यहाँ की खूबसूरती देख मेरे पैर अपने आप ही ब्रेक पर चले गए ! गाड़ी से उतरकर बाहर आए और प्रकृति के इन नज़ारों में खो गए, कुछ फोटो लेने के बाद आगे बढ़े ! इस समय यहाँ उत्तराखंड के अधिकतर मार्ग बुरांश के फूलों से लदे हुए थे, जिस किसी मार्ग पर भी हम निकल रहे थे लाल रंग के खिले बुरांश के फूल हमारा स्वागत करने को तैयार थे ! सड़क किनारे चीड़ के सूखकर गिरे हुए लाल रंग के पत्ते भी मार्ग की खूबसूरती को बढ़ा रहे थे ! रास्ते में जगह-2 सड़क के किनारे कुछ घाटियाँ भी दिखाई दे रही थी, हर मोड़ पर यही लगता है कि गाड़ी रोक कर कुछ नज़ारे देख लो ! लेकिन समय का ध्यान रखते हुए हम धीरे-2 आगे भी बढ़ते रहे ताकि बाद में भागम-भाग ना मचे ! देवप्रयाग से पौडी की दूरी लगभग 45 किलोमीटर है, और इस मार्ग पर दिखाई देने वाले नज़ारों की भरमार है ! 

दोपहर के 12 बज रहे थे हम देवप्रयाग से 32 किलोमीटर आ चुके थे जब सड़क के दाईं ओर हमें माता वैष्णो देवी का एक मंदिर दिखाई दिया ! ये मंदिर थोड़ी ऊँचाई पर था, लेकिन सड़क के किनारे से ही मंदिर तक जाने की सीढ़ियाँ बनी थी ! गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी करके हम मंदिर में दर्शन के लिए चल दिए, जैसे ही हम सीढ़ियों पर पहुँचे, सामने से एक ग्रुप में कुछ लड़के-लड़कियाँ दर्शन करके नीचे आ रहे थे ! बातचीत से पता चला ये कोटद्वार के किसी कॉलेज के छात्र थे जो यहाँ भ्रमण के लिए आए थे ! सीढ़ियाँ एक गुफा के अंदर से होते हुए मंदिर के बाहर वाले बरामदे तक जा रही थी, बरामदे में पहुँचे तो मंदिर के द्वार तो खुले थे लेकिन पुजारी यहाँ नहीं थे शायद मंदिर के ही किसी अन्य काम में व्यस्त थे ! ऐसे सुदूर इलाक़ों में स्थित इन मंदिरों में भीड़-भाड़ की कोई दिक्कत नहीं रहती, मैने पहाड़ी यात्राओं पर अब तक देखे किसी भी मंदिर में भीड़ नहीं देखी, हमेशा गिनती के लोग ही मिले है ! खैर, यहाँ प्रार्थना करने के बाद मंदिर परिसर में घूम कर कुछ फोटो ले और वापिस नीचे आ गए ! 

मंदिर शानदार जगह पर बना है, बरामदे से दूर तक दिखाई देता घुमावदार मार्ग सुंदर लगता है ! अभी भी हम पौडी से लगभग 10-12 किलोमीटर दूर थे, यहाँ से चलने के बाद रास्ते में फिर से खूबसूरत नज़ारों का दौर शुरू हो गया ! एक सूखा जंगल भी रास्ते में पड़ा, जहाँ रुककर हमने कुछ फोटो खिंचवाए ! पौडी पहुँचे तो यहाँ रुककर हमने रास्ते में खाने के लिए कुछ फल ले लिए, पौडी में डान्डा नागराजा का प्रसिद्ध मंदिर है, आप कभी इधर आओ तो इस मंदिर में भी ज़रूर जाना ! पौडी से चले तो अदवानी जाने वाले मार्ग पर चल दिए, यहाँ रास्ते में सड़क किनारे पुलिस अधीक्षक से लेकर जज के सरकारी निवास स्थान भी थे ! बहुत बढ़िया जगह पर सरकारी आवास स्थान बने हुए है, इन अधिकारियों के भी खूब मज़े आते होंगे ! खैर, पौडी से अदवानी के लिए निकले तो रास्ते में एक जगह गड़बड़ हो गई, यहाँ से दो रास्ते अलग हो रहे थे, नीचे जाने वाला रास्ता अदवानी फोरेस्ट होकर सतपुली को जाता है जबकि ऊपर वाला रास्ता बुआखाल होते हुए सतपुली को ही जाता है ! 

हमने बोर्ड पर लगे दिशा निर्देश नहीं देखे और ऊपर वाले मार्ग पर चल दिए, 3-4 किलोमीटर दूर जाने के बाद सड़क पर खड़े कुछ स्थानीय लोगों से पूछा तो हमें अपनी ग़लती का एहसास हुआ ! दोनों ही मार्गो से सतपुली की दूरी तो लगभग बराबर ही है बस 5-6 किलोमीटर का फ़र्क है ! लेकिन जो नज़ारे हम अदवानी फोरेस्ट में देखना चाहते थे अगर वोही छूट जाते तो फिर यहाँ आने का हमारा मकसद कैसे पूरा होता ! गाड़ी वापिस मोड़कर उस जगह पहुँचे जहाँ से रास्ते अलग हो रहे थे, इस बार हम नीचे वाले मार्ग पर चल दिए ! यहाँ सड़क किनारे ही फलों की कुछ दुकानें लगी थी, पौडी से लिए फल हम यहाँ आते हुए खा चुके थे, इसलिए यहाँ से भी कुछ फल खरीद लिए ! बुआखाल से होकर सतपुली जाने वाले मार्ग पर ज्वॉल्पा देवी का एक मंदिर पड़ता है उस मार्ग से सतपुली की दूरी लगभग 53 किलोमीटर है जबकि अदवानी फोरेस्ट वाले मार्ग से ये दूरी महज 48 किलोमीटर है ! 

एक मार्ग से तो हम आज ये सफ़र तय कर ही रहे थे लेकिन मेरा अनुमान है कि दूसरे मार्ग पर भी नज़ारे खूबसूरत ही होंगे ! अदवानी वाले मार्ग पर चलते ही गग्वारस्यूं घाटी का विहंगम दृश्य दिखाई देता है, गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी करके हमने इन नज़ारों का आनंद लिया ! कुछ समय यहाँ बिताकर हम आगे बढ़े क्योंकि हमें मालूम था कि ये तो अभी शुरुआत है इस मार्ग पर आगे एक से बढ़कर एक नज़ारे आने वाले है ! इस मार्ग पर पड़ने वाले जंगल के पेड़ इस समय सूखे हुए थे लेकिन जंगल की सुंदरता में अभी भी कोई गिरावट नहीं आई थी, वो अलग बात है कि बारिश के दिनों में इस जंगल की रौनक ही अलग होती होगी ! मुझे पक्के से तो नहीं पता लेकिन ऐसा सुना है कि इस वन्य क्षेत्र में तेंदुए और अन्य जीव विचरण करते रहते है ! वैसे भी अगर वन्य क्षेत्र में घूम रहे हो तो थोड़ा चौकन्ना तो रहना ही पड़ता है ! अदवानी से 20 किलोमीटर दूर अंदर जंगल में भी एक डान्डा नागराजा का मंदिर है, घने जंगल के बीच बना ये मंदिर भी बहुत खूबसूरत है ! 

मुख्य मार्ग पर चलते हुए सड़क किनारे जंगल में हमें एक टीला दिखाई दिया, गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी करके आधे घंटे हम सब इस टीले पर बैठकर अपने जीवन की इच्छाओं और उपलब्धियों पर चर्चा करते रहे ! यहाँ से आगे बढ़े तो रास्ते में एक जगह सड़क किनारे ऊँचे-2 चीड़ के पेड़ों का घना जंगल था यहाँ भी कुछ समय बिताकर आगे बढ़े ! इस मार्ग पर चलते हुए रास्ते में एक गाँव पड़ा, नाम था घड़ियाल, ये शशांक का ननिहाल था, शशांक अपने बचपन में यहाँ एक बार पहले भी आ चुका था ! यहाँ रुककर कुछ फोटो लिए और फिर सतपुली के लिए अपना सफ़र जारी रखा ! थोड़ी देर में हम सतपुली पहुँचे, पौडी से यहाँ आते हुए रास्ते में कोई भी पेट्रोल पंप नहीं मिला था, गाड़ी की टंकी खाली हो चुकी थी ! रास्ते में यही डर सता रहा था पता नहीं कितनी दूर पेट्रोल पंप है, यहाँ सतपुली में पेट्रोल पंप मिला तो गाड़ी में डीजल डलवा लिया ! सतपुली से कई जगहों के लिए रास्ते जाते है, बुआखाल से आने वाला मार्ग भी यहीं आकर मिलता है ! यहाँ से एक मार्ग गुमखाल होते हुए लैंसडाउन निकल जाता है, इसके अलावा कुछ अन्य मार्ग भी है जो अलग-2 जगहों पर जाते है ! 

सतपुली में रुककर थोड़ी जानकारी जुटाने के बाद हम गुमखाल वाले मार्ग पर चल दिए, सतपुली से लैंसडाउन की दूरी 31 किलोमीटर है ! 10-12 किलोमीटर चलने के बाद पहाड़ी से एक शानदार व्यू बनता है जहाँ नीचे वाली पहाड़ी पर बलखाती सड़क दिखाई देती है, आगे बढ़ने से पहले यहाँ रुककर हमने कुछ फोटो लिए ! आगे जाकर इसी मार्ग पर एक रास्ता कीर्तिखाल के लिए अलग होता है जिसपर भैरोंगढ़ी का प्राचीन मंदिर है ! शाम हो चुकी थी और कीर्तिखाल से भैरों गढ़ी मंदिर के लिए डेढ़ घंटे की पदयात्रा भी करनी पड़ती है ! वहाँ पहुँचते-2 ही रात हो जाती और फिर रात में वहाँ जाना संभव नहीं था इसलिए हम कीर्तिखाल के लिए ना मुड़कर सीधे ज़हरिखाल की ओर चलते रहे ! शाम के 6 बज रहे थे और थोड़ी देर में सूर्यास्त भी होने वाला था, फिर भी जहाँ कहीं सुंदर नज़ारे दिखाई देते हम उसे देखने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे थे ! आधे घंटे में सूर्यास्त भी हो गया, हम अभी भी ज़हरिखाल से 5 किलोमीटर दूर थे, पहाड़ी रास्ता था लेकिन गाड़ी की रोशनी से रास्ता साफ दिखाई दे रहा था ! 

सुबह से मैं ही गाड़ी चला रहा था, आज पहाड़ी मार्ग पर 150 किलोमीटर के आस-पास गाड़ी चली थी ! थोड़ी देर में हम ज़हरिखाल पहुँच गए, यहाँ एक होटल में जाकर कमरे के बारे में पूछा तो उसने 3000 रुपए माँगे, हम वापिस लौट आए ! मुझे मालूम था कि लैंसडाउन में होटलों का किराया यहाँ से अधिक ही होगा, फिर पूछताछ करते हुए ओम सुधा गेस्ट हाउस में एक कमरा मिला, किराए के लिए उसने 1200 रुपए माँगे, मोल-भाव करके 800 में सौदा तय हुआ ! अपना सामान लेकर हम कमरे में आ गए, फिर थोड़ी देर आराम करने के बाद ज़हरिखाल की सड़कों पर घूमने निकल पड़े ! लैंसडाउन यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं है ये महज 4-5 किलोमीटर दूर है ! यहाँ ज़हरिखाल में होटल लेने का एक और कारण ये भी था कि ये क्षेत्र लैंसडाउन के मुक़ाबले चीड़ के घने पेड़ों के बीच है इसलिए थोड़ा रोमांच बना रहता है ! फिर अगली सुबह हम यहाँ से बिना समय गँवाए लैंसडाउन घूमने निकल सकते थे ! आधे घंटे बाद टहल कर वापिस होटल पहुँचे तो थोड़ी देर बातें करने के बाद खाना खाने बैठ गए ! 

जब भोजन कर रहे थे तो होटल वाले ने अपने होटल के सामने की एक घटना का ज़िक्र कर दिया, वो बोला पिछली सर्दियों की ही बात है, कुछ मेहमान हमारे यहाँ ठहरे थे ! सुबह उठकर जब उन्होनें बालकनी से देखा तो सामने सड़क पर लगे होटल के बोर्ड के पास ही एक तेंदुआ खड़ा था ! होटल के सामने सड़क के उस पार नीचे जंगली इलाक़ा है इसलिए कभी-2 सुनसान होने पर जंगली जानवर घूमते हुए सड़क पर भी चले आते है ! अपनी पिछली लैंसडाउन यात्रा के दौरान सुबह सैर करते समय सियार की आवाज़ तो मैने भी सुनी थी ! खैर, जो भी हो सड़क पर टहलते हुए भी अंधेरा ही था सड़क किनारे मौजूद होटलों के बाहर लगी लाइटों से जो रोशनी हो रही थी उसी से थोड़ा बहुत कुछ दिखाई दे रहा था वरना चारों तरफ गुप्प अंधेरा ही था ! भोजन करके उठे तो थोड़ी देर बालकनी में टहलने के बाद आराम करने अपने बिस्तर में चले गए ! जैसे-2 रात हो रही थी मौसम भी ठंडा होने लगा था ! दिन भर गाड़ी चला कर थकान हो गई थी, इसलिए लेटते ही नींद आ गई, आँख खुली सुबह 6 बजे !


देवप्रयाग से पौडी जाते हुए

देवप्रयाग से पौडी जाते हुए

देवप्रयाग से पौडी जाते हुए


घाटी में नीचे दिखाई देती एक नदी


वैष्णो देवी मंदिर परिसर में

वैष्णो देवी मंदिर परिसर में

वैष्णो देवी मंदिर परिसर में

मंदिर परिसर से दिखाई देता मार्ग


बुरांश का फूल



गग्वारस्यूं घाटी का विहंगम दृश्य

पौडी से अदवानी जाते हुए

पौडी से अदवानी जाते हुए

पौडी से अदवानी जाते हुए




सतपुली से लैंसडाउन जाते हुए एक दृश्य 

सतपुली से लैंसडाउन जाते हुए एक दृश्य 

गुमखाल में सूर्यास्त का एक नज़ारा
क्यों जाएँ (Why to go Pauri): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो लैंसडाउन, पौडी, और देवप्रयाग आपके लिए बढ़िया विकल्प है ! इसके अलावा अगर आप प्राकृतिक नज़ारों की चाह रखते है तो आप निसंकोच इन जगहों का रुख़ कर सकते है !

कब जाएँ (When to go Pauri): देवप्रयाग, पौडी, और लैंसडाउन आप साल भर किसी भी महीने में जा सकते है बारिश के दिनों में तो यहाँ की हरियाली देखने लायक होती है लेकिन अगर आप बारिश के दिनों में लैंसडाउन या पौडी जा रहे है तो मेरठ-बिजनौर-नजीबाबाद होकर ही जाए ! गढ़मुक्तेश्वर वाला मार्ग बिल्कुल भी ना पकड़े, गंगा नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण नेठौर-चांदपुर का क्षेत्र जलमग्न रहता है ! वैसे, सावन के दिनों में ना ही जाएँ तो ठीक रहेगा उस समय कांवड़ियों की वजह से मेरठ-बिजनौर मार्ग अवरुद्ध रहता है !

कैसे जाएँ (How to reach Pauri): दिल्ली से लैंसडाउन की कुल दूरी 260 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 7 से 8 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से लैंसडाउन जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मेरठ-बिजनौर-नजीबाबाद होते हुए है, दिल्ली से खतौली तक 4 लेन राजमार्ग बना है जबकि खतौली से आगे कोटद्वार तक 2 लेन राजमार्ग है ! इस पूरे मार्ग पर बहुत बढ़िया सड़क बनी है, कोटद्वार से आगे पहाड़ी मार्ग शुरू हो जाता है ! लैंसडाउन से पौडी 84 किलोमीटर दूर है, इस दूरी को तय करने में आपको 3 घंटे तक का समय लग सकता है !  देवप्रयाग के लिए आप मुज़फ़्फ़रनगर-रुड़की-हरिद्वार होकर ही जाए तो ठीक रहेगा !

कहाँ रुके (Where to stay in Pauri): लैंसडाउन एक पहाड़ी क्षेत्र है यहाँ आपको छोटे-बड़े कई होटल मिल जाएँगे, एक दो जगह होमस्टे का विकल्प भी है मैने एक यात्रा के दौरान जहाँ होमस्टे किया था वो है अनुराग धुलिया 9412961300 ! अगर आप यात्रा सीजन मई-जून में लैंसडाउन जा रहे है तो होटल में अग्रिम आरक्षण (Advance Booking) करवाकर ही जाएँ ! होटल के लिए आपको 800 से 2500 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है ! यहाँ गढ़वाल मंडल का एक होटल भी है, हालाँकि, ये थोड़ा महँगा है लेकिन ये सबसे बढ़िया विकल्प है क्योंकि यहाँ से घाटी में दूर तक का नज़ारा दिखाई देता है ! सूर्योदय और सूर्यास्त देखने के लिए भी ये शानदार जगह है ! पौडी और खिर्सु में भी रुकने के लिए अन्य होटलों के अलावा गढ़वाल मंडल के होटल भी है 
!

क्या देखें (Places to see in Pauri): पौडी से अदवानी होकर लैंसडाउन जाने वाला मार्ग घने जंगलों के बीच से होकर निकलता है और प्राकृतिक नज़ारों से भरा पड़ा है ! इसके अलावा इसी मार्ग पर पौडी से थोड़ी आगे अदवानी मार्ग पर गग्वारस्यूं घाटी का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! पौडी में डान्डा नागराजा का मंदिर है और पौडी से महज 20 किलोमीटर दूर खिर्सु है, यहाँ से सूर्यास्त का शानदार नज़ारा दिखाई देता है ! पौडी से बुआखाल होते हुए लैंसडाउन जाने पर रास्ते में ज्वालपा देवी का मंदिर भी एक दर्शनीय स्थान है, पौडी से इस मंदिर की दूरी 33 किलोमीटर है !

Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

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